वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

आध्यात्मिक भौतिकवाद के प्रति OGGP का दृढ संकल्प 

21 दिसंबर 2023

Source: अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाइ जाये

हम अपने साथिओं को स्मरण कराना चाहते हैं कि गुरुवार का ज्ञानप्रसाद सम्पूर्णतया हमारे परम पूज्य गुरुदेव को समर्पित होता है, यहाँ तक कि आज का प्रज्ञागीत भी उन्हीं पर आधारित होता है। आदरणीय सुमनलता बहिन जी का गुरुवार को “गुरु-समर्पित” बनाने के लिए सुझाव का सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है जिसके लिए बहिन जी का बहुत बहुत धन्यवाद् है। 

आजकल तो वीडियो/ऑडियो/प्रज्ञागीत आदि के माध्यम से अनेकों साथिओं का, तरह तरह का सहयोग मिल रहा है, सभी का बहुत बहुत धन्यवाद् है। 

आज के लेख में  भौतिकता के कारण मनुष्य की आध्यत्मिकता से बन रही दूरी का वर्णन है, अनेकों उदाहरण की सहायता लेकर आध्यात्मिक भौतिकवाद जैसे जटिल विषय को समझने का प्रयास है। हमें विश्वास है कि इन लेखों को समझने के लिए कमैंट्स के माध्यम से साथिओं का सहयोग अनवरत मिलता रहेगा। 

तो आइए चलें गुरुकुल पाठशाला की आज की दिव्य गुरुकक्षा की ओर, गुरुचरणों में समर्पित होकर। 

सबसे पहले विश्वशांति के लिए शांतिपाठ प्रस्तुत है: 

ॐ असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ 

अर्थात 

हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।

मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥  

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भारतीय संस्कृति का मूल आधार अध्यात्म है। इसी के कारण हमारा देश समस्त विश्व  में अति प्राचीन काल से प्रसिद्ध और माननीय रहा है। आज के इस विज्ञान प्रधान युग में जहाँ हर  कोई मनुष्य विज्ञान और टेक्नोलॉजी की बात करते नहीं थकता और हर किसी समस्या का समाधान विज्ञान में ही ढूंढ़ता है,संसार के बहुसंख्यक तथकथित ज्ञानी विज्ञान की  प्रशंसा करते नहीं थकते, सच्ची बात तो यह है कि वर्तमान समय में मनुष्य यां  तो अज्ञानग्रस्त हो जाने से अध्यात्म का अर्थ ही नहीं समझते यां  पाश्चात्य भौतिकवाद से आकर्षित होकर अध्यात्म को अलाभकर (No profit)  और निकम्मा (Useless)  मान बैठे हैं। अगर कोई ऐसी धारणा बना कर  बैठा हुआ है तो यह उसकी भूल है  और उसकी भूल या अवहेलना के कारण अध्यात्म का महत्व तो नहीं घट सकता। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक सदस्य अध्यात्म के जटिल विषय का न केवल ज्ञान प्राप्त करने के लिए बल्कि उस पर चर्चा करने को संकल्पित हैं। ऐसा हम इस परिवार का सदस्य होने के कारण, यां फिर किसी प्रकार की विज्ञापन दृष्टि के वशीभूत नहीं  लिख रहे हैं बल्कि साथिओं के कमैंट्स के आधार पर लिख रहे हैं। अभी कल की ही बात है जब हमारी अति आदरणीय सहपाठी संध्या कुमार जी ने कमेंट करते हुए लिखा कि तन ढकने के लिए कपड़े की आवश्यकता तो है ही लेकिन अगर 2000 रुपए की  शर्ट के बजाए 1500 रुपए की शर्ट खरीद ली जाए तो 500 रुपए बच जायेंगें, यह 500 रुपए किसी सत्कर्म के लिए प्रयोग किये जा सकते हैं, यही है सही मायनों में अध्यात्म। हमारे परिवार में अधिकतर साथी ऐसे ही हैं, जो मणिमुक्तों की भांति एक अमूल्य माला में गुंथे हुए हैं। जहाँ तक विज्ञापन की  बात है, ऐसे परिवार के लिए जिसके  संरक्षक हमारे परम पूज्य गुरुदेव हों, विज्ञापन की क्या आवश्यकता है। 

संध्या बहिन जी का कमेंट भौतिकवाद पर एक कड़ा कटाक्ष है जिसकी अंधी दौड़, कृत्रिम चमक दमक ने आज के मानव की आँखें चुंदिया दी हैं। ऐसा भी नहीं है सारी दुनिया ही अध्यात्म को भूल कर भौतिकवाद के पीछे भाग रही है। सबसे बड़ी समस्या जिसका सामना  आज के  मानव को करना पड़ रहा है, वोह है अध्यात्मवाद को सही अर्थों में, अच्छी तरह से, बिना किसी शंका के समझ पाना। अज्ञान,अस्थिरता,इंस्टेंट आदि प्रवृति आज के मानव को अध्यात्म के जटिल, काम्प्लेक्स विषय को समझ पाने के लिए प्रेरित करने में असमर्थ समझी जा रही है। विज्ञान की तो बात अलग है,प्रयोगशाला में प्रयोग किया जाता है और परिणाम प्रतक्ष्य देखे जा सकते हैं, लेकिन अध्यात्म की प्रयोगशाला तो “आत्मा” है जिसकी स्टडी के लिए टेक्निकल उपकरणों का आविष्कार तो हो रहा है लेकिन – – – – –  भौतिकवाद और अध्यात्मवाद का बैलेंस रखना बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव-जीवन की गाड़ी कभी भी एक पहिये पर यानि  भौतिकवादी मान्यताओं पर सुचारु रूप से नहीं चल सकती । मनुष्य की आंतरिक  वृत्तियों की सफाई  और विकास बिना आध्यात्मिक प्रगति के नहीं हो सकती  और अध्यात्म से रहित व्यक्ति “मानव” कहलाने का अधिकारी नहीं बन सकता।

आधुनिक युग की  विषम परिस्थिति का मुख्य कारण (अन्य कारणों के साथ-साथ)  आध्यात्मिक भावना का अभाव होना ही है। मनुष्य ने धन को,भौतिक सम्पदा को ही सब कुछ मान लिया है और उसे प्राप्त करने के लिये भलाई/बुराई, नैतिकता/अनैतिकता, सदाचार/दुराचार आदि कोई भी हथकंडे अपनाने में ज़रा सी भी झिझक नहीं है। परिणाम यह हुआ है कि मनुष्यों की पारस्परिक सद्भावनाओं का निरन्तर हनन होता जा रहा  है और सर्वत्र एक निम्न स्तर की स्वार्थपरता, एक प्रकार का आसुरी संघर्ष उत्पन्न हो गया है। सामान्य व्यक्तियों से लेकर बड़े बड़े राष्ट्रों में भयंकर आपाधापी चल रही है और कहीं प्रत्यक्ष तथा कहीं अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे को हराने का प्रयत्न हो रहा है जिसके फलस्वरूप निकट भविष्य में एक नाशकारी संसार-संकट उत्पन्न हो जाने की सम्भावना  प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 

इन पंक्तियों को लिखते समय यानि 2023 के अंतिम दिनों की स्थिति के अनुसार समाचार पत्रों ने  आजकल चल रहे अनेकों युद्धों को World war 3 न सम्बोधित करके, Whole World at war की परिभाषा प्रयोग करना अधिक उचित समझा है । 

मनुष्य की हास्यास्पद स्थिति तो इस प्रकार की हो चुकी है कि मंदिर के अंदर तो गला फाड़-फाड़ कर ऊँची वॉल्यूम में,लाउड स्पीकर के साथ चिल्ला रहा है “तन,मन,धन सब कुछ है तेरा, तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा”, लेकिन बाहिर आते ही मेरी गाड़ी को किसने हाथ लगाया, जान लेने को ही तैयार हो जाए, पार्किंग वाले ने 2 रुपए अधिक मांग लिए तो गाली-गलोच, मार कटाई सामान्य बात है, मंदिर की भीड़ में किसी के साथ “तन” को कष्ट हो गया तो हाथापाई होने में देर तक नहीं लगती, तो क्या अंदर यही सब कुछ उस ईश्वर को अर्पण हो रहा था । ऐसी स्थिति को देखकर हमारी तो केवल एक ही प्रतिक्रिया है, “देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्, कितना बदल गया इंसान” तन भी मेरा , मन भी मेरा, धन भी मेरा: ऐसी स्थिति भौतिकता के विस्तार, अनैतिक मार्गों से कमाए धन के कारण दिखने को मिल रही है। मंदिर के अंदर तो मनुष्य कह रहा है,तन, मन, धन सब है तेरा, लेकिन बाहिर वोह अपना तो  क्या औरों के धन को भी हड़पने में लगा हुआ है। आज अगर ऐसे मनुष्यों को अध्यात्म और भौतिकता के  बैलेंस का पाठ पढ़ाकर, न समझाया तो वसुधैव कुटुंबकम की बात तो एक तरफ हम सब विनाश के सागर में डूब जायेंगें। 

आने वाले लेखों के लिए दृढ संकल्प लेने की आवश्यकता है कि परस्पर सहयोग से इन्हें अच्छी तरह समझकर, अंतरात्मा में उतारकर अन्यों को समझाने का प्रयास करें। अगर इस संकल्प का पालन हो जाता है तभी परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित अध्यात्म और भौतिकता के समन्वय वाले साहित्य की उपयोगिता सार्थक होगी। 

आधुनिक युग में प्रचलित छोटी से छोटी बात के लिए उपकरणों के प्रचलन और भौतिकता ने मनुष्य को इतना विलासी बना दिया है कि उसे इस बात का ज्ञान ही नहीं है कि बनावटी सुखों  के अतिरिक्त भी संसार में कोई सुख, कुछ कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व हैं। विलासिता का सबसे बड़ा दुर्गुण यह है कि वह भोग से बढ़ती है, शान्त नहीं होती। वासना की भूख न केवल अनैतिक आचरण करने को बाध्य करती है बल्कि  शरीर के  विषैले पदार्थों को उत्तेजित कर और अधिक भोग का आनन्द लूटने को दिग्भ्रान्त करती है। इन बुरे पदार्थों से वर्तमान मनुष्य के  स्वास्थ्य पर प्रभाव उतना बुरा और  घातक नहीं जितना आने वाली पीढ़ी पर पड़ता है। मानव  शरीर में प्रजनन कोश ( Genetic cells ) सबसे अधिक कोमल होते हैं, इन्हीं में बच्चों के शरीर निर्धारित करने वाले क्रोमोसोम (संस्कार कोष) पाये जाते हैं। भौतिकवादी मनुष्य में नशों के कारण यह गुण सूत्र अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। उसी का कारण होता है तरह-तरह की बिमारिओं से ग्रस्त बच्चे  पैदा होते हैं। 

यौन सुख की अनियन्त्रित बाढ़ आज के भौतिकवाद की भयंकर देन है। भौतिकवाद की यह देन लोगों के स्वास्थ्य को किस प्रकार नष्ट कर रही है, इसका सही अनुमान तो अस्पतालों में जाकर ही हो सकता है। भारत जैसे देश के लिए ऐसी समस्याओं के होने का कारण बड़ी आसानी से अशिक्षा कहा  जाता है, तो so called विकसित पाश्चात्य देशों में इन समस्याओं का कारण भौतिकवाद और Consumerism न कहा जाए तो और क्या कहें।  

भौतिकवाद द्वारा चलाई गयी  इस विनाशकारी आंधी से यदि मनुष्य बचना चाहता है तो इसका एकमात्र समाधान आध्यात्मिकता का आश्रय लेना ही है, विश्वास कीजिये इसके अतिरिक्त दूसरा कोई  समाधान है ही नहीं । केवल आध्यात्मिकता ही स्वास्थ्य, सदाचार, शान्ति और नैतिक मूल्यों को  स्थिर रख सकती है। 

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने Globalisation की सहायता से विकास में जो अभूतपूर्व सफलता प्राप्त  की है, वह बहुत ही सराहनीय है लेकिन इस विकास की आड़ में पश्चिमी देशों के  अन्धानुकरण में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। विकास का अनुकरण करना, यंत्रीकरण को बढ़ावा देना और देश में खुशहाली बढ़ाना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इस बात को भी भूलना नहीं चाहिए कि यन्त्र इतने  उपयोगी नहीं हैं जितना उन्हें आजकल महत्व दिया जा रहा है। लन्दन यूनिवर्सिटी के प्रख्यात भौतिकीय एवं रासायनिक विज्ञान के ज्ञाता प्रोफेसर हर्बर्ट  डिंगले (Herbert Dingle)  का कथन है कि जब हम उस विज्ञान की प्रकृति के बारे में विचार करते  हैं, जो आजकल प्रचलित है एवं जिसका उपयोग आजकल हो रहा है, हम ऐसी परिस्थितियां पायेंगे, जिनसे भगवान् के दूत भी रोने लगें। प्रोफेसर डिंगले फिलोसोफी और विज्ञान के इतिहास के भी एक्सपर्ट थे। यह वही प्रोफेसर हैं जिन्होंने सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक Albert Einstein की थ्योरी का विरोध किया था।  

यह ऐसा युग नहीं है कि मनुष्य आँख मूँद कर विज्ञान की उपयोगिता के आगे नतमस्तक होता जाए और आध्यात्मिक सत्यों को पूर्णरूपेण भुला दिया जाए। 

सोमवार  का लेख यहीं से आरम्भ होगा।

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 13  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज हमारी अनुराधा बेटी  गोल्ड मैडल विजेता है ।   

(1)वंदना कुमार-26 ,(2) सुमनलता-39,(3 )अरुण वर्मा-25 ,(4) संध्या कुमार-51,(5) सुजाता उपाध्याय-27 ,(6)चंद्रेश बहादुर-50 ,(7)रेणु श्रीवास्तव-42 ,(8 ) सरविन्द पाल-27  , (9)अनुराधा पाल-81 ,(10) नीरा  त्रिखा-26 ,(11 )मंजू मिश्रा-42,(12 )विदुषी बंता-31, (13) पुष्पा सिंह-28                  

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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