20 दिसंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
Source: अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
आज का प्रज्ञागीत सुख दुःख वाले शुभरात्रि सन्देश में विदुषी जी ने अपने कमेंट में अंकित किया था। रफ़्तार मूवी का 9 मिंट का यह गीत बहुत कुछ कह रहा है। बहिन जी का धन्यवाद्।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से अभी-अभी जिस लेख श्रृंखला का समापन हुआ है उसके अनुसार अध्यात्म के द्वारा समस्त समस्याओं का निवारण होना संभव है। अध्यात्म से ही जुड़ी एक कड़ी है जिसे “भौतिकता” का नाम दिया गया है। अक्सर ऐसी धारणा है कि अध्यात्मवादी लोग भौतिकता को अच्छी निगाह से नहीं देखते हैं, उनके अनुसार भौतिकता भोग विलास से सम्बंधित है, लेकिन ऐसा हरगिज़ नहीं है। आध्यात्मिकता और भौतिकता एक दुसरे के साथ ऐसे घुले हैं जैसे दूध में पानी।
आज के इस ओपनिंग लेख में आध्यात्मिकता और भौतिकवाद,विज्ञान और अध्यात्म जैसे जटिल शब्दों को समझने का प्रयास है।
हम अपने साथिओं का हृदय से धन्यवाद् करते हैं कि उन्होंने अध्यात्मवाद जैसे जटिल विषय को समझने और समझाने में हमारा पूर्ण सहयोग किया। अक्सर ऐसी धारणा होती है कि जब भी किसी कठिन विषय पर चर्चा करने की बात आती है तो हम क्लास bunk कर देते हैं। विद्यार्थी जीवन में अक्सर रोचक और सरल विषय की क्लास में हाज़री 100 % होती है जब कठिन क्लास में bunk मारे जाते हैं, लेकिन गुरुकक्षा में ऐसा कुछ भी नहीं है इस कक्षा की तो बेसब्री से प्रतीक्षा की जाती है, ऐसा अनेकों बार कमैंट्स में देखने को मिला है।
आने वाली लेख शृंखला परम पूज्य गुरुदेव की बहुचर्चित रचना “आध्यात्मिक भौतिकता अपनाई जानी चाहिए” पर आधारित है। 77 पन्नों की यह पुस्तक इतनी बहुचर्चित है कि पिछले 6 माह से शांतिकुंज से “आत्मचिंतन के क्षण” के अंतर्गत सन्देश शेयर किये जा रहे हैं। हमारा विश्वास है कि हम सब इक्क्ठे होकर गुरुचरणों में समर्पित होकर, गुरुदेव के मार्गदर्शन में,समर्पित विद्यार्थी की भांति गुरुकक्षा में मिले होमवर्क को कम्पलीट करने का प्रयास करेंगें ताकि हर घर परिवार में सुख शांति और आनंद का वातावरण हो।
आज के ज्ञानप्रसाद लेख के अमृतपान से और शांतिपाठ से पहले परिवार में प्रेरणा बिटिया के शुभ जन्मदिवस को मनाने का वातावरण है। आइए हम सब बेटी को अपनी शुभकामनाएं प्रदान करें और उसके मंगलमय जीवन की कामना करें।
ॐ असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थात
हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
***************
अध्यात्म और विज्ञान, पानी और दूध की तरह हैं। वे आपस में अच्छी तरह घुल-मिल जाते हैं। वे पानी और तेल की तरह नहीं हैं, जो आपस में मिलते ही नहीं, mix नहीं होते । भारत में हम सदा से “विज्ञान को अध्यात्म का और अध्यात्म को विज्ञान का विस्तार मानते रहे हैं।”
वास्तव में भारत में आध्यात्मिकता की शुरुआत स्वयं को जानने से होती है। सारा ब्रह्माण्ड कुल 36 तत्वों से बना है जिनमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश मुख्य हैं। इन्ही 36 तत्वों में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार भी आते हैं, चेतना को भी एक तत्त्व के रूप में गिना जाता है।
पूर्व और पश्चिम की सभ्यता कभी भी आपस में मेल नहीं खा सकती। पूर्व में यानि भारत जैसे देश में गाड़ियां बाईं तरफ चलती हैं लेकिन पश्चिमी देशों में दाईं तरफ चलने का प्रचलन हैं। भारत में मौसम के साथ समय में अदल बदल होता है जबकि पश्चिम में घडिओं का समय बदला जाता है।
पश्चिम में विज्ञान और अध्यात्म के बीच सदिओं से संघर्ष रहा है। इन देशों में कई वैज्ञानिकों को प्रताड़ित किया गया है लेकिन पूर्व ऐसा कभी नहीं हुआ। पूर्व की प्राचीन परम्पराओं में नास्तिक धर्म को भी स्वीकार किया जाता रहा है। ऐसा इसलिए है कि दोनों के मापदंड अलग हैं। पाश्चात्य जगत में कहते हैं : पहले तुम विश्वास करो और एक दिन तुम जान जाओगे लेकिन पूर्व में कहते हैं: पहले अनुभव करो, फिर आप विश्वास करने लगोगे। विज्ञान का भी यही मापदंड है। इसलिए शायद विज्ञान और पुरातन अध्यात्म के बीच कभी टकराव नहीं हुआ।
आइए ज़रा देखें कि जब हम आनंद का अनुभव करते हैं, तो क्या हो रहा होता है। आनंद प्राप्त होते ही हमारी व्यक्तिगत सीमाएं सार्वभौमिक ऊर्जा को रास्ता देती हैं । In this situation we want to release our energy to the universe. यही कारण है कि जब भी हमारे साथ कोई प्रसन्नता वाली बात घटित होती है तो हम भाग-भाग कर सभी को बताना चाहते हैं, इसे “विस्तार की भावना” कहते हैं । इसके उल्ट जब हम दुःखी होते हैं तो हमारा किसी से बात करने को मन नहीं करता, हम अकेले रहना कहते हैं, हम अकेले अपने कमरे में ही सीमित रहना चाहते हैं, इसे “सिकुड़न की भावना” कहते हैं । हर किसी के लिए ऐसा अनुभव होना सामान्य है। कभी सोचा है कि इस विस्तार और सिकुड़न की स्थितिओं के पीछे कौन है ? कौन है जो इन स्थितिओं को कण्ट्रोल कर रहा है ? दोनों प्रश्नों का उत्तर है “आत्मा।” प्राचीन ऋषियों ने कहा है कि जो हमारे भीतर फैलता है (यानि आत्मा) उसे जानने की सबसे अधिक आवश्यकता है। वह चैतन्य या चेतना है।
हमारा सौभाग्य है कि आज विज्ञान ने अध्यात्म के क्षेत्र में हो रहे प्रयोगों से हाथ मिलाया है जिसने वैज्ञानिक अध्यात्मवाद ( Scientific spirituality) जैसे विषय को जन्म दिया है। आज अनेकों ऐसे उपकरण उपलब्ध हैं जिनके उपयोग से निम्लिखित जैसे अनेकों तथ्यों को मापा जा सकता है :
आपके मस्तिष्क की तरंगें कैसी हैं, आप कितने सुसंगत हैं,कितने सुशील हैं, कितने क्रोधी हैं आप कितने तनाव मुक्त हैं, आप कितने प्रसन्न हैं।
किर्लियन फोटोग्राफी और औरा ( Aura) मशीन से आप अपनी “आभा” को भी माप सकते हैं। ये उपकरण बहुत स्पष्ट रूप से उन व्यक्तिगत अनुभवों से सह-सम्बंधित हैं, जो लोग हज़ारों वर्षों से कर रहे हैं।
आज के युग में अध्यात्म कोई काल्पनिक विज्ञान नहीं है, यह एक प्रैक्टिकल विज्ञान है, जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में बहुत सहायक है। अध्यात्म एक ऐसा यंत्र है जिसके माध्यम से एक आनंदित, शांतिपूर्ण, अधिक प्रेमपूर्ण, आत्मविश्वास और करुणा से भरा मन create किया जा सकता है। धरती का कोई भी प्राणी यह नहीं कह सकता कि मेरा जीवन आध्यात्मिक नहीं है या मैं ऐसा जीवन नहीं चाहता जिसमें आनंद, शांति प्रेम आदि न हों। ऐसा इसलिए है कि सभी प्राणी, शरीर और आत्मा दोनों से बने हैं।
आज के युग में विज्ञान और अध्यात्म आपस में शत्रु नहीं हैं। दोनों में कोई संघर्ष नहीं है । अध्यात्म यह समझ देता है कि हम केवल शरीर नहीं हैं, चेतना (Consciousness) भी हैं। वास्तव में, आध्यात्मिकता अज्ञान से भरी सभी धारणाओं से मुक्ति दिलाती है।
हमारा शरीर कई तरह के भौतिक तत्वों से बना है, लेकिन इस शरीर में जो बुद्धि है, वह इसी आत्मा से बनी है। शांति,आनंद,चेतना आदि सभी आत्मा के ही सद्गुण हैं और क्रोध जैसे दुर्गुण भी इसी आत्मा का रूप है। सद्गुण और दुर्गुण सभी चेतना के ही भाग हैं ।
हमारे शरीर में एक बहुत ही complex organ है जिसे हम “मस्तिष्क” कहते हैं मस्तिष्क बहुत जटिल है और इसका अध्ययन बहुत ही रोचक है। जब हम मन के पार जाते हैं, तो हम चेतना के एक बड़े क्षेत्र में पंहुच जाते है। मन को समझ पाने का विज्ञान भी बहुत ही रोचक और काम्प्लेक्स है। जब हम किसी भौतिक वस्तु को जानने के लिए प्रश्न करते हैं तो हम कहते हैं, “यह क्या है ?” हमारा शरीर भी तो भौतिक पदार्थों से बना है। शरीर के बारे में जानने के लिए ही जब प्रश्न किया जाता है तो यही कहा जाता है “यह क्या है ?” यह विज्ञान है, लेकिन जब आत्मा की बात आती है तो “यह क्या है ?” वाला प्रश्न “यह कौन है?” में बदल जाता है, यह अध्यात्म है।
इस व्याख्या से हम देख सकते हैं कि शरीर और आत्मा कैसे एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। शरीर भौतिक है जिसकी स्टडी के लिए विज्ञान की आवश्यकता पड़ती है और आत्मा की स्टडी के लिए अध्यात्म की आवश्यकता होती है।
जिस प्रकार शरीर और आत्मा एक दुसरे के साथ गुंथे हुए हैं, ठीक उसी तरह विज्ञान और अध्यात्म भी परस्पर सम्बंधित हैं। आध्यात्मिकता और भौतिकता दोनों ही अनिवार्य हैं। एक ( आध्यात्मिकता) सुखी जीवन के लिए महत्वपूर्ण है तो दूसरा (भौतिकता) एक विकसित समाज में प्रगतिशील जीवन के लिए अपना स्थान बनाए बैठा हुआ है।
आज के इस जनरल लेख का यहीं पर समापन होता है।
***************
संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 13 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज रेणु जी गोल्ड मैडल विजेता हैं ।
(1)वंदना कुमार-24,(2) सुमनलता-25,(3 )अरुण वर्मा-24,(4) संध्या कुमार-36,(5) सुजाता उपाध्याय-43,(6)चंद्रेश बहादुर-24,(7)रेणु श्रीवास्तव-61,(8 ) सरविन्द पाल-24 , (9)अनुराधा पाल-54,(10) निशा भारद्वाज-49,(11)नीरा त्रिखा-29,(12 )मंजू मिश्रा-39 , (13)विदुषी बंता-25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।
