वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

चाकू फल छीलने के लिए है यां हत्या के लिए?

https://drive.google.com/file/d/12p2vmzk1Erl-DT_f5oYX76YNR3f4667Y/view?usp=drive_link

Source: समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म

11 दिसंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद

आज के प्रज्ञागीत के लिए चंद्रेश जी का धन्यवाद करते हैं।   

सप्ताह बीतते पता नहीं चलता कि  कब सोमवार आ जाता है और कब शनिवार आ जाता है, यही है गुरुदेव के दिव्य साहित्य का चमत्कार, कुछ और सोचने का समय ही नहीं मिलता।  हम सब परिवारजन नई ऊर्जा के साथ, गुरु के साहित्य का,गुरुचरणों में समर्पित होकर, गुरुकक्षा में पूर्ण श्रद्धा से अमृतपान करते हैं। 

आज की गुरुकक्षा  में उस विषय पर चर्चा हो रही  है जिससे आज का प्रत्येक समाज बुरी तरह से प्रभावित है। आज के मनुष्य ने जिस स्तर का भौतिक  विकास किया है, वह जितना self-sufficient हुआ है क्या उसी अनुपात में उसका  अंतःकरण भी विकसित हुआ है। अगर भौतिकवाद से अंतःकरण की शांति प्राप्त हो सकती होती तो पाश्चात्य देशों में कोई समस्या होती ही नहीं, लेकिन इसकी असलियत हम सब जानते हैं। एक बार फिर कहना पड़ेगा “समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म ही है।”

आज हमारी समर्पित साथी वंदना जी की बेटी काशवी का दूसरा शुभ जन्म दिवस है, आइए हम सब परिवारजन छोटी सी परी काशवी को गुरुदेव के  संदेश से अपना आशीर्वाद प्रदान करें।

हमारे समर्पित साथ सरविन्द जी कानपुर में होने वाले यज्ञ की जानकारी अनवरत भेज रहे हैं, इस जानकारी को एक वीडियो क्लिप के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं । पुष्पा जी एवं अरुण जी भी पटना यज्ञ की जानकारी भेज रहे हैं लेकिन उसके लिए हम pyp के यूट्यूब चैनल को विजिट करना ही उचित समझ रहे हैं क्योंकि वहाँ बहुत कुछ High quality प्रकाशित हुआ है। 

तो इन शब्दों  के साथ गुरुचरणों में समर्पित होते हैं। 

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यह संसार भगवान का सुरम्य उद्यान है। मनुष्य उसका ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार है। उसे इस उपवन में सुख शांति से विचरते हुए, इसकी रक्षा करने के लिए  भेजा है। ईश्वर ने पर्याप्त सुविधा साधन देकर मनुष्य को इस उपवन की  परिस्थितियाँ और अधिक अच्छी बनाने में कुशलता दिखाने का काम सौंपा है। ईश्वर का अटूट विश्वास था कि मेरे ज्येष्ठ राजकुमार की बुद्धि  में वोह क्षमता है कि वह मरुस्थल में भी फूल खिला सकता है। मनुष्य को इतने उच्चकोटि के अनुदान प्रदान करने के पीछे ईश्वर का केवल एक ही उद्देश्य था कि मेरे  राजकुमार को निरंतर हर्षोल्लास की अनुभूति होनी चाहिए। एक पिता अपने बच्चों की सुख समृद्धि के लिए, खुशी  के लिए आकाश के सितारे भी तोड़ कर लाने को तत्पर रहता है, ठीक उसी प्रकार इस परम-पिता परम-आत्मा ने भी मनुष्य को दुर्लभ से दुर्लभ अनुदान प्रदान किये।  सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व पाने वाला मनुष्य इस धरती को स्वर्ग बना सकने की संभावनाओं से पूरी तरह सुसज्जित है। ईश्वर ने केवल निर्वाह के  ही नहीं बल्कि आनंद और उल्लास के भी प्रचुर साधन उपलब्ध कराए  हैं। मनुष्य का इस पृथ्वी पर एकछत्र राज्य है, उसकी उपलब्धियों पर आश्चर्य प्रकट किया जाता है। 

बड़े आश्चर्य की बात है कि हर समस्या को सहज ही सुलझा सकने में समर्थ मनुष्य कौन सी  गुत्थियों में जकड़ा पड़ा है, जो सुलझने का नाम ही नहीं लेतीं, यह गुत्थियां डरावनी काली घटाओं की तरह निरंतर और अधिक सघन होती चली जाती हैं, इतना विकसित होने के बावजूद, चाँद पर अपना अधिपत्य कायम करने वाले मनुष्य में अधिकतर रोना-रुलाना, कलपना कलपाना ही  पाया जाता है। अपने आस पास दृष्टि फैला का देखा जाए तो शायद ही कोई विरला दिख जाए जो अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हो, ईश्वर का धन्यवाद् कर रहा हो, शिकायतों का पुलंदा लेकर न घूम रहा हो।

आज के मनुष्य की इस व्यथा को देखकर ईश्वर भी व्यथित हो रहे होंगें कि इतना कुछ देने के बावजूद मैं अपने बच्चे को आंतरिक शांति न प्रदान कर सका। परमपिता तो सब जानते हैं, अन्तर्यामी हैं और वोह सोच रहे होंगें कि इस कृतघ्न बच्चे का क्या करूँ जिसकी तृष्णा का तो कोई अंत ही नहीं है।  विकास, प्रगति,प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ ने इसे ऐसा अमानुष बना दिया है कि वह कुछ भी करने को तैयार है, कुछ भी।  

ईश्वर जानते हैं कि आज के मनुष्य ने विकास और प्रगति के नाम पर जहाँ इतनी सफलताएं अर्जित की हैं, वहीँ इन सफलताओं का दुरूपयोग करके नई से नई समस्याओं को भी जन्म दिया है। विकास और शांति के उत्तम उद्देश्य को लेकर आरम्भ हुई   Nuclear रिसर्च इतना भयानक रूप ले लेगी कि एक देश दुसरे को डराने धमकाने में बहुत गौरव महसूस कर रहा  है। चाकू का अविष्कार  सब्ज़ी काटने के लिए हुआ था न कि अपनों का ही गला काटने के लिए। वसुधैव कुटुंबकम (सारा विश्व मेरा परिवार) का ढिंढोरा पीटने से पहले मनुष्य अपने परिवार, जिसमें हम रहते हैं उसे तो संभाल ले, उसकी तो रक्षा कर ले। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार, एक बहुत ही छोटा सा किन्तु समर्पित परिवार इस दिशा में क्या कुछ कर रहा है, कैसे अपनत्व, स्नेह और संबंधों का पालन कर रहा है, सब जानते हैं। इसका केवल एक ही कारण है और वोह है इस परिवार के रचयिता, संरक्षक  एवं सूत्रधार, परम पूज्य गुरुदेव, जिनके स्नेह एवं अपनत्व पर कोई भी प्रश्नचिन्न नहीं लगा सकता। इस परिवार का एक एक सदस्य इस धारणा में अटूट विश्वास रखता है कि परम पूज्य गुरुदेव अपनी सूक्ष्म दृष्टि से हमें देख रहे हैं और ऊँगली पकड़कर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।  

आज  से कुछ समय पूर्व मनुष्य इतना विवश और निराश नहीं था जितना आज का स्वयं को प्रगतिशील कहलाने वाला मनुष्य है। ज़्यादा पीछे जाने की आवश्यकता ही नहीं है, अपने बाप, दादा यानि दो पीढ़ी पीछे ही जाकर देखा जा सकता है कि आज के so called विकास के आभाव में भी वोह पीढियां कितनी सुखी और संतुष्ट थीं। उन पीढ़ियों में साधन भले ही कम रहे हों लेकिन  लोग मिल-जुलकर रहते थे और एक दूसरे के प्रति सहयोग,  सद्भाव, उदारता, आत्मीयता अपनाकर अधिक सुखी और संतुष्ट थे। आज के युग को देखकर कर लगता है कि कोई महादैत्य मनुष्य की पारिवारिक सहभागिता का  दुर्लभ सौभाग्य छीनता ही चला जा रहा है।

सिंह और व्याघ्र के आक्रमण एवं  आतंक की बात समझ में आती है, सांप और बिच्छू, दोनों की प्रकृति का भय समझ में आता है लेकिन मनुष्य और मनुष्य के बीच का  डर, मनुष्य और मनुष्य के बीच का शोषण, मनुष्य का मनुष्य का  ही शिकार किया जाना, मनुष्य द्वारा ही  मनुष्य का रक्तपान करना, मनुष्य को मनुष्य के ही आतंक से काँपना, कितनी विलक्षण  स्थिति है। मनुष्य एक सहकारिता प्रिय प्राणी है, उसका स्वभाव ऐसे कुकर्मों के लिए नहीं है, फिर अपराधों,आक्रमणों और युद्धों की  धूम क्यों बनी हुई है ? 

राजनीति के क्षेत्र में विग्रहों का अंत नहीं। शासन तंत्र चलाने वाले नेताओं के मस्तिष्क पर इतना दबाव रहता है कि वे एक दिन भी  चैन से नहीं रह पाते। कई बार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का हल खोजने के लिए ईमानदारी से प्रयत्न तो होते  हैं लेकिन  कुछ बन नहीं पाता। एक सिरे को ढकने की बात बन नहीं पाती कि दूसरा सिरा उघड़कर नई चिंता उत्पन्न कर देता है।

आज के युग में सामाजिक समस्याएँ भी कम नहीं हैं । समाज के मूर्धन्य व्यक्ति इन समस्याओं से  चिंतित हैं और समाधान के लिए अपने ढंग से प्रयत्न करते भी  हैं लेकिन देखने में यही आ रहा है कि एक गुत्थी सुलझने नहीं पाती कि दूसरी नई उठकर खड़ी हो जाती है। एक रोग अच्छा नहीं हो पाता कि दूसरा नया उठ खड़ा हो जाता है। एक युद्ध समाप्त नहीं होता  कि नये युद्ध की नींव पड़ जाती है।

इन सारी  समस्याओं का कारण मनुष्य का बिगड़ा हुआ  चिंतन ही है जो  समाज के लिए नित नई  समस्याएँ उत्पन्न करता है। उदाहरण के लिए युद्ध और उपद्रवों को ही बात करें तो देखने में आता है कि एक वर्ग दूसरे वर्ग से इस बात से डरा हुआ है कि कहीं वह उसे हानि न पहुँचा दे। बन्दुक और कारतूस का ज़माना तो बीत गया,अब तो अधिकतर देश Nuclear weapons के ढेर लगाकर बैठे हुए हैं, ऐसे weapons जिनसे कुछ ही मिनटों में सारा विश्व ढेर हो जाए। ऐसी स्थिति में एक राष्ट्र दूसरे  राष्ट्र को दबाकर रखने के लिये तरह-तरह के उपाय खोज रहे हैं । युद्ध इसीलिए लड़े जाते हैं कि कहीं कोई राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को हड़प न लें। एक तरह से युद्ध की समस्या का समाधान करने के लिए ही युद्ध लड़े जाते हैं। प्रथम विश्वयुद्ध इसलिये लड़ा गया था, ताकि युद्ध समाप्त हो जाएँ । युद्ध समाप्त हुआ भी लेकिन  कुछ ही वर्षों में फिर दूसरा विश्व युद्ध लड़ा गया। उसके पीछे भी यही तर्क दिये गये। द्वितीय विश्वयुद्ध में कुछ और अधिक Self-dependent होने लायक स्थिति बनी लेकिन अब तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारियाँ भीतर ही भीतर चल रही हैं।

इस ज्ञानप्रसाद लेख में जितनी भी बात लिखी जा रही है किसी भी प्रकार की निराशा उत्पन्न करने या मनोबल गिराने के लिए नहीं कही जा रही है,यह चर्चा केवल वस्तु स्थिति का विश्लेषण ही है।  

इस विश्लेषण से भलीभांति अनुभव किया जा सकता है कि समस्याओं के बाहरी समाधान कितने खोखले हैं। आधुनिक युग की भौतिक प्रगति पर प्रसन्नता तो  व्यक्त की जा सकती है, जो सफलता प्राप्त हुई है, वह सराहनीय है लेकिन इस प्रगति से प्रभावित मनुष्य ने यह भुला दिया कि इन सभी भौतिक उपलब्धियों का “सदुपयोग” ही कल्याणकारी है । चाकू से फल भी छीले जा सकते हैं और किसी की हत्या भी की जा सकती है। सुई से कपड़ों की सिलाई भी होती है और चुभोने में  दर्द भी होता है। यदि सामाजिक शत्रुता का मूल कारण समझ आ जाए  तो उपलब्ध साधनों से ही स्थिति को बदला जा सकता है। मनुष्य को समझना होगा कि  समाज की कोई स्वतंत्र सत्ता ( Independent identity) नहीं होती।  अलग अलग प्रवृतिओं के मनुष्यों के  समूह को  ही समाज कहते हैं। जैसे मनुष्य होंगें  वैसा ही समाज बनेगा। वैयक्तिक समस्याएँ ही इकट्ठी होकर सामाजिक समस्याएँ बन जाती हैं। 

आज के लिए बस इतना ही। 

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज संध्या जी और सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।  

(1)वंदना कुमार -26,(2) सुमनलता-32,(3 )अनुराधा पाल-36,(4) संध्या कुमार-42,(5) सुजाता उपाध्याय-38,(6) नीरा त्रिखा-26,(7)चंद्रेश बहादुर-31,(8)रेणु श्रीवास्तव-36,(9 ) मंजू मिश्रा-30,(10) सरविन्द पाल-40,(11 )अरुण वर्मा-25,(12) प्रेरणा कुमारी-24      

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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