7 दिसंबर, 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शीर्षक बहुत ही Eye-catching है, आकर्षक है। संत इमर्सन ने यह शिक्षा आस्था में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से कही है। परम पूज्य गुरुदेव की भांति संत इमर्सन भी समस्त सुखों का आधार अध्यात्म ही बताते हैं
1998 में पहली बार प्रकाशित पुस्तक “समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म” जिस पर आधारित लेख श्रृंखला का यह 12वां लेख है, हमारी सबकी बेटी संजना द्वारा सुझाई गयी थी। अभी भी इस पुस्तक के 21 पृष्ठ,जो समाजपरक विषय पर आधारित हैं, अध्ययन करने बाकी हैं। हमारे साथिओं ने अनुभव किया होगा कि जिस प्रकार का विस्तृत अध्ययन एवं विश्लेषण किया गया है, अवश्य ही समस्याओं के समाधान में सहायता प्राप्त हुई होगी। अध्यात्म की विषय इतना जटिल और पेचीदा है कि इसे पढ़ने के बजाए निभाना और अंतःकरण में उतारने की आवश्यकता है।
परम पूज्य गुरुदेव के साहित्य के बारे में हमारा विश्वास ( चाहे अंधविश्वास ही कह लें ) इस स्तर का है कि अगर sleeplessness की समस्या है, पाचन शक्ति की समस्या है, concentration की समस्या है तो किसी डॉक्टर आदि के पास भागने की आवश्यकता नहीं है, उठाओ अखंड ज्योति, कोई भी पन्ना खोल लो, आधा पन्ना पढ़ते ही गुरुदेव अपनी गोदी में एक पिता की भांति गहरी निद्रा के आगोश में ले लेंगें। यह हमारा Tried and tested प्रयोग है।
अध्यात्म के जटिल विषय को समझने के लिए लेख श्रृंखला के साथ साथ एक मिंट की वीडियो शार्ट भी प्रकाशित करते आ रहे हैं। लोगों का Attention span इतना कम हो गया है कि यूट्यूब के अनुसार 5 second की वीडियो सबसे अधिक लोकप्रिय है। हमारा सौभाग्य है कि हमारी Short videos को लगभग पूरे 60 सेकंड देखा जा रहा है, कोई फ़ास्ट फॉरवर्ड नहीं किया जा रहा। कल प्रकाशित होने वाली वीडियो वही 13 मिंट की वीडियो है जिसमें से हमने यह शार्ट वीडियोस extract की हैं। लेखों के साथ-साथ वीडियो प्रकाशित करना अवश्य ही विषय को समझने में सहायक हो रहा है।
तो करते हैं शांतिपाठ और समर्पित होते हैं गुरुवार के दिन गुरुचरणों में, गुरुकक्षा के शुभारम्भ के साथ।
ॐ असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थात
हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
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आत्मचिंतन, आत्मसुधार, आत्मनिर्माण और आत्मविकास की चार दीवारों पर आत्मिक प्रगति का भवन खड़ा होता है। हवाई किला बनाकर कल्पना की उड़ानें तो उड़ी जा सकती हैं लेकिन यदि मजबूत महल बनाना है और उसमें निवास करने का वास्तविक आनंद लेना हो, तो उसकी आधारशिला (नींव) का अतिसुदृढ होना बहुत ही आवश्यक है । ईश्वरीय अनुग्रह की अमृतवर्षा तो सर्वत्र अनवरत रूप में होती रहती है, इस दिव्य अमृतवर्षा को माँगने के लिए न तो कहीं जाना नहीं होता है और न ही किसी से आग्रह-अनुरोध करना पड़ता है। अमृतवर्षा के इस अटल सिद्धांत को समझने के लिए प्राकृतिक वर्षा का उदाहरण दिया जा सकता है। सावन के दिनों में सबके लिए एक जैसी गिर रही वर्षा का सौंदर्य एवं आनंद हर कोई अपनी-अपनी व्यक्तिगत capability के अनुसार लेता है। पक्षी अपनी तरह से चहचहाते हैं, वनस्पतिओं का आनंद अपनी तरह का होता है, मनुष्य भी कुछ अपने ही तरीके से राहत पाता है। यह अंतर् सबकी अपनी-अपनी क्षमता (पात्रता) के अनुसार होता है। चम्मच, कटोरी, छोटा बर्तन, बड़ा बर्तन आदि सब अपनी capacity के अनुसार ही वर्षा का पानी एकत्रित कर सकते हैं यानि जितना बड़ा बर्तन उतना अधिक पानी, जितनी अधिक पात्रता उतने ही बड़े अनुदान।
साधना का एक ही उद्देश्य है और वोह है आत्मशोधन (Self-purification)। दुष्कर्म से स्थूल शरीर, दुर्बुद्धि से सूक्ष्म शरीर और दुर्भावों से कारण शरीर में विकृतियाँ भर जाती हैं और समूचा व्यक्तित्व पतन के गर्त में जा गिरता है। इसी दुर्गति के खड्ड में पड़े हुए लोग नित्य उदय होने वाले सूर्य के प्रकाश से वंचित रहते हैं, ईश्वरीय अनुग्रह से वंचित रहते हैं । ईश्वरीय अनुग्रह से वंचित रहने का कारण हमारी अपनी ही अकृतज्ञता होती है । कठोर चट्टान पर अनवरत वर्षा होते हुए भी हरियाली उत्पन्न नहीं होती। हरियाली के लिए चट्टान द्वारा बादलों से अनुरोध करना व्यर्थ है। बादल तो चट्टान का अनुरोध तभी मानेगें जब वह स्वयं को पिघलायेगी, चट्टान के कोमल रेत में बदलने पर कुछ झाड़ियां आदि तो अवश्य उग आएंगीं लेकिन पूरी हरियाली के लिए और साधना करनी पड़ेगी।
ईश्वर से विविध प्रार्थनाएँ की जाती हैं। उपासनाओं के अनेकानेक विधि-विधान हैं। लगभग हर कोई “आत्मशोधन” की बात सबसे पहले करता है। वेदांत फिलॉसोफी के अनुसार “अपनी परिष्कृत आत्मा ही परमात्मा है।” यह परिष्कार ही साधना विज्ञान की पृष्ठभूमि है। ब्रह्मविद्या के अंतर्गत तत्त्वज्ञान की सुविस्तृत विवेचना के लिए दर्शन शास्त्र का सृजन हुआ है। उसके अनेक निर्धारणों पर पैनी दृष्टि डाली जाय और खोजा जाय कि अध्यात्म जीवन का इतना विशालकाय कलेवर किस लिए खड़ा किया गया है तो इस प्रश्न के उत्तर में एक ही निष्कर्ष उभरकर सामने आयेगा कि अंतःकरण पर चढ़ी हुई दुष्प्रवृत्तियों को निरस्त करके उसकी जगह दैवी विभूतियों को, उच्चस्तरीय आस्थाओं को प्रतिष्ठापित किया जाय । यही एकमात्र वह मार्ग है, जिस पर चलते हुए आत्मा को परमात्मा बनने का अवसर प्राप्त होता है। नर से नारायण, पुरुष से पुरुषोत्तम, अणु से विभु, लघु से महान बनने का एक ही उपाय है कि अपनी तुच्छताओं, संकीर्णताओं, दुर्बलताओं की बेड़ियों काट डाली जाएँ और महानता के असीमित आकाश में विचरण किया जाए। धुँधले दर्पण में मुँह दिखाई नहीं पड़ता, गंदले पानी के तले पर पड़ी हुई वस्तु ओझल रहती है। अंतरमन की मलीनताओं के कारण ही आत्मा मूर्छित पड़ी रहती है और परमात्मा खोजने से भी नहीं मिलता। वासना और तृष्णा के आवरण आँखों पर पट्टी बाँधे रहते हैं। लोभ-मोह के रस्सों से दुनिया के अनेकों बंधन जकड़े रहते हैं। संकीर्णता,स्वार्थपरता का ग्राह ही जीव रूपी गज को अपने मुँह में निगले रहता है। इनसे छुटकारा मिल सके और उदात्त -चिंतन की दृष्टि मिल सके, तो समझना चाहिए कि जीवन मुक्त हो गया, मुक्ति मिल गई। परिष्कृत दृष्टिकोण का नाम ही स्वर्ग है। जो अपनी मौलिक गरिमा को समझ सका, विश्व उद्यान में अपनी जैसी कर्त्तव्यपरायणता निश्चित कर सका, अपनी बहिरंग एवं अंतरंग गतिविधियों को उच्चस्तरीय बना सका, समझना चाहिए उसने आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक व्यथा- वेदनाओं की नरकरुपी वैतरणी पार कर ली और स्वर्ग के राज्य का आधिपत्य प्राप्त कर लिया। स्वर्ग एवं मुक्ति उस विवेकसम्मत दूरदर्शी दृष्टिकोण में सन्निहित हैं, जिसे “अध्यात्म” के नाम से जाना माना जाता है।
महामानव, सिद्ध पुरुष, महात्मा, देवात्मा, अवतारी, चमत्कारी आदि के नाम से जिन विशिष्ट आत्माओं के चरणों में जन साधारण की श्रद्धांजलि अर्पित होती है, जो स्वयं भार ढोते और दूसरों को अपनी नाव पर बिठाकर भवसागर से पार लगाते हैं, उन्हें ही ऋषि एवं देवमानव कहते हैं। इनकी एक ही विशेषता, एक ही सफलता होती है कि उन्होंने अपने कषाय- कल्मषों को धो डाला होता है, नीचता और संकीर्णता का परित्याग कर महानता को अपना लिया होता है। ऐसे आप्त पुरुषों में भगवान की दिव्य ज्योति जैसा आलोक पाया जाता है और उनके संपर्क में आने वालों को पारस छू कर लोहे से सोना बनने जैसा लाभ प्राप्त होता है।
महामानवों का सहयोग, देवताओं का वरदान, ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए, आध्यात्मिकता को व्यावहारिक जीवन में उतारने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है। मनुष्य जीवन की पाँचवीं सफलता है, “आत्मिक प्रगति की रुकावट का निवारण।” जब तक मनुष्य की इस उलझन का निवारण नहीं हो पाता, मनुष्य को पशु जैसा जीवन जीना पड़ता है और नारकीय यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। उसे आर्थिक, पारिवारिक, शरीरिक और मानसिक समस्याएं और इन्हीं चार समस्याओं से जुड़ी न जाने कितनी ही अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस नारकीय जीवन का समाधान भी आध्यात्मिक आदर्शों को अपना लेने के अतिरिक्त और किसी प्रकार संभव नहीं हो सकता है।
यदि हम जीवन की उलझनें सुलझाना चाहते हैं, समस्याओं का हल पाना चाहते हैं, तो अध्यात्म की रीति-नीति अपनाने के लिए साहस जुटाना चाहिए। इसी पथ पर चलते हुए मनुष्य जीवन को सच्चा आनंद और सच्चा लाभ प्राप्त हो सकता है। अध्यात्म ही सुखी जीवन का एकमात्र उपाय है, यही रामबाण है। समस्त समस्याओं का समाधान एक ही है कि हमारी आस्था बदलें,ऐसी आस्था का अभ्यास करें जिसमें उत्कृष्टता( Excellence) का अधिकाधिक समावेश हो ताकि उसका प्रतिफल हमारे व्यक्तित्व में बढ़ते हुए देवत्व के रूप में परिलक्षित हो। देव समाज के लिए स्वर्गीय परिस्थितियाँ सुरक्षित हैं। संत इमर्सन कहते थे कि “मुझे नरक में भेज दो, मैं वहीं अपने लिए स्वर्ग बना लूँगा।” उनका यह दावा मिथ्या नहीं था । उत्कृष्टतावादी के लिए सामान्य परिस्थितियों में भी स्वर्गीय सुख-शांति का सृजन कर सकना, नितांत सरल, स्वाभाविक एवं संभव है। यदि हम अध्यात्मवादी रीति-नीति अपना सकें तो निश्चित रूप से आधुनिक जीवन में प्रस्तुत अनेकानेक समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
तो साथिओ “हुआ न देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण”, हमारे गुरु ने यह गारंटी अपने शरीररूपी प्रयोगशाला में अनेकों तथ्यों को बार-बार टेस्ट करने के बाद ही दी है। यह कोई कही सुनी बातें नहीं हैं, अनेकों वर्षों के प्रयोग से Tried and tested हैं।
अगला लेख सोमवार को।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)वंदना कुमार -27 ,(2 ) सुमनलता-34 ,(3 )अनुराधा पाल-34 ,,(4) संध्या कुमार-45 ,(5) सुजाता उपाध्याय-55 ,(6) नीरा त्रिखा-25 ,(7)चंद्रेश बहादुर-45 ,(8)रेणु श्रीवास्तव-41,(9 )मंजू मिश्रा-24 ,(10 ) सरविन्द पाल -36 , (11 )निशा भारद्वाज -25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।