5 दिसंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
Source: समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म
“समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म” के अंतर्गत आज हम चौथी समस्या, “पारिवारिक समस्या” का शुभारम्भ मंगलवार की मंगलवेला में कर रहे हैं। यह एक ऐसी समस्या है जिसकी हर किसी को जानकारी है और समाधान भी उसके पास ही है लेकिन पुरषार्थ हमीं ने करना है, स्वर्गीय वातावरण हमीं ने लाना है।
आदरणीय अनिल मिश्रा जी ने कमेंट करके अपनी प्रसन्नता प्रकट की है कि परिवार निर्माण पर चर्चा हो रही है। जहाँ हम भाई साहिब का धन्यवाद् करते हैं वहीँ आदरपूर्वक यह भी कहना चाहेंगें कि यह सब परम पूज्य गुरुदेव ही कर रहे हैं,हमारा कुछ भी नहीं है।
आदरणीय अरुण वर्मा जी ने पटना में 6 दिसंबर से आरम्भ हो रहे 251 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के बारे में जानकारी एवं वीडियोस भेजी थीं, हमने pyp का यूट्यूब लिंक देना उचित समझा जिसमें बहुत कुछ शामिल किया गया है, हम अरुण जी से क्षमाप्रार्थी हैं।
https://www.youtube.com/@PrantiyaYuvaPrakoshthBihar
तो चलते हैं आज की कक्षा की ओर।
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पारिवारिक समस्या एक ऐसी समस्या है जिसके संताप से अनेकों लोग अशांत पाये जाते हैं। मुश्किल से ही ऐसे परिवार मिलेंगे, जिनमें स्नेह, सौजन्य, सद्भाव, सहयोग के वातावरण हों और छोटे-छोटे घरों में स्वर्गीय हर्षोल्लास का जीवन जिया जा रहा हो। बाहर से एक दिखते हुए भी मनोमालिन्य, असहयोग, उपेक्षा, अवज्ञा, आपाधापी की स्थिति बनी रहती है और अनुशासनहीनता पनपती रहती है। इन कारणों से परिवार संस्था नष्ट-भ्रष्ट होती चली जा रही है।
परिवार संस्था के महत्त्व को भुला दिये जाने के कारण ही पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। आज परिवार की आर्थिक आवश्यकताएँ पूरी करना भर ही पर्याप्त समझा जाता है। अच्छा खिला दिया, बढ़िया पहना दिया, शिक्षा और मनोरंजन के साधन जुटा दिये, बस इतने से ही पारिवारिक उत्तरदायित्व पूरे हुए समझ लिये जाते हैं। परिवार के सदस्यों की बाहरी आवश्यकताएँ सुविधापूर्वक पूरी होते रहने से, उनमें ऐसा अभ्यास पड़ जाता है कि छोटी सी असुविधा होते ही सदस्य शत्रु बन जाते हैं। जब परिवार को धर्मशाला और होटल से अधिक कुछ बनाने की चेष्टा ही नहीं की जाती तो कोई भी असुविधा होते ही कलह उत्पन्न होना स्वाभाविक है।हमारी स्वर्गीय माता जी जब कभी भी सुबह से लेकर रात तक अकेले ही घर के कार्यों से थक जाती थीं तो उनका बहुचर्चित वाक्य “घर को धर्मशाला समझ रखा है” होता था।
परिवार का उद्देश्य और रिश्तों का महत्त्व समझा जाना चाहिए। परिवार, एक ऐसी कड़ी है जो समाज और व्यक्ति को बांधे रखती है । यही वह खदान है, जिसका वातावरण सुसंस्कृत बना रहे तो नररत्न निकलते रहेंगे जो अपना और समाज का गौरव बढ़ाते रहेंगे। स्कूली शिक्षा से मात्र कुछ विषयों की (केमिस्ट्री, फिजिक्स आदि) की जानकारी भर मिलती है। गुण, कर्म, स्वभाव के आधार पर बनने वाला चरित्र तो “परिवार की पाठशाला, माँ की संस्कारशाला” में ही बनता है। जुलाई 2023 से परम पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से आरम्भ हुई “माँ की संस्कारशाला” अपनेआप में गायत्री परिवार का एक यूनिक प्रयास है। दिए गए लिंक से इस अद्भुत प्रयास के बारे में संक्षिप्त जानकारी मिल सकती है। https://youtu.be/llB1w30Bqg0?si=5aWgehjMPVjolmmr
परम पूज्य गुरुदेव ने परिवार को एक व्यायामशाला कह कर सम्बोधित किया है। आधुनिक समय में Gym का बहु प्रचलित फैशन है, फैशन हम इसलिए कह रहे हैं कि वहां जाकर exercise करने वाले तो अनेकों हैं लेकिन उनकी भी कमी नहीं है जिन्होंने Gym की मेम्बरशिप केवल सोशल ग्रुप में show off करने के लिए ली हुई है, दिखावे का ही तो युग है। इस विषय पर चिंता तो तब सीरियस हो जाती है जब Gym को तरजीह देते हुए परिवार में समय नहीं दिया जाता। गुरुदेव के अनुसार परिवार की व्यायामशाला में अभ्यास करके व्यक्तित्व ढालने की प्रक्रिया संपन्न होती है, यही कारण है कि परिवार को Personality development एवं Character building पाठशाला कहा जाता है। जिन परिवारों में इन तथ्यों को नकारा जा रहा है उनके दुष्परिणाम पारिवारिक समस्याओं के रूप में सामने आ रहे हैं।
परिवार की आर्थिक स्थिति की ही चिंता करने का अर्थ तो यह हुआ कि परिवार के सदस्य मात्र “भौतिक यंत्र” Physical equipment हैं, जिनकी आवश्यकताओं के लिए भौतिक साधनों का जुटा दिया जाना पर्याप्त है। गाड़ी-मोटर के लिए पेट्रोल, लुब्रिकेशन , ग्रीस, पानी आदि जुटा देना पर्याप्त है, परन्तु मनुष्य मशीन तो नहीं है। मनुष्य को भी जीवित रखने के लिए पेट्रोल (Food ), लुब्रिकेशन ( Body Toning etc ) आदि की आवश्यकता होती है लेकिन मशीन से अलग, मनुष्य के भीतर जीवन और चेतना भी वास करती है। जीवन और चेतना नामी कल्पवृक्ष का पनपना और परिष्कृत होना,सद्भावना, भाव संवेदना और सत्प्रवृत्तियों की खाद,पानी और वातावरण पाकर ही संभव हो सकता है। आज जिस परिवार में भी यह साधन जुटाए जा रहे हैं, वोह परिवारजन गरीबी में रहते हुए भी नैष्ठिक नागरिकों की, श्रेष्ठ सज्जनों की श्रेणी में गिने जासकते हैं।
परिवारों के सृजन और परिपोषण के लिए अध्यात्मिक दृष्टिकोण:
परिवारों के सृजन (Creation) और परिपोषण के लिए “अध्यात्मिक दृष्टिकोण” से ही तो परिस्थितियाँ ऐसी बनेगी, जिसमें पलने वाले प्राणी, परिवारजन आजीवन अपने सौभाग्य को सराहते रहेंगे। सदिओं से चली आ रही विवाह प्रथा मात्र काम वासना के लिए नहीं, बल्कि दो आत्माओं के बीच घनिष्ठता, मैत्री एवं सहयोग का द्वार खोल दे और दोनों पक्ष यानि पति पत्नी इस आदर्श को निबाहें तो निश्चित रूप से दोनों के बीच उच्चस्तरीय आत्मीयता विकसित होगी। दोनों हर स्थिति में संतुष्ट रहेंगे और कर्त्तव्य/उत्तरदायित्व को समझते हुए पूरे परिवार को समुन्नत बनाने में जुटे रहेंगे। ऐसे लोग संतानोत्पादन के लिए लालायित नहीं हो सकते। वे स्वतः ही समझेंगे कि घर के बड़ों की सेवा, बराबर वालों का सहयोग और छोटों को अनुदान देने की जिम्मेदारियों पूरा करना आवश्यक है। उनकी पूर्ति के लिए ही जब पर्याप्त धन और समय नहीं है तो “अनावश्यक अतिथियों” ( संतान) की घुसपैठ क्यों होने दी जाय।
आधुनिक वातावरण में पनप रहे परिवारों में आये दिन खींचतान, आपाधापी, द्वेष-दुर्भाव का विकृत वातावरण बना रहता है। फलतः उस घुटन में जो भी रहते, पलते हैं, दुर्बुद्धिग्रसित होते जाते हैं। यदि इस स्थिति को बदला जा सके और परिवार की इस पाठशाला में सद्भावना और सत्प्रवृत्तियों के आधार पर दैनिक कार्य व्यवहार का ढांचा खड़ा किया जा सके तो घर का हर व्यक्ति नित्य नियमित रूप से श्रमशीलता, स्वच्छता, मधुरता, मितव्ययिता, सहकारिता, सेवा, सहायता, ईमानदारी, कर्तव्य परायणता जैसे सद्गुणों को अपनाता चला जायेगा।
परिवार की नर्सरी में ठीक तरह उगाया गया पौधा, जिस बगीचे में भी लगेगा, वोह वहीं फलेगा-फूलेगा और अपने सुंदर फूलों और मधुर फलों से लदा हुआ श्रेष्ठ वातावरण उत्पन्न करेगा।
परिवारों का सृजन और संचालन यदि “आध्यात्मिक दृष्टिकोण” अपनाकर किया जाए, तो उसमें सद्भावना हिलोरें ले रही होंगी, सत्परंपराएँ पनप रही होंगी और उनमें रहने-पलने वाले अपने को धन्य अनुभव कर रहे होंगे। यदि वासना के लिए विवाह, मोह के लिए संतान, लाभ के लिए उपार्जन और अहंकार के लिए भांति भांति के कुकर्म किए जा रहे होंगें तो हर घर में नारकीय वातावरण ही बना रहेगा। ऐसे परिवार में होता परिपोषण, दम घुटने जैसी व्यथा सहन कर रहा हर सदस्य एक दुसरे का शत्रु ही बन रहा होगा।
इसी “भौतिकतावादी दृष्टिकोण” ने पाश्चात्य देशों में परिवार संस्था का दम घोट दिया है। अब तो यह प्रथा भारत में भी अनेकों परिवारों में देखने को मिल रही है। अगर भारत विकास की ऊँची छलांगें लगा रहा है तो विश्व में पनप रही ऐसी त्रुटिओं से कैसे बच सकता है।
बड़े साहस और सावधानी से, इस गुरुकक्षा के सहपाठिओं से क्षमा याचना करते हुए लिख रहे हैं कि वासना के लिए होने वाले विवाह, कितनी देर टिक पाते हैं कहा नहीं जा सकता। हमारे आस पास पशु-प्रवृति से प्रभावित जोड़े, आए दिन जुड़ते और बिछुड़ते जा रहे हैं। पति-पत्नी में किसी को विश्वास नहीं है, यहाँ तक कि आज का सहचरत्व कल तक भी स्थिर रह पाएगा या नहीं किसी को मालूम नहीं है । अविश्वास और अनिश्चय से भरे, ऐसे दांपत्य जीवन इतने नीरस,इतने अस्थिर, इतने बनावटी होते हैं कि पति-पत्नी के बीच एक बहुत बड़ी दीवार खड़ी हो जाती है। यह एक ऐसी दीवार है जिसे कोई भी उन तथाकथित सभ्य लोगों के बीच रहकर भलीभांति देख सकता है।
Joint Family System भारत की पहचान और विशेषता हुआ करता था लेकिन आज के विकासशील युग में जहाँ Nuclear Families का बोलबाला है, संयुक्त परिवारों का पुरातन स्वर्गीय वातावरण कैसे स्थिर रह सकता है। शांतिकुंज स्थित अखिल विश्व गायत्री परिवार के माध्यम से, परम पूज्य गुरुदेव के साहित्य की सहायता से, आज भी समस्त संसार की आशा भरी दृष्टि भारत पर ही लगी हुई है। मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत पुरातन पद्धति को आधुनिक व्यवस्था के साथ पुनर्जीवित करते हुए व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण और समाज निर्माण की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं , हम मूक दर्शक बनकर परिवारों को विनाश होते तो नहीं देख सकते।
हमें “आध्यात्मिक दृष्टिकोण” को गहराई तक समझ कर, परिवारों में समावेश करना होगा। घर को “आदर्शवादिता की प्रयोगशाला, पाठशाला, व्यायामशाला” के रूप में विकसित करना होगा। आहार-विहार से लेकर दैनिक क्रियाकलाप और पारस्परिक व्यवहार में ऐसे सूत्रों का समन्वय करना पड़ेगा, जिसके सहारे परिवार के सदस्यों में से प्रत्येक के अंदर उत्कृष्ट चिंतन एवं आदर्श कर्तृत्व अपनाने के लिए अदम्य उत्साह पैदा हो सके।
धन अपनी जगह उपयोगी हो सकता है, सुव्यवस्था को भी सराहा जा सकता लेकिन स्मरण रहे इतने भर से ही परिवार संस्था प्राणवान न हो सकेगी। नई उच्च शिक्षा दिलाकर संतान को कमाऊ पूत बना देना भी किसी तरह से अनुचित नहीं है, बच्चों के लिए प्रचुर साधन जुटा देने का महत्त्व भी नकारा नहीं जा सकता, लेकिन यदि उनमें सद्गुणों का बीजारोपण न हो सका, सद्भावनाएँ विकसित न की जा सकीं, स्वभाव में सज्जनता का समावेश न हो सका तो ऐसी संतानें समृद्ध बन जाने पर भी घटिया व्यक्तित्व होने के कारण, सदा उलझनों में ही उलझे रहेंगे, स्वयं कुढ़ते रहेंगे और साथियों को भी कुढ़ाते रहेंगे। ऐसे व्यक्ति न स्वयं चैन से रहते हैं और न संपर्क में आने वाले किसी को चैन से रहने देते हैं। वे स्वयं गिरते हैं और साथियों को भी गिराते हैं। ऐसी संतानें बढ़ाकर कोई मिथ्या अहंकार भले ही कर ले कि हमने पीढ़ियों को पदवीधारी या कमाऊ बना दिया, वस्तुतः ऐसे उत्पादन पर किसी की आत्मा गर्व अनुभव नहीं कर सकती।
युगतीर्थ शांतिकुंज में अनेकों जीवनदानिओं के बच्चे विदेशों में शिक्षा प्राप्त करके,उच्च पदों पर आसीन होने के बावजूद ऐसी परिवार व्यवस्था का पालन कर रहे हैं जो अनेकों के लिए एक उदाहरण हैं।
आज के लिए इतना ही ,बाकी कल की कक्षा में।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 14 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज चंद्रेश जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)वंदना कुमार-31 ,(2 ) सुमनलता-35 ,(3 )अरुण वर्मा-35 ,(4) संध्या कुमार-29,(5) सुजाता उपाध्याय-43 ,(6)संजना कुमारी-25 ,(7)चंद्रेश बहादुर-53,(8)रेणु श्रीवास्तव-36,(9 ) मंजू मिश्रा-36 ,(10 )सरविन्द पाल -38 ,(11 ) निशा भारद्वाज-24 ,(12 ) अनुराधा पाल-27 ,(13 )अनिल मिश्रा-29, (14)पुष्पा सिंह-24,26
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।