4 दिसंबर, 2023 का ज्ञानप्रसाद
Source: समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म
रविवार के अवकाश से संचित ऊर्जा का सप्ताह भर सदुपयोग करने का आज प्रथम दिन सोमवार भगवान शिव को समर्पित है। आज का प्रज्ञागीत भी शिव वंदना से शक्ति प्रदान करा रहा है।
“समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म” शीर्षक से चल रही वर्तमान ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला में आज आर्थिक समस्या विषय का समापन हो रहा है। आध्यात्मिक प्रवृति वाले मनुष्यों को छोड़कर, शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसकी नींद आर्थिक समस्या ने न उड़ा रखी हो। गुरुदेव के अनुसार अध्यात्म ही इस समस्या को सुलझा सकता है। ऐसे मनुष्य के लिए जिसे अध्यात्म के बारे में कोई जानकारी नहीं है, यां जो अध्यात्म को माला फेरने, मंत्र पढ़ने, यज्ञ करने तक ही जानता है, उसे यह समाधान अन्धविश्वास लगेगा लेकिन हमारा विश्वास है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक सदस्य अध्यात्म का पालन करता है और आपको भी इस विषय के बारे में समझा सकता है। हम तो यही कहेंगें कि इन सदस्यों से संपर्क स्थापित करके आज से ही चर्चा करना आरम्भ कर दें। अगर ऐसा संभव नहीं है तो अपना अमूल्य समय निकाल कर इस प्लेटफॉर्म पर पोस्ट होने वाले कमेंट पढ़ लें ,काउंटर कमेंट पढ़ लें, यां सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट “अपने सहकर्मियों की कलम से” नियमितता से पढ़ना आरम्भ कर दें, विश्वास रखिये साथिओं से बारे में बहुत कुछ जानने को तो मिलेगा ही, गुरुदेव को जानने, गुरुदेव से जुड़ने का एक सरल साधन भी प्राप्त होगा।
तो आइए गुरु चरणों में समर्पित होकर आज की गुरुकक्षा का शुभारम्भ करें लेकिन पहले
शांतिपाठ।
ॐ असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थात
हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
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आर्थिक समस्या से जूझने के लिए, मनुष्य को अपने खर्च सीमित रखने चाहिए, विशेषतया नये खर्चे तो सिर पर लादने ही नहीं चाहिए। बच्चों की संख्या बढ़ाना भी आर्थिक संकट मोल लेने जैसा ही है। इसके कारण सारा परिवार आर्थिक संकट में पिसता है। बच्चों के विकास में भी बाधा पड़ती है। परिवार की इस दयनीय स्थिति के लिए परिवारजनों की आत्मा उन्हीं मूर्खों को कोसती है, जो संतानोत्पादन से पूर्व इस नये उत्तरदायित्व के निर्वाह में असमर्थ होते हुए भी अंधेरे में कदम बढ़ाते चले गये।
“आध्यात्मिक सिद्धांत” के अनुसार परिवार में “क्रियाशीलता” बढ़ाकर भी संकट की चिंता से बचा जा सकता है। अभी थोड़े ही समय की बात है कि अधिकतर भारतीय परिवारों में “एक कमाए सब खाएँ” की परंपरा प्रचलित थी। घर के मुखिया के कन्धों पर ही परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी थी। महिलाएं घर के काम-काज में ही सारा दिन सिर खपाती रहती थीं, उन्हें कहाँ इतनी फुरसत थी कि वोह किसी अन्य काम का सोच भी सकें। घर में और कितने ही सदस्य (विशेषकर युवा ) होते थे जो बेकार बैठना ज़्यादा पसंद करते थे, ऐसे बेकार सदस्य न तो कभी और कार्य करने की सोचते थे और अगर मन को मार कर सोचना आरम्भ करते भी थे तो यही उत्तर मिलता था “करें क्या, नौकरी तो है ही नहीं”
हमारे पाठक/सहपाठी/सहकारी हमारे साथ सहमत होंगें कि अगर काम करने की इच्छा हो तो कुछ भी अस्मभव नहीं है। ऐसे ही तो नहीं वर्षों पुरानी proverb “Necessity is the mother of Invention” का आजतक सम्मान किया जाता है। परिवार में घोर आर्थिक संकट है और हम इस शान में बैठे हुए हैं कि हमें इच्छित काम नहीं करना है, अभी तो खाने पीने के, ऐश करने के दिन हैं। जिस युवा आयु की हम चर्चा कर रहे हैं उस समय का mental makeup ही सारा जीवन चलता है, बेकार बैठने की, ऐश आदि करने की आदत ही प्रवृति बन जाती है।
गुरुदेव द्वारा इस रचित साहित्य को रेफेर करते हुए जिस बात की चर्चा हम आज कर रहे हैं, गुरुदेव कितने वर्ष पूर्व ही लिख कर हमें दे गए हैं, गुरुदेव तो युगदृष्टा हैं।
परम पूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि हर घर में छोटे-छोटे गृह उद्योगों की व्यवस्था की जा सकती है और खाली समय में कुछ पैसा कमाया जा सकता है। कुछ कर लेने का उत्साह हो, तो रास्ते स्वयं ही निकल आते हैं जिससे आजीविका में वृद्धि की जा सके। गुरुदेव ने तो बार-बार कहा है, “तू एक कदम तो उठा, बाकि मैं संभाल लूँगा” इस विषय पर एक और saying फिट बैठती है “If you want to do something, sky is the limit” ऐसे सकारात्मक स्टेप लेने के लिए परिवार का सहयोग और मार्गदर्शन बहुत ही आवश्यक है। माता पिता से बच्चों तक की यात्रा करते करते एक पीढ़ी बदल जाती है, इस लम्बी यात्रा में अनेकों बदलाव आ जाते हैं,सबसे बड़ा बदलाव “विचारों का बदलाव” होता है, इस बदलाव के लिए दोनों पीढ़ीओं को स्कारात्मक दृष्टि से accept करने के लिए तैयार होना चाहिए, अगर ऐसा हो जाता है तो प्रत्येक परिवार में स्वर्गीय वातावरण अनुभव किया जा सकता है।
गुरुदेव बता रहे हैं कि अगर आय बढ़ने का कोई साधन नहीं दिख रहा हो तो खर्च सीमित करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। हमारे आसपास क्या हो रहा है, हमारा पडोसी कैसे जीवनयापन का रहा है, उसके पास इतना पैसा है,वोह इतना सुन्दर जीवन कैसे व्यतीत कर रहा है; ऐसे प्रश्न ही हमें Rat-race के लिए प्रेरित करते हैं। Rat-race जीवन के ऐसे तरीके के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें लोग धन या शक्ति के लिए भयंकर प्रतिस्पर्धी संघर्ष (Competitive struggle) में फंस जाते हैं। गुरुदेव इस Rat-race से दूर रहने का निर्देश देते हुए यह भी कहते हैं कि अगर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तो नये खर्च सिर पर बिल्कुल ही लादने नहीं चाहिए। ऋण लेने की आदत भी तभी पड़ती है, जब खर्चा आमदनी से अधिकबढ़ जाय। आपत्तिकाल में या किसी व्यावसायिक प्रयोजन के लिए ऋण लेना अलग बात है, किंतु खर्च बढ़ा लेना और उन्हें ऋण लेकर पूरा करना ऐसा अविवेक है, जिसका दुष्परिणाम एक दिन दिवालिया बन जाने, बेईमान कहलाने और तिरस्कार सहने के रूप में ही सामने आता है। मार्केटिंग कंपनीओं ने अपने स्वार्थ के लिए आज के युग में एक नई addiction को जन्म दिया है। इस addiction, जिसे हम Credit card, से सभी प्रभावित हैं। Credit का अर्थ उधार होता है , यह एक ऐसा विषय है जिस पर किसी समय एक फुल लेंग्थ लेख यां लेख श्रृंखला लिखना ही उचित होगा।
आर्थिक समस्या का समाधान अध्यात्म के द्वारा कैसे ?
परम पूज्य गुरुदेव के अनुसार,आध्यात्मिक आदर्शों का पालन करने वाले व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखने, आमदनी के अनुसार खर्च करने और अधिक उपार्जन के लिए योग्यता बढ़ाने, अधिक श्रम करने की ही प्रेरणा देते हैं। ऋण लेने की आदत बेईमानी का ही छोटा रूप है। आध्यात्मिक आदर्शों से प्रभावित व्यक्ति आवश्यकताओं को सीमित रखने में समर्थ होता है तथा ऋणी बनना पसंद नहीं करता, इसलिए इस विडंबना से बच जाता है।
हमारे देश में सामाजिक कुरीतियाँ अर्थ संकट उत्पन्न करने का बहुत बड़ा कारण हैं। विवाह-शादियों में होने वाले आयोजनों में समर्था से अधिक खर्च करना, कुरीतियों में सर्वप्रथम है। हमारे समाज में बर्थडे पार्टिओं से लेकर मृतक भोज तक अनेकों ऐसे आयोजन हैं जिनमें आयोजन मात्र इसी उद्देश्य से किये जाते हैं कि समाज के प्रतिष्ठित लोगों को बुलाकर एक दुसरे की वाहवाही लूटी जाए। ऐसे आयोजनों में जितना पैसा बर्बाद होता है उससे परिवार का बहुत ही अच्छे से निर्वाह हो सकता है। लेकिन क्या किया जाए ? हमें तो इसी समाज में रहना है, समाज से मुँह कैसे मोड़ सकते हैं, समाज हमें black-list कर देगा। यह कुछ ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनके बारे में अगर गंभीरता से चिंतन न किया गया तो लोग दरिद्र एवं बेईमान बनते ही रहेंगें । सभी कुप्रथाएँ भी ऐसी ही हैं, जिनको चौधरी, पंचों की, लोकचर्चा की परवाह किये बिना एक ही झटके में उखाड़ फेंकना चाहिए।
यह साहस विवेकवान तथा आत्मबल संपन्न व्यक्ति ही कर सकते हैं और आत्मबल के लिए अध्यात्म की आवश्यकता होती है।
अविवेकी लोग ओछे रास्ते अपनाकर धनी बनना चाहते हैं, किंतु अनाचार एक दिन प्रकट होकर ही रहता है; तब ग्राहकों के असहयोग का संकट उस उपार्जन को ठप्प करके रख देता है। कामचोर और बेईमान कर्मचारी कभी उन्नति नहीं कर सकते। ईमानदारी की नीति पर चलते हुए ही हर व्यक्ति प्रामाणिक बन सकता है, अपने श्रम एवं उत्पादन का प्रामाणिकता के आधार पर अधिक मूल्य पा सकता है एवं अधिक सम्मान भी ।
आर्थिक क्षेत्र में श्रमनिष्ठा, मनोयोगपूर्वक कार्य-संलग्नता, ईमानदारी, प्रामाणिकता, सादगी, मितव्ययिता यह सभी गुण अध्यात्म-आदर्शों के अनुरूप हैं। इन्हें अपनाए बिना आर्थिक -संकट से बचे रहने का, अर्थ उपार्जन और संतुलन का कोई और मार्ग नहीं है । अनीति की कमाई का आकर्षण, धन का मूर्खतापूर्ण की खर्च करना ही ऐसी आदतें हैं जिनके कारण आर्थिक संकट की स्थिति का सामना करना पड़ता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण का व्यक्ति ऐसी स्थितिओं से सहज ही बच जाता है।
अनुत्पादक तथा जमाखोरी को आर्थिक संतुलन के लिए विष माना जाता है। “कमाया 100 हाथ से जाय; लेकिन दान 1000 हाथ से किया जाए” की नीति अत्यंत ही प्रशंसनीय है। वह संतोष हानिकारक है, जिससे मनुष्य बेकार और आलसी बनता है और उत्पादन से हाथ सिकोड़ता है। हर व्यक्ति को राष्ट्रीय उत्पादन बढ़ाने के लिए अथक परिश्रम करना चाहिए। अंतर इतना ही है कि वह उपार्जन एकाकी उपयोग में न लगकर सार्वजनीन हित साधन में लगता रहे। अकेले,स्वयं ही साधनों के उपयोग के बारे में कहा गया है कि,जो आप कमाता है और आप ही खाता है उसे चोर कहा जाता है। यह अध्यात्म सम्मत अर्थनीति है और इस नीति का पालन करने वाला व्यक्ति ही समाज की सुख शांति में सहयोग दे सकता है। इसी निति को अपनाकर, अर्थ संकट से सदा सदा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है।
इस लेख के साथ ही “आर्थिक समस्या का अध्यात्म से समाधान” टॉपिक का समापन होता है। कल पारिवारिक समस्या के लिए अध्यात्म, “रामबाण” विषय का शुभारम्भ करेंगें।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 13 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)वंदना कुमार-37 ,(2 ) सुमनलता-32 ,(3 )पिंकी पाल-31 ,(4) संध्या कुमार-40 ,(5) सुजाता उपाध्याय-27 ,(6) नीरा त्रिखा-28 ,(7)चंद्रेश बहादुर-44 ,(8)रेणु श्रीवास्तव-36 ,(9 )मंजू मिश्रा-30 ,(10 )सरविन्द पाल -54 ,(11 ) निशा भारद्वाज-30 ,(12 ) अनुराधा पाल-28 ,(13 )प्रेरणा कुमारी-26
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।