वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

आध्यात्मिक दृष्टिकोण ही आर्थिक प्रगति का राजमार्ग है। 

30 नवंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद

Source : समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म

गुरुवार का शुभदिन प्रज्ञागीत के समेत  पूर्णतया अपने गुरु  के चरणों में समर्पित है। पूज्यवर द्वारा रचित दिव्य  पुस्तक “समस्त समस्याओं का समाधान-अध्यात्म” के शारीरक और मानसिक खंडों का अमृतपान के बाद अब हम आर्थिक समस्या की चर्चा आरम्भ कर रहे हैं। वैसे तो प्रत्येक पुस्तक पढ़ते समय ऐसे प्रतीत होता है कि  गुरुदेव सामने बैठकर समझा रहे हैं लेकिन इस गुरुकक्षा में तो और भी अधिक आनंद का आभास हो रहा है, अवश्य ही हमारे सहपाठी भी यही अनुभव कर रहे होंगें। 

अगर हम गुरुदेव में इतना रम न गए होते तो अपनी स्वप्न अनुभूति को ऐसा वैसा ही समझकर नकार देते। साथिओं के समक्ष रखकर, अनेकों विचार आए जिन्होंने हमें सोचने पर विवश कर दिया, क्या सच में गुरुदेव हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं और हमसे कुछ करवा रहे हैं। इस विचार पर एक और स्टैम्प आज प्रातः लगी जब हम शांतिकुंज वीडियो के यूट्यूब चैनल पर अध्यात्म से सम्बंधित वीडियो ढूंढ रहे थे। इसे संयोग कहें यां गुरुवर का मार्गदर्शन, पहली ही वीडियो आदरणीय चिन्मय जी की 3 माह पूर्व वाली वीडियो उभरकर आयी जिसमें लगभग वही बातें कही जा रही हैं जो हम आजकल गुरुकक्षा  में पढ़ रहे हैं।  इस वीडियो का अमृतपान कल वाली वीडियो कक्षा में करने की योजना है। 

सदैव नमन है ऐसे गुरु को, जो सदैव ऊँगली पकड़ कर राह दिखा रहे  हैं। 

आज की कक्षा का शुभारम्भ करते हैं। 

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शारीरिक अस्वस्थता और मानसिक उद्विग्नता की समस्याओं पर विचार करने के उपरांत – आइए अब आर्थिक समस्या पर विचार करें। 

यह एक ऐसी समस्या है जो हर किसी के सामने हाथ पसारे और  मुँह खोले खड़ी है। ऐसे लोग कोई विरले  ही मिलेंगे, जो स्वयं को आर्थिक दृष्टि से संतुष्ट कह सकें। ऐसे  विरलों का ही जमावड़ा है हमारा अपना, सबका, यह छोटा सा, समर्पित, सुसंस्कृत परिवार जिसका नाम है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार। इस परिवार का एक-एक सदस्य औसत भारतीय के स्तर का जीवन बिताते हुए भी सुख चैन एवं संतुष्ट होकर जीवनयापन कर रहा है।  

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के इलावा हमारी अनेकों लोगों से बातचीत होती रहती है लेकिन हर कोई पैसे के पीछे मारा-मारा भाग रहा है। ऐसे लोग इस आर्थिक अभाव को दूर करने के लिए सदा चिंतित दिखाई पड़ते हैं। उन लोगों को  अनेकों साधनों से पैसा कमाने के बावजूद, हाथ-पैर मारने के बावजूद, तिकड़मबाज़ी के बावजूद कभी संतुष्टि नहीं मिलती । ऐसा इसलिए है कि उन्हें “जो प्राप्त है वही पर्याप्त है” के सिद्धांत का ज्ञान ही नहीं है और मृगतृष्णा की अंधी दौड़ ,कभी न पूर्ण होने वाली तृष्णा उन्हें दौड़ाए जा रही है। हम उन लोगों का रेफरन्स दे रहे हैं जो ऐसे नहीं हैं कि उन्हें कभी भी दो रोटी के लिए किसी के आगे हाथ फैलाना पड़ा हो, उन्हें food bank का सहारा लेना पड़ा हो। मृगतृष्णा से ग्रसित यह लोग आलिशान बंगलों में राजसी ठाठ से रहते, कई-कई ultra मॉडर्न गाड़िओं के मालिक हैं, कितने ही fashionable breed  के pets रखें हैं जिनका एक सप्ताह का खर्च सैंकड़ों डॉलर से कम नहीं है।   

परम पूज्य गुरुदेव ने ऐसी स्थिति को  “अमीरों की दरिद्रता का संकट” कहा है। 

ऐसा कहना शायद उचित न हो कि दरिद्रता बिल्कुल है ही नहीं, दरिद्रता अवश्य है और  इस समस्या पर  विचार भी  किया जाना चाहिए। दरिद्रता के लिए कितने ही लोग ज़िम्मेदार ठहराए जा सकते हैं और इसका कोई परमानेंट समाधान खोजना बहुत ही आवश्यक है ।

पहले यह विचार करना होगा कि धन आखिर है क्या, धन की क्या परिभाषा है। मनुष्य अनेकों साधनों से धन कमाता है। मानवी शक्ति  और बुद्धि शक्ति  का विभिन्न प्रयोजनों में प्रयोग करने से जो उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं, उन्हें “संपत्ति” कहा जा सकता है और यही है  धन की सही परिभाषा। अर्थशास्त्र का आरंभ यहीं से होता है। जुआ, सट्टा, लाटरी, ब्याज, उत्तराधिकार, गड़ा-खजाना आदि के रूप में “बिना श्रम की संपत्ति” कई लोग प्राप्त कर लेते हैं,लेकिन  उसे अपवाद (Exception) कहना चाहिए। इस प्रकार की संपदा के प्रति औचित्य की मान्यता बदली जानी चाहिए नहीं तो  विडंबना बनी रहेगी कि यह भी धन की ही परिभाषा है। आज नहीं तो कल वह दिन आकर ही रहेगा, जब अर्थशास्त्र का शुद्ध अध्यात्म सम्मत सिद्धांत ही सर्वमान्य होगा। शारीरिक और मानसिक श्रम का उचित मूल्य ही लोग धन के रूप में प्राप्त कर सकेंगे और वही सर्वमान्य होगा, सही तरीके से स्वयं  कमाया हुआ धन ही सही मायनों में  धन होगा। 

गुरुदेव तो ऐसा भी कह रहे हैं कि अगर किसी को अधिक धन उपार्जित करके,अधिक सुख-साधन प्राप्त करने की इच्छा हो तो अपनी शारीरिक श्रम क्षमता और मानसिक-दक्षता बढ़ाई जानी चाहिए। इस दृष्टि से जो जितना आगे बढ़ेगा, वह उतना ही  अधिक प्राप्त करेगा लेकिन  दुर्भाग्य  तो यह है कि श्रम से जी चुराने की प्रवृत्ति, हेराफेरी करके धन कमाना, तिकड़मबाज़ी, सट्टे बाज़ी का राह अपनाने की प्रवृति बहुत ही सरल है। लोग आरामतलबी से समय गुजारना चाहते हैं। श्रम की अप्रतिष्ठा हमारा सामाजिक दोष है।

आज के युग में श्रमजीवी अभागे और अछूत माने जाते हैं लेकिन जिनके पास बिना किसी श्रम के अनगनित दौलत है, समाज में उन्हीं की प्रतिष्ठा है। जिन लोगों की हमने  लेख के आरम्भ में चर्चा की थी ऐसे ही लोग हमें समझाते  रहते हैं “भाई साहिब धन के बिना समाज में कोई नहीं पूछता।”  यह प्रवृत्ति बदली जानी चाहिए। संपन्नता को खरीदने के लिए “श्रम-क्षमता” विकसित की जानी चाहिए। श्रम चाहे शरीर का हो यां मस्तिष्क का हो,सर्व प्रतिष्ठित होना चाहिए, उसका हर जगह सम्मान होना चाहिए। 

हर वर्ष दीपावली को लक्ष्मी पूजन की प्रथा है लेकिन माँ लक्ष्मी, सम्पदा की देवी की पूजा करके आकस्मिक संयोग से धन प्राप्त हो सकता है, लाटरी निकल सकती है ,हाँ भी और न भी। लेकिन बहुत से लोग सोचते हैं और चाहते हैं कि अकर्मण्यता (Idle-ness), अदक्षता (Inefficiency) जहाँ की तहाँ बनी रहे, आलस्य प्रमाद में कमी न पड़े और प्रचुर मात्रा में धन ऐसे ही आसमान से छप्पर फाड़कर निकल पड़े। यह “अनात्मवादी मान्यता”  ही अर्थसमस्या का मूल कारण बन जाती है। अनात्मवादी मान्यता पर हम एक  पूरा लेख पढ़ चुके हैं, इस मान्यता के लोग आत्मा के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते। यह लोग सदियों से विश्वास की जा रही मान्यता कि आत्मा अजर-अमर है, में विश्वास नहीं रखते।    

आध्यात्मिक दृष्टिकोण संपन्नता का औचित्यपूर्ण मार्ग सुझाता है ,अधिक परिश्रम के लिए उत्साहित करता है। हरामखोरी और कामचोरी को भी नैतिक अपराधों की श्रेणी में गिनना चाहिए। दक्षता बढ़ाने के लिए अधिक सोचने, अधिक जानने और अधिक सुयोग्य बनने के लिए सदैव सचेत रहना चाहिए। इस बढ़ी हुई दक्षता ( Efficiency ) की कीमत पर निश्चय ही अधिक धन प्राप्त किया जा सकेगा और उससे उचित सुख-सुविधा का उपयोग किया जा सकेगा। आर्थिक प्रगति का यही राजमार्ग है। इसे छोड़कर सस्ते में सरलतापूर्वक बहुत जल्दी अधिक धन प्राप्त करने की बात सोचना शुरू से ही  अनैतिक एवं अपराधी प्रवृत्तियाँ अपनाने के बराबर है। श्रम से जी चुराकर, अमीर बनने की आकांक्षा व्यक्तिगत रूप से अनीति के मार्ग पर धकेलती है और समाज में अनैतिक दुष्प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देती है। यदि बिना कोई श्रम किये संपदा कमाई और इकट्ठी की गई हो तो उसका स्रोत अनैतिक और अवांछनीय ही हो सकता है। चोरी, जुआ, सट्टा, भ्रष्टाचार, मुनाफाखोरी, आदि इसी स्तर के स्रोत हैं, जिनमें बिना श्रम किये लाभ उठाने की भावना काम करती है।

इस प्रकार अर्जित की गयी आर्थिक सम्पदा समाज में बहुत ही ग़लत सन्देश देती है। अगर कोई  व्यक्ति इस प्रकार संपन्न हो जाता है तो समाज में दूसरे लोग उसे देखकर स्वयं भी संपन्न होने की इच्छा रखने लगते हैं और बिना मेहनत के अमीर बनने के लिए अनैतिक उपाय प्रयोग करना शुरू कर देते हैं। परिवार में ही ताने मिलने शुरू हो जाते हैं, यहाँ तक कि सुप्रसिद्ध बॉलीवुड मूवी “दीवार”  का  बहुचर्चित डायलाग “आज मेरे  पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है, तुम्‍हारे पास क्‍या है?, मेरे पास, मां है” भी सुनना पड़ता है। 

ठगी, चोरी, बेईमानी, लूट, डकैती, मिलावट, कम तोलना, मुनाफाखोरी, टैक्स चोरी स्मगलिंग जैसे अनैतिक अपराधों के पीछे यही प्रवृत्ति कार्य कर रही होती है कि बिना योग्यता एवं परिश्रम के रातोंरात  अमीर बन लिया जाए। डरपोक  प्रकृति के लोग मिलावट, कम तोलना जैसे सरल अपराध कर पाते हैं, दुस्साहसी बड़े-बड़े भयंकर कुकृत्य कर गुजरते हैं। चोर तो दोनों ही हैं, दिशा भी एक ही  है, एक छोटा चोर है तो दूसरा बड़ा चोर, केवल चोरी करने की डिग्री भर अलग है। 

गंभीरतापूर्वक इस बात को  समझ लेना चाहिए कि यह अपराधी प्रकृति मानवी चरित्र का सर्वनाश करती है, मानव की प्रतिष्ठा नष्ट करके उसे ऐसा घृणास्पद बना देती है जैसे कोई छूत की बीमारी हो। 

अनैतिकता अपनाकर जीवनयापन करने वाला मनुष्य भले ही अमीर  हो जाए लेकिन  उसका व्यक्तित्व दिन-दिन पतन के गर्त में गिरता जायेगा। आत्म-प्रताड़ना उसे इतना  जर्जर बना देती है कि वह अपनी ही नज़र में इतना गिरा हुआ होता है तो  दूसरों की नजर में ऊँचा कैसे उठ सकता है । 

आत्मा और परमात्मा की अदालत में जघन्य अपराधियों की तरह लज्जित होकर खड़े होने वालों को अमीरी कितनी महँगी पड़ती है, इसे गंभीरतापूर्वक समझने का प्रयत्न किया जाए तो कोई भी उस मार्ग पर चलने का साहस नहीं करेगा। अवांछनीय धन-लिप्सा ही समस्त दुष्कर्मों की जननी है। दुष्कर्मों से अर्जित किया गया धन, व्यसन, अनाचार, विलासिता, फिजूलखर्ची जैसे अनुपयुक्त मार्गों में खर्च होता है और उससे अन्य प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। चिंतकों ने ऐसे  ही तो नहीं कह दिया कि बेईमानी से कमाया गया धन वैसे ही जायेगा। 

इन पंक्तियों को लिखते समय हमारे ह्रदय में एक विचार उठ रहा है कि क्या गुरुदेव द्वारा दी गयी आर्थिक संतुलन की शिक्षा मात्र पढ़ने के लिए ही है यां इस पर अमल भी करना चाहिए। तो उत्तर यही मिला कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में परम पूज्य गुरुदेव ने चुन चुन कर ऐसी प्रवृति के मानव लाए हैं जो “कीचड में कमल” का उदाहरण हैं। जो इस प्रवृति के नहीं हैं गुरुदेव उन्हें थोड़ी देर के लिए टेस्ट करने के लिए लाते हैं, उनकी इसकी परिवार में दाल नहीं गलती और वोह भाग खड़े होते हैं। 

इन्ही शब्दों के साथ आज के लेख का समापन करते हैं, हमारी अगली गुरुकुल कक्षा सोमवार को होगी अगर आदरणीय सरविन्द जी की उत्कृष्ट लेखनी ने हमें bump न कर दिया।   

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 16   युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज चंद्रेश जी और सरविन्द जी   गोल्ड मैडल विजेता हैं।  

(1)वंदना कुमार-25 ,(2 ) सुमनलता-25 ,(3 )पिंकी  पाल-35 ,(4) संध्या कुमार-48  ,(5) सुजाता उपाध्याय-41 ,(6) नीरा त्रिखा-32 ,(7)चंद्रेश बहादुर-69 ,(8)रेणु श्रीवास्तव-45 ,(9 ) विदुषी बंता-24 , (10)मंजू मिश्रा-27 ,(11)सरविन्द पाल -70,(12)  स्नेहा गुप्ता-24,(13) निशा भारद्वाज-24,(14) पुष्पा सिंह-24 ,(15) अनुराधा पाल-29,(16) अरुण वर्मा26   

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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