वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अध्यात्म से शरीर को बीमारीओं  से मुक्त रखा जा सकता है।

22 नवंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद

आज के लेख में परम पूज्य गुरुदेव ने मनुष्य से सम्बंधित पांच मुख्य समस्याओं का संकेत दिया है : (1 ) शारीरिक (2 ) मानसिक (3 ) आर्थिक (4 ) पारिवारिक तथा (5 ) आत्मिक । इन पांचों समस्याओं के निवारण के लिए गुरुदेव ने अध्यात्म के  योगदान पर बल दिया है। आज हम केवल शारीरिक समस्या यानि स्वास्थ्य पर ही चर्चा करेंगें। गुरुदेव ने असंयमित जीवन को ही शरीरिक समस्या का कारण बताया है। संयम यानि स्वयं की इन्द्रीओं पर कण्ट्रोल करना भी एक प्रकार का अध्यात्म ही है,इसलिए आत्मसंयम और आत्मानुशासन का पालन करना बहुत ही आवश्यक है। 

आज का लेख आरम्भ करें, उससे पूर्व हम अपने हृदयपटल पर उठ रहे विचारों को परिवारजनों के साथ निम्लिखित शब्दों में शेयर करना चाहेंगें।  यह विचार ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की शिक्षा प्रणाली के बारे में हैं: 

अनेकों बार हमसे यह प्रश्न पूछा जा चुका है  कि हम  ज्ञानप्रसाद लेख लिखने में इतना परिश्रम क्यों करते हैं, सीधा गुरुदेव की पुस्तक का रेफरेंस ही क्यों नहीं शेयर कर देते, सभी साथी शिक्षित हैं ,अनुभवी हैं, अन्य पुस्तकों की तरह इसे भी पढ़ लेंगे।  हमारा उत्तर यही है कि हमें तसल्ली कैसे होगी कि  कितनों ने पढ़ा है, कितनों ने ठीक से समझा है, कितनों ने आगे प्रचार किया है। गुरुदेव ने हमें यही कार्य तो सौंपा है, हम गुरुदेव के आदेश की अवहेलना कैसे कर सकते हैं। साथिओं के समक्ष डेली  ज्ञानप्रसाद रखने से पूर्व  जितना साहित्य हम पढ़ कर अपने ज्ञान का विस्तार और अंतर्मन में शांति अनुभव करते  हैं,उसके लिए शब्द कम हैं। कमैंट्स के माध्यम से हमारे ज्ञान का भी विस्तार हो रहा है।  गुरुकुल कक्षा प्रणाली में सही मायनों में सत्संग( सत्य का संग)  हो रहा है, कॉमेंट्स के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान हो रहा है, अंतःकरण निर्मल हो रहा है, यही है सही मायनों में “विस्फोटक विचार क्रांति।” गुरुदेव ने विचारों को एक शक्तिशाली मिसाइल की संज्ञा दी है। कॉमेंट्स चाहे 600 पोस्ट हों यां 6, महत्व तो इस बात का है कि किस कॉमेंट ने बारूद का कार्य किया, किस कमेंट ने  हमारे विश्वव्यापी   छोटे से परिवार में चिंगारी भड़का दी।   

हमारे प्रज्ञामंडल में गुरुदेव का साहित्य पढ़ने की प्रथा थी। हम भी उसमें जाते थे, सभी बारी बारी एक एक पेज पढ़ते, एक साथी पढ़ता था और बाकी सुनते थे।अधिकतर लोग ऐसे पढ़ते थे जैसे  किताब पढ़ रहे हों, बिना परवाह किए कि कोई सुन भी रहा है या नहीं, कइयों को तो नींद भी आ रही होती थी, कठिन शब्दों की कोई चर्चा नहीं, कोई eye contact नहीं। जब हमारी पढ़ने की बारी आई तो हमें सुनने के बाद सभी कहने लगे, आप तो शिक्षक हो, आप ही रोज़ पढ़ा करो। यह लाइन हम बड़ी ही  सावधानी एवम साहस बटोर कर लिख रहे हैं, कहीं हमारे साथी इसे आत्म प्रशंसा  ही न समझ लें। हम तो मात्र LKG के नौसिखिए विद्यार्थी हैं।

तो आइए आज की गुरुकुल कक्षा का श्रीगणेश, गणेश जी को समर्पित होकर वहीँ से करते हैं जहाँ कल छोड़ा था। बुधवार का दिन गणेश जी का दिन होता है। 

ॐ असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ 

अर्थात 

हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।

मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥

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समस्याओं के अम्भार लगाने और सहानुभूति बटोरने में मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता है। वोह चाहे तो हर किसी समस्या के लिए दूसरे को दोषी ठहराता रहे लेकिन ऐसा नहीं है, उसकी  हर समस्या का कारण वोह खुद है।  

परम पूज्य गुरुदेव के अनुसार मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन की समस्त  समस्याएँ निम्नलिखित  पाँच वर्गों के अंतर्गत आती हैं : 

(1 ) शारीरिक (2 ) मानसिक (3 ) आर्थिक (4 ) पारिवारिक तथा (5 ) आत्मिक ।

हमारे विवेक के अनुसार जिस पुस्तक के माध्यम से  हम इन लेखों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं, बाकी का भाग इन्हीं पांच समस्याओं के इर्दगिर्द ही घूम रहा है।  ऐसा हमें पुस्तक के पन्नों को सरसरी तौर पर देखने से अनुभव हुआ है। हमारा पूर्ण विश्वास है कि जब हम इस लेख श्रृंखला के अंतिम पड़ाव में होंगें, हमारा अंतःकरण पूर्णतया Spiritually tune हो चुका होगा, अगर ऐसा हो जाता है तो हमारा प्रयास और गुरुदेव की आशा पूर्ण हो जाएगी।     

1. शारीरिक समस्या

वैसे तो सभी समस्याओं का अपना-अपना महत्व है लेकिन शारीरिक समस्या (स्वास्थ्य) का सबसे बड़ा महत्व है। वर्षों से सुनते आ रहे हैं Health is Wealth, क्या अच्छा स्वास्थ्य पैसा कमाने के लिए है, अच्छी सेहत से धन आएगा, यां कोई और विश्लेषण करना चाहिए।  अच्छा स्वास्थ्य ईश्वर का एक वरदान है, अगर स्वास्थ्य अच्छा है तो “धन” क्या, कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है।       

अधिकतर लोगों  को शारीरिक दुर्बलता घेरे रहती है और बीमारियों का दौर चढ़ा रहता है। सोचने वाली बात तो यह  है कि ऐसा क्यों होता है ? सृष्टि में असंख्य प्राणी हैं, शायद करोड़ों, अरबों की संख्या में। जीवन चक्र यानि जीना मरना तो उनका भी चलता ही है लेकिन उनमें से कोई भी  बीमार नहीं पड़ता। मनुष्य और उसके शिकंजे में कसे हुए थोड़े से पालतू पशुओं ( गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, बिल्ली आदि) को छोड़कर, स्वच्छ निर्वाह करने वाले जीव-जंतुओं में से किसी को weakness, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, ADHD जैसी fashionable बीमारियां नहीं सहनी पड़ती। बुढ़ापे और मृत्यु से सामना तो सबको पड़ता है लेकिन प्रकृति की गोद में पलने वाले यह प्राणी  जब तक जीते हैं  तब तक निरोग ही जीते हैं। 

अकेले मनुष्य पर ही दुर्बलता और रुग्णता की घटाएँ छाई रहती हैं। मनुष्य ने तो अपने साथ रहने वाले Pets( कुत्ता, बिल्ली  आदि ) को भी अपने जैसा बना दिया है, उन्हें भी आजकल stress हो रहा है, अकेलापन काट रहा है  और डॉक्टर भांति भांति के antidepressants दे रहे हैं। यह कोई हैरानगी वाली बात नहीं है क्योंकि Man is known by the company he keeps, तो अगर Pets बीमारों की संगत  में रहेंगें तो उनका बीमार होना स्वाभाविक ही है।  

मनुष्य की इस तरह की स्थिति का कारण एक ही है: उसका आहार-विहार संबंधी असंयम, प्रकृति के निर्देशों का धृष्टतापूर्वक उल्लंघन । स्वाद के नाम पर अभक्ष्य पदार्थों को समय-कुसमय अनावश्यक मात्रा में खाते  रहने से पेट की क्षमता नष्ट होती है और पेट  बेचारा अत्याचार, पीड़ित, दीन-दुर्बल की भांति  अपना काम निपटाने में असमर्थ हो जाता है। यह तथ्य सर्वविदित है कि पेट की अपच, हज़ार तरह की बीमारियाँ उत्पन्न करती हैं। लुकमान हकीम को कौन नहीं जानता, वोह सही कहते थे:

 “मनुष्य अपने असमय मरने और गड़ने के लिए अपनी कब्र स्वयं  खोदता है। इंद्रिय असंयम से वह स्वयं के  शक्ति भंडार को होली की तरह जलाता है और बर्फ की तरह अपने पौरुष को गलाकर समाप्त करता है।” 

अस्त-व्यस्त दिनचर्या, आलस्य, प्रमाद, गंदगी आदि  दुर्गुण अपनाने वाले, प्रकृति की प्रेरणाओं और नियत मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले “नियति की दंड व्यवस्था” से बच नहीं सकते। उन्हें रुग्णता की व्यथा सहनी ही पड़ेगी । इसका निवारण दवादारू की जादूगरी से नहीं हो सकता। यदि असंयमी जीवन जीने पर भी दवादारू के सहारे स्वास्थ्य रक्षा संभव रही होती, तो अमीरों ने और चिकित्सकों ने अब तक हाथी जैसा स्वास्थ्य संजो लिया होता। प्रकृति की अवज्ञा करने वाले उदंड अपराधी क्षमा योग्य नहीं होते और आए  दिन बीमारी  से कराहते रहते हैं। 

रोगी का उपचार करने के लिए औषधि के साथ-साथ परहेज रखना भी आवश्यक होता है।  शुरू से ही जब वह  बहुत बीमार  हो तो घर के सदस्य उसके खान-पान पर नियंत्रण रख सकते हैं लेकिन थोड़ा  स्वस्थ होते ही उसे वह नियंत्रण स्वयं ही करना चाहिए । स्वादलिप्सा और चटोरापन के कारण यदि वोह  ज़रा सी भी बदपरहेजी, असावधानी या असंयम करेगा  तो रोग पुनः अपना  भीषण रूप दिखा  सकता है। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए, रोग से मुक्त होने के लिए “संयम” का सहारा लेना पड़ता है। अपना भला-बुरा खुद  सोचना पड़ता है। यह विवेक अध्यात्म का ही अंग है। यदि हमें सचमुच ही स्वास्थ्य की स्थिरता की आशा हो, तो उसका एकमात्र उपाय “प्राकृतिक जीवन” ही  है। “आहार-विहार का संयम” कड़ाई से पालन करने के अतिरिक्त और किसी उपाय से स्वास्थ्य-रक्षा की समस्या हल नहीं हो सकती।

यहाँ यह कहना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि  इंद्रिय-लिप्साओं से छुटकारा पाना, सुव्यवस्थित जीवनक्रम अपनाना ही  शारीरिक क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली “अध्यात्म प्रक्रिया”  है। आत्मसंयम और आत्मानुशासन का नाम ही अध्यात्म है। यदि इस प्रक्रिया का प्रयोग विवेकशीलता और दूरदर्शिता अपनाते हुए “स्वास्थ्य प्रयोजन” के लिए किया जाता रहे तो हममें से किसी को भी न तो दुर्बलता घेरेगी और न ही बीमारी दबोचेगी। अब से 1000  वर्ष बाद जब भी स्वास्थ्य संकट से निपटना आवश्यक प्रतीत होगा और उसका स्थिर समाधान खोजा जाएगा, तो इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ेगा कि जीवनचर्या का निर्धारण अध्यात्मवादी दृष्टिकोण से किया जाए  और शारीरिक संपदा का उपयोग करने में प्रकृति के निर्देशों का पालन करने के लिए कड़ाई के साथ संयम बरता जाय। जिस दिन यह तथ्य हृदयंगम कर लिया जायेगा, उसे व्यावहारिक जीवन में उतार लिया जायेगा, उस दिन स्वास्थ्य संकट का अंधकार कहीं भी दृष्टिगोचर न होगा।

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11   युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।  

(1)वंदना कुमार-25 ,(2 ) सुमनलता-37 ,(3 )विदुषी बंता-24,(4) संध्या कुमार-29 ,(5) सुजाता उपाध्याय-29  ,(6) सरविन्द कुमार-51 ,(7)चंद्रेश बहादुर-30 ,(8)रेणु श्रीवास्तव-26 ,(9 )अरुण वर्मा-24,(10) अनिल मिश्रा-25,(11) मंजू मिश्रा-31,       

 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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