वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

“अनात्मवादी दृष्टिकोण” क्या है ?

21 नवंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद

अध्यात्मवादी दृष्टिकोण तो बहुत ही लोकप्रिय है, सभी जानते हैं ,कठिन होने के बावजूद सभी इसमें रूचि भी रखते हैं  लेकिन परम पूज्य गुरुदेव ने आज के  ज्ञानप्रसाद लेख में  एक नया शब्द “अनात्मवाद” का प्रयोग किया है जिसे समझने के लिए हमारी सदैव रक्षा करते गूगल महाराज का धन्यवाद् है। 

हर विषय की भांति यह भी एक अलग ही, विस्तृत  discipline  है और इसे समझने के प्रयास में उलझने के कहीं अधिक चांस थे, इसलिए हमने केवल एक ही लाइन में अपने साथिओं के समक्ष रखना उचित  समझा।

अनात्मवादी दृष्टिकोण के लोग आत्मा के अस्तित्व में विश्वास ही नहीं रखते,उनके अनुसार आत्मा अमर नहीं है, शरीर के भांति यह भी नाशवान है। 

गुरुदेव के अनुसार अनात्मवादी दृष्टिकोण ही सभी समस्याओं का मूल कारण है और अध्यात्म ही एकमात्र विकल्प है। 

आज हमारी सभी की  आदरणीय बहिन विदुषी जी की नन्ही सी परी जैसी नातिन कानुषी का शुभ जन्म दिवस है। परी जैसी बच्ची को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक शुभकामना, आशीर्वाद मिले। 

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आज का व्यक्ति समस्याओं के जाल में दिनों दिन जकड़ता चला जा रहा है। क्या धनी, क्या निर्धन, क्या विद्वान, क्या अशिक्षित, क्या रुग्ण क्या  स्वस्थ, सभी स्तर के मनुष्य अपने को  अभावग्रस्त और संकटग्रस्त स्थिति में पाते हैं। एक तो वोह है जिसे खाने को दो टाइम का भोजन भी बड़ी मुश्किल से नसीब होता है और दूसरी तरफ वोह है जिसकी समर्था तो छप्पन भोग तक की भी है लेकिन उसके पास भोजन करने का समय ही नहीं है यां ऐसे भी हैं जिन्हें  डॉक्टर ने भोजन करने के सम्बन्ध में  न जाने कितने ही प्रतिबंध लगाए  हैं। आदरणीय चिन्मय भाई साहिब अक्सर एक उदाहरण दिया करते है “आज का मनुष्य रोटी तो मुश्किल से एक खाता है लेकिन दवाइयां 20 खाता है। परम पूज्य गुरुदेव बताते हैं कि भोजन के  सन्दर्भ में भूखे का दर्द एक तरह का है  और अतिभोजी का दूसरे ढंग का, लेकिन कष्ट-पीड़ित दोनों ही हैं। 

भौतिक दृष्टि से विज्ञान ने मनुष्य के लिए अनगनित  प्रकार की प्रचुर साधन-सुविधाएँ उपलब्ध करा दी हैं। सिर्फ नाम लेने की देर है, कुछ ही घंटों में ऑनलाइन ही सब कुछ आपके दरवाज़े पर उपलब्ध हो जायेगा, घर से बाहिर जाकर दुकान  में मोलभाव करने की भी ज़रुरत नहीं है। वर्षों पहले छोटी कक्षाओं में “आकाश के तारे तोड़ने”  जैसे टोटके सुनते थे, आज प्रतक्ष्य दिख रहे हैं। हम पहले भी कई बार स्वयं को प्रश्न कर चुके हैं, क्या यह विकास है यां विनाश ? गुरुदेव ने अपना बच्चा समझ कर वर्षों पहले इस प्रश्न का उत्तर दे दिया था।  बाल्यकाल की धारणाओं का मनुष्य के  अंतर्मन पर Long-lasting प्रभाव रहता है ,शायद यही धारणा आज तक कार्य कर रही  है। 

अब से कुछ समय पूर्व लोग कहीं लंबी यात्रा पर निकलते थे, तो यह मानकर चलते थे कि पता नहीं अब लौटकर परिवार वालों को देख भी सकेंगे या नहीं। इसलिए वे यात्रा पर निकलते समय परिवार की व्यवस्था इस प्रकार बनाकर चलते थे, मानो अब उनकी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। लेकिन आज तो मनुष्य चंद्रमा पर कदम जमा चुका है, कुछ ही दिनों में चाँद की  यात्रा करके भी सकुशल वापस लौट आने में भी  समर्थ है। Space टूरिज्म की बात हम कई बार कर चुके हैं।  

कहने का आशय यह कि प्राचीनकाल की तुलना में आज साधन-सुविधाओं में आकाश- पाताल जितना अंतर हो गया है। इसे कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता। साधनों के विकास और सुविधाओं के अंबार लग जाने पर तो यह होना चाहिए था कि मनुष्य पूरी तरह से सुखी होता लेकिन देखने में तो यह आ रहा है कि  मनुष्य पहले की तुलना में और भी अधिक दुःखी और संकटग्रस्त हो गया है। उसके चारों ओर समस्याओं का जाल बिछा हुआ  है, सभी ऐसी अंधी दौड़ में लगे हैं जिसका कोई अंत ही नहीं है। जिस किसी को भी पूछ लो, हर वर्ग का मनुष्य, हर कोटि का  मनुष्य स्वयं  को अभावग्रस्त और संकटग्रस्त स्थिति में अनुभव कर रहा है। व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन और संसार के सभी क्षेत्रों में समस्याएँ ही समस्याएँ बिखरी पड़ी हैं। विभिन्न वर्ग के, विभिन्न स्तर के व्यक्तियों की समस्याएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, एक-दूसरे से किसी रूप में सम्बंधित भी नहीं लगतीं, लेकिन यदि उनके मूल में देखा जाय तो एक ही कारण प्रतीत होगा और वोह कारण है  “अनात्मवादी दृष्टिकोण ।”

हमारे साथी, सहकर्मी, सहपाठी सोच रहे होंगें कि यह कौन सा नया  दृष्टिकोण है। हम हर रोज नए से नए शब्द सीख कर वर्तमान विषय को समझकर अंतरात्मा में उतारने का प्रयास कर रहे  हैं क्योंकि  “पढ़ने” में  और “पढ़कर जीने” में बहुत बड़ा अंतर् है। परम पूज्य गुरुदेव के साहित्य को समझना है तो “पढ़कर जीने” के लेवल से कम में काम नहीं बनेगा, तभी हम कहने के योग्य होंगें कि “समस्त  समस्याओं का समाधान अध्यात्म ही है।”

“अनात्मवादी दृष्टिकोण” को समझने के लिए हम किसी भी प्रकार का confusion नहीं रखना चाहते और अत्यंत सरल भाषा में निम्नलिखित लिखना चाहेंगें : 

आज तक तो हम यही कहते, सुनते, समझते आए  हैं कि आत्मा का कभी नाश नहीं होता लेकिन अनात्मवाद दृष्टिकोण के अनुसार आत्मा exist ही नहीं करती, आत्मा की कोई भौतिक शक्ल ही नहीं होती तो हम क्यों माने कि आत्मा exist करती है। 

आज के युग के सन्दर्भ में अक्सर कहा  जाता है, “आज के मानव की आत्मा मर चुकी है” तो उस दृष्टिकोण का क्या करें जिसके अनुसार आत्मा का तो existence ही नहीं है।    

आप जिस कमरे में इस समय बैठ कर इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान कर रहे हैं उसकी लाइट स्विच ऑफ कर दीजिए, आप देखेंगें कि एकदम अँधेरा हो गया है। प्रकाश की अनुपस्थिति का नाम ही अंधकार है। जब प्रकाश बुझ जाता है तो अंधकार आ जाता है और जब प्रकाश फैलने लगता है तो अंधकार भाग जाता है। जिस कमरे में आप अमृतपान कर रहे हैं उस कमरे की खिड़की में से प्रकाश बाहिर भी आ रहा है, यानि खिड़कियां खोल दी जाएँ तो प्रकाश का विस्तार हो जाएगा। आवश्यकता है इसी प्रकाश के विस्तार की , ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी छोटे-छोटे प्रयास इसी दिशा में अग्रसर होने के लिए हैं। 

वर्तमान  समय में  जिस अनुपात में  साधन-सुविधाओं में प्रगति हुई है, ऐसी शायद ही पिछले किसी समय में हुई हो और यह रुकने एवं थमने वाली नहीं है। लेकिन  जिस “आधार” पर सुख-शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत किया जा सकता है, उस “दृष्टिकोण का अभाव” ही समस्याओं का कारण बना हुआ है। 

कौनसा दृष्टिकोण ? 

अंधकार को दूर भगाने का दृष्टिकोण। अन्धकार को दूर भगाने  के लिए कितने ही साधन जुटाए जाएँ, कितनी ही तैयारियाँ की जाएँ, जब तक प्रकाश “फैलाने का प्रयास” न किया जाय तब तक अंधकार बना ही रहेगा। कितने ही साधन इकट्ठे कर लिए जाएँ, कितनी ही सुविधाएँ बढ़ा ली जाएँ,लेकिन  “अनात्मवादी दृष्टिकोण” को, आत्मा के अस्तित्व को नकारने वाले दृष्टिकोण को  निरस्त करने के लिए जब तक “अध्यात्म की ज्योति” नहीं जगाई जायेगी, तब तक सभी प्रयास व्यर्थ ही होते चले जायेंगे।

कठिनाइयों एवं समस्याओं के छोटे-मोटे ( Short-term)  उपचार  तो  निकल ही  आते हैं, किंतु टिकाऊ ( Durable, Long-term) समाधान एवं उपचार केवल  “अध्यात्म की नाव” में सवार होकर  ही निकल सकता है। बरसात के  खड़े पानी में अनेकों प्रकार के  रेंगने वाले कीड़े उपजते हैं, गंदगी के ढेर में मक्खी की उत्पत्ति होती है। हम लाठी लेकर एक-एक मक्खी और मच्छर को मारते रहेंगें तो कुछ भी प्राप्त नहीं होगा क्योंकि हम जितनी मारेंगें उससे 10 गुना और पैदा हो जायेंगें, यह तो बायोलॉजी का बेसिक नियम  है। जब तक इन मक्खी मच्छरों की “उत्पति के आधार” को नष्ट नहीं करेंगें, उत्पत्ति का क्रम रुकने वाला नहीं है। हम सब जानते हैं कि इन  कृमिकीटकों से छुटकारे का एक ही उपाय है कि कीचड़ और गंदगी को साफ किया जाय।

समाज में पनप रही इसी  गंदगी को  साफ़ करने के लिए गुरुदेव हमें आग्रह कर रहे हैं और ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक सदस्य जिस तरह से प्रयासरत है, उसके परिणाम प्रतिदिन प्रतक्ष्य दिख रहे हैं।   

ईश्वर ने अपने बच्चों  के  सुखमय जीवन के लिए  सुख सम्पदाओं के भरपूर इस “विश्व उद्यान” में अनेकों अनुदान प्रदान किए  हैं लेकिन इन सुख संपदाओं के उपभोग के साथ-साथ इस विश्व उद्यान की रक्षा का कार्य भी हम जैसे बच्चों को ही सौंपा है। पिता की सम्पति पर बच्चों का “अधिकार” तो होता ही है, आटोमेटिक ही  होता है लेकिन अधिकार के साथ ही “रक्षा और ज़िम्मेवारी” का element भी जुड़ा है, इसीलिए  Rights and Responsibilities की बात की जाती है।  

समाज में पनप रही समस्त समस्याएँ मनुष्य को उसकी  भूलों से सचेत करने वाली Red Light  की तरह हैं। आप रेड लाइट को क्रॉस करके देखिए, परिणाम हम सबके समक्ष है।  यदि हम “मनुष्योचित दृष्टिकोण” अपनाएं  यानि मनुष्य जैसा जीवनयापन करें और शालीनता भरा जीवन जिएँ तो जीवन यात्रा के मार्ग में आने वाले स्पीड ब्रेकरों से जूझकर शक्ति नष्ट करने की समस्या न रहेगी। हम सब  प्रगति पथ पर अनवरत गति से आगे बढ़ते जायेंगें और हमारा एकमात्र लक्ष्य “पूर्णता” प्राप्त करना ही रह जायेगा।

मनुष्य की प्रवृति रही है कि सदैव शिकायत करते रहना  और दूसरों को blame करते रहना, उसके जीवन में आने वाली समस्त समस्याओं  की ज़िम्मेवारी किसी और की न होकर, उसके अपने कृत्यों की है। मनुष्य तो इतना thankless प्राणी है कि भगवान तक को भी नहीं बख्शता, कुछ अच्छा हो गया तो, मेरे परिश्रम और capability के कारण हुआ, अगर कुछ ग़लत हो गया तो भगवान् तूने यह क्या कर दिया ? मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था, मदिर की सीढ़ीओं पर सिर पटक पटक पर अपनी जान दे दूँगी, यह डायलाग तो हम सबने अनेकोबार बॉलीवुड मसाला फिल्मों में सुने होंगें। 

मनुष्य की अधिकतर समस्याएं, जो उसे त्रास देती है, कहाँ से उत्पन्न  होती हैं, क्यों उत्पन्न होती हैं और उनका Durable, Long-lasting समाधान क्या है, यही विषय रहेगा कल वाले ज्ञानप्रसाद लेख का, आज के लिए बस इतना ही। 

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज वंदना जी,सरविन्द जी और सुजाता जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।  

(1)वंदना कुमार-45,(2 ) सुमनलता-30,(3 )नीरा त्रिखा-24,(4) संध्या कुमार-37,(5) सुजाता उपाध्याय-42 ,(6) सरविन्द कुमार-45,(7)चंद्रेश बहादुर- 38,(8)रेणु श्रीवास्तव-26 ,(9 )अरुण वर्मा-32    

 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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