20 नवंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद-
हर सोमवार की तरह आज भी हम अत्यंत ऊर्जा के साथ सप्ताह का शुभारम्भ कर रहे हैं, आशा करते हैं कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक समर्पित साथी गुरुकुल कक्षा में गुरुचरणों में समर्पित होकर आज के अमृतपान के लिए आतुर होगा।
हमने आज के लेख में अनेकों technical शब्दों को सरल करने का प्रयास किया ताकि किसी भी तरह का confusion न रह जाए लेकिन अध्यात्म का विषय है ही बड़ा जटिल , दिल-दिमाग-आत्मा-अंतरात्मा-आस्था- चित्त-मन-ह्रदय-चेतन-अचेतन-अवचेतन, ऐसे शब्दों की न जाने कितनी बड़ी लिस्ट है।
परम पूज्य गुरुदेव सभी समस्याओं का हल अध्यात्म में बता रहे हैं जिसके लिए अनेकों दिशाओं का ज्ञान होना चाहिए। किताबी ज्ञान के इलावा, स्वयं आध्यात्मिक जीवन जी कर परिणाम देखे जा सकते हैं। यह सब एक-दो दिन में Crash course की तरह इंस्टेंट प्राप्त नहीं किया जा सकता। अध्यात्म के experts ( हमारे गुरुदेव) ने तो सारा जीवन ही अध्यात्म को समर्पित कर दिया।
तो आइए प्रयास करें आज के विषय को समझने का।
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आदर्शवादियों, ऐतिहासिक महामानवों, ऋषियों, युग-पुरुषों और देवात्माओं का अंतःकरण बहुत ही प्रबल होता है। वे शरीर, मन और परिवार की, लोभ और मोह की, अभाव और कष्ट की परवाह न करते हुए अपनी महान गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। प्रलोभन के तर्क उनको तनिक भी प्रभावित नहीं करते; तथाकथित चतुरता, बुद्धिमत्ता उनके गले तनिक भी नहीं उतरती। वे कष्टसाध्य परिस्थितियों में रहते हुए वैभव, संपत्ति की अपेक्षा अनेकों गुना अधिक सुखी और संतुष्ट पाए जाते हैं। उनके चेहरे पर हर स्थिति में संतुलन भरी मुस्कान नाचती रहती है।
यह आस्थाओं की उत्कृष्टता का चमत्कार है।
आस्थाएँ व्यक्तित्व के अत्यंत गहरे मर्मस्थल में जमी होती हैं। चेतना की इसी भूमिका को अंतःकरण कहते हैं। मनोविज्ञान की दृष्टि से यह अचेतन (Subconscious) की अति गहरी परत है। तर्क मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। अंतःकरण उनसे अप्रभावित रहता है। इस क्षेत्र को कुरेदने, सुधारने, बदलने, उठाने के लिए कुछ अधिक ऊँचे स्तर की, “आस्था वर्ग” की विचार प्रक्रिया ही काम करती हैं। इस स्तर का चिंतन अध्यात्म कहलाता है। इसके लिए सामान्य ज्ञान पर्याप्त नहीं होता। उसके लिए तत्त्वज्ञान एवं ब्रह्मज्ञान फिलोसोफी एवं अध्यात्म ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार की दार्शनिकता को ब्रह्मविद्या का नाम दिया जाता रहा है। आत्म-विज्ञान का, अध्यात्म का यही कार्यक्षेत्र है।
हमारे मस्तिष्क जो भी कल्पनाएं उठती है, मन और facts को सामने रखकर निर्णय लेने का कार्य बुद्धि करती है। बुद्धि भी तो सम्भवता दो प्रकार की होती है दुर्बुद्धि और सद्बुद्धि। कई बार सद्बुद्धि होने के बावजूद भी निर्णय लेना कठिन हो जाता है क्योंकि सद्बुद्धि का प्रयोग भी तो हर कोई नहीं कर सकता। दुर्बुद्धि की बात तो करने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि सभी जानते हैं कि परिणाम क्या होने वाला है। सद्बुद्धि होने के बावजूद प्रयोग न कर पाने का सबसे बड़ा कारण वर्षों से अंतःकरण के साथ चिपकी हुई आदतें हैं। इन्हीं आदतों का जमघट “चित्त” कहलाता है। इस जमघट में सदैव आग्रह बना रहता है की भैया हम तो पुराने ढर्रे पर लुढ़कते चलने में ही सुविधा अनुभव करते हैं। हमारे लिए बदलाव तो बहुत ही कठिन है ,वर्षों से ऐसा करते आ रहे हैं, हमें तो कोई कठिनता, असुविधा का आभास नहीं हुआ तो फिर किसी को क्यों परेशानी है। पुरानी अनगनित चिपकी हुई आदतों के जमघट में सबसे ऊपर जिस तत्व तो स्थान दिया गया है वोह है “अहं तत्त्व” । इसको अंग्रेजी में “ईगो (Ego )” कहते हैं। यह ईगो ही तो है जो ईश्वरीय परिवारों में भी कलह का कारण बनी हुई है। यह ईगो ही है जो मनुष्य को सकारात्मक सोच, broad mindedness, forward thinking की दिशा में बाधक बनी रहती है।
आत्म-विज्ञान (अपनेआप को जानने का विज्ञान) में इसे अंतःकरण या अंतरात्मा कहा जा सकता है। इसमें चिंतन, तत्त्वदर्शन एवं आत्मदर्शन स्तर की बातें ही प्रवेश कर पाती हैं, जो उपयुक्त निर्णय इस क्षेत्र में हो सकते हैं, उस दूरदर्शी विवेकशीलता को, विवेक एवं तर्क के आधार पर निर्णय लेने को ‘ऋतंभरा प्रज्ञा’ कहते हैं। आस्थाओं का परिमार्जन, परिष्कार करने वाले तत्त्वज्ञान को योग और उलट-पुलट करने वाले समर्थ क्रिया-कलाप को,प्रचंड ट्रीटमेंट को “तप” कहते हैं। योग एक सिद्धांत है और तप एक क्रिया है। दोनों को मिलाकर, यानि दोनों के योग(जोड़) से जिस विज्ञान का जन्म होता है उसे overall अध्यात्म-विज्ञान ( Spiritual Science) बनता है।
आजकल फैशन के तौर पर स्कूलों कॉलेजों में Spiritual Science पढ़ाई जाने लगी है, लेकिन एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उभर का सामने आता है। प्रश्न है कि क्या Spiritual Science की डिग्री लेकर विद्यार्थी आध्यात्मिक हो जाता है ? हमारा उत्तर “न” है क्योंकि swimming में महारत प्राप्त करने के लिए पूल में उतरना ही पड़ेगा, किताबों से, ऑनलाइन स्टडी, Crash courses से केवल डिग्री ही मिलती है, expertise नहीं।
आधुनिक युग के मोटी बुद्धि वाले लोग , विकास और पदार्थवाद की अंधी दौड़ वाले लोग, रातोंरात सफलता के शिखर को छूने वाले लोग,अध्यात्म को महत्त्वहीन और अर्थहीन मानते रहे हैं। परम पूज्य गुरुदेव बताते हैं कि यह उनकी भारी भूल है।
अध्यात्म वह चाबी है, जिसके सहारे मानवी सत्ता की घड़ी के सब कलपुर्जे घूमते हैं। आस्थाओं के अनुरूप मस्तिष्क काम करता है, मस्तिष्क के निर्देश पर शरीर चलता है। शरीर की हरकतों से परिस्थितियाँ उत्पन्न करती हैं। यह परिस्थितियाँ ही सुविधाएँ और विपत्तियाँ बनकर सामने आती हैं। तथ्यों को समझा जा सके तो इस निर्णय पर पहुँचना होगा कि उलझी परिस्थितियाँ सुधारने के लिए मनुष्यों की गतिविधियाँ सज्जनता के अनुरूप होनी चाहिए। यह तभी संभव है, जब विचार पद्धति का परिष्कार, दृष्टिकोण का उत्कर्ष किया जाए । यह कार्य विचारों से विचारों की काट करने से भी एक सीमा तक पूरा होता है, लेकिन overall समाधान आस्थाओं में excellent material भर देने से ही चिरस्थायी हो सकता है। भागदौड़ में लिए गये सुधार अधिक देर तक नहीं टिक पाते और मौका देखते ही वोह फिर सिर उठा कर खड़े हो जाते हैं और फिर पुरानी दुष्टता अपना परिचय देने लगती है।
जिस विज्ञान से मनुष्य के अंतःकरण का स्तर ऊँचा उठाने में सहयोग मिलता है उस विज्ञान का नाम “अध्यात्म” है। प्राचीनकाल में इसी विज्ञान के सहारे इस देश के नागरिकों ने देवत्व प्राप्त किया था और अपने घर परिवार को, कार्यस्थली को स्वर्गतुल्य बनाया था। गुरुदेव बता रहे हैं कि अब हमें फिर उसी प्रकार के उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा उठी है जिसके लिए हमें फिर से उन्हीं महान परंपराओं का अनुकरण करना होगा, जिनके आधार पर हमारे महान पूर्वज स्वयं शांति से रहते थे, समुन्नत बनते थे एवं औरों की शांति की कामना करते थे। यह भारत ही है जहाँ की महान आत्माओं ने अपने अनुभवों से समस्त संसार को सुसंपन्न और सुसंस्कृत बनाने में महान योगदान दिया है । आज की विपत्तियों और समस्याओं का चिरस्थायी समाधान अध्यात्म-विज्ञान ( Scientific spirituality) को अपनाने में ही है। यही एकमात्र सीढ़ी है जिसके सहारे उज्ज्वल भविष्य के स्वर्णिम सतयुग के अवतरण का उद्देश्य पूरा हो सकता है।
यह तो हुआ अध्यात्म का किताबी ज्ञान, आध्यात्मिक जीवन हमारे रोज़मर्रा के जीवन से अलग या उससे विपरीत जीवनशैली नहीं है। हमारे अनेकों परिजन नियमित ध्यान साधना करते होंगें, बस, ध्यान का अनुपालन करते हुए काम, क्रोध, लोभ मोह, मद व मत्सर से मुक्ति प्राप्त करना ही अध्यात्म है ताकि हम अपने “अहम्” (Ego) को गला सकें, अहम् से मुक्त हो सकें। अहंकार-मुक्त (Egoless), जीवन ही आध्यात्मिक जीवन है। ध्यान के नियमित अभ्यास के साथ-साथ, अगर जीवन-शैली भी ध्यान से परिपूरित हो जाए तो सोने पर सुहागा जैसी बात होगी। ऐसी जीवनशैली को ध्यानमय करने अर्थात Living in Meditation कहते है जिसके निम्लिखित 10 बिंदु हैं :
(1) अतीत की यादों और भविष्य की चिंताओं को छोड़ कर वर्तमान क्षण के प्रति सजग रूप से समर्पित रहना।
(2) अपनी चेतना को शरीर और मन के जाल से परे रखनाअर्थात् स्वयं को जाति, पंथ, लिंग, उम्र, धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता से परे आत्म-स्वरूप में स्थित रखना।
(3) लोगों के साथ बातचीत करते समय प्रतिक्रिया करने से बचना।
(4) अपने द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को भूलना और दूसरों को उनके दुर्व्यवहार के लिए क्षमा करना ।
(5) इच्छाहीनता का अभ्यास करना और जीवन द्वारा दी जाने वाली हर चीज को स्वीकार करना । यह अहंकार को दूर करेगा जो आत्म-साक्षात्कार (self-realization) के मार्ग में प्रमुख बाधा है। Self-realization यानि स्वयं को जानना, अपनी आत्मा का बोध ही अध्यात्म है। इस दिशा में परम पूज्य गुरुदेव की पुस्तक “ मैं कौन हूँ” बहुत ही सहायक चाबी है।
(6) पदार्थों और लोगों के प्रति अनासक्ति (detachment) का अभ्यास करना ही सही मायनों में ध्यान है, अध्यात्म है।
(7) किसी भी पंथ विशेष , गुरु, विचारधारा, संगठन आदि की नक़ल एवं अंधभक्ति नहीं करना। हम सब गायत्री परिवार के follower हैं, गुरुदेव में विश्वास रखते हैं लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं है बाकी सब कुछ फ़ज़ूल है।
(8) दिल और दिमाग का संतुलन स्थापित करना अर्थात् तार्किक रूप से जीवन का निर्वाह करना और प्रेममय रह कर आगे बढ़ना ।
(9) हर घटना का सकारात्मक पहलू ही देखना अर्थात Positive thinking .
(10) अपने शब्दों और कर्मों से दूसरों को उत्तेजित न करने का प्रयास करना। इसी तरह दूसरों के दुर्व्यवहार से उत्तेजित नहीं होना।
आज की गुरुकुल कक्षा की समापन यहीं पर होता है।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 13 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज चंद्रेश जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)वंदना कुमार-27 ,(2 ) सुमनलता-41 ,(3 )नीरा त्रिखा-29 ,(4) संध्या कुमार-51 , (5) सुजाता उपाध्याय-53,(6) सरविन्द कुमार-43 ,(7)निशा भरद्वाज-29, (8) चंद्रेश बहादुर- 60 , (9 ) विदुषी बंता-24 ,(10 )पुष्पा सिंह-27,(11)रेणु श्रीवास्तव-34,(12) राज कुमारी कौरव-24,(13)अरुण वर्मा-24
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।