वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

“अपने सहकर्मियों की कलम से” का 18 नवंबर 2023 वाला स्पेशल सेगमेंट

आज जब हमने सप्ताह के सबसे लोकप्रिय सेगमेंट के लिए मैटेरियल इक्क्ठा करना आरम्भ किया तो कुछ भी ऐसा न दिखा जिसे इस सेगमेंट में शामिल किया जा सके। देखते ही देखते सरविन्द जी, सुजाता बहिन जी, संजना बेटी ने कुछ pictures भेजीं जिन्हें इस मंच पर शेयर किया जा रहा है। यज्ञों के बारे में इतनी अधिक जानकारी है कि लगभग हर दिन कहीं न कहीं यज्ञ हो ही रहा है, सभी को तो शेयर करना संभव नहीं है लेकिन जो हमारे परिवार से सम्बंधित हों उन्हें  इग्नोर करना उचित नहीं है। उसी कड़ी में दो यज्ञों की जानकारी शेयर  कर रहे हैं और सुजाता जी के बगीचे में ब्रह्मकमल के दर्शन हेतु पिक्चर भी आपके समक्ष है। प्रेरणा बेटी और पूनम एवं अशोक जी छठ पूजा के लिए शांतिकुंज में तीर्थसेवन का रहे हैं। शांतिकुंज में हों तो दोनों बेटियों का मिलन न हो, यह कैसे संभव हो सकता है। परम पूज्य गुरुदेव इस प्यार के देखकर कितना प्रसन्न हो रहे होंगें, शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। इस छोटे से समर्पित परिवार की “प्यार” ही सबसे बड़ी शक्ति है।

आज के स्पेशल सेगमेंट में दो फेसबुक posts का वर्णन है, पहली पोस्ट हमारे फेसबुक पर शेयर हुई थी और दूसरी हमारी छोटी भाभी आदरणीय  राधा त्रिखा  ने भेजी थी। दोनों posts शिक्षाप्रद मैसेज दे रही हैं। 

*****************

1.अरुण त्रिखा :   

फेसबुक ने जब सात वर्ष पुरानी इस पोस्ट को हमारे पेज पर  स्मरण कराया तो ह्रदय के भावनत्मक तार  फिर से झंकृत तो हुए ही साथ में हमारे ह्रदय ने एक प्रश्न पूछा, 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में भी हर सेकंड नहीं तो हर मिनट, हर साथी का ख्याल रखा जाता है, हर किसी को एक दूसरे की जानकारी होती है, जब भी कोई साथी  अचानक, किसी कारणवश इस ग्रुप से गायब हो जाता है तो एकदम खलबली सी मच जाती है, जिज्ञासा भरे कमैंट्स आने शुरू हो जाते हैं। ऐसा केवल इसलिए  है कि इस आत्मीयता भरे परिवार के रचयिता हमारे गुरु हैं जिन्होंने सदैव आत्मीयता का सन्देश दिया  है। अगर हम कहें कि हमारा परिवार इस ग्रुप से भी बढ़ कर है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि  यह ग्रुप तो केवल “60 प्लस” का है, हमारे परिवार में तो  बच्चों से लेकर वरिष्ठों का सक्रीय सहयोग मिल रहा है। 

जब हम “सक्रीय” शब्द का प्रयोग करते हैं तो आदरणीय सुमनलता बहिन जी का कल वाला कमेंट स्मरण हो आता है जिसमें उन्होंने 26000 यूट्यूब subscribers की बात की थी। अवश्य ही यह subscribers गुरुदेव के साहित्य से प्रभावित होकर हमारे साथ जुड़े होंगें, सभी रेगुलर कमेंट तो नहीं करते लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह परिजन गुरुदेव का साहित्य/वीडियो नहीं पढ़ रहे/ देख रहे हैं। 

यह  फ़ास्ट का युग है, समय के अभाव का युग है,किसी  के पास समय नहीं है;  फ़ास्ट फ़ूड से लेकर फ़ास्ट म्यूजिक का प्रचलन है, इंस्टेंट का प्रचलन है।  लाइक और शेयर करके ही गुरुभक्ति पूरी की जा रही है। गुरु भक्ति आत्मा के स्तर का कार्य है। यह कैसे हो सकता है कि गुरु का साहित्य आपके ह्रदय के तारों को झंकृत न करे  और आप अपना ह्रदय खोल कर परिवार के समक्ष न रख दें, कदापि नहीं हो सकता। लेकिन लाइक और शेयर वालों के लिए भी हमारे ह्रदय में श्रद्धा है,अभी कुछ ही दिन पूर्व हमें  व्हाट्सप्प पर एक कमेंट मिला  : 

हमने पांच ग्रुपों में शेयर किया है,इससे अधिक न तो हमारी पात्रता और न समय क्षमता। 

कमेंट पढ़कर एक बार तो  अंतर्मन में प्रश्न उठा, “अरे, 24 घंटे में से  20 सेकंड का समयदान करके गुरु पर अहसान कर रहा है ?” लेकिन ऐसे साथी भी सम्मानीय हैं। 

आइए जानते हैं 60 प्लस ग्रुप के बारे में।                  

60 प्लस व्हाट्सप्प ग्रुप:

कार से उतरकर भागते हुए हॉस्पिटल में पहुंचे नौजवान  बिजनेसमैन ने पूछा: “डॉक्टर,अब कैसी हैं माँ?“ हाँफते हुए उसने पूछा। “अब ठीक हैं। माइनर सा स्ट्रोक था। ये बुजुर्ग लोग उन्हें सही समय पर ले आये, वरना कुछ भी बुरा हो सकता था।“ डॉ ने पीछे बेंच पर बैठे दो बुजुर्गों की तरफ इशारा कर के जवाब दिया। “अब आपको रिसेप्शन से फॉर्म इत्यादि की फार्मैलिटी करनी है।” डॉ ने जारी रखा। “थैंक यू डॉ. साहेब, वो सब काम मेरी सेक्रेटरी कर रही है”  

अब वो नौजवान Relaxed था। वोह  उन बुजुर्गों की तरफ मुड़ा,“थैंक्स अंकल, लेकिन मैनें आप दोनों को पहचाना नहीं।”  “सही कह रहे हो बेटा, तुम नहीं पहचानोगे क्योंकि हम तुम्हारी माँ के व्हाट्सप्प  फ्रेंड हैं।” एक ने बोला। “क्या ? वाट्सअप फ्रेंड ?” चिंता छोड़ कर ,उसे अब,अचानक से अपनी माँ पर गुस्सा आया। 

“हमारे ग्रुप का नाम 60 प्लस है। इस ग्रुप में 60  वर्ष व इससे अधिक आयु  के लोग जुड़े हुए हैं। इस ग्रुप से  जुड़े हर मेम्बर को रोज़  एक मेसेज भेज कर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी अनिवार्य होती है, साथ ही अपने आस पास के बुजुर्गों को इसमें जोड़ने की ज़िम्मेदारी भी  दी जाती है। जिस किसी दिन, किसी मेम्बर का मैसेज नहीं मिलता तो तुरंत उससे संपर्क करके हाल चाल का पता लगाया जाता है। आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम 2 लोग उनके घर पहुंच गए।”

बिजनेसमैन बेटा  गम्भीरता से सुन रहा था, उसने  धीरे से पूछा “लेकिन  माँ ने तो कभी नहीं बताया।” एक बुज़ुर्ग ने पूछा, “माँ से अंतिम बार तुमने कब बात की थी बेटा? क्या तुम्हें याद है ?” बिज़नेस में उलझे ,इस नौजवान ने मात्र  30 मिनट की drive  पर रह रही माँ के लिए, समय निकालना कितना मुश्किल बना लिया था। हाँ, पिछली दीपावली को ही तो मिला था माँ से, गिफ्ट देने के नाम पर। 

बुजुर्ग बोले,“बेटा, तुम्हारी  सुख सुविधाओं के बीच,अब कोई और माँ या बाप अकेले घर में  कंकाल न बन जाएं, हमने बस यही सोच यह  ग्रुप बनाया है, हम सबको दीवारों से बातें  करने की आदत तो पड़ चुकी है।” उसके सिर पर हाथ फेर कर दोनों बुज़ुर्ग अस्पताल से बाहर की ओर निकल पड़े और नौजवान बिजनेसमैन उन्हें  जाते देख एकटक देखता ही रह गया।  

2.राधा त्रिखा : 

क्या आप भी बचपन मे नाना-नानी, मामा-मामी, दादा-दादी या चाचा-चाची के परिवार के साथ गर्मियों की छुट्टिओं  में छत पर पानी छिड़क कर खाट पर या छत पर दरी-बिस्तर बिछा कर सोये हो। तब घर में बिजली केवल पीले से चमकने वाले 0, 40, 60 और 100 वॉट के पीतल की टोपी वाले फिलामेंट बल्ब के लिए होती थी। पंखे अमीरों के घर में ही होते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वे, कभी न भूलने वाले। उन दिनों  सभी के छत लगभग एक ही  ऊँचाई के थें। एक नियम होता था। पहले बाल्टी  मे पानी भरकर दो तल्ले पर, छत पर पानी का छिड़काव। नीचे से बिस्तर छत पर पहुँचाना, उन्हें  बिछाना ताकि बिस्तर ठंडा हो जाए। खाने के बाद, पानी की छोटी सुराही और गिलास भी छत पर ले जाना। कभी कभी रेडियो पर आकाशवाणी, हवामहल, तामील-ए-इरशाद का प्रोग्राम सुनते थे या पुराने गीतमाला के पुराने गाने । लेट कर आसमान देखना, तारे गिनना,छत पर लेटे-लेटे ही हमने सप्तऋषि मंडल ,ध्रुव तारा और असंख्य तारों को देखा। छत पर ही आते-जाते हवाई जहाज देखना, बहुत ही मन को भाते थे । सुबह सुरज के साथ उठना पड़ता था। गर्मियों  मे सुबह-सुबह कोयल की कूक, चिड़ियों का चहचहाना, मोर की आवाज़ या मुर्गे की आवाज़ भी सुनने को मिलती थी। फिर बिस्तर समेट कर छत से नीचे लाना, सुराही भी नीचे लानी । पहले किसी की छत पर कोई लेटा हो, खासकर महिला, तो दुसरे छत के लोग स्वंय हट जाते थे। यह एक अनकहा शिष्टाचार था। रात में अचानक आंधी या बारिश आने पर पड़ोस के घर की पक्की सीढ़ियों से उतर कर नीचे आते थे क्योंकि अपने पास बांस की कुछ छोटी पुरानी ढुलमुल 10 फुट  की सीढ़ी थी जिसका कभी भी गिरने का  डर रहता था और 14  फीट की ऊंची छत पर उतरने चढ़ने के लिए छत की मुंडेर को पकड़ कर, लटक कर चढ़ना और उतरना होता था। रात में पड़ी हल्की ठंड और ओस के कारण कपड़े बिस्तर थोड़े थोड़े गीले हो  जाते थे। उस समय इतने मच्छर नहीं होते थे जो छत पर सोने में बाधा उत्पन्न करते । 

आजकल तो आसपास ऊँचे-ऊँचे  घर बन गए। हमारा “आसपास” और “हम”, दोनों ही   बदल गए हैं। जब से हर घर मे AC, फ्रिज, कूलर और हर कमरे में पंखे आ गए है तब से ये सुनहरा दृश्य  गायब ही हो गया हैं। आज तो इक्क्ठे होने के लिए शादी, बर्थडे, मैरिज एनिवर्सरी  जैसे आयोजनों का  बहाना सा ढूंढना पड़ता है। ऐसे आयोजनों में भी सभी लोग मेहमान की भांति आते हैं, खी-खी करते हैं, खाते-पीते हैं, नाच डांस करते हैं और अपने अपने घरों को रवाना हो जाते हैं। 

इस पोस्ट के सन्दर्भ में लगाई गयी पिक्चर को देखकर आज का so called सफल नौजवान भांति भांति का taunt कर सकता है क्योंकि उसने तो यह सारा वातावरण देखा ही नहीं, अनुभव ही नहीं किया, वोह तो बड़े बड़े आलिशान “मकानों” में रहते हैं, “घर” की परिभाषा तो उन्हें मालुम नहीं, “घर” तो उन्होंने देखा तक नहीं।  Nuclear Family system में पति,पत्नी, दो बच्चे( maximum ), अपने-अपने कमरे में सीमित हैं, उनके अलग अलग  TV हैं, लैपटॉप हैं ,phones इत्यदि और न जाने क्या कुछ है, और सबसे बड़ी बात, सभी password protected हैं। इतना अविश्वास? इतनी शंका ? पोस्ट में दर्शाई गयी स्थिति और आधुनिक युग की तस्वीर में ज़मीन आसमान का अंतर् है। क्या यही  है “वसुधैव कुटुंबकम ?”  सारी वसुधा को तो हम अपना कुटम्ब मानने  का प्रवचन देते रहते हैं लेकिन 4 सदस्यों की nuclear family में पांचवां आते ही जो स्थिति बनती है, वोह किसी से छिपी नहीं है। सोशल मीडिया साइट्स हमारे आगे सब कुछ खोलकर रख रही हैं, हो सकता है कुछ Deep Fake  भी  हों  लेकिन अधिकतर स्थिति कोई ज़्यादा अच्छी नहीं है। 

इस स्थिति में ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार जैसा समर्पित मंच, परम पूज्य गुरुदेव के दिव्य विचारों से बहुत कुछ कर सकता है, एक उदाहरण स्थापित कर सकता है। इस मंच से ऐसे उदाहरण स्थापित हुए हैं जिन पर केवल आश्चर्य ही किया जा सकता है क्योंकि अविश्वास की इस दुनिया में कोई विश्वास कैसे करेगा।

इन्ही शब्दों के साथ हम  आपसे सोमवार तक के लिए विदा लेते हैं।              

*********************

संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 13 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज भी सुजाता  जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।  

(1)वंदना कुमार-24 ,(2 ) सुमनलता-31 ,(3 )नीरा त्रिखा-28 ,(4) संध्या कुमार-45 , (5) सुजाता उपाध्याय-55,(6) सरविन्द कुमार-48 ,(7)निशा भरद्वाज-24 , (8) चंद्रेश बहादुर- 43 , (9 )प्रेरणा कुमारी-24 ,(10 )पुष्पा सिंह-27,(11) मंजू मिश्रा-28,(12) राज कुमारी कौरव-24,(13)अरुण वर्मा-29  

 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


Leave a comment