14 नवंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
हमारे साथिओं को लगभग भूल ही गया होगा कि पांच दिन पूर्व “परम पूज्य गुरुदेव के पांच सूक्ष्म शरीर” लेख श्रृंखला आरम्भ हुई थी। आज इस लेख श्रृंखला का तीसरा एवं अंतिम भाग प्रस्तुत किया जा रहा है। हमारा कर्तव्य बनता है इस श्रृंखला के पहले दो लेखों के साथ कनेक्ट किया जाए।
खालिस्तान मूवमेंट से लेकर रूस का विघटन और बर्लिन की दीवार का टूटना आदि कुछ ऐसे प्रभाव थे जिनका श्रेय परम पूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म शरीरों को ही दिया जा सकता है। हमारे पाठकों को स्मरण होगा कि ऐसे विश्वस्तरीय प्रभावों को हमने “समष्टिगत प्रभाव” कहा था। आज के लेख में साधना के वोह प्रभाव देखने को मिल रहे हैं जो व्यक्तिगत हैं और जिन्हें हम “व्यष्टिगत प्रभाव” के शीर्षक से जानते हैं।
“अद्भुत,आश्चर्यजनक,किन्तु सत्य” शीर्षक से प्रकाशित पुस्तकें ऐसे अनुभवों से भरी पड़ी हैं,इसीलिए हमने सूक्ष्म की शक्ति का आभास करने के लिए केवल तीन ही घटनाओं का वर्णन किया है, लेकिन हम अपने दोनों साथिओं द्वारा प्रदान की गयी आर्थिक सहायता को गुरुदेव का सूक्ष्म प्रभाव ही कहेंगें। यह कैसे संभव हो पाया, गुरुदेव ही जानते हैं लेकिन हम तो दोनों बहिनों को गुरुदेव के सूक्ष्म वीरभद्र ही कहेंगें। जब भगवान शिव के देवदूत/वीरभद्रों की चर्चा चल रही थी तो ऐसा वर्णन आया था कि यह गण ब्रह्माण्ड में विचरते रहते हैं और किसी के पास भी सहायता के लिए पंहुच जाते हैं।
इन्ही शब्दों एक साथ आज की गुरुकुल पाठशाला का गुरुदेव के चरणों में शुभारंभ होता है।
****************************
परम पूज्य गुरुदेव की साधना का व्यष्टिगत प्रभाव
अनेकों परिजनों ने समय समय पर गुरुदेव की साधना संरक्षण का अनुभव किया है। अनेकानेक प्रतिकूलताएँ होते हुए भी परमपूज्य गुरुदेव की सावित्री साधना की फलश्रुति के रूप में उन्हें सदैव सही मार्गदर्शन मिलता रहा है। उन्हें अनपेक्षित सहयोग भी मिला है एवं आत्मबल संवर्द्धन के रूप में ऐसी पूँजी मिली है जिसने मानो एक “सुरक्षा कवच” चारों ओर प्रदान कर दिया हो। बहुत से प्राणवान परिजन पूज्यवर की सूक्ष्मीकरण अवधि में ही उनके सूक्ष्मशरीर से प्रेरणा पाकर उनके दर्शन कर सतत् यही कहते रहे कि युगधर्म की पुकार अनसुनी नहीं करनी है। अब शेष समय यदि भगवान के कार्य में लगाना है तो अभी ही छलाँग लगानी होगी।
इन्हीं दिनों बहुत से परिजन व्यक्तिगत कारणों से यां युग चेतना के प्रवाह से तालमेल न बिठा पाने के कारण, शान्तिकुंज छोड़ कर भी गए लेकिन कार्य बिल्कुल नहीं रुका । जितने परिजन छोड़ कर गए उससे तीन गुना अधिक स्थायी कार्यकर्ता सुशिक्षित,प्राणवान एवं समर्पित आकर बस गए। इस बीच यह देखा गया कि संस्कार महोत्सवों, श्रद्धांजलि समारोह एवं प्रथम पूर्णाहुति में नियमित रूप से समय देने वालों की उमड़ती समर्पित संख्या एक eye opener थी।
परम पूज्य गुरुदेव की सावित्री साधना के दौरान कई परिजनों को व्यक्तिगत स्तर परअनुभूतियाँ हुई जिन्हें 1984-85 की अखण्ड ज्योति के विभिन्न अंकों में प्रकाशित किया गया था। यहाँ केवल 3 संस्मरण ही दे रहे हैं, जो प्रज्ञावतार की, उस दिव्यसत्ता की,मात्र एक झलक देते हैं,जो सतत् हम सभी परिजनों के आस-पास है।
1.श्री श्यामलाल धरणी मॉडल टाऊन पानीपत में रहते हैं। 1983 में जब पंजाब में उग्रवाद चरम चरम पर था, वे सपत्नीक अमृतसर रहा करते थे। उन्हीं दिनों 10 से 20 जून के सत्र में वे शांतिकुंज आए थे, तब पूज्यवर ने पति-पत्नी को नियमित अंशदान भेजने एवं झोला पुस्तकालय चलाते रहने का संकल्प दिलाकर कलावा बाँधा था। गुरुदेव ने कहा था कि “तुम हमारा कार्य करते रहना, हम तुम्हारा काम करेंगे। तुम्हारी सतत् रक्षा हम करते रहेंगे”
जिन दिनों चारों ओर गोलियां चलती थीं, कोई बाहर नहीं निकलता था, दोनों पति-पत्नी ने कर्फ्यू खुलने की अवधि में साहित्य बाँटते रहने का संकल्प लिया और सतत निकलते रहने का क्रम बना लिया। कर्फ्यू की अवधि समाप्त होते ही वे वापस घर आ जाते।
एक दिन की बात है कि श्यामलालजी की पत्नी कमला को पता नहीं था कि पुनः गोलियाँ चलने से बाहर सब कुछ निर्जन है एवं वे किसी मुसीबत में पड़ सकती हैं। मिलिटरी के सैनिकों ने रोक लिया व कहा कि झोला खोलकर दिखाओ, हमें पढ़ना है। आपने परसों हमारे एक साथी को एक पुस्तक दी थी, उसको तो जैसे जीवन जीने का एक नया रास्ता मिल गया है। मिलिटरी वालों ने उन्हें अपनी गाड़ी में घर तक छोड़ दिया व बार-बार प्रणाम किया।
इतना होता तो कम ही माना जाता।
एक दिन उग्रवादियों के दल ने उन्हें घेर लिया। फिर झोला पुस्तकालय से पुस्तकें निकालीं । न जाने किस प्रेरणा के वशीभूत उग्रवादी उन्हें अपनी संगीनों के साये में सुरक्षित घर छोड़ कर चले गए।
दोनों घटनाओं से यही निष्कर्ष निकलता है कि पूज्यवर के साहित्य के रूप में, झोला पुस्तकालय, एक सुरक्षा कवच के रूप में उनके साथ-साथ चल रहा था। वे दोनों उनका काम कर रहे थे जिन्हें उन्होंने गुरु माना था और गुरुदेव उनका काम कर रहे थे। उपरोक्त घटना के ठीक चार दिन बाद,इन्हें परम वन्दनीय माताजी का पत्र मिला जिसमें लिखा था:
“बच्चों तुम उतना ही काम करो जितना आसानी से कर सकते हो। अपनी जान जोखिम में डालकर हमारा ध्यान-अपनी तरफ मत खींचो। हमको और भी बड़े-बड़े काम करने हैं। ” 84-85 का यह घटनाक्रम अभी भी दोनों की आँखों के समक्ष घूम जाता है एवं गुरुसत्ता की वाणी याद आ जाती है। इसी दम्पत्ति ने कुरुक्षेत्र अश्वमेध के लिए तमाम प्रतिकूलताओं के बीच घर-घर जाकर धनराशि एकत्र की व सतत् उन्हें मातृसत्ता का मार्गदर्शन मिलता रहा।
2.नजीबाबाद की कुमारी कुमुद सिंह 1994 में आयोजित बुलन्दशहर अश्वमेध यज्ञ हेतु तैयारी कर रही थीं। उनकी दादीजी जो कि स्वयं गायत्री की उपासक थीं, घर में सफाई कर रही थीं कि उन्हें एक सर्प ने काट लिया। माँ के अभाव में कुमुद को दादी ने ही पाला था। पाँच फुट लम्बे जहरीले साँप के काटने से सभी ने कहा कि अब इनके जीवन के कुछ ही क्षण बाकी हैं। गायत्री मंत्र जप रही कुमुद को वन्दनीय माताजी के दर्शन हुए, उन्होंने कहा कि जो गायत्री मंत्र से व हम से जुड़ा है, उस घर में कभी सर्पदंश से मृत्यु नहीं हो सकती । सतत् मुँह से मंत्र निकलता रहा। बिना किसी चिकित्सा के उनकी दादी जी बच गयीं, उन्होंने बुलन्दशहर अश्वमेध यज्ञ में भाग लिया।
ऐसी ही सर्पदंश वाली घटना का वर्णन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की सहकर्मी, हमारी अपनी ही बहिन आदरणीय कुसुम त्रिपाठी जी 14 फरवरी 2023 के स्पेशल सेगमेंट में कर चुकी हैं।
एक दूसरी घटना में कुमुद लिखती हैं कि उनके पिताजी ने बुलन्दशहर अश्वमेध से पूर्व कहा कि जितने लोगों के लिए बस में जगह है वह भर चुकी है। नये लोग भाग न लें तो अच्छा है। तुम घर पर ही रहो। माँ गायत्री के चित्र के सामने बैठी मैं रोती रही। यज्ञ से ठीक एक दिन पूर्व अप्रत्याशित रूप से एक सज्जन आए और बोले कि तुम्हारे पिताजी हमारे यहाँ से होते हुए गए थे। कह गए थे कि कुमुद का मन था,उसे लेते आना। पूर्णाहुति में ही भाग ले ले, उसका मन रह जाएगा। मैं यज्ञ में पहुँच गयी, दीपयज्ञ में एवं पूर्णाहुति दोनों में भाग लिया । दोनों दिन सतत् गुरुदेव-माताजी की अनुभूति होती रही कि वे सामने ही हैं, मंच पर विराजमान हैं।
3. ब्रह्मवर्चस् में कार्यरत डॉ अमल कुमार दत्ता के बड़े पुत्र अरविन्द व उनकी पत्नी ममता न्यूजर्सी में रहते हैं। इस परिवार ने पूज्यवर और माताजी से बहुत ही स्नेह प्राप्त किया है, उन्हीं के आशीर्वाद से विदेश settle होने का अवसर भी मिला। शांतिकुंज से गयी टोली को एयरपोर्ट पर विदाई देकर अरविन्द और ममता जी वापिस जा रहे थे कि कार का संतुलन बिगड़ गया एवं 6 लेन वाले मार्ग पर एक ही नहीं 6 पलटियाँ खाकर गाड़ी उलट गयी और लगभग चकनाचूर हो गयी लेकिन उन दोनों को ज़रा सी खरोंच तक नहीं आयी थी। तुरन्त पहुँची एंबुलेंस की टीम भी हैरान थी कि वह इस घटना को कैसे सत्य मान ले। नाममात्र की पट्टी करके उनके घर छोड़कर वे चले गए। इंस्युरेन्स कम्पनी ने कोई भी आरोप न लगाते हुए, कार की खराबी को कारण मानकर claim भी settle करवा दिया । आश्चर्य यह कि अगले ही दिन हज़ारों किलोमीटर दूर शांतिकुंज से परम वन्दनीय माताजी ने फोन से हालचाल भी पूछ लिया जबकि अमेरिका में अपने निकट परिजनों को इस घटना की जानकारी भी नहीं थी। यह है सूक्ष्म की शक्ति।
परमपूज्य गुरुदेव के पाँच सूक्ष्मशरीर की चर्चा के साथ समष्टिगत एवं व्यष्टिगत घटनाओं अत्यधिक हैं, अनन्त है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के साथी देख ही रहे हैं कि विश्व में क्या कुछ घट रहा है किन्तु वे सभी सुरक्षित रहेंगे जो महाकाल की चेतना के प्रवाह से जुड़े रहेंगे। हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि ऐसी गुरुसत्ता हमें मिली,जिसके संरक्षण में रह रहे है एवं उसे सुदूर विराट रूप में बैठे हुए भी हम सबके कल्याण की चिन्ता है।
************************
संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 14 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज 108 आहुतिओं के साथ सरविन्द जी ने गोल्ड मैडल करते करते हुए एक नवीन कीर्तिमान स्थापित किया है, उन्हें हमारी व्यक्तिगत बधाई।
(1)अरुण वर्मा-41 ,(2 ) सुमनलता-30 ,(3 )नीरा त्रिखा-28 ,(4) संध्या कुमार-46 , (5) सुजाता उपाध्याय-29 ,(6) सरविन्द कुमार-108 ,(7) निशा भारद्वाज-49 ,(8) चंद्रेश बहादुर-46 , (9 ) विदुषी बंता-24, (10 )साधना सिंह-24,(11) स्नेहा गुप्ता-24,(12 ) रेणु श्रीवास्तव-39,(13 )पिंकी पाल-24 ,(14 ) वंदना कुमार-25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।