वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

दृष्टिकोण के परिवर्तन का पर्व है दीपावली -सरविन्द कुमार पाल

13 नवंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद

https://youtu.be/c6bwp_H3XCM?si=nfSJ728IvJB4Vr6e

हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं कि सरविन्द पाल जी के आज के “दीपावली विशेष लेख” के कारण अपने पूर्वघोषित ज्ञानप्रसाद को प्रकाशित करने में असमर्थ हैं। सरविन्द जी का लेख बिना किसी पूर्व सूचना के,आज सुबह ही प्राप्त हुआ था, हमें डर था कि  शायद ही इसका प्रकाशन हो पाए  लेकिन गुरुकृपा से प्राप्त हुई अद्भुत ऊर्जा ने इस लेख को ठीक समय पर प्रकाशित कराके, एक बार फिर गुरु-शक्ति को चरितार्थ कर दिया  है। गुरुचरणों में हमारा कोटि  कोटि नमन है।

आज का प्रज्ञागीत इस लेख की ही एक झलक है।      

नियमित स्वाध्याय प्रक्रिया के अंतर्गत सरविन्द जी ने  अखंड ज्योति पत्रिका नवम्बर 202l में प्रकाशित इस लेख का स्वाध्याय किया जिसे हम  परिवार के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

दीपावली के पावन महापर्व को समर्पित इस लेख में परम पूज्य गुरुदेव एक सेठ की कहानी का  निम्नलिखित पंक्तियों में वर्णन कर रहे हैं :

किसी नगर में एक सेठ रहता था जो अन्न का व्यवसाय करता था। व्यापार खूब फल-फूल रहा था और उसे खूब मुनाफा होता था। सेठ  अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की जुगाड़ में ही लगा  रहता था, कभी सुनने में भी नहीं आया था कि उसने किसी को कुछ दान वगैरह दिया हो। सेठ अमीरी से अधिक अपनी कंजूसी के लिए जाना जाता था।  यदि कोई साधु-संत, फकीर या कोई अभावग्रस्त व्यक्ति मदद हेतु सेठ के पास जाते तो वे हमेशा निराश होकर ही वापस लौटते ।

एक समय की बात है कि दीपावली का त्योहार था और नगरवासी पूरे ज़ोर शोर से दीपावली महापर्व की तैयारियाँ  कर रहे थे। सुख समृद्धि के लिए लोग अपने-अपने तरीके से माँ लक्ष्मी की पूजा कर रहे थे। सेठ ने पूजन किया लेकिन संयोग से उस दिन नगर में एक सिद्ध महात्मा का आगमन हुआ था। महात्मा  के आगमन की खबर सम्पूर्ण नगर में ही नहीं बल्कि आस-पास के गांवों में भी आग की तरह फैल गई। नगर के बुद्धिजीवी लोगों ने महात्मा के सत्संग की व्यवस्था की।  सत्संग में भाग लेने वालों की संख्या लगभग हजारों में पहुँच गई और सेठ भी भीड़ देखकर सत्संग स्थल पर पहुँच गया  लेकिन सेठ को इन बातों में कोई रुचि नहीं थी l सेठ  को कुछ विशेष सूत्रों से  ज्ञात हुआ कि महात्मा के आशीर्वाद से व्यक्ति अधिक सम्पन्न बन सकता है,उसके  मन में विचार आया कि क्यों न अधिक मुनाफा कमाने का कोई मंत्र या आशीर्वाद मांग लिया जाए।  यही सोचकर सेठ कुछ समय के लिए सत्संग में आकर बैठ गया लेकिन जैसा उसने सोचा था , वहां  वैसा कुछ भी नहीं था। महात्मा लोगों को मानव-जीवन की गरिमा समझाते हुए कह रहे थे :  

“चौरासी लाख योनियों में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि शुभ कर्म के द्वारा ही मनुष्य सुखी व समुन्नत जीवन जी सकता है। गुरू व भगवान की उपासना, साधना व आराधना के द्वारा मनुष्य इसी जीवन में सद्गति प्राप्त कर सकता है और बंधन मुक्त हो सकता है। मनुष्य जीवन में ही व्यक्ति आत्मकल्याण, लोक-कल्याण तथा भगवद्प्राप्ति के लिए प्रयास व पुरुषार्थ कर सकता है, क्योंकि दूसरी योनियों में ऐसे कर्म कर पाना सम्भव नहीं है। यह दुर्भाग्य ही है कि मनुष्य जीवन पाकर भी अनेक व्यक्ति भगवद्प्राप्ति के बजाय  अपना सारा समय धन-संपदा और भोग-पदार्थो को एकत्रित करने में ही बिता देते हैं। जब मनुष्य इस दुनिया से जाता है तो उसे खाली हाथ ही जाना पड़ता है और सगे-संबंधी, धन-संपदा सब यहीं छूट जाते हैं।  जब मनुष्य का अंत समय आ जाता है तो वह  यह सोचकर दुःखी  होता है कि मनुष्य जीवन बेकार ही  चला गया।  वह पश्चाताप व आत्मग्लानि से भरा इस दुनिया से विदा हो जाता है।  इसके विपरीत जो ईश्वर की शाश्वतता को हमेशा ध्यान में रखते हैं, उसी के अनुरूप जीवन जीते हैं, वे अपने शुभ कर्मो के कारण, अपने जीवन को सुखी व समुन्नत बनाते हैं और आत्मकल्याण के मार्ग को भी प्रशस्त करते हैं।  ऐसे लोग इस दुनिया से जाते हुए भी अपनी आत्मा में परमानंद की अनुभूति करते हैं और सद्गति को प्राप्त होते हैं lईश्वर सर्वव्यापी है, अस्तु वे हमारे प्रत्येक कर्म के साक्षी हैं। ”  

मानव जीवन की गरिमा पर प्रकाश डालने के पश्चात महात्मा जी कुछ देर के लिए मौन हुए, तभी सेठ बोल उठा:  

“महात्मा जी आपने मानव जीवन पर बहुत  ही अच्छा प्रकाश डालकर हम सबको आकर्षित किया है लेकिन  आज तो दीपावली का पवित्र दिन है, माँ लक्ष्मी की पूजा का शुभ दिन है।  यदि आप माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने का कोई अच्छा  सा उपाय बता सकें तो आपकी बड़ी कृपा होगी l”

महात्मा ने  सेठ के मनोभाव को समझ लिया  और  मुस्कराते हुए बोले : 

“शास्त्रों  में माँ लक्ष्मी की पूजा के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं लेकिन हम माँ  लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक बहुत ही सर्वश्रेष्ठ,सर्वसुलभ उपाय बता रहे हैं।  आप सभी जानते हैं कि माँ  लक्ष्मी समुद्र मंथन से निकली थीं।  समुद्र मंथन पराक्रम एवं  पुरुषार्थ का प्रतीक है और जो इस पुरुषार्थ को  करता है उसके जीवन में माँ  लक्ष्मी अवश्य प्रकट होती हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। माँ लक्ष्मी सदा विष्णु जी के साथ रहती हैं लेकिन क्या कभी आपने विचार किया है कि ऐसा क्यों है?”

कारण स्पष्ट करते हुए महात्मा जी स्वयं ही कहने लगे: 

“ऐसा इसलिए है कि भगवान विष्णु  इस संसार के पालनकर्ता हैं इसलिए विष्णु जी के साथ माता लक्ष्मी जी अर्थात समृद्धि है।  जिस व्यक्ति में परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व व सम्पूर्ण मानवता के कल्याण की भावना है, जिसमें स्वयं के साथ-साथ दूसरों का पालन-पोषण करने की प्रवृत्ति है, उसी व्यक्ति के जीवन में समृद्धि आती है अर्थात माँ लक्ष्मी आती हैं l यदि मनुष्य में परहित की प्रवृत्ति है तभी  जीवन में समृद्धि आती है और जहाँ समृद्धि है, वहीं सुख है,शांति है। यह समृद्धि भौतिक ही नहीं आत्मिक भी है। जो लोग दान-परोपकार में, दूसरों के पीड़ा-निवारण में, अपनी धन-संपदा को सुनियोजित करते हैं, उनकी भौतिक व आत्मिक समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है। जो लोग सिर्फ स्वयं व अपने परिवार मात्र के लिए ही जीते हैं, ऐसे लोगों के जीवन में समृद्धि नहीं टिकती है और ऐसे लोगों के पास अथाह धन-संपदा होते हुए भी दरिद्रता की अनुभूति होती है, शांति की नहीं।  वास्तविक आनंद तो औरों के लिए जीने में है।  माँ लक्ष्मी की पूजा में कमलपुष्प अर्पित किए जाने का सांकेतिक संदेश यही है कि जैसे कमल का फूल कीचड़ में रहकर भी खिला खिला  रहता है, ठीक वैसे ही  हम भी संसार में रहते हुए संसार से मुक्त रहें l धन-संपदा रहते हुए भी उस में डूब न जाएँ,अनासक्त रहें ,विषम परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारें बल्कि बहादुरीपूर्वक सामना करें और कमल की भांति  खिलते रहें। जहाँ पुरुषार्थ व श्रमशीलता है, वहीं समृद्धि है “

महात्मा आगे बताते  हैं, “कराग्रे वसते लक्ष्मी:” अर्थात  हमारे हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी बसती हैं और यदि हम अपने हाथ से पुरुषार्थ करें तो माँ  लक्ष्मी जरूर आएंगी l यदि मनुष्य में अकर्मण्यता, आलस्य व प्रमाद आदि प्रवृत्तियाँ हों तो कभी भी  समृद्धि नहीं आ  सकती।

दीपावली के पावन महापर्व पर माँ लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा का भी विधान है क्योंकि श्री गणेश जी विवेक के प्रतीक हैं और जहाँ विवेक है, वहीं समृद्धि है और जहाँ समृद्धि है, वहीं सुख है l 

महात्मा ने बहुत ही सुन्दर बात कही  कि धन के अपव्यय (Wastage) से समृद्धि का नाश होता है। अतः धन अर्जित करने के साथ-साथ, मनुष्य के पास  विवेक का होना बहुत ही आवश्यक है, तभी मनुष्य के जीवन में समृद्धि टिक पाती है l 

दीपावली दीपों का पर्व है और इस दिन घी के दीपक जलाने के साथ-साथ अपनी आत्मा में ज्ञान के दीपक को भी हमें जलाना चाहिए।  

धर्म, अध्यात्म, पूजा, जप, उपासना, साधना व आराधना की ऐसी व्यवहारिक व्याख्या सुनकर सबके अंतःकरण में अपार शक्ति जागृत हो गई और  वहाँ पर उपस्थित सभी के अंतःचक्षु खुल गए और उस दिन से सभी लोग एक नई ऊर्जा व दृष्टि के साथ जीवन जीने के प्रयास- पुरुषार्थ में लग गए, देखते ही देखते उनका जीवन परिष्कृत होने लगा l 

सेठ के अंतःकरण में भी हलचल पैदा हुई, उसका  आत्मविश्वास बढ़ा व आत्मसंतुष्टि मिली। वह सोचने लगा  कि यदि महात्मा का यह सत्संग मुझे पहले प्राप्त हो गया होता तो आज मैं आत्मिक दृष्टि से भी बहुत सम्पन्न होता। मेरे जीवन के बहुमूल्य क्षण मात्र धन-उपार्जन में ही बीत गए, आत्मकल्याण के विषय में मैंने न तो कभी विचार किया और न ही कुछ कर सका।  इस तरह सेठ की आँखें पश्चाताप के आँसूओं से भर आई और उन्होंने तत्क्षण एक श्रेष्ठ जीवन जीने का संकल्प लिया। सेठ ईमानदारी से पुरुषार्थ करने लगा  और नित्यप्रति भगवद्भजन और  ध्यान में समय लगाने लगा , संत-महात्माओं का सत्संग एवं स्वाध्याय करने लगा । 

सेठ के पास धन-संपदा की कमी तो थी नहीं ,वोह अभावग्रस्त, जरूरतमंदों  की सहायता करने लगा  और ऐसा करते-करते उसकी  चित्तशुद्धि होने लगी तथा वह एक नेक इंसान व महान दिव्य पुरुष बन गया । परिणामस्वरूप भौतिक प्रगति के साथ-साथ सेठ की आत्मिक व आध्यात्मिक प्रगति भी होने लगी और उसे  हर क्षण अपार शांति, उल्लास व आनंद की अनुभूति होने लगी।  जो सेठ कभी अपने नगर में कंजूसी के लिए जाना जाता था, उसका  नाम अब उदार व भगवद्भक्तिों में लिया जाने लगा।   

परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं  जीवन-दृष्टि बदलते ही स्रष्टि बदल जाती है। दीपावली का पावन महापर्व हमारे दृष्टिकोण को बदलने एवं उसे कल्याण के मार्ग पर निरत करने का पर्व है। 

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 19 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का गोल्ड मैडल पिता-पुत्री जोड़ी सरविन्द जी और अनुराधा को तो जाता ही है लेकिन पुष्पा सिंह जिन्होंने 3 यज्ञ कुंडों पर संकल्प पूरा किया है,एक स्पेशल गोल्ड मैडल अपने नाम किया है।

11 अप्रैल 2023 के बाद आज एक बार फिर 763 कमैंट्स और19 संकल्पी होना एक  कीर्तिमान है जिसके लिए हमारा स्पेशल धन्यवाद् एवं बधाई।   

 (1)अरुण वर्मा-27 ,(2 ) सुमनलता-31 ,(3 )नीरा त्रिखा-27 ,(4) संध्या कुमार-33  , (5) सुजाता उपाध्याय-31  ,(6) सरविन्द कुमार-48 ,(7) निशा भारद्वाज-31,(8) मंजू मिश्रा-30 ,(9) चंद्रेश बहादुर-38, (10) विदुषी बंता-25, (11 ) राजकुमारी कौरव-27,(12)किसान उच्चतर-24,(13) स्नेहा गुप्ता-24,(14) प्रेरणा कुमारी-25 ,(15) रेणु श्रीवास्तव-25,(16)पिंकी पाल-34,(17) वंदना कुमार-31,(18) अनुराधा पाल-49, (19) पुष्पा सिंह -26,25, 27   

 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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