9 नवंबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज गुरुवार है, हमारे परम पूज्य गुरु के प्रति समर्पण का विशेष दिन, विशेष इसलिए कि आज का प्रज्ञागीत भी गुरुदेव को ही समर्पित होता है। गुरुदेव आधारित प्रज्ञागीत के इस आविष्कार के लिए के सारा परिवार बहिन सुमनलता जी का आभारी है।
कल आरम्भ हुए गुरुदेव के पांच सूक्ष्म शरीरों के अति संक्षिप्त विवरण का यह दूसरा पार्ट है। कल वाले लेख में वाणी के चार प्रकार, पंचकोशी साधना आदि को अपने अंतर्मन में उतारने में,हमारे प्रयास के बावजूद कुछ साथिओं को, कठिनाई का सामना करना पड़ा, जिसके लिए हमें खेद है एवं हम क्षमाप्रार्थी हैं। अवश्य ही इन जटिल विषयों को समझ पाना इतना सरल नहीं है एवं उसके लिए proper बैकग्राउंड का होना अति आवश्यक है। खैर जो भी हो कुछ तो प्राप्त हुआ ही होगा।
गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण साधना के विश्वस्तरीय एवं व्यक्तिगत परिणाम देखे गए हैं,आज के लेख में वीरभद्रों की चर्चा के बाद, विश्वस्तरीय प्रभाव की बहुत ही संक्षिप्त सी चर्चा की जाएगी। सोमवार वाले लेख में व्यक्तिगत प्रभाव (अनुभूतियाँ ) वर्णन करने का प्रयास करेंगें।
तो आइए निम्लिखित प्रकाश प्रार्थना के साथ गुरुकुल कक्षा की ओर प्रस्थान करें। हमारा अटल विश्वास है कि गुरुदेव के साहित्य पर आधारित हमारा प्रत्येक प्रयास साथिओं के जीवन को ज्योतिर्मय बनाने में सहायक होगा।
ॐ असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अमृतं गमय । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
हे प्रभु! मुझे असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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पिछले लेख में भी लिखा था, आज फिर बता रहे हैं कि साधारण परिजन सूक्ष्मीकरण को या गुरुदेव के पाँच सूक्ष्म शरीरों, वीरभद्रों को समझ नहीं पाती। कोई पूज्यवर के आस-पास कार्य करने वाले पाँच वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओं को गुरुदेव के वीरभद्र समझते हैं तो कोई उनकी व्याख्या अपनी-अपनी बुद्धि के अनुरूप भिन्न-भिन्न ढंग से करने लगे। वस्तुतः ये “पांच शक्ति के पुँज” थे, जिनको मोटे रूप में पाँच दायित्व, पाँच कार्य एक साथ सम्पन्न करने थे। इसी सरल परिभाषा के साथ हम भगवान् शिव के वीरभद्रों को जानने का प्रयास करते हैं और उसके बाद देखेंगें कि गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण साधना के विश्व्यापी और व्यक्तिगत परिणाम क्या क्या थे।
वीरभद्र कौन थे?
जिस प्रकार भगवान शिव की सुरक्षा और उनके आदेश को मानने के लिए उनके गण सदैव तत्पर रहते हैं, उसी प्रकार परम पूज्य गुरुदेव के पांच वीरभद्र उनकी आज्ञा मानने का संकल्प लिए हुए हैं।
भगवान शिव के गणों में “भैरव को सबसे प्रमुख” माना जाता है। उसके बाद “नंदी” का नंबर आता और उसके बाद “वीरभ्रद्र”। जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरव जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। शिव के प्रमुख गण थे- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य,आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।
भगवान् शिव की जटा से वीरभद्र उत्पत्ति कथा :
शिवजी के ससुर दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी ऋषि, मुनी, देवी और देवताओं को बुलाया था। इस यज्ञ में दक्ष ने शिव और सती को नहीं बुलाया था। माता सती अपने पति महादेव की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता दक्ष प्रजापति के द्वारा आयोजित इस यज्ञ में गई थीं। पिता का यज्ञ समझ कर सती बिना बुलाए ही पहुंच गयी, किंतु जब उसने वहां जाकर देखा कि न तो उनके पति का भाग (यज्ञ के लिए) ही निकाला गया है और न शिवजी का सत्कार किया गया बल्कि पिता ने सती ओर देखा तक नहीं। अपने और अपने पति का घोर अपमान देखकर सती ने यज्ञ के भीतर ही कूदकर आत्मदाह कर दिया। यह देखकर वहां हाहाकार मच गया। भगवान शंकर को जब यह समाचार मिला तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने दक्ष, उसकी सेना और वहां उपस्थित उनके सभी सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से “वीरभद्र” नामक एक गण उत्पन्न किया। उत्पन्न होते ही वीरभद्र शिव की आज्ञा से तेजी से यज्ञ स्थल पहुंचा और उसने वहां की भूमि को रक्त से लाल कर दिया और बाद में दक्ष को पकड़कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस घटना का वर्णन स्कंदपुराण, शिवपुराण,देवीपुराण के बाद में देव संहिता में मिलता है।
इस घटना के बाद ब्रह्माजी और विष्णुजी कैलाश पर्वत पर गए और उन्होंने महादेव से विनयकर अपने क्रोध को शांत करने एवं राजा दक्ष को जीवन देकर यज्ञ को संपन्न करने का निवेदन किया। बहुत प्रार्थना करने के बाद भगवान शिव ने उनकी बात मान ली और दक्ष के धड़ से बकरे का सिर जोड़कर उसे जीवनदान दिया, जिसके बाद यह यज्ञ पूरा हुआ।
वीरभद्र मंदिर :
दक्षिण भारत में भगवान शिव के गण वीरभद्र की शिवजी की भांति ही पूजा अर्चना होती है। बैंगलोर से 140 किलोमीटर दूर लेपाक्क्षी गांव में प्रसिद्ध वीरभद्र मंदिर स्थित है। 500 वर्ष पुरातन यह मंदिर, दक्षिण भारत में काफी विख्यात है और देश विदेश से दर्शनार्थी इस मंदिर के दर्शन करने आते है। इस मंदिर में भगवान वीरभद्र की पूजा की जाती है। वीरभद्र मंदिर को विजयनगर के राजा द्वारा बनवाया गया था। Hanging pillars इस मंदिर की अद्भुत विशेषता हैं। जब भारत में ब्रिटिश साम्राज्य था तो एक ब्रिटिश इंजीनियर को इन Hanging pillars, जो धरती से लगभग 1 इंच के gap को छोड़ कर हैं, के रहस्य को जानने का कार्य सौंपा गया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकले ( संलग्न चित्र देखें)
सूक्ष्मीकरण साधना एवं गुरुदेव के पांच वीरभद्र
जब परम पूज्य गुरुदेव पाँच शरीरों के रूप में सूक्ष्म जगत में सक्रिय हो रहे थे तो इस अवधि में दो तरह के प्रभाव देखे जा सकते हैं। एक तो वोह प्रभाव हैं जो विश्व स्तर के हैं जिन्हें एक “समष्टिगत” कहा गया है और दूसरे व्यक्तिगत हैं जिसके अंतर्गत परिजनों की अनुभूतियाँ वगैरह आती हैं, इन्हें व्यष्टिगत कहा जाता है। यहाँ पर इन दोनों प्रभावों का बहुत ही संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास करेंगें । यह विवरण 1984 से 1997 के अंत तक की 13 वर्षीय अवधि के एक समीक्षात्मक अध्ययन के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा हैं।
समष्टिगत प्रभाव
हम सब जानते हैं कि 1984 से 1997 तक की अवधि कितनी उथल-पुथल से भरी पड़ी थी ।पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट भी इन्ही दिनों सक्रीय थी। सभी ने देखा कि दो महाशक्तियों (रूस और अमेरिका) की धुरी में बंटे विश्व में 1991 में सोवियत संघ का कैसे विघटन हुआ , ईस्ट यूरोप में स्वतंत्र जीवन जीने की दृढ इच्छा, बर्लिन की दीवार के टूटने व साम्यवाद ( Communism) के अंत ने क्या क्या परिवर्तन लाए । हथियारों की बिक्री की आड़ में अपनी इकॉनमी चलाने वाले राष्ट्रों के लिए यह एक सदमे के समय था। अमेरिका अकेला भी पूँजीवाद(Capitalism) की अपनी मान्यता को लेकर कब तक चल सकता है।
अमरीकी प्रोफेसर Lester C Thurow, द्वारा लिखित पुस्तक, जो 1981में Zero-sum society शीर्षक से प्रकाशित हुई, में बताया गया है कि कैसे आने वाले दिनों में इकनोमिक मैनेजमेंट से पूँजीवाद का अंत होगा। वे “ग्लोबल इकॉनामी” के पक्षधर हैं व लिखते हैं कि अगले दिनों पूँजी का विश्व स्तर पर सबके लिए समान रूप से वितरण होगा एवं सभी सीमित साधनों में रहकर,प्रकृति के विधान के अंतर्गत, एक साथ हँसती-हँसाती ज़िंदगी जीने का पाठ सीखेंगे। यह परिवर्तन1999 के आगमन तक आरम्भ हो जाएगा एवं 2000 के बाद पूरे विकसित रूप में सभी को दिखाई देने लगेगा ।
परम पूज्य गुरुदेव 1990 के इर्द गिर्द वाले वर्षों की बात कर रहे हैं जब साम्प्रदायिकता, जातिगत एवं नसलवादी हिंसा चरमोत्कर्ष पर थी, लेकिन इस दिशा में भी सूक्ष्मीकरण साधना का समष्टिगत प्रभाव देखने को मिला और उनका कहना था कि शीघ्र ही इन सब दुष्प्रवृतिओं का समापन होकर एक ही जाति, “मानवजाति” का एक नया स्वरूप सबके समक्ष आएगा । यह भविष्यवाणी यदि आगामी ढाई वर्षों में साकार होती नज़र आए तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
गुरुदेव बता रहे हैं कि इन दिनों प्रकृति में सूक्ष्म स्तर पर एवं प्रत्यक्षतः भी ऐसा ही कुछ चल रहा है जो यह बताता है कि आने वाला समय विलक्षण परिवर्तनों से भरा है। 1986 से 1991 तक जितना कुछ हुआ इससे कहीं अधिक पिछले पाँच वर्षों में हुआ है। ग्लोबल नेटवर्क- विश्वव्यापी संचार तंत्र का विकसित होकर आना एवं साँस्कृतिक स्तर पर सारे विश्व की चैतन्य सत्ताओं का एक विशाल छतरी के नीचे आ जाना, आने वाले परिवर्तनों का प्रतिनिधि है। सभी युगदृष्टाओं एवं भविष्यवक्ताओं का मानना है कि आगामी पाँच वर्ष व उनमें भी प्रथम ढाई वर्ष भारी उथल-पुथल से भरे हैं।
यह कार्य यदि “पाँच वीरभद्र” कर रहे हैं तो सभी को सुखद लगना चाहिए, क्योंकि उन पांचों की सुरक्षा महाचेतना से जुड़ने के बाद स्वतः ही सुनिश्चित हो जाती है, शर्त केवल एक ही है, “साधना-पुरुषार्थ में ज़रा सी भी कमी नहीं होनी चाहिए।”
अखंड ज्योति जुलाई 1997 अंक के अनुसार जो गायत्री परिजन 1980 से 1997 अवधि का इतिहास जानते हैं, उन्हें मालूम है कि इस अवधि में वह कार्य सम्पन्न हुआ जो सम्भवतः पिछली एक सहस्राब्दी (1000 वर्ष ) में पूरी विश्ववसुधा पर सम्पन्न नहीं हुआ। यह अवधि मिशन की ही नहीं, सारे विश्व की “स्वर्ण युग वाली अवधि” कही जा सकती है, जिसमें सभी ने साम्यवाद( Communism) का अंत देखा, पूँजीवाद (Capitalism) की विभीषिका मानव की तृष्णा के रूप में भिन्न-भिन्न तरह से उभरती देखी । धर्मतंत्र का प्रगतिशील विज्ञान सम्मत ( Scientific spirituality) स्वरूप कैसे लोगों के विचारों में परिवर्तन ( विचार क्रांति) लाकर उन्हें सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है, दुष्टता के पथ पर चलने वाले कैसे भयभीत होते देखे जा रहे हैं, यह सारा पराक्रम यदि “पाँच सूक्ष्म शरीरों” का माना जाए तो इसे अतिशयोक्ति नहीं माना जाना चाहिए।
आज के लेख का यहीं पर समापन होता है, आप तपोभूमि मथुरा का जीर्णोद्धार दर्शाती वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए ।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज रेणु जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)अरुण वर्मा-26,(2 ) सुमनलता-26 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव-55,(4) संध्या कुमार-37, (5) सुजाता उपाध्याय-35,(6) चंद्रेश बहादुर-35,(7) मंजू मिश्रा-36, (8)नीरा त्रिखा-24,(9) सरविन्द कुमार-39,निशा भारद्वाज-25 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


