वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

आर्थिक सहायता एवं सहायता पर चल रही चर्चा का समापन स्पेशल लेख 

आज सोमवार 6 नवंबर 2023 का दिन है। सप्ताह के प्रथम दिन हम सब रविवार के अवकाश से अर्जित की गयी दिव्य ऊर्जा के साथ गुरुकुल पाठशाला में प्रस्तुत होते हैं लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग है,एक ऐसी गंभीर स्थिति जिसने हमें रेगुलर ज्ञानप्रसाद लेख को bump करके इस स्पेशल सेगमेंट को प्रस्तुत करने के लिए बाधित किया है। इस बार का रविवार  ऊर्जा संचय के स्थान पर अत्यधिक ऊर्जा व्यय में ही गुज़र गया। “आर्थिक सहायता” के विषय ने मन मस्तिष्क में  इस प्रकार का  प्रेशर डाल  दिया कि रेगुलर ज्ञानप्रसाद, गुरु साहित्य के अमृतपान के लिए समय एवं मानसिक वातावरण से वंचित रहना पड़ा। बड़ी कठिनता से मन को समझाया कि यह भी तो गुरुकार्य ही है, इसमें भी तो किसी सार्थक सटीक solution की योजना बन रही है।         

हम आपसे करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं कि सभी साथिओं द्वारा इतना कठिन परिश्रम करने के  उपरान्त भी हम उस परिणाम को implement करने में असमर्थ हैं जिसकी हम सब आशा कर रहे थे। हमारे साथिओं को स्मरण होगा कि पिछले शानिवार का स्पेशल सेगमेंट भी इसी विषय पर था और उस समय 920 कमैंट्स पोस्ट हुए थे ,इस बार इन पंक्तिओं के लिखते समय तक 636  कमैंट्स पोस्ट हुए हैं। 1550  से ऊपर कमैंट्स को पढ़ना,उनके रिप्लाई करना कोई सरल कार्य नहीं है। 1550 में बहुत सारे “जय गुरुदेव” category के कमेंट भी हो सकते हैं लेकिन पढ़ने तो सभी ही होते हैं। हमारे साथिओं ने भी समयदान और विवेकदान द्वारा जितना सहयोग किया उसे शब्दों में पिरोना कठिन है। 

“आर्थिक सहायता” के विषय पर जहाँ अधिकतर साथिओं ने सहायता करने का आश्वासन दिया वहीँ कुछ “मूक असहायता” के संकेत भी देखने को मिले हैं, Financial matters से सम्बंधित complicacies के भी संकेत भी मिले हैं, Financial matters के आते ही  सम्बन्ध बिगड़ने की आशंका के संकेत भी मिले हैं, इसी आशंका के कारण हमारे बार-बार निवेदन करने पर भी आज तक किसी ने इस ज़िम्मेवारी को अपने कन्धों पर लेने का साहस नहीं दिखाया है। सरविन्द जी ने नाम देने की बात की तो है लेकिन हमें दुःख से कहना पढ़ रहा है कि अब बहुत देर हो चुकी है। अब अगर कोई नाम आ भी जाता है तो ज़्यादा लाभ नहीं होगा। जब हम मूक असहायता की बात कर रहे हैं तो इसे विरोध नहीं कहा जा सकता। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में जिस प्रकार सब एक दूसरे का आदर सम्मान करते हैं, आज के युग में यह एक unique उदाहरण है।  

Financial matters तो हैंडल करने के लिए कोई ऐसा व्यक्ति ही होना आवश्यक है जिसका इस क्षेत्र में अनुभव हो। शांतिकुंज के साथ financial मैटर्स के लिए हमारे इधर टोरंटो में ही एक बहिन जी यह कार्य संभाले हुए हैं, इनका 30 वर्ष का बैंकिंग क्षेत्र में अनुभव है। हम तो  शांतिकुंज को अंशदान के लिए स्वयं ही ऑनलाइन route प्रयोग करते हैं लेकिन जब कभी, किसी को भी, कोई समस्या आ जाती है तो यह बहिन जी अपने अनुभव से निवारण कर देती हैं। 

जब से आर्थिक सहायता का विषय चर्चा में आया है, किसी का तो पता नहीं हमारे जोश का कोई ठिकाना नहीं था, सब कुछ तो सुमनलता  और सुजाता बहिन जी ने किया था, हमें किस बात का श्रेय मिल रहा था, हम नहीं जानते। इसी जोश के कारण इस विषय को  Brainstorming discussion का नाम देकर सभी ने  दो वीकेंड का समयदान किया है। ऐसा कतई नहीं है कि discussion से कोई लाभ नहीं हुआ है, ऐसी ऐसी जानकारियां प्रकट हुई हैं जिनसे अनभिज्ञता थी। 

अपने  रिसर्च करियर के दिनों में एक बहुत ही सार्थक, सकारात्मक दृष्टिकोण ने हमारा मार्गदर्शन किया था जिसका  हम आज तक पालन कर रहे हैं और अंतर्मन से संतुष्ट हैं, प्रसन्न  हैं। इस दृष्टिकोण ने हमें negative results में positivity ढूंढना सिखा दिया। इस दृष्टिकोण को संक्षेप में निम्नलिखित वर्णन किया जा सकता है : 

अगर हम किसी प्रोजेक्ट पर अनवरत, कई वर्ष कड़ा परिश्रम करते हैं और जो रिजल्ट आने की आशा थी वोह न आएं तो क्या उसे हम अपनी असफलता मान कर हिम्मत छोड़ दें और suicide कर लें ?  कदापि नहीं। इस  निराशा की घड़ी में भी  एक नई, अद्भुत आशा की किरण मिलती थी जो उस दिशा से अलग तो होती थी लेकिन उससे भी उत्तम होती  थी जिसकी आशा में हम सिर पटक रहे थे। “आर्थिक सहायता” पर conclude हुई चर्चा के बारे में कुछ ऐसा ही हुआ है। जिस outcome  को  हमारे परम प्रिय, समर्पित साथी असफलता समझकर हमें डांट फटकार रहे हैं, दरअसल उसी से एक नई  दिशा का जन्म हुआ है, एक ऐसी दिशा जो सभी को सुखशांति का आभास देने में समर्थ होगी। 

अगर आप हमें डांट फटकार रहे हैं तो वोह भी हमें स्वीकार है, आखिर आप हमारे अपने ही तो हैं। अगर आप सोच रहे हैं कि यह चर्चा असफल (जो कि नहीं है) रही तो यह असफलता भी हमारी ही है। हम तो बार-बार कहते आये हैं, “यह सब परम पूज्य गुरुदेव का ही है, अगर हमारा कुछ है तो केवल हमारी त्रुटियां”

हम अपने साथिओं से निवेदन कर रहे हैं कि एक लम्बी सांस लें, ठंडा पानी पीएं और जो भी चर्चा दो वीकेंड के दौरान हुई है उसे भूल कर हमारी नई दिशा, नई किरण के बारे में सुन लें: 

सुमनलता और सुजाता बहिन जी के मॉडल को ही आगे बढ़ाते हुए “आर्थिक सहायता” प्रदान करना उचित रहेगा।  हाँ एक अंतर् अवश्य होगा कि बजाए दो ही साथिओं के कन्धों पर यह सारा बोझ आने पड़े, सभी को  अपनी समर्था, financial condition के अनुसार योगदान के लिए प्रेरित किया जाए, मालवीय जी का एक मुट्ठी अनाज वाला गुरुमंत्र सार्थक  किया जाए। जिस प्रकार शांतिकुंज यां गुरुदेव के अन्य स्थूल शरीरों को अपना मायका समझा जाता है, “माता जी के चौके” का भोजन प्रसाद ग्रहण करके जो तृप्ति होती है, वही तृप्ति अपने साथिओं की, साथिओं के बच्चों की, साथिओं के परिवार की सहायता करके होनी चाहिए। 

वर्षों पहले स्कूल में पढ़ी “Union is Strength” वाली स्टोरी आज भी उतनी ही सार्थक है। हम  सबका अटल विश्वास है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में अंशदान से कोई भी पीछे हटने वाला नहीं है क्योंकि यह हमारे गुरु का फार्मूला है जो वर्षों से चल रहा  है। जो कोई भी परिजन किसी आर्थिक स्थिति से जूझ रहा है उसे well-in-advance ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर circulate करना अनिवार्य होगा क्योंकि दौड़भाग में कार्य हो तो जाते हैं लेकिन बहुत से साथी सहायता करने से वंचित रह जाते हैं। इसीलिए  हम नियमितता का पाठ पढ़ाते रहते हैं, परम पूज्य गुरुदेव बार-बार  नियमित रहने का आदेश देते हैं। हर किसी की स्थिति अलग होती है, कई बार चाहकर भी कुछ किया नहीं जा सकता, कई बार समय निकल जाता है। 

आर्थिक सहायता करते समय एक और बहुत ही महत्वपूर्ण पहलु सामने आता है और वोह है “किस की सहायता करनी है और किस की नहीं” इसके लिए हम एक उदाहरण आपके समक्ष रख रहे हैं जिससे सब क्लियर हो जायेगा:

हमें बार-बार व्हाट्सप्प पर मैसेज आते हैं कि एक तरफ तो आप पात्रता की बात करते हैं और दूसरी तरफ हर किसी के जन्म दिवस,विवाह दिवस आदि पर शुभकामना सन्देश भेजते हैं, यहाँ तक कि उनके लिए भी जिनका ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर कमेंट करना तो दूर, कभी नाम तक भी नहीं दिखाई दिया। क्या इससे यह अर्थ नहीं निकाला जाये कि  आप केवल विज्ञापनबाजी ही कर रहे हैं ? गुरुकार्य का सिर्फ ड्रामा ही है ?

तो इस सन्दर्भ में अरुण वर्मा और सरविन्द पाल जी जैसे साथिओं के बारे में तो कोई किन्तु परन्तु नहीं हो सकता लेकिन अगर किसी अन्य  की सहायता करनी है तो उसे अपनी पात्रता सिद्ध करने के लिए सक्रीय होकर कार्य करना पड़ेगा। अब सक्रीय होने के लिए हम तो परम पूज्य गुरुदेव के शब्द ही  शेयर कर रहे  हैं, “हम अंतिम सांस तक गायत्री माँ को विश्व के घर-घर में स्थापित करने का प्रयास करते रहे।”  इसी तरह हम इस मंच के माध्यम से अंतिम सांस तक गुरुदेव के साहित्य को विश्व के घर-घर तक न केवल लेकर जायेंगें बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंगें कि अधिक से अधिक लोग इस दिव्य साहित्य का अमृतपान भी करें। अमृतपान का मूल्यांकन करने के लिए  सरविन्द जी के अविष्कार “कमैंट्स प्रक्रिया” से उत्तम कुछ भी नहीं हो सकता। अपनी बेटियों (पिंकी और अनुराधा) से अक्सर अनुरोध करते रहते हैं कि कमैंट्स की गिनती महत्वपूर्ण तो है ही, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण गुरु साहित्य  का अमृतपान  है, दोनों बेटियां बहुत ही सुन्दर कार्य कर रही हैं। 

हम बार-बार “आर्थिक सहायता” के साथ सहायता का शब्द भी जोड़े जा रहे थे। धन की सहायता एक बात है लेकिन आज के इस फ़ास्ट समय में awareness की दूसरी बात है। Globalisation के युग में sky is the limit वाला तथ्य हम सबके समक्ष है। जब बैंकों के विषय में चर्चा हो रही थी तो एक विचार आया था कि बैंक लोन भी तो अमीरों को ही देते हैं। सुमनलता जी ने अपनी कहानी बताई थी लेकिन चिन्मय जी के उद्बोधनों में बार-बार आत्मनिर्भर की बात आती है। 

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज की पढाई बहुत ही expensive है और loan आदि के बिना गुज़ारा नहीं है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि  अगर competition सख्त है तो avenues भी बहुत हैं। शायद हमारे ऊपर ईश्वर की कोई कृपा ही रही होगी कि पांचवीं कक्षा से लेकर पीएचडी तक फेलोशिप और स्कालरशिप से ही काम चलता रहा, अगर यह कहा जाए कि हम 1960s,70s की बात कर रहे हैं तो हमारे  बच्चे (यहाँ कनाडा में  और इंडिया में) scholarships से ही सारी एजुकेशन पूरी कर चुके हैं, एक पैसे का भी लोन नहीं लिया है। 

हमें बार-बार अपनी आत्मकथा लिखने के लिए कहा जाता है लेकिन हम अपने बारे में कुछ भी इसलिए नहीं कहना चाहते कि Self-praise हो जाएगी, जिससे हम कोसों दूर रहना उचित समझते हैं, लेकिन हमारा सारा जीवन ही चमत्कारों से भरा पड़ा है 

आज जो  कुछ भी लिखा गया है इसी धारणा से लिखा गया है कि हमें बार-बार अपना विवेक प्रयोग करने के लिए कहा गया है और मार्गदर्शक( जो कि हम नहीं हैं) समझा गया है। 

निवेदन है कि हमारे समर्पित साथी आज व्यक्त किये गए विचारों को अपने विवेक अनुसार accept कर सकते हैं, हमें प्रसन्नता होगी। अगर altogether reject भी कर देते हैं तो उसे भी हम प्रसन्नता से ग्रहण कर लेंगें। 

धन्यवाद् 

सूचना : 

आने वाले 6 महीने के लिए कनाडा का समय एक घंटा पीछे किया जाता है जिसके कारण ज्ञानप्रसाद लेख भारतीय समयनुसार प्रातः  3 बजे के स्थान पर 4 बजे पोस्ट किया जायेगा। 

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं जारी रखने का निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 12 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज संध्या जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)अरुण वर्मा-40 ,(2 ) सुमनलता-37 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव-34  ,(4) संध्या कुमार-51, (5) सुजाता उपाध्याय-43  ,(6 ) चंद्रेश बहादुर-41  ,(7) मंजू मिश्रा-35  , (8)नीरा त्रिखा-26 ,(9) सरविन्द कुमार-26,46   ,(10 ) प्रेरणा कुमारी- 27,(11) अरुण त्रिखा-25,(12) पिंकी पाल-27  सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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