26 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज गुरुवार है, अपने परमप्रिय गुरु के प्रति समर्पण का दिन। समर्पण को और भी परिपक्व करते हुए बहिन सुमनलता जी ने गुरुवार के प्रज्ञागीत को भी गुरुदेव-आधारित होने का सुझाव दिया था जिसे हम पूरे सम्मान से निभा रहे हैं। कल वाले कमेंट में “विज्ञानशाला” शब्द का प्रयोग करके बहिन जी ने लेख को Scientific touch दिया है ,बहुत बहुत आभार बहिन जी।
आज के ज्ञानप्रसाद लेख में तीन छोटी छोटी बातों का संक्षिप्त सा वर्णन है। सबसे पहले आने वाली लेखों की पृष्ठभूमि तो है ही लेकिन “वासुकी झील” एवं “तीर्थों में अद्भुत शक्ति कहाँ से आती है”, ऐसे संक्षिप्त लेख थे जिन्हें कोई उपयुक्त स्थान न मिल पाया, उन्हें आज शामिल करने का यही कारण है। तीर्थों की ऊर्जा के सन्दर्भ में परम वंदनीय माता जी का वीडियो शार्ट लिंक अवश्य क्लिक कर लें ताकि “शांतिकुंज जाने के उद्देश्य” का उत्तर मिल सके।
तो आइए आज की गुरुकुल कक्षा का अपने गुरु के चरणों में समर्पित होकर विश्वशांति के साथ शुभारम्भ करें। ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!
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1.आने वाले लेखों की पृष्ठभूमि
कल वाले ज्ञानप्रसाद लेख की अंतिम पंक्तियों में परम पूज्य गुरुदेव के पांच सूक्ष्म शरीरों की बात कही गयी थी। इन पंक्तियों में यह भी बताया गया था कि उनका एक शरीर हिमालय में अनवरत तप करेगा। हमारी सबकी चहेती संजना बेटी के कल वाले कमेंट “पागलों वाली यां जादुई दुनिया ” ने हमें भी शंका में डाल दिया था कि एक मनुष्य के पांच शरीर !!, क्या यह scientifically संभव है ? यां केवल अन्धविश्वास ही है। हमने स्वयं अफ्रीका वाले लेखों में एवं अखंड ज्योति के अनेकों पन्नों में एक ही समय में गुरुदेव के अनेकों स्थानों पर उपस्थित होने से सम्बंधित लेख लिखे हैं तो अब शंका की गुंजायश कहाँ से आन पड़ी। वैज्ञानिक की बुद्धि भ्र्ष्ट हो जाती है,उसे तो हर बात का प्रमाण ही चाहिए। हमने स्वयं को समझाया- अरे भैया यह अध्यात्म की बात है, यह किसी साधारण मनुष्य की बात नहीं हो रही, यह इस युग के ऋषि, युग के दृष्टा, परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा जी की बात हो रही है।
हम सबने कहीं न कहीं निम्नलिखित पंक्तियाँ अवश्य ही पढ़ी होंगी :
“तुम्हें एक से पाँच बनना है । पाँच पाण्डवों की तरह पाँच तरह से काम करने हैं। इसलिए इसी शरीर को पाँच बनाना है। एक पेड़ पर पाँच पक्षी रह सकते हैं। तुम अपने को पाँच शरीरों में विभाजित कर लो। इसे “सूक्ष्मीकरण” (Micronization) कहते हैं। पाँच शरीर सूक्ष्म रहेंगे, क्योंकि व्यापक क्षेत्र को संभालना सूक्ष्मसत्ता से ही बन पड़ता है। जब तक वे पाँचों परिपक्व होकर अपने स्वतन्त्र काम न सँभाल सकें, तब तक इसी शरीर से उनका परिपोषण करते रहो। इसमें एक वर्ष भी लग सकता है एवं अधिक समय भी। जब वे समर्थ हो जाएँ तो उन्हें अपना कार्य करने हेतु मुक्त कर देना। समय आने पर तुम्हारे दृश्यमान स्थूलशरीर की छुट्टी हो जाएगी।”
यह पंक्तियाँ आने वाले लेखों का crux हैं। हमारे साथी, हमारी प्रवृति से भलीभांति परिचित हैं। चाहे 1997 की, 1985 की ,1971 की अखंड ज्योति पत्रिकाएं हों यां कोई अन्य पुस्तक हो, हम तब तक सांस नहीं लेंगें जब तक हमारे गुरुदेव अपने मार्गदर्शन से इस पांच शरीरों वाली गुत्थी को सुलझा न दें।
हमारे शब्दों पर विश्वास कीजिये, आने वाली लेख शृंखला बहुत ही रोचक होने वाली है, इसे केवल पढ़ने से काम नहीं बनेगा, सम्पूर्ण आनंद के लिए इसे “जीना” होगा।
सूक्ष्मीकरण के सिद्धांत को समझने के लिए Aspro और Micro-fined Aspro के उदाहरण उचित हैं। Micro-fined Aspro में दवा के particle छोटे होते हैं, सूक्ष्म होते हैं, उनकी शक्ति micro-level पर होती है और तुरंत असर करते हैं
2.उत्तराखंड: वासुकी ताल (झील) यानी लैंड आफ ब्रह्मकमल ।
हिमालय के ऊपरी इलाकों में यूं तो सैकड़ों खूबसूरत ताल हैं. लेकिन भौगोलिक कठिनाइयों और रास्ते का पता न होने के कारण इन सभी तक पंहुचना बेहद मुश्किल है. केदारनाथ से कुछ दूरी पर स्थित वासुकी ताल और बदरीनाथ-माणा से 25 किमी दूर सतोपंथ ताल तक, कठिन भौगौलिक परिस्थितियों के बाद भी पहुंचा जा सकता है। हिमालय की चोटियों की तलहटी में ये दोनों ताल बेहद खूबसूरत हैं। इनका धार्मिक महत्व भी पौराणिक ग्रंन्थों में कई स्थानों पर बताया गया है। हिमालय के ऊपरी इलाकों में स्थित और कठिन भौगौलिक परिस्थितियों के बाबजूद भी इनके रास्तों की खूबसूरती ट्रैकरों और श्रद्धालुओं का हौसला बनाएं रखती हैं। इन दोनों तालों तक पहुंचने के बाद यहाँ का सौन्दर्य देख कर यात्री अपनी सारी थकान भूल जाते हैं। यात्री तालों की सुन्दरता में और हिमालय में हर समय पैदा होने वाली अज्ञात, असाधारण आध्यात्मिक माहौल में डूब जाते हैं।
केदारनाथ धाम (11300 फीट) से लगभग 8 किलोमीटर दूर वासुकी ताल (13300 फीट) एक बेहद खूबसूरत छोटी झील है. केदारनाथ से वासुकी ताल पंहुचने के लिए मंदाकिनी के तट से लगे पुराने घोड़ा पड़ाव से होते हुए दूध गंगा के उद्गम की ओर सीधी चढ़ाई चढ़नी होती है। नाक की सीध में 4 किमी की चढ़ाई चढ़कर खिरयोड़ धार (सबसे ऊंची जगह) के बाद पहली बार खुला मैदान दिखता है। यहां से 2 किमी हलकी चढ़ाई के बाद केदारनाथ-वासुकी ताल ट्रैक की सबसे ऊंचाई वाली जगह जय-विजय धार (14000 फीट) आती है। जय-विजय धार से लगभग 200 मीटर नीचे उतर कर वासुकी ताल के दर्शन होने लगते हैं. आगे की 2 किमी की दूरी पर बड़े-बड़े पत्थरों के बीच पैरों को संतुलित करना बेहद मुश्किल काम है। जय- विजय धार को पार करते ही चारों और ब्रह्मकमल और अन्य जड़ी बूटियों की खूशबू मंत्रमुग्ध कर देती है। उत्तराखंड के पहाड़ों में 12000 फीट से लेकर 14000 फीट तक पुराने ग्लैशियरों के साथ आई चट्टाने हर जगह देखने को मिलती हैं लेकिन यह कठिन डगर, आसपास हिमालयी घास के ढलानों में बिछे फूलों और ब्रह्मकमलों की प्राकृतिक बगिया के बीच से गुजरते हुए और वासुकी ताल के हर पल बदलते रंगो को देखते हुए कट जाती है।
पूर्णमासी के दिन यहां दिखते हैं वासुकी नाग:
स्कंद पुराण के अनुसार वासुकी ताल वास्तव में गंगा के अंग कालिका नदी के जलधारण करने से बना तालाब है, जहां “नागों के राजा वासुकी” हर पल निवास करते हैं. स्कंदपुराण में वर्णित है कि श्रावण मास की पूर्णमासी के दिन इस ताल में मणियुक्त वासुकी नाग के दर्शन होते हैं। वासुकी ताल की परिधि लगभग 700 मीटर है और इस तालाब के पानी से सोन नदी निकलती है। यही सोन नदी, केदारनाथ से निकलने वाली मंदाकिनी से सोनप्रयाग में मिलती है। वासुकी ताल का पानी बिल्कुल साफ है, हवा के बहाव के साथ पानी में खूबसूरती के साथ बनती तरंगे बेहद खूबसूरत लगती हैं। अच्छे ट्रैकर केदारनाथ से सुबह चल कर वासुकी ताल घूमकर शाम तक वापस केदारनाथ (कुल 16 किमी की दूरी) आ सकते हैं। यह पूरा ट्रैक कठिन तो है ही, आते जाते बहुत कम लोग दिखाई देते हैं। रास्ते में कोई बस्ती या मकान- दुकान नहीं है, इसलिए अपने साथ ही खाने की सामग्री, पानी आदि ले जाना होता है। यदि गाइड साथ हों और इस ट्रैक के लिए केदारनाथ से सुबह 3 बजे निकला जाय तो सारे रास्ते से केदारनाथ के पीछे स्थित केदारडोम (22408 फीट) और अन्य हिमशिखरों पर सूर्य की प्रथम किरण पड़ने के बाद हर पल बदलने वाले दृश्य कैमरे में कैद किये जा सकते हैं। साथ ही वासुकी ताल पर पड़ती उगते हुए सूरज की किरणों को भी देखा जा सकता है.
पर्यटन की दृष्टि से देखा जाए तो वासुकी ताल के पास टैंट लगा कर कैंपिग भी होती देखी गयी है वासुकी ताल के पास और ऊंपर सुरक्षित कैंपिग ग्राउंड है। वासुकी ताल को लैंड आफ ब्रम्हकमल भी कहा जाता है. सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ को प्रसाद के रूप में ब्रह्मकमल ही चढ़ाया जाता है. ब्रह्मकमल को लेने के लिए केदारनाथ से ब्राह्मण नंगे पांव वासुकी ताल पहुंचते हैं। केदारनाथ धाम वापस लौट कर इन्हें भोलेनाथ के चरणों में चढ़ाया जाता है।
3.तीर्थों में अद्भुत शक्ति कहाँ से आती है ?
पृथ्वी पर कुछ स्थान ऐसे हैं जो व्यक्ति की ऊर्जा को ऊपर की ओर खींचते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो नीचे की ओर ले जाते है। चेतना को अनायास ही ऊपर ले जाने वाले स्थान “तीर्थ” कहे जाते हैं। योग को विज्ञान की कसौटी पर कसने वाले वैज्ञानियों का मानना है कि पृथ्वी पर अनेकों स्थान हैं जो स्वयंसिद्ध हैं। हमने अभी-अभी सम्पन्न हुई गुरुदेव की रहस्यमई हिमालय यात्रा में धरती के स्वर्ग कहाए जाने वाले हिमालय क्षेत्र के चप्पे-चप्पे का भ्रमण किया और देखा कि इस क्षेत्र में किस स्तर की आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रसार है, यहाँ प्रसारित हो रही ऊर्जा सिद्ध आत्माओं की तपस्या के कारण ही है।
अऩुसंधानकर्ताओं का कहना है कि पृथ्वी पर उस तरह के नैसर्गिक केंद्रों की भरमार है। अगर आप ऐसे स्वयंसिद्ध केंद्र पर हों तो ऊर्जा स्वयं ही आपको ऊपर की तरफ ले जाएगी। ऐसे केंद्रों से दूर जाने पर आध्यात्मिकता कम होती जाती है।
इन स्थानों पर ऊर्जा होने केअनेकों साइंटिफिक लॉजिक भी हैं। भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण में 33 डिग्री तक का क्षेत्र पवित्र होता है। इस केंद्र के दक्षिण में अधिक भूमि नहीं है,अधिकतर महासागर ही हैं, इसलिए मुख्य रूप से हम उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere ) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है । भूमध्य रेखा से 11 डिग्री का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह शक्ति इसलिए है कि हमारी पृथ्वी घड़ी की उलटी दिशा ( anti clockwise) में घूमती है। इस तरह वह अपकेन्द्री बल या फिर सेंट्रीफ्यूगल फोर्स (Centrifugal Force) उत्पन्न करती है जिससे व्यक्ति की ऊर्जा को अधिकतम सीमा तक ऊपर उठाया जा सकता है, इस स्थिति से उसको बहुत लाभ मिलता है।
तीर्थों में जिस तरह की दिव्य ऊर्जा होती है उसे जगाए और जागृत रखना बहुत आवश्यक है। पूजापाठ, जप-तप और योगध्यान ही इन तीर्थों को जागृत रखते हैं। अभी कुछ दिन पहले ही हमने एक शार्ट वीडियो उपलोड की थी जिसमें शांतिकुंज की दिव्यता एवं वंदनीय माता जी द्वारा उस दिव्यता के कारण का वर्णन था।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सुजाता जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)अरुण वर्मा -44 ,(2 )सुमनलता-25 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव-28 ,(4)संध्या कुमार-38,(5) सरविन्द पाल-27 ,(6 ) नीरा त्रिखा-26 ,(7 ) सुजाता उपाध्याय-51 ,(8) चंद्रेश बहादुर-39 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।