25 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज बुधवार का दिन भगवान् गणेश जी को समर्पित है, आज भी हम नियमितता के विषय को ही स्मरण करते हुए गुरुकुल कक्षा का शुभारम्भ का रहे हैं।
आज का ज्ञानप्रसाद लेख Fourth dimension की शृंखला का तीसरा एवं अंतिम लेख है। कहने को तो हम आज के लेख से अगस्त में आरम्भ हुई परम पूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा का समापन ही समझेंगें लेकिन हिमालय जैसी दिव्य सत्ता को किसी सीमा में बाँध पाना असंभव ही है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि अगले सोमवार से जिस लेख शृंखला का हम शुभारम्भ कर रहे हैं उसका भी सम्बन्ध किसी न किसी रूप में देवात्मा हिमालय से ही है। आज के लेख की अंतिम पंक्तिओं (पांच शरीर) पर आधारित, सोमवार से आरम्भ होने वाली लेख शृंखला का ट्रेलर गुरुवार को दिखाने की योजना है, बाकी गुरुदेव के ऊपर निर्भर है, जैसा मार्गदर्शन देंगें उसे ही गुरुप्रसाद समझकर साथिओं में वितरित कर देंगें, गुरुदेव के पोस्टमैन जो ठहरे।
आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत “चेतना के चतुर्थ आयाम” से सम्बंधित कोई भी प्रश्न unanswered नहीं रह जाता। नार्मल लेखों की तुलना में यह समापन लेख छोटा तो है लेकिन जितना प्रयास विषय को clear करने में किया गया है, इसे छोटा कहना अनुचित लग रहा है। गुरुदेव स्वयं बता रहे हैं कि यथार्थ अवलोकन (Real Feel ) तो वही कर सकता है जिसके पास दिव्य दृष्टि है। हिमालय के रहस्य को समझने के लिए, इस लेख को support करती एक अति सुन्दर HD वीडियो भी आज के लेख में शामिल की गयी है। OnlyGyan यूट्यूब चैनल द्वारा प्रकाशित इस वीडियो को आज के लेख में शामिल करने के लिए ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।
तो आइए आज की गुरुकुल कक्षा का अपने गुरु के चरणों में समर्पित होकर विश्वशांति के साथ शुभारम्भ करें।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!
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पूज्य गुरुदेव की प्रत्येक हिमालय यात्रा में हिमालय के इन सभी दिव्य सन्तों का सान्निध्य बना रहा। हर यात्रा उनके जीवन में अनेकों रहस्यपूर्ण एवं आश्चर्यजनक प्रसंग जोड़ती गयी। इन प्रसंगों की चर्चा करते हुए गुरुदेव वन्दनीय माताजी से कहा करते थे :
हिमालय के दिव्य वातावरण में इन दिव्य सन्तों के साथ रहने से जीवन में दिव्य स्फुरणा ( अद्भुत शक्ति) का संचार होता है।
एक यात्रा में उन्हें अद्भुत अनुभूति हुई । पशु-पक्षी छोटे जीव-जन्तु यहाँ तक कि वृक्ष पौधों से भी संवाद स्थापित हो गया। कितने ही शाकाहारी और माँसाहारी पशु गुरुदेव के घनिष्ठ मित्र हो गए। एक मादा रीछ तो गुरुदेव से बहुत ही हिल मिल गयी। वह अपने छोटे बच्चों को गुरुदेव की झोंपड़ी के पास छोड़कर आहार की तलाश में चली जाती। बच्चे गुरुदेव के पास ऐसे खेलते,उछलते रहते जैसे कब से जानते हों। परम पूज्य गुरुदेव के इस क्षेत्र में आने से पहले,आए दिन माँसाहारी पशुओं द्वारा शाकाहारियों का शिकार करके मारने, खाने की घटनाएं सुनने को मिलती रहती थीं लेकिन गुरुदेव के आने के बाद एक भी ऐसी घटना नहीं घटी।
यह स्थिति हिमालय से वापस लौटने के बाद भी बनी रही। घीआ मंडी, मथुरा स्थित अखण्ड-ज्योति संस्थान में पूज्य गुरुदेव के आस-पास के पशु-पक्षी उनके पास ही खेलने और फुदकने में प्रसन्नता अनुभव करते। हिमालय प्रवास में यह स्थिति इतनी सघन थी कि वन्य प्रदेश के सारे प्राणी उनके अपने स्वजन हो गये थे। कहते हैं गुरुदेव सिंहनी के बच्चों के साथ खेलते थे।
इतिहास में वर्णित है कि शिवाजी ने अपने गुरु, समर्थ गुरु रामदास जी की पेट दर्द के निवारण के लिए सिंहनी को दूहा था, संत ज्ञानेश्वर ने भैंसे से वेद उच्चारण कराये थे। ऋषियों के आश्रम में गाय और सिंह एक ही घाट पर पानी पीते थे।
ये सारी कथाएँ एक साथ परम पूज्य गुरुदेव के हिमालय प्रवास में साकार हो उठती थीं।
इसी तरह अपने हिमालय प्रवासकाल में जब गुरुदेव एक बार कुछ जड़ी-बूटियों की खोज में रास्ता भटक गये और कुटिया से बहुत दूर लगभग 20 मील आगे निकल गये। रात बहुत हो गयी थी, हिंसक पशुओं की आवाज गूंजने लगी। ऐसे समय में हिमालय के एक दिव्य देहधारी देवपुरुष ने उन्हें हाथ पकड़कर पाँच- सात मिनट में ही कुटिया पहुँचा दिया।
एक बार वर्षा के पानी से गुरुदेव की कुटिया सब ओर से घिर गयी । सभी खाद्य पदार्थ समाप्त हो गये। इसी समय हिमालय के एक सिद्ध सन्त का प्रकाशमान शरीर दिखाई पड़ा, उसने हाथ के इशारे से जमीन खोदने का संकेत किया। जैसे ही उन्होंने वहाँ जमीन खोदी तो एक ऐसा मीठा और स्वादिष्ट कन्द निकला, जिसका वजन तकरीबन 20 सेर था जिससे कई दिनों तक आराम से निर्वाह किया जा सकता था।
एक बार गुरुदेव ने अपनी सारी निर्वाह राशि किसी विपत्तिग्रस्त को दे दी, पास में कुछ भी नहीं रहा, लेकिन दूसरे दिन वहाँ की किसी अज्ञात शक्ति की अनुकम्पा के कारण कामचलाऊ राशि मिल गई।
यह कथाएं जो इतिहास के पन्नों की शोभा बढ़ा रही हैं, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार जैसे छोटे से परिवार ने अभी पिछले ही दिनों प्रतक्ष्य कर दिखाया है।
हिमालय क्षेत्र में निवास करने वाली दिव्य आत्माओं का आभास और उनसे भेंट के सुयोग की कथाएँ कुछ ऐसी हैं कि उन अद्भुत अनुभवों को सुनकर किसी को जादू तिलस्म जैसी बातें याद आ जाएँ, लेकिन न तो इनमें अत्युक्ति हैं न अतिशयोक्ति क्योंकि गुरुदेव जैसे उच्च व्यक्तित्व वाले सिद्ध साधक को ऐसी कौतूहलवर्धक कथाएँ गढ़कर किसी को भ्रमित करने की क्या आवश्यकता है।
परम पूज्य गुरुदेव ने यह बातें केवल वन्दनीय माता जी को ही बतायी थीं। वर्षों पूर्व संपन्न हुई हिमालय यात्रा को इतने समय बाद अखंड ज्योति में प्रकाशित करने का उद्देश्य, इन रहस्यपूर्ण बातों की चर्चा, केवल हिमालय की दिव्यता को समझने के लिए की जा रही है ।
अपनी हिमालय यात्राओं में परम पूज्य गुरुदेव जिन सात अन्य विशेष विभूतियों के संपर्क में आये, सृष्टि की सूक्ष्म व्यवस्था के संचालन में उनकी अति महत्वपूर्ण भूमिका है। गुरुदेव ने ही अपने श्रीमुख से अपने निकटस्थ जनों में किसी प्रसंगवश बताया था कि
जिस तरह विभिन्न राष्ट्रों का कामकाज राष्ट्रपति-प्रधानमन्त्री एवं मन्त्रिमण्डल के सदस्य मिलजुल कर चलाते हैं, उसी तरह “सूक्ष्म जगत की भी एक सुचारु व्यवस्था है।” यह कार्य सात ऋषिकल्प आत्माएँ करती हैं। इनका काम भगवान एवं माँ प्रकृति के कार्य में आवश्यक सहयोग देना है।
इन विशिष्ट दिव्यसत्ताओं का कार्य कुछ वैसा ही है, जैसी पौराणिक कथाओं में सप्तऋषियों के संदर्भ में की गयी चर्चा है। इनके बारे में संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया जा रहा है :
1.साउथ मारिया जो दिखने में तकरीबन 70 वर्ष की आयु की महिला लगती हैं। ये अद्भुत तपस्वी हैं, अपनी तपस्या के कारण इन्हें हिमालय के दिव्यसत्ताओं के बीच श्रद्धास्पद सम्मान प्राप्त हैं।
2.दादा गुरुदेव, स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी”, इनका कृशकाय (हड्डीओं जैसा) शरीर अग्नि की प्रदीप्त ज्वाला की भाँति आभा बिखेरता है।
3.लाहिड़ी महाशय, जिन्होंने क्रियायोग का प्रवर्तन किया।
4.मोहन साईं इस दिव्यमण्डल के अन्य घटक हैं , जो सतत् तप करते हुए अपनी ऊर्जा से जगत को अनुप्राणित करते रहते हैं।
5. हातोसाना
और
6.अशोक गिरि
ये छहों दिव्य आत्माएँ “प्रकृति की अधीश्वरी शक्ति” की सहायक हैं। यह अधीश्वरी शक्ति ही सातवें ऋषि की भूमिका सम्पन्न करती हैं। ये सभी सात इन दिनों भगवान “प्रज्ञावतार” की सूक्ष्म व्यवस्था के मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण units हैं।
गुरुदेव के अनुसार इन सातों दिव्य आत्माओं के सम्मिलन का स्थान, स्थूल दृष्टि से बद्रीनाथ से केदारनाथ जाने वाला दुर्गम पगडंडी मार्ग है जो लगभग 20000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस मार्ग से एकदम नीचे बीच में “सप्त गुफाओं”वाला क्षेत्र पड़ता है। सामान्यक्रम से किसी मनुष्य का वहाँ तक पहुँचना कठिन है लेकिन अगर कोई साहस करके पहुँच भी गया तो गुफाएँ तो देखी जा सकती हैं लेकिन वहाँ की शक्तियों को देख पाना सम्भव नहीं है। वैसे इन गुफाओं को दूर से, न तो दूरबीन द्वारा और न ही ग्लेशियोलाजिस्ट (glaciologist) यानि ग्लेशियर के वैज्ञानिकों द्वारा ही देखा जा सकता है। यथार्थ अवलोकन तो उसी के द्वारा सम्भव है जिसकी “चेतना चतुर्थ आयाम, दिव्य दृष्टि” को देख पाने में समर्थ है। गुरुदेव के अनुसार यथार्थ हिमालय का रहस्यबोध व्यक्ति को इसी आयाम में जाकर मिल सकता है।
हिमालय की दिव्य सत्ताओं के साथ गुरुदेव के अनेकों रहस्यमय प्रसंग हैं, हों भी क्यूँ न, आखिर वे भी तो इसी परिवार के सदस्य हैं। उन्होंने अपने शरीर छोड़ने से पहले, वर्ष 1984 में अपने पाँच सूक्ष्म शरीरों का जिक्र करते हुए लिखा था कि उनका एक सूक्ष्म शरीर हिमालय में अनवरत तप करेगा। उनकी यह तप-प्रक्रिया आज भी मन्द नहीं पड़ी है। जिनके पास दिव्य दृष्टि है, वे आज भी देख सकते हैं कि अपने सूक्ष्म शरीर से आज भी हिमालय की दिव्य सत्ताओं एवं सन्तों के संग “नवयुग के निर्माण” में महत्वपूर्ण भूमिका सम्पन्न हो रही है ।
आज के ज्ञानप्रसाद लेख का समापन एक दुःखद सूचना से कर रहे हैं : हमारी बहिन कुमोदनी जी की छोटी बहिन के पतिदेव का स्वर्गवास हो गया है। माँ गायत्री दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सुजाता जी और सरविन्द पाल जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)अरुण वर्मा -25 ,(2 )सुमनलता-27,(3 )रेणु श्रीवास्तव-39,(4) मंजू मिश्रा-27,(5) सरविन्द पाल-42 ,(6 ) नीरा त्रिखा-24 ,(7 ) सुजाता उपाध्याय-42 ,(8) चंद्रेश बहादुर-29,(9) संध्या कुमार-25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।