वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

चतुर्थ आयाम (Fourth dimension) में होता है देवात्मा हिमालय का रहस्यबोध

19 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद

आज गुरुवार है, हमारे सबके गुरुवर का दिन, हर सप्ताह यह दिन हमारे लिए एक उत्सव की भांति होता है क्योंकि इस दिन हम और दिनों से अधिक,बढ़ चढ़ कर  गुरुवंदना में लिप्त होते हैं, यहाँ तक कि इस दिन का प्रज्ञागीत भी गुरुवर को ही समर्पित होता है। इस   टाईमटेबल को फॉलो करने की प्रेरणा हमें ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की अति समर्पित सहयोगी आदरणीय सुमनलता बहिन जी से मिली जिन्होंने यह सुझाव देकर हमारा योग्य मार्गदर्शन किया। बहिन जी द्वारा दिए गए इस मार्गदर्शन एवं अनेकों अन्य मार्गदर्शनों के लिए ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं।     

माँ गायत्री से, परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी से एवं  परम वंदनीय माता भगवती देवी शर्मा जी से सदैव निवेदन करते है कि अपने दिव्य चरणों में स्थान दें ताकि हम अंतिम श्वास तक गुरुकार्य में ही लगे रहें। गुरुकार्य से प्राप्त हो रही अनंत ऊर्जा,उल्लास  और स्फूर्ति को केवल अनुभव ही किया जा सकता है, वर्णन करना असंभव है: “यह तो गूंगे का गुड़ है” 

आज का Introductory  ज्ञानप्रसाद लेख आने वाले उन दो लेखों की संक्षिप्त सी पृष्ठभूमि बना रहा है जिन्हें समझने  के लिए, विश्वास करने के लिए, कम से कम 3D नेत्रों की आवश्यकता पड़ेगी। हम कम से कम 3D इसलिए कह रहे हैं कि साधारण मनुष्य के लिए आने वाले लेखों के  दिव्य ज्ञान को समझने के लिए यह शब्दावली सबसे  सरल प्रतीत हो सकती है क्योंकि 3D मूवी का प्रचलन काफी आम हो चुका  है।

अखंड ज्योति के जुलाई 1997 अंक में एक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था : “चतुर्थ आयाम में होता है देवात्मा हिमालय का रहस्यबोध”, शीर्षक देखते ही माथा ठनका कि अवश्य  ही यह लेख विज्ञान सम्मत होना चाहिए, scientifically based होना चाहिए। फिर क्या था, लेख को अपने लैपटॉप की  लाइब्रेरी में सेव किया और जुट गए इसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, समझने के लिए, सरल करने के लिए, नोट्स बनाने के लिए और ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं को समझाने के लिए, सामूहिक चर्चा करने के लिए, गुरुदेव के चरणों में बैठ कर गुरुकुल कक्षा  में अपने मस्तिष्क में उठ रही जिज्ञासाओं का समाधान ढूंढने के लिए, क्योंकि गुरुवर से प्रश्न पूछने से पहले प्रश्न की बैकग्राउंड की जानकारी तो होना आवश्यक है ।   

लेख देखने  की घटना लगभग 1 माह पूर्व की है और अनवरत अध्यन  की हमारी  प्रवृति और विशेषकर विज्ञान आधारित रिसर्च की प्रवृति ने न जाने क्या कुछ पढ़ा दिया, Mathematics से लेकर स्पेस साइंस तक, अल्बर्ट आइंस्टीन से लेकर Galaciology( glaciers का अध्यन) और  Himalayan studies तक आदि आदि। 

सबसे उलझा हुआ प्रश्न था “चतुर्थ  आयाम” जिसका इंग्लिश अनुवाद Fourth dimension होता है। आज तक हमारा ज्ञान तो मात्र 3D तक ही सीमित था, वोह भी 3D मूवीज तक,जिन्हें  देखने के लिए स्पेशल प्रकार के चश्मों का प्रयोग किया जाता है। एक बार शायद थिएटर में इस प्रकार की मूवी देखने गए थे यां वर्षों पूर्व  एक आध बार टीवी पर देखी होंगीं। अब यह 4D किस बला का नाम है ? इसे ढूंढने के लिए गूगल जी का सहारा लिया तो वहां जानकारी मिली कि 4D ही नहीं, 5,6 यहाँ तक कि 9D जैसी भी कोई चीज़ होती है। जब हमने इस  विषय का थोड़ा गहराई में अध्यन किया तो बेसिक बैकग्राउंड न होने के कारण बंद करना ही उचित समझा। इतना ही समझ कर संतोष करना उचित समझा कि लम्बाई, चौड़ाई और गहराई तीन  दिशाएं यां dimensions होती हैं तो चर्तुथ dimension भी  कोई ऐसी ही  दिशा होगी जिसको आज के लेख के सन्दर्भ में समझना चाहिए। 

परम पूज्य गुरुदेव जब दादा गुरु के साथ-साथ दुर्गम हिमालय में यात्रा कर रहे थे तो उनके  मन मस्तिष्क  में भांति भांति के प्रश्न उठ रहे थे, दादा गुरु से तो कोई भी प्रश्न छिप नहीं सकता, वोह तो दिव्य सत्ता हैं। गुरुदेव के पूछे बिना ही  दादा गुरु कहने लगे :  

“तुम यहाँ जो भी दृश्य देख रहे हो, यह चेतना के  चतुर्थ आयाम के दृश्य  हैं। हिमालय का वास्तविक और रहस्यात्मक सौंदर्य साधारण लोगों की दृष्टि से बहुत दूर है जिसे केवल  सिद्ध मानव, बिरले समर्थ साधक अथवा हिमालयवासी ही देख सकते हैं।”

हमारी जिज्ञासा का कुछ तो समाधान सा हुआ कि यह कोई दिव्य दृष्टि, Third  eye, Sixth sense आदि के साथ मिलती जुलती बात हो सकती है। गुरुदेव की हिमालय यात्राओं में अनेकों प्रकार के विवरण मिलते हैं जो दिव्यता से भरपूर हैं, जिन्हें  देखने के लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती है जिसे केवल कठिन साधना से ही अर्जित किया जा सकता है। कहने को तो अनेकों पर्वतारोही हिमालय अभियानों में विजय प्राप्त कर चुके हैं, लेकिन क्या उन्हें कभी सप्तऋषिओं के दर्शन हुए हैं। आने वाले लेखों में हम इन सप्तऋषिओं से गुरुदेव का साक्षात्कार एवं उनके नाम जानने का भी प्रयास करेंगें। पर्वतारोहिओं की बात अलग है, आजकल तो पर्यटक भी तपोवन,गोमुख, नंदनवन आदि स्थानों पर जा रहे हैं। एक वीडियो में हम देख रहे थे कि पर्यटक इस क्षेत्र में माँ गंगा के साथ ऐसी अठखेलियां, खिलवाड़ कर रहे थे कि देखने से पता चल रहा था कि दिव्यता का कहीं दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं  था, पार्टी जैसा माहौल था, खाना पीना चल रहा था, DJ का लाउड म्यूजिक था और  प्लास्टिक और पॉलिथीन आदि  से पर्यावरण को प्रदूषित किया जा रहा था।

गुरुदेव की यात्राओं में  सर्वाधिक रहस्यमय प्रसंग तब  घटित हुए, जब वे “हिमालय के हृदय स्थल” में पहुँचे। यह दिव्य क्षेत्र आज भी सप्तऋषियों के अगणित तपस्वियों, की तपोभूमि बना हुआ है। एक प्रसंग में उन्होंने बताया था कि इन दिनों भी वहाँ 18,000 विशिष्ट आत्माएँ, लोककल्याण एवं सृष्टि-संचालन  के लिए तप में संलग्न हैं। पहले कभी यहीं व्यास जी ने अठारह पुराण लिखे थे। आदि गुरु शंकराचार्य ने प्रायः अपने सभी भाष्य यहीं बैठकर लिखे। वैदिक भारत में प्राचीन ऋषियों द्वारा आर्ष साहित्य का सृजन यहीं हुआ । चिरअतीत से भारत की आध्यात्मिक परम्पराओं का सूत्र संचालन यहीं से होता रहा है। शिव- पार्वती का, देवसेना का निवास यहीं है, यह केवल प्राचीन मान्यता नहीं बल्कि “दिव्यदर्शियों” के लिए, जिनके पास दिव्य दृष्टि है, उनके लिए बिलकुल सत्य है। आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक स्तर पर इस भूमि की अपनी महत्ता है। 

एक प्रश्न ह्रदय में बार बार आ रहा था कि अगर आज भी 18000 विशिष्ट आत्माएं लोककल्याण के लिए कार्यरत हैं तो फिर रूस-यूक्रेन युद्ध, इसराइल युद्ध को लगाम क्यों  नहीं लगाई जा रही, क्या इन दिव्य आत्माओं का फोकस कहीं और दिशा में है, यां फिर मानवता को प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के लिए दण्डित किया जा रहा है, इन प्रश्नों के उत्तर तो गुरुदेव जैसी दिव्य शक्तियां ही दे सकती हैं लेकिन इतना अवश्य है कि तीसरे विश्व युद्ध की कोई सम्भावना नहीं है, गुरुदेव ने ऐसा अनेकों जगह कहा है। जो भी हो, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच  से सदैव विश्व शांति की ही कामना की जाती है। इस परिवार के एक एक सदस्य की यही कामना है कि सभी शांतिपूर्वक, एक दूसरे की सहायता और सहयोग करके ही जीवन का निर्वाह करें       

पूज्य गुरुदेव अपनी हिमालय यात्राओं में जिन सात अन्य विशेष विभूतियों के संपर्क  में आये, सृष्टि की सूक्ष्म व्यवस्था के संचालन में उनकी भी अति महत्वपूर्ण भूमिका है। गुरुदेव ने  अपने श्रीमुख से अपने निकटस्थ जनों में किसी प्रसंगवश बताया था कि जिस तरह विभिन्न राष्ट्रों का कामकाज राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री  एवं मंत्रीमण्डल के सदस्य मिलजुल कर चलाते हैं, उसी तरह “सूक्ष्म जगत की भी एक सुचारु व्यवस्था है।” यह कार्य सात ऋषिकल्प आत्माएँ करती हैं। इनका काम भगवान एवं माँ प्रकृति के कार्य में आवश्यक सहयोग देना है।

सिद्ध आत्माओं की बात करें तो आज 2023 में भी अद्वैतानन्द जी जैसे महापुरष हैं जो 15000 फ़ीट की ऊंचाई पर, तपोवन में पिछले 15 वर्ष से साधना कर रहे हैं। 2021 में ब्रह्मलीन हुई 90 वर्षीय सुभद्रा माता जी ने 9 वर्ष तक तपोवन गोमुख क्षेत्र में घोर तप किया था। “समुद्र से हिमशिखर तक” पुस्तक की लेखिका का वर्णन हमने अपने लेखों में मार्च 2022  में किया था। परम पूज्य गुरुदेव सहित अनेकों सिद्ध आत्माएं इस सृष्टि के कष्टों को, दुःखों को हरने के लिए इस धरती पर अवतरित होती रहेंगीं। 

चतुर्थ आयाम के अंतर्गत आने वाले लेखों में हमें यह जानने का दुर्लभ अवसर  प्राप्त होगा कि गुरुदेव को दादा गुरु के इलावा अनेकों दिव्य आत्माओं के घनिष्ठ सानिध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिनमें से कुछ एक के नाम निम्नलिखित दिए गए हैं :     

महात्मा रघुनाथ दास,स्वामी तत्वबोधानन्द,गर्ग मुनि, ऋषि धौम्य, सन्त पुण्डलिक, बाबा नरहरिदास, जीवानन्द, सिद्धेश्वर गिरि, पवहारी तथा स्वामी कृष्णानन्द, गोविन्दपाद। 

इन लेखों के अध्यन से यह बात तो क्लियर हो ही जाएगी कि यह सब कुछ चेतना के चतुर्थ आयाम ,Fourth dimension द्वारा ही संभव हो सकता है लेकिन एक  प्रश्न जो  unanswered रहेगा वोह है   कि इस  दिव्य लेख पर 26 वर्ष बाद ही हमारी दृष्टि क्यों  पड़ी। हिमालय यात्रा के विषय  पर तो कई वर्षों से लिख रहे हैं;  शायद यह भी कोई गुरुकृपा ही होगी कि उपयुक्त समय आने पर ही गोपनीयता की परतें खोली जाएँ। 

इन्हीं पंक्तियों के साथ इस पृष्ठभूमि  ज्ञानप्रसाद लेख का समापन होता है, सोमवार को इस शृंखला का प्रथम लेख प्रस्तुत किया जायेगा। कल तो वीडियो कक्षा होगी और शनिवार को हमारी लोकप्रिय क्लास तो होती ही है। 

आज का प्रज्ञागीत प्रस्तुत करने में हम आदरणीय पुष्पा बहिन जी के सहयोग को नमन करते हैं जिन्होंने 4 घंटे की “प्रेरणा गीतमाला” की वीडियो शेयर करके ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में योगदान दिया, बहिन जी का बहुत बहुत धन्यवाद्। लगभग 11 मिंट के इस प्रज्ञागीत में दर्शाई गयी फोटो New Jersey USA के गायत्री चेतना केंद्र की है।          

हर बार की भांति आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। 

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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 5 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। संकल्प सूची के सिकुड़ने का कारण नवरात्री में व्यस्तता प्रतीत हो रही है।  आज चंद्रेश जी  गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)चंद्रेश बहादुर-35 ,(2 )सुमनलता-27 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव-24  ,(4) मंजू मिश्रा-26  ,(5) संध्या कुमार-26 

 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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