वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

हिमालय क्षेत्र में विकास के नाम पर होता विनाश-पार्ट 1 

17 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद

“परम पूज्य गुरुदेव ने हिमालय यात्राएं क्यों कीं”, शीर्षक से हिमालय क्षेत्र को जानने के लिए 28 अगस्त 2023 को हमने अद्भुत लेख श्रृंखला का शुभारम्भ  किया था, गुरुदेव के आशीर्वाद ने हमसे न जाने कितने ही लेख लिखवा लिए, कितने ही परिजनों से गुरुदेव ने यह लेख  पढ़वा लिए, कितनों को ही उन्होंने कमेंट और काउंटर कमेंट लिखने के लिए प्रेरित कर दिया,कितने ही परिजनों को गुरुदेव ने इन लेखों को अलग-अलग स्थानों पर, ग्रुप्स में शेयर करने  को  प्रेरित किया। समझ नहीं आता, किन शब्दों में परम पूज्य गुरुदेव का धन्यवाद् करें,अपने साथिओं/सहपाठिओं का धन्यवाद् करें जिन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया, उबड़ खूबड़ हिमालयी मार्गों में ऊँगली पकड़ कर साथ-साथ सहकारिता से चलते रहे, विकास/विनाश को एक साथ देखते रहे, चिंतन मनन करते रहे। 

गुरुदेव के मार्गदर्शन की बात करें तो यह सब उन्हीं का तो है, वही तो हैं जो हमसे  एक-एक शब्द लिखवा रहे हैं, वीडियोस बनवा रहे हैं, शॉर्ट्स बनवा रहे हैं, कहाँ-कहाँ से ढूढ़-ढूंढ कर समर्पित परिजन ला रहे हैं जो उनके साहित्य का अमृतपान कर रहे हैं, हमारा योगदान तो बस इतना ही है कि उनके विशाल साहित्य को समझते हुए, प्रस्तुत करते हुए जो  त्रुटियां शामिल कर दीं, वह सब अपनी थीं। इन त्रुटियों के लिए हम आपने साथिओं से एवं परम पूज्य गुरुदेव से क्षमाप्रार्थी हैं।

इतना विस्तृत अध्ययन करने के बावजूद यह कहना कठिन है कि “हिमालय क्षेत्र” नामक विषय का समापन हो गया है या नहीं।  पहले भी लिखा था, आज फिर लिख रहे हैं This is work in process, Fourth dimension Himalaya की बात भी करनी है। 

आज का ज्ञानप्रसाद लेख उस विनाश पर चर्चा का प्रथम भाग है जिसका श्रेय इस मानव को ही जाता है जिसने  विकास की आड़ में इस सुन्दर सृष्टि का सर्वनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, इसका दूसरा और अंतिम भाग कल प्रस्तुत करेंगें।  

यातायात के लिए, सुख सुविधा के लिए, हाइवेज के लिए, हेलिपैड आदि बनाने के लिए विकास तो आवश्यक है लेकिन उससे भी अधिक आवश्यक है विवेक का प्रयोग, जिसे कुछ स्वार्थी मनुष्यों ने प्रयोग न करने की शपथ ली हुई है। ऐसे विवेकहीन मनुष्यों को  इस बात का ज्ञान नहीं है कि जब प्रकृति अपना भयानक रूप दिखाती है तो सभी उस विनाश की चपेट में आ जाते है। कोरोनाकाल में यही मनुष्य जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा था ऑक्सीजन के सिलिंडर के लिए भटक रहा था। यह है प्रकृति का प्रकोप, जिसके आगे सब बेबस हैं। 

हम कितने ही दिन ज्ञानप्रसाद लेखों के माध्यम से धरती के स्वर्ग की दिव्यता को निहारते रहे, चप्पे चप्पे पर परमपूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म संरक्षण में, सानिध्य में उत्तराखंड के उस क्षेत्र में विचरते रहे  जिसे “धरती के स्वर्ग” का विशेषण दिया गया है। यह विशेषण केवल आधुनिक साहित्य पर ही आधारित नहीं है बल्कि पुरातन साहित्य भी इसका साक्षी है। साधकों ने इस क्षेत्र में आध्यात्मिक तत्व की प्रचंड तरंगें प्रवाहित होते देखी हैं।

कितने  दुःख की बात है कि हमारी धरती माँ, हमारा वातावरण सीने में इतने घाव लिए हुए है कि ग्लेशियर और हिमशिखर पिघलने को विवश हो रहे हैं और विकास के नाम पर प्रकृति बलिदान हो रही है।

हम पृथ्वी को, प्रकृति को माँ मानते हैं ,इसीलिए हम इसे धरती माँ, Mother Nature कहते हैं और उस पर निर्मित आकृति शैलाभिदेहम ( धरती की सम्पदा ) को पिता की तरह पूजते हैं। आज का मानव इतना स्वार्थी क्यों हो गया है, क्यों वह पालनहार के प्रति इतना क्रूर हुआ जा रहा है। 

क्या अब इस अंधी दौड़ को रोकने का समय नहीं आ गया? अवश्य ही आ गया है।

प्रकृति किसी बड़े विनाश के पहले हमें चेतावनी जरूर देती है, ठीक उसी प्रकार जैसे माँ बच्चे को गलत मार्ग पर जाने से रोकती तो अवश्य है, चाहे वह सुने य न सुने । यदि अभी भी हम सजग न हुए तो तो मानव का अस्तित्व खत्म होना निश्चित है। अगर हम प्रकृति माँ का लगातार इसी प्रकार  शोषण करते रहेंगें तो प्रतिशोध तो अवश्य ही होगा। 

समय-समय पर पर्वतराज हिमालय ( हिमालय पिता ) ने हमें warning दी लेकिन हम उस warning को अनसुना करते रहे, परिणाम हमारे समक्ष हैं। 

1991 में उत्तरकाशी का भूकंप, 1998 में पिथौड़ागढ़ मालपा भूस्खलन, 1999 में चमोली भूकंप, 2013 का केदारनाथ का तबाही वाला मंजर, 2021 में ग्लेशियर के पिघलने और चमोली घाटी ऋषि गंगा और धौली गंगा का सैलाब। 

यह तो कुछ एक ही नाम हैं और वोह भी उत्तराखंड राज्य के, अगर भारत के अन्य भागों एवं विश्व के अन्य भागों पर दृष्टि दौड़ाई जाए तो आँखें खुली खुली रह जाएँ। 

डॉक्टर अनिल जोशी जो Himalayan Environmental Studies and Conservation Organisation (HESCO) के जन्मदाता हैं, उन्होंने इस दिशा में सरकारों को बहुत प्रेरित किया है। उनका कहना है कि उत्तराखंड की भूमि Earthquake prone है और ऊँचे भवनों का निर्माण एक दम रोकना ही एक विकल्प होगा। उन्होंने इस क्षेत्र में Observatory की भी सिफारिश की है ताकि भूंचाल से पहले ही warning दी जा सके। 1973 का “चिपको आंदोलन” में  उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाओं ने वृक्षों से चिपक कर वन वृक्षों की कटाई का विरोध किया था। यह आंदोलन  इतना प्रभावशाली था कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस आंदोलन की गूँज सुनाई पड़ी।

कितने दुःख की बात है कि हम विकास की race लगाते-लगाते इतने भटक गए हैं कि हमारे पास पीने का पानी भी निशुल्क नहीं बचा  है। क्या इस मानव ने कभी सोचा था कि इतनी भरपूर प्राकृतिक सम्पदा के होते हुए पीने का पानी बोतलों में खरीदना पड़ेगा। आज हम में से अधिकतर लोग bottled water ही प्रयोग करते हैं, tap water पर किसी को कोई विश्वास नहीं है क्योंकि pollution level घातक स्टेज पर हो गया है। Aqua guard जैसे न जाने कौन-कौन से उपकरण जल को पीने के काबिल बनाने के लिए प्रयोग किये जा रहे हैं।    जल  की बात तो हम सब जानते हैं लेकिन ताज़ा हवा, Pure Air भी अब निशुल्क नहीं रही है। 

आइये ज़रा देखें वायु के बारे में हम क्या कह रहे हैं।

भारत में Pure Himalayan air का 10 लीटर का कैन 550 रुपये में बिक रहा है। यह विचार कनाडा की कंपनी Vitality Air से आया, जिसने बोतलबंद हवा बेचना शुरू किया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया का एक ब्रांड Auzair आया, जो भारत में भी अपने उत्पाद बेच रहा है। Auzair की  7.5 लीटर ताज़ी हवा की बोतल की कीमत करीब 1,500 रुपये है। 2014 में आरम्भ हुई Vitality air नामक कंपनी ने कनाडा के Banff, Alberta क्षेत्र से फ्रेश वायु को compressor की सहायता से cylinders में भरकर विश्व के उन स्थानों पर मार्किट करना आरम्भ किया जहाँ Air quality की गंभीर समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नई दिल्ली को सबसे प्रदूषित शहर के रूप में टैग किया है। यहाँ Vitality air की बोतलबंद हवा 3-लीटर और 8-लीटर के cylinder में उपलब्ध है। इस twin-pack की कीमत 1,450 रुपये से 2,800 रुपये के बीच है यानि 12.50 रुपये प्रति सांस। 

विश्व के महानगरों में पर्यावरण की ऐसी  दशा हो चुकी है कि मानव सुबह उठते ही सबसे पहले  Air quality index चेक करता है  और उसी index के आधार पर Air purifier का level adjust करता है  ताकि वह  आराम से सांस ले सके, खिड़कियां ,दरवाज़े खोले कि नहीं,

क्या यही विकास है ? इसी को विकास का नाम दिया जाता है ? प्रकृति के आगे आज का मानव इतना विवश क्यों है ? 

पिछले कई वर्षों से अलकनंदा क्षेत्र में  अनगिनत बिजली परियोजनाओं का जाल बिछाया जा रहा है ,पेड़ों को काटा जा रहा है, पर्वतों  के सीने चीर कर सुरंगें  बनाई जा रही है। परिणामवश पर्वत  crack हो रहे हैं और नदियां उफनाने को मजबूर हो रही है। निश्चित रूप से यदि यह कहा जाए कि अथक प्रयास और तपस्या से लाई गई भागीरथी पर यदि इंसानी सेंध न रोकी गई तो मानवता के लिए और मानव अस्तित्व के लिए पर्यावरण के साथ किया गया यह खिलवाड़ कहीं डायनासोर की भांति  हमारे अस्तित्व को खत्म करने का कारण  न बन जाए।

हम सब जानते हैं उत्तराखंड की समस्त इकॉनमी पर्वतों  पर टिकी हुई है। इन पर्वतों में  पैदा होने वाली जड़ी बूटियां,  पशु, पक्षी तथा लोग विषम परिस्थितियों में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं। आज विकास की अंधी दौड़ में, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के क्रम में हमने दो प्लेटों पर टिके हिमालय को इतने घाव दे दिए हैं कि पावर प्रोजेक्ट तथा अन्य योजनाओं के नाम पर स्टोन क्रशिंग, बारूद ब्लास्टिंग, तथा प्रतिदिन कटने वाले पर्वतों  पर हो रही निर्दयता,  बड़ी-बड़ी मशीनों से जख्मी होते पर्वत , लैंड स्लाइड एवं  असमय गिरने पर मजबूर हो रहे हैं ।अंधाधुंध हो रही वृक्षों की कटाई जो कि highways और basic needs के नाम पर रोज़ ही काटे जा रहे हैं, जिनकी जड़ों में यह पर्वत बंधे हुए थे, मजबूती से धरती के साथ अपनी पकड़ बनाये हुए थे, आज पेड़ों के बिना अपनी स्थिरता की दुहाई दे रहे हैं।जरा सी गतिविधि से भरभरा कर गिरने पर मजबूर हो रहे हैं।

हमारे सहकर्मी इस विषय पर भलीभांति शिक्षित हैं। प्रतिदिन गायत्री परिवार द्वारा पर्यावरण संरक्षण ,वृक्षारोपण जैसे दिव्य कार्यों को किया जा रहा है। हमारे जैसे अल्प बुद्धि और अनुभवहीन व्यक्ति के लिए इस विषय पर चर्चा करना बेतुका सा लगता है लेकिन अपनी माँ के सीने पर होते हुए प्रहार को सह पाना भी तो असहनीय है। इसलिए इन पंक्तियों में हम अपने ह्रदय की व्यथा व्यक्त करने का प्रयास कर रहे हैं।  इसका दूसरा और अंतिम भाग कल प्रस्तुत किया जायेगा।

संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)चंद्रेश बहादुर-31,(2 )सुमनलता-34 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव-43  ,(4) सुजाता उपाध्याय- 31,(5 )मंजू मिश्रा-38  ,(6 ) संध्या कुमार-33,(7 ) नीरा त्रिखा-25 ,(8 )सरविन्द पाल-52,(9 )अरुण वेर्मा-38 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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