16 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
शनिवार को हम सब स्पेशल सेगमेंट की लोकप्रियता का आनंद लेते हुए गुरुकुल पाठशाला का सुखद समापन करते हैं,सोमवार को एक नई ऊर्जा लेकर सप्ताह के प्रथम दिन एक नए विषय पर गुरुचरणों में समर्पित होते हैं।
आज की कक्षा का शुभारम्भ करने से पूर्व सभी साथियों को आश्विन नवरात्रि की शभकामना, बहुत बहुत बधाई। कल रविवार था, अवकाश के कारण हम अपने साथिओं से रूबरू तो न हो पाए लेकिन गुरुदेव का नवरात्रि सन्देश, “शांतिकुंज में हमेशा नवरात्रि” वीडियो शार्ट के रूप में अपलोड किया था, यह पंक्तियाँ लिखने के समय तक लगभग 1300 परिजन इस वीडियो को देख चुके हैं। आप सभी से निवेदन है कि अगर किसी कारणवश यह वीडियो शार्ट मिस हो गयी हो तो अवश्य देख लें।
आज का ज्ञानप्रसाद पिछले वर्ष की भांति आदरणीय सरविन्द पाल जी की प्रस्तुति है जो उन्होंने अखंड ज्योति के अक्टूबर 2020 अंक में प्रकाशित लेख का स्वाध्याय करके, समझने के बाद परिवार को भेंट की है ताकि कोई भी इस पुण्य से वंचित न रह जाए । पिछले वर्ष सरविन्द जी ने शारदीय नवरात्रि का शुभारम्भ युगनिर्माण योजना के सितम्बर 2020 के अंक के स्वाध्याय से किया था, उनके इस समर्पण और श्रद्धा को हम सब तो नमन करते ही हैं लेकिन गुरुदेव से प्रार्थना करते हैं कि उनके मार्ग में आने वाले सभी speed breaker एकदम निरस्त हो जाएँ।
इन्ही शब्दों के साथ आज का ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत है।
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सरविन्द जी बता रहे हैं कि हमने अखंड ज्योति पत्रिका अक्टूबर 2020 अंक में यह लेख देखा और नियमित स्वाध्याय प्रक्रिया के अंतर्गत गम्भीरतापूर्वक स्वाध्याय किया। परम पूज्य गुरुदेव का मार्गदर्शन मिला कि इस लेख को आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर प्रकाशित किया जाए। अपने गुरु के निर्देश का पालन करना, हमारा ही क्या, प्रत्येक गायत्री परिजन का कर्तव्य एवं धर्म है, उसी धर्म की पालना करते हुए प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद।
परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं :
हमारी भारतीय संस्कृति में धर्म की महत्ता अपरंपार है और यह भारतीय संस्कृति का ही प्रतिफल है कि भारत देश में सभी धर्मो को मानने वाले, अपने-अपने धर्म को मानते हुए, भाईचारे की भावना के साथ सदियों से एक साथ रहते चले आ रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण विश्व में भारत के धर्म व संस्कृति सर्वोत्तम माने गये हैं।
अनेकों भारतीय पर्वों की भांति, नौ दिवसीय आश्विन नवरात्रि पर्व भी एक अद्भुत महत्व एवं पवित्रता लेकर आता है। इन नौ रातों तथा दस दिनों के दौरान, शक्ति के नौ रूपों का जाप , उपासना, साधना व आराधना की जाती है और दसवाँ दिन दसहरा के नाम से जाना जाता है l
नवरात्रि एक हिन्दू पर्व है जो वर्ष में चार बार आता है। (1) चैत्र (2) आषाढ़ (3) पौष (4)आश्विन इन्हें उक्त महीने की प्रतिपदा यानि एकम से नवमी तक नवरात्रि पर्व के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है और नवरात्रिि की इन नौ रातों में तीन देवियों (महालक्ष्मी, सरस्वती व माँ भगवती ) दुर्गा के नौ स्वरूपों की जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं, की अर्चना, पूजा, जप, उपासना, साधना व आराधना की जाती है। दुर्गा का अर्थ होता है जीवन के दुःख को मिटाने वाली l
नवरात्रि एक बहुत ही महत्वपूर्ण व प्रमुख पर्व है, जिसे सम्पूर्ण भारत में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है l यह पावन महापर्व जलवायु और सूरज के प्रभावों का एक महत्वपूर्ण संगम माना गया है और यह समय आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती दुर्गा की उपासना, साधना व आराधना के लिए पवित्र अवसर माना जाता है। इस पर्व की तिथियां चंद्र कलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं और यह पूजा वैदिक काल से भी पहले, प्रागैतिहासिक काल(Prehistoric) से चली आ रही है l नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी माँ भगवती दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं और इन दिनों में उनकी ऊर्जा और शक्ति की पूजा की जाती है l प्रत्येक दिन माँ भगवती दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। प्रथम दिन बालिकाओं की, दुसरे दिन युवती की तथा तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुँच गई है, की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे, पाँचवें, छठे और सातवें दिन माँ लक्ष्मी-समृद्धि और शांति की देवी की पूजा करने के लिए निर्धारित हैं l आठवें दिन एक यज्ञ किया जाता है और नौंवाँ दिन नवरात्रि पर्व का अंतिम दिन होता है जिसे महानवमी के नाम से भी जाना जाता है l इस दिन नौ कुँवारी कन्याओं की पूजा होती है और इन नौ लड़कियों को दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है, लड़कियों का सम्मान व स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं,भरपेट भोजन कराया जाता है। इसके उपरांत लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े, वस्तुएं, फल प्रदान किए जाते हैं और दक्षिणा स्वरूप पैसे और अन्नदान देकर ससम्मान विदा दिया जाता है l
परम पूज्य गुरुदेव बताते हैं कि शक्ति की उपासना, साधना व आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रिि महापर्व प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है l प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं जिसे नवधा भक्ति कहते हैं आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती के हर रूप की नवरात्रि के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा, जप, उपासना, साधना व आराधना की जाती है l आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम “सिध्दिदात्री” है और यह सभी प्रकार की सिध्दियाँ देने वाली हैं l इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर ही विराजमान रहती हैं तथा नवरात्रि के नौवें दिन इनकी विधिवत उपासना, साधना व आराधना की जाती है और आशीर्वाद लिया जाता है l
महिषासुर की कथा :
पवित्र पावन नवरात्रि महापर्व से जुड़ी एक कथा के अनुसार आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती देवी दुर्गा ने एक भैसा रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था l पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षस महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वरदान दे दिया था और वह देवताओं द्वारा दिए गए वरदान का दुरपयोग करने लगा जिसके कारण बाद में देवताओं को बहुत चिन्ता हुई l राक्षस महिषासुर ने अपने साम्राज्य का विस्तार “स्वर्ग के द्वार” तक कर दिया। उसकी इस कार्यशैली को देखकर देवताओं की चिन्ता और बढ़ गई l राक्षस महिषासुर ने सूर्य, चन्द्रमा, इंद्र,अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य सभी देवताओं के अधिकार छीन लिए और स्वयं स्वर्गलोक का सम्राट बन गया l देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से बचने के कारण धरती पर विचरण करना पड़ रहा था तत्पश्चात महिषासुर के इस दुस्साहस से नाराज होकर देवताओं ने आपस में मिलकर एकरूप होकर एकजुटता के साथ अपने सामूहिक प्रयासों से देवी दुर्गा की रचना की l ऐसा माना जाता है कि आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था और महिषासुर को समाप्त करने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे। कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से ही देवी दुर्गा शक्तिशाली हो गई थीं तथा इन नौ दिनों में देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर वध करके देवी “महिषासुरमर्दिनी” कहलाई तथा नारी शक्ति को जीवंत किया l अतः हम सबको नारी शक्ति का सम्मान करना चाहिए l
नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में माँ काली ही प्रथम और प्रमुख हैं l भगवान शिव की शक्तियों में उग्र व सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्या अनंत सिध्दियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं और दसवें स्थान पर कमला वैष्णी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं l देवता, मानव और दानव सभी इनकी कृपा के बिना अधूरे व असहाय हैं, इसलिए आगम व निगम दोनों में इनकी जप, उपासना, साधना व आराधना समान रूप से वर्णित है और सभी देवी-देवता, मानव, दानव व गंधर्व इनकी कृपा दृष्टि के लिए हमेशा लालायित रहते हैं l
नवरात्रि अनुष्ठान :
इस प्रकार नवरात्रि के नौ दिनों में आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती के नौ रूपों की उपासना, साधना व आराधना की जाती है और इससे जीवन में सुख, समृध्दि व शांति बनी रहती है l अतः हम सबको आश्विन व चैत्र नवरात्रि के इन दिनों में उपवास रखकर 24000 मंत्र के जप का एक छोटा सा लघु अनुष्ठान कर लेना चाहिए। यह छोटी साधना भी बड़ी के समान उपयोगी सिद्ध होती है l एक समय अन्नाहार, एक समय फलाहार, दो समय दूध और फल, एक समय आहार, एक समय फल-दूध का आहार, केवल दूध का आहार ; इनमें से जो भी उपवास अपनी सामर्थ्यानुकूल हो, उसी के अनुरूप साधना आरम्भ कर देनी चाहिए l प्रातःकाल ब्रह्ममुहुर्त में उठकर शौच, स्नान से निवृत्त होकर साधना में बैठना चाहिए और नौ दिन में 24000 मंत्र का जाप करना है l प्रतिदिन 27 माला का गायत्री महामंत्र का जाप करना है और तीन-चार घंटे में अपनी गति के अनुसार इतनी मालाएं आसानी से जपी जा सकती हैं l यदि एक बार में इतने समय तक लगातार जप करना कठिन हो तो अधिकांश भाग प्रातःकाल पूरा करके न्यून-अंश संध्याकाल को पूरा कर लेना चाहिए। अंतिम दिन हवन के लिए है, उस दिन पूर्व वर्णित हवन के अनुसार कम से कम 108 आहुतियों का हवन कर लेना चाहिए। कन्या भोज व यज्ञ पूर्ति की, दान-दक्षिणा की भी यथोचित व्यवस्था करनी चाहिए l
“इस तरह यह नौ दिन का लघु अनुष्ठान नवरात्रिि के पावन महापर्व पर प्रतिवर्ष सम्पन्न करते रहना चाहिए जो कि सर्वोत्तम है l”
नवरात्रिि महापर्व में नौ दिवसीय साधना करना बहुत ही लाभदायक है और साधना का यही उपयुक्त समय भी है l कष्ट निवारण, कामनापूर्ति और आत्मबल बढ़ाने में इन दिनों की उपासना, साधना व आराधना बहुत ही लाभदायक सिद्ध होती है और अंतःकरण प्रफुल्लित व परिष्कृत हो जाता है l
आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी आत्मीय सूझवान,समर्पित सहकर्मी, सहपाठिओं से करबध्द निवेदन है कि आश्विन नवरात्रिि के इस पावन महापर्व पर एक छोटा सा लघु अनुष्ठान करें और फिर देखें क्या लाभ होता है।अगर इतना भी न हो सके तो नौ दिन तक प्रतिदिन के हिसाब से 240 गायत्री महामंत्र का लेखन करें। एक लघु अनुष्ठान पूरा करने के लिए कुल 2400 गायत्री महामंत्र का लेखन करना होगा। यदि इतना भी न हो सके तो नौ दिन तक प्रतिदिन 12 गायत्री चालीसा पाठ करके एक छोटा सा लघु अनुष्ठान कर सकते हैं लेकिन अनुष्ठान करें जरूर।
यह निवेदन परिवार को सुखशांति की दिशा में अग्रसर होने के उद्देश्य से किया जा रहा है। हमारा छोटा सा प्रयास विश्व में पनप रही नकारात्मकता को समाप्त नहीं तो कम करने का योगदान तो अवश्य ही दे सकता है।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)चंद्रेश बहादुर-31,(2 )सुमनलता-29 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव- 45 ,(4) सुजाता उपाध्याय- 33 ,(5 )मंजू मिश्रा-36 ,(6 ) संध्या कुमार-42 ,(7 ) नीरा त्रिखा-27 ,(8 )सरविन्द पाल-51 ,(9 )पुष्पा सिंह-32,(10)अरुण वेर्मा-28,(11) विदुषी बंता-24
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।