12 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज गुरुवार है, हमारे गुरु का दिन, परम पूज्य गुरुदेव को समर्पित विशेष दिन जब हम गुरु साहित्य पर आधारित ज्ञानप्रसाद के अमृतपान के साथ, बहिन सुमनलता जी के सुझाव अनुसार प्रज्ञा गीत भी परम पूज्य गुरुदेव की वंदना करता है। आज ही तिथि अनुसार, शांतिकुंज कैलेण्डर अनुसार, परम पूज्य गुरुदेव की जयंती भी है। यह जानकारी भी हमें बहिन सुमनलता जी ने ही भेजी थी।
तो आइए इस पावन दिवस पर गुरुदेव को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करें और तन, मन एवं धन से गुरुकार्य में योगदान देने का संकल्प लें क्योंकि ऐसा सौभाग्य हर किसी को प्राप्त नहीं होता। गुरुदेव ने हम सबका चयन बड़ी ही कठिन चयन प्रक्रिया के उपरांत पात्रता के आधार पर किया है। हम सौभाग्यशाली हैं कि लाखों करोड़ों परीक्षार्थिओं में से हम गुरु परीक्षा में सफल हो पाए।
अपने साथियों ( विशेषकर कोकिला बरोट जी) के अनुरोध पर 28 अगस्त 2023 को आरंभ हुई हिमालय यात्रा पर आधारित लेख श्रृंखला का यह समापन लेख है। इस श्रंखला की भांति पहले भी हमने हिमालय आधारित लेख श्रृंखलाएं प्रकाशित की हैं, सभी लेख हमारी वेबसाइट https://life2health.org/ पर उपलब्ध हैं।
“हिमालय का ह्रदय -धरती का स्वर्ग” क्षेत्र के दिव्य स्थानों की यात्रा करते-करते हमें जिस दिव्यता का आभास हो रहा है उसे शब्दों में बांध पाना असंभव है। हम इस क्षेत्र के चप्पे चप्पे का भ्रमण कर चुके हैं लेकिन इस समय तो ऐसे लग रहा है कि कुछ भी याद नहीं है। ऐसी स्थिति का अनुभव हमें अक्सर छोटी कक्षाओं में होता रहा है जब परीक्षा केंद्र की ओर कदम बढ़ रहे होते थे, मानसिक revision चल रहा होता था तो कुछ भी याद नहीं आता था, ज्यों ही answer sheet मिलती, कलम चलनी आरंभ होती तो रूकती तभी थी जब announcement होती, Stop writing . हमारे जैसे अनेकों साथी होंगें जिन्हें इस तरह का अनुभव हुआ होगा क्योंकि जब इनफार्मेशन बहुत ज़्यादा होती है तो हमारा मस्तिष्क हर किसी information को प्रोसेस करके छोटे-छोटे पैकेट्स में compile करने का प्रयास करता है, ठीक उसी तरह जैसे एक परिश्रमी विद्यार्थी याद रखने के लिए “notes” बनाता है।
जो भी हो, हर एक मनुष्य का अपना-अपना तरीका है, अपनी capability है, किसी भी statement को generalize नहीं किया जा सकता। हमें इतनी प्रसन्नता अवश्य है कि प्रतिदिन पोस्ट हुए साथिओं के कमैंट्स ने यह प्रमाणित कर दिया कि बहुत ही विस्तृत अध्यन हुआ है ; लेकिन यह कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है, it is still a work in progress (WIP), गुरुदेव मार्गदर्शन देते रहेंगें और आपका सहयोग हमसे वोह कार्य करवा लेगा जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते, ऐसा हमारा अटूट विश्वास है।
विश्व में कितने ही स्वर्ग हों, कितने ही Paradise on Earth हों लेकिन उत्तराखंड का स्वर्ग ही सही मानों में स्वर्ग हैं। स्वयं गुरुदेव ने “शिव का वास्तविक निवास” उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र को कहा है न कि तिब्बत वाले कैलाश पर्वत को।
आज के लेख में हम इस विषय पर गुरुदेव द्वारा दिए गए comparative analysis का अमृतपान करेंगें। सोमवार के ज्ञानप्रसाद में हम अपनी धरती माँ के सीने पर विकास के नाम पर दिए जा रहे घावों की चर्चा करेंगें।
तो आइए करते हैं आज के लेख का शुभारंभ।
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परमपूज्य गुरुदेव तो उत्तराखंड स्थित हिमालय क्षेत्र में एक विशेष उद्देश्य से गए थे लेकिन प्रकृति का दिव्य सौंदर्य, असली कैलाश मानसरोवर के प्राचीनतम स्थल, अतीत के भव्य इतिहास, देवताओं के निवास, स्वर्गीय वातावरण की दृष्टि से भी इस स्थान का महत्व कोई कम नहीं है।
नंदनवन-तपोवन क्षेत्र की आध्यात्मिक तरंगें :
गुरुदेव बताते हैं कि हमने इस क्षेत्र में आध्यात्मिक तत्व की प्रचण्ड तरंगें प्रवाहित होती देखी हैं जो अनुकूल स्थिति के अन्तःकरण का तो कायाकल्प कर ही सकती हैं लेकिन यदि पात्रत्व उतना विकसित न हुआ हो तो साधारण स्थिति के श्रद्धालु को भी यहाँ बहुत कुछ मिल सकता है। यदि यहाँ तक पहुँच सकना संभव न हो तो उत्तराखण्ड के उन प्रदेशों में जाकर आत्मविकास के लिए महत्वपूर्ण लाभ उठाया जा सकता है जो इस क्षेत्र के समीप पड़ते हैं, हरिद्वार, ऋषिकेश आदि बहुत ही उत्कृष्ट उदहारण हैं।
गुरुदेव इस क्षेत्र की दिव्यता का वर्णन करते हुए बताते हैं कि समस्त सतोगुण एकत्रित होकर हमारी अन्तरात्मा में प्रवेश कर रहे हैं । मन की एकाग्रता और बुद्धि मे स्थिरता उत्पन्न हो रही है, आध्यात्मिक अभिरुचि, पापों से घृणा, ईश्वरीय निष्ठा, आत्मपरायणता एवं भक्ति-भावना की हिलोरें अनायास ही हदय में उठने लगती है। अपने चारों ओर सत्यं, शिवं, सुंदरम की झाँकी दृष्टिगोचर होने लगती है । प्राकृतिक सौन्दर्य का अटूट भण्डार दिखाई पड़ता है। इस शोभा को लेखनी तथा वाणी से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता, यह तो केवल अनुभव करने की चीज़ है।
हमारे पुरातन ग्रंथों में इस वातावरण की झांकी नीचे लिखी पंक्तियों के माध्यम से दर्शित की गयी है :
“यह स्थान देवताओं द्वारा सेवनीय, परम दुर्लभ और महान् पुण्यप्रद है। केवल पुण्यात्मा लोग ही इसका अवलोकन कर सकते हैं। हे नारद ! यह स्थान केवल इन्द्रियों को सुख प्रदान करने वाला ही नहीं,बल्कि समस्त महान तीर्थों का शिरोमणि है। दिन मे चांदी के प्रकाश वाले और सायं में सुवर्ण के प्रकाश वाले दिव्य पर्वत शिखरों से चित्त को अत्यन्त सकून प्राप्त होता है। मनुष्य सन्देहप्रस्त होकर सोचता है कि क्या यह सोने का पर्वत है या चांदी का पर्वत है। प्रातः और सायंकाल में जब सूर्य पीत और रक्त वर्ण होता है तो उसकी आभा के प्रतिबिम्ब से हिमाछादित शिखर सूर्य के रंग के तथा अपनी स्थिति और विशेषताओं के कारण विविधि रंगों के दिखाई पड़ते हैं। इन्द्रधनुष की झांकी जगह-जगह होती है। इस दृश्य को देखकर उस सौन्दर्य समुद्र में मनुष्य अपने को खोया-खोया सा अनुभव’ करता है। सौन्दर्य ब्रह्म का ही स्वरूप है। प्रकृति स्वयं सुन्दर नहीं है वह ब्रह्म के प्रकाश से ही सौन्दर्यवान होती है। ब्रह्म-सौन्दर्य से सम्पन्न ऐसे पुण्य स्थानों में ब्रह्मवित लोग भावाविष्ट होकर स्वयमेव ब्रह्म समाधि को प्राप्त हो जाते हैं। जिस आत्म स्थिति को प्राप्त करने के लिए बहुत समय तक साधना करने के उपरान्त सफलता मिलती है, यह इस वातावरण में प्रवेश करने पर कुछ समय के लिये अनायास ही उपलब्ध होती है।”
इन विशेषताओं को देखते हुए यदि इस देवभूमि में नन्दनवन के समीप ही ऋषियों तथा देवताओं ने “तपोवन” को तप साधना के लिए अपना उपयुक्त स्थान चुना था तो उनका यह निर्णय उचित ही था। आज मनुष्यों की शारीरिक और मानसिक स्थिति वहाँ निवास करने योग्य नहीं है। पूर्वकाल की भांति अब वहां वृक्ष तथा जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक साधन भी नहीं रहे हैं, लेकिन फिर भी पुण्य प्रदेश के दर्शन करके अपने भाग्य को धन्य बना सकना अभी भी मनुष्य की सामर्थ्य के भीतर है। हम में से कई ऐसे साहसीजन होंगें, जिनका स्वास्थ्य ठीक स्थिति में है, वोह आवश्यक उपकरणों के सहारे यहाँ तक पहुंच सकते हैं।
भगवान् शिव का निवास उत्तराखंड यां तिब्बत ?
कैलाशवासी शंकर की जटाओं से गंगा प्रवाहित होती है। इसकी संगति तिब्बत में स्थित केलाश पर्वत से नहीं मिलती क्योंकि वहाँ से गंगा का गोमुख तक आना भौगोलिक स्थिति के कारण किसी प्रकार संभव नहीं है। गंगोत्री से जेलूखागा होकर कैलाश करीब 200 मील है। फिर बीच कई आड़े पहाड़ आते हैं जिनके कारण भी जलधारा या हिमधारा यहाँ तक नहीं आ सकती। असली शिवलोक उत्तराखंड स्थित धरती के स्वर्ग में ही हो सकता है। गंगा ग्लेशियर शिवलिंग शिखर के समीप है। स्वर्गगंगा भी वहीं है। गौरी सरोवर भी वहीँ मौजूद है। इस प्रकार गंगा धारण करने वाले शिव का कैलाश यह हिमालय का ह्रदय ही हो सकता है। यदि प्राचीन कैलाश यहाँ न रहा होता तो भागीरथ जी यहीं पर तपस्या क्यों करते ? वह तिब्बत वाले कैलाश पर ही शिव के समीप क्यों न जाते ? इस पुण्य प्रदेश में शिवलिंग शिखर, केदार शिखर और नीलकण्ठ शिखर स्थित हैं, यह तीनों ही शिवजी के निवास है। मानसरोवर (तिब्बत वाले से अलग) का भी इस देवभूमि में होना स्वाभाविक है। सुरालय हिमधारा, सतोपंथ हिमधारा तथा वरुण वन नामों से भी इसी प्रदेश का देवभूमि होना सिद्ध है। इन सब बातों पर विचार करने पर निष्कर्ष तो यही निकलता है कि कैलाश और मानसरोवर इसी प्रदेश में स्थित हैं । तिब्बत प्रदेश का कैलाश अब विदेशी प्रतिबंधों के कारण यात्रा की दृष्टि से असुविधाजनक हो रहा है। दूरी भी बहुत है। उस प्रदेश में भारतीय वातावरण भी नहीं है,न अपनी भाषा न संस्कृति । वहां जाकर विदेश सा अनुभव होता है। जिस समय भारत की संस्कृति का वहाँ पर विस्तार रहा था उस समय वह तीर्थ भी उपयुक्त रहा होगा। यह बातें 1960s की हैं लेकिन अब शीघ्र ही कैलाश मानसरोवर यात्रा पिथौरागढ़ के रास्ते संपन्न की जा सकेगी। भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री आद. नितिन गडकरी ने घोषणा की है कि दिसंबर 2023 में यह रूट पूरा बन जाएगा और 2024 में आरम्भ हो जायेगा।
भगवान् शिव का वास्तविक निवास :
कैलाश के बारे में गुरुदेव लिखते हैं कि चाहे जो कुछ भी हो शिव का वास्तविक निवास, गंगा का वास्तविक उद्गम और आध्यात्मिक मानसरोवर का दर्शन करना हो तो हमें उत्तराखंड स्थित हिमालय के ह्रदय, धरती के स्वर्ग में “असली कैलाश” की खोज करनी पड़ेगी । परीक्षा के लिए कोई व्यक्ति तिब्बत वाले कैलाश और इस हिमालय के ह्रदय वाले कैलाश की यात्रा करके देखे तो वह स्वयं अनुभव करेगा कि “धरती का स्वर्ग” कहाए जाने वाला कैलाश कितना शान्तिप्रद एवं कितने दिव्य वातावरण से परिपूर्ण है।
इस लेख के साथ ही “हिमालय का ह्रदय-धरती का स्वर्ग” वाली वर्तमान दिव्य लेख शृंखला का समापन होता है।
कल शुक्रवार को प्रकाशित होने वाली वीडियो उन सभी साथिओं के लिए एक अद्भुत जानकारी लेकर आ रही है जो युगतीर्थ शांतिकुंज का तीर्थसेवन कर चुके हैं यां करने का मन बना रहे हैं।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज चंद्रेश जी, मंजू जी और सुजाता जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)चंद्रेश बहादुर-39 (2 )सुमनलता-28 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव- 31 ,(4) सुजाता उपाध्याय- 36 ,(5 )मंजू मिश्रा-40 ,(6 ) संध्या कुमार-31,(7 ) नीरा त्रिखा-25 ,(8 )सरविन्द पाल-26,(9 ) अरुण वर्मा-32(तीन अलग अलग कमैंट्स का योग) सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।