11 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
गणेश जी को समर्पित,बुधवार का ज्ञानप्रसाद समेरु शिखर क्षेत्र की संक्षिप्त जानकारी दे रहा है। यह क्षेत्र चप्पे चप्पे पर दिव्यता से भरा पड़ा है, इस क्षेत्र में पहुंच पाना किसी सौभाग्य से कम नहीं है।
हमारा सदैव प्रयास रहता है कि प्रत्येक ज्ञानप्रसाद लेख इतना रोचक एवं ज्ञानवर्धक हो कि अगर पाठक उसे एक बार पढ़ना आरम्भ कर दे तो बिना रुके, किसी ब्रेक के, समाप्त करके ही सांस ले। ऐसा प्रयास इसलिए किया जाता है कि अगर लेख रोचक होगा, तभी पाठक अपने ह्रदय को खोल कर कमेंट की शक्ल में अपनी भावना व्यक्त करेगा। एक बार व्यक्त की गयी भावना किसी दूसरे के ह्रदय को छू गयी तो बस काउंटर कमेंट की प्रक्रिया को आरम्भ होने से कोई नहीं रोक सकता। This is the crux of unique comment- counter process. यही कारण है कि हम अनेकों प्रकार की वीडियो क्लिप्स, फोटोज़ और घटनाएं शामिल करते रहते हैं।
परम पूज्य गुरुदेव के समय में इस हिमालय क्षेत्र -धरती के स्वर्ग क्षेत्र में आवागमन के क्या साधन थे वह तो गुरुदेव बता ही रहे हैं लेकिन उसके बाद के वर्षों में क्या कुछ प्रगति हुई, कैसे यह यात्रायें सुगम हुईं,उन्हें भी हम देख रहे हैं। मनुष्य ने प्रकृति के साथ, वातावरण/पर्यावरण के साथ, प्रगति के नाम पर क्या-क्या खिलवाड़ किये, सोच कर ही मस्तक शर्म से झुक जाता है। हिमालय क्षेत्र के स्वर्गीय ग्लेशियर, यह स्वर्गीय हिमशिखर अपने सीने में कौन-कौन से घाव लिए हुए हैं हम सब जानते हैं। 2018 में देवप्रयाग की दिव्य यात्रा में हमने स्वयं देखा था कि विकास के नाम पर प्राकृतिक सम्पदा का किस प्रकार सर्वनाश किया जा रहा है। हमारी कार निर्माणाधीन हाईवे पर च्यूंटी की स्पीड से , धूल भरे वातावरण में तो रेंग ही रही थी लेकिन दाएं बाएं पर्वतों और उन पर अमूल्य जड़ी बूटियां और वृक्षों की कटाई देखकर ह्रदय कांप सा उठा था।
इसी स्थिति पर एक मार्मिक लेख तैयार कर रहे हैं- इन लेखों के अंत में प्रकाशित करने की योजना है।
परम पूज्य गुरुदेव इन लेखों में “क्षेत्र की जानकारी” को प्राथमिकता दे रहे हैं और व्यक्तिगत अनुभवों को अपनी अन्य रचनाओं -हमारी वसीयत और विरासत, सुनसान के सहचर, चेतना की शिखर यात्रा आदि- के लिए सुरक्षित रख रहे हैं।
हिमालय के जिस क्षेत्र में हम आज विचरण कर रहे हैं वहां नीचे की भूमि से सुमेरु के दर्शन नहीं हो सकते हैं। किसी शिखर से दर्शन तो हो सकते हैं लेकिन इतना ऊपर चढ़ सकना सम्भव नहीं। चिकनी बर्फ और सीधी चढ़ाई होने के कारण बिना विशेष उपकरणों की सहायता के यहाँ के किसी शिखर की चोटी पर केवल पैरों के बलबूते चढ़ना बहुत ही कठिन प्रतीत होता है । इसलिए सुमेरु के दर्शन के लिए गंगा ग्लेशियर से ही आगे बढ़ना होता है और घने बर्फानी वन में ही यात्रा करनी पड़ती है। इस यात्रा के बाद ही सुमेरु के दर्शन भली प्रकार होते हैं। वरुण वन में मिट्टी भी है, वहाँ रिसाव होने के कारण पानी में नमी रहती है। इस क्षेत्र में नन्दनवन जैसी वनस्पतियां भी हैं। इससे आगे का मार्ग जाने योग्य नहीं है । चौखम्बा शिखर हिमालय क्षेत्र का वोह शिखर है जहाँ कभी पांडवों ने स्वर्गारोहण किया था, चारों शिखर दिखाई तो देते हैं लेकिन आगे जाना संभव नहीं है, इससे आगे का मार्ग बाधित है, forbidden है। यहाँ से ऊँचाई के साथ-साथ मार्ग की दुर्गमता भी अकथनीय होती है। इसलिए धरती का स्वर्ग देखने की आकांक्षा वालों को इतने से ही सन्तोष करके वापिस लौटना पड़ता है। पांडवों के स्वर्गारोहण यानि स्वर्गगमन की कथा बहुत ही रोचक है, इस रोचक कथा को किसी अन्य ज्ञानप्रसाद लेख के लिए सुरक्षित रखना ही उचित रहेगा।
अग्निपुराण के अनुसार शिवजी ने ताण्डव नृत्य यहीं किया था। जब यह दुनिया पापों के भार से डूब रही थी और प्राणियों के लिए इस धरती पर शान्तिपूर्वक रहना कठिन हो गया था तो उन्होंने अपना डमरू और त्रिशुल उठा कर थिरकना आरम्भ कर दिया था। उस ताण्डव नृत्य से प्रलय उत्पन्न हो गई, दशों दिशाओं में प्रचण्ड अग्नि ज्वालाएँ उठने लगीं एवं वह सब उपलब्धियां जिन पर यह पापी मानव इतराता फिरता था देखते ही देखते क्षणभर मे नष्ट हो गयीं ।
Archeologists ने मानव जाति की उत्पति मेरु पर्वत पर मानी है। ऑदम-हव्या ( Adam and Eve) का स्वर्ग से पृथ्वी पर आना भी इसी स्थान पर कहा जाता है।मात्र 16 वर्ष के जीवन का वरदान प्राप्त करने वाले मारकण्डेय ऋषि को बालक के रूप में दर्शन होने की घटना भी इसी स्थान से सम्बन्धित बनाई जाती है।
इन सब विशेषताओं के कारण प्राचीनता के प्रति प्रेम रखने वाले किसी भावुक हृदय व्यक्ति के लिए ऐसा स्थान एक प्रकार की विशेष भावनाओं का विस्तार करने वाला बन सकता है।
गुरुदेव कहते हैं: इस भूमि के कण-कण मे से मेरे अतीत की अनेकों महत्वपूर्ण घटनाएँ अपने सत्स्वरूप को प्रकट करती हुई अन्तःकरण को भावनाओं से ओत-प्रोत-कर रही हैं। पुराणों मे पढ़ा था कि सिद्ध योगी, सद्गुरु अभी भी हैं लेकिन कलियुग के प्रभाव से हिमालय के किसी गुप्त स्थान पर अदृश्य रूप में रहते हैं। गुरुगीता में ऐसे सद्गुरुओं का वर्णन आता है जो साधक के ज्ञानचक्षु खोल कर उसका अज्ञान एवं अन्धकार दूर कर देते है। ऐसे गुरु स्वयं त्रिमूर्ति और परब्रह्म स्वरूप हैं, अजर-अमर हैं लेकिन अब युगप्रभाव के कारण दिखाई नहीं दे पड़ते।
लिंग पुराण के सांतवें अध्याय में इन सद्गुरुओं का वर्णन है और उनका निवास हिमालय के सुमेरु पर्वत पर ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत के 12वें स्कन्ध के दूसरे अध्याय के 37वें श्लोक में इन सिद्ध पुरुषों का निवास स्थान कलाप ग्राम में बताया गया है। 7500 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित गढ़वाल डिस्ट्रिक्ट के इस ग्राम के विषय पर, जिसे Forgotten Village की संज्ञा दी जा चुकी है,कुछ समय पूर्व हमने बहुत ही सुन्दर चित्रों से सजाकर कुछ लेख लिखे थे जो हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध है। उन्ही में से एक लेख का लिंक जिसका शीर्षक कलाप ग्राम जहाँ काया न पहुँच पाए यहाँ देना उचित समझते हैं।
श्रीमद्भागवत के ही 10वें स्कन्ध के अध्याय 57 के श्लोक 5 ,6 और 7 में भी ऐसा वर्णन है और महाभारत में भी कलाप ग्राम में सिद्ध पुरुषों के निवास का वर्णन है।
पिछले कई लेखों से एवं आज के लेख में हम इसी तथ्य को प्रमाणित करने का प्रयास कर रहे हैं कि हिमालय के जिस क्षेत्र की हम चर्चा कर रहे हैं कि “यह सिद्ध भूमि यहीं है।” जिन सिद्ध अदृश्य आत्माओं का इस क्षेत्र में वास है, उनके दर्शन मानवी चर्मचक्षुओँ से कर सकना तो किसी किसी विरले का ही सौभाग्य हो सकता है लेकिन दर्शन न होने के बावजूद इस पुण्य प्रदेश मे ऐसा अनुभव अवश्य होता है कि जिस क्षेत्र में प्राचीनकाल में इतनी उच्च आत्माएँ वास् करती रही हैं वह आज भी उस पूर्वकालीन प्रभाव से अछूती नहीं है। यह दिव्य प्रभाव कभी-कभी, किसी-किसी को हो ही जाता है। अश्रद्धालु और अविश्वासी मनुष्य अपनी आस्तिकता को साबित करने के लिए यहाँ अनेकों प्रकार के अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। इस क्षेत्र की विशेषता है कि श्रद्धा, शांति,वैराग्य और विवेक की भावनाएं automatically ही अंतःकरण में उठने लगती हैं और
“ऐसा अनुभव होता है मानो यहाँ बिखरी हुई कोई अदृश्य दिव्य शक्तियां इन भावनाओं को अपनी करुणा,दया और प्रगति का विश्वास दिलाने के लिए प्रसाद के रूप में मिलती रहती हैं।”
गुरुदेव बताते हैं कि धरती के स्वर्ग प्रदेश का यह एक छोटा सा भाग है। मुख्य केंद्र स्थान- सुमेरु के केवल दर्शन ही किये गए लेकिन जितने क्षेत्र में प्रवेश किया गया, जो कुछ देखा गया वह भी अपनी तुच्छता और साधनहीनता को देखते हुए कम सौभाग्य की बात नहीं है। दुसरे लोगों को यहाँ पहुँचने पर कैसा अनुभव होता होगा कह सकना कठिन है लेकिन अपने को पूरी अनुभूति के साथ देवभूमि का अनुभव हुआ। हमें ऐसा अनुभव हुआ कि यहाँ की प्रत्येक वस्तु अपने अंदर देवत्व को धारण किये हुए है और इनमें से आत्मसन्देश देने वाली दिव्य किरणें प्रचंड वेग से उद्भूत हो रही हैं।
उत्तराखंड क्षेत्र में फैले हुए शिखरों की ऊंचाई और गहनता का अनुमान लगाने के लिए कुछ स्थानों की समुद्रतल से ऊंचाई का निम्नलिखित विवरण देना उचित रहेगा।
ऋषिकेश-2000 फुट, गंगोत्री-10000 फुट, गोमुख-12770 फुट, नंदनवन-14230 फुट,भागीरथ पर्वत-22495 फुट, मेरु पर्वत-21850 फुट, सतोपथ शिखर- 23213 फुट ,केदारनाथ शिखर-22770 फुट, सुमेरु-20700 फुट, स्वर्गारोहण शिखर-23880,चंद्र पर्वत-22073 फुट, नीलकंठ पर्वत-21940 फुट।
इतने ऊँचे पर्वतों और शिखरों पर पहुंच सकना अत्यंत उच्कोटि के साधनों से सम्पन्न लाखों रुपया खर्च करने वाले पर्वतारोही दलों का ही काम है। केवल शारीरिक बल और पूरे साधन सामग्री के आधार पर ही वरुण वन तक पहुँच पाना संभव है। यहाँ पहुंचने से धरती के स्वर्ग के प्रायः समी प्रमुख दिव्य स्थानों के दर्शन हो सकते हैं।
इस पुण्य प्रदेश में पहुंचने पर किसी भौतिक दृष्टिकोण के व्यक्ति का मन कह सकता है कि कुछ- कुछ प्राकृतिक सौंदर्य दृष्टिगोचर हैं ,परन्तु जिसके ह्रदय में श्रद्धा है उसके लिए उस श्रद्धा-भावना को जागृत और विकसित करने के लिए बहुत कुछ है। अंतःकरण के सात्विक तथ्य यहाँ के दिव्य वातावरण में बड़ी तीव्र गति से विकसित होते हैं और उसे लगता है कि पृथ्वी के समस्त सतोगुण एकत्रित होकर उसकी अंतरात्मा में प्रवेश कर रहे हैं।
आज के इस दिव्य लेख का समापन पर्वतारोहियों के निम्नलिखित उदाहरण से करते हैं :
एवरेस्ट शिखर पर चढ़ने के लिए भारत सरकार की सहायता से 13 व्यक्तियों का एक दल गया था जिसे 18 टन (लगभग 16000 किलोग्राम ) आवश्यक उपकरण अपने साथ ले जाने पड़े और इस सामान को ढोने के लिए 650 कुली तथा मार्ग बनाने के लिये 52 शेरपा साथ गये थे। लाखों रूपया खर्च हुआ था। अन्य पर्वतरोही दलों को भी ऐसी ही व्यवस्था करनी पड़ती है। केदार शिखर पर स्विट्ज़रलैंड और हंगरी के दल चढ़ाई कर भी चुके हैं।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सुजाता जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)विदुषी बंता-26(2 )सुमनलता-29 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव- 38 ,(4) सुजाता उपाध्याय-54 ,(5 )मंजू मिश्रा-45 ,(6 ) संध्या कुमार-33 ,(7 ) नीरा त्रिखा-33,(8 )पुष्पा सिंह-26 ,(9) सरविन्द पाल-34,(10) अरुण वर्मा-31,
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।