9 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में प्रस्तुत किये जा रहे ज्ञानप्रसाद लेख, वीडियोस एवं अन्य पुरषार्थ इतने रोचक और लोकप्रिय होते जा रहे हैं कि हमें आभास ही नहीं रहता कि कब सप्ताह का शुभारम्भ सोमवार आ गया और कब सप्ताह का अंत हो गया। हमें पूर्ण विश्वास है कि परम पूज्य गुरुदेव की अदृश्य शक्ति ही इस अद्भुत ज्ञानरथ को चलाए जा रही है। जिस ऊर्जा से वर्तमान लेखनकार्य सम्पन्न हो रहा है, ऐसी ऊर्जा अपने जीवन भर के academic career में कभी भी न देखी गयी, इस अनुदान की लिए गुरुदेव का जितना भी धन्यवाद करें, कम ही रहेगा। उन दिनों तो एक set routine होती थी, उसी के अंतर्गत कार्य किया जाता था, लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि सारा दिन, सारी रात भी अगर लेखनकार्य, गुरु साहित्य की रिसर्च करते रहें तो भी तृष्णा अतृप्त ही होती जाती है, ऊर्जा बढ़ती ही जाती है। क्या अद्भुत अनुभव है !!! वैसे तो हमारे सभी साथी हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए कामना करते रहते हैं, हम उनका ह्रदय से धन्यवाद करते हैं, हम भी गुरुदेव से व्यक्तिगत निवेदन करते हैं कि हमें अंतिम सांस तक ऐसा ही अनुदान प्रदान करते रहना ताकि हम गुरुकार्य करते करते ही अंतिम सांस ले पाएं ।
आज सोमवार है, सप्ताह का प्रथम दिन, ऊर्जा से भरपूर, आशा से भरपूर, उत्सुकता से भरपूर ऐसा दिन है जिस पर आने वाले सप्ताह की ऊर्जा, सुफुर्ति, प्रसन्नता, दिव्यता आधारित है
आज के लेख का शुभारम्भ हम वहीँ से कर रहे हैं जहाँ पिछले सप्ताह छोड़ा था। पिछले सभी लेखों की भांति इस भाग को समझने के लिए भी हमने कई tools संलग्न किए हैं। एक तो बहुत ही क्लियर HD वीडियो शामिल की है जिसमें गोमुख क्षेत्र की दिव्य जानकारी दी जा रही है । इस 34 मिंट की वीडियो को हमने तो आज ही दो बार देख लिया है, आशा करते हैं कि आप लेख के साथ ही इस वीडियो को देख लें तो उचित होगा, बाद में बात आयी गयी हो जाती है।मात्र 11 माह पूर्व प्रकाशित हुई इस वीडियो को लगभग 3 लाख दर्शक देख चुके हैं। वीडियो के इलावा तीन पिक्चर्स संलग्न की हैं, एक में मैप का वोह भाग दिखाया गया है जहाँ हम इस समय चल रहे हैं, लाल बॉर्डर से उस क्षेत्र को stand out करने का प्रयास किया है, और दूसरी पिक्चर में इस क्षेत्र के विभिन्न स्थानों की दूरी दर्शाई गयी है और तीसरी पिक्चर गंगा तालाब की है।
हमारे साथी अनुभव कर रहे होंगें कि जब भी लेख में कुछ additional कंटेंट होता है तो हम लेख की शब्द संख्या कम कर देते हैं। ऐसा करने का उद्देश्य मात्र यही होता है कि उसी सीमित समय में हमारे साथी भलीभांति हमारे द्वारा किये गए प्रयासों का अमृतपान कर सकें। हमारा विश्वास है कि आज आपको सामान्य से अधिक समयदान करना होगा क्योंकि कंटेंट की रोचकता के साथ कोई भी compromise करना गुरुआदेश के विरुद्ध होगा।
तो आइए चलते हैं गुरुचरणों की ओर, ज्ञानरथ गुरुकुल की आज की पाठशाला में।
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इस सारे प्रदेश में कोई सड़क या पगडंडी नही है। जानकार मार्गदर्शक कुछ पहचाने हुए वृक्षों, पत्थरों, शिखरों तथा दृश्यों के आधार पर चलते हैं और यात्री को गोमुख तक ले पहुँचते हैं। रास्ते में कई स्थान ऐसे है जहाँ थोड़ी भी चूक होने पर जीवन का अन्त ही हो सकता है।
परम पूज्य गुरुदेव के साथ आजकल हम उन स्थानों की यात्रा कर रहे हैं जहां चलने और चढ़ने में कितनी कठिनाइयाँ हैं इनका वर्णन न करते हुए यही कहना उचित है कि
इस प्रदेश मे प्रवेश करने पर मनुष्य थकान और कष्टों को भूलकर एक अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव करता है। प्रकृति माता की इस सुहावनी गोद को जब वह कोलाहल से भरे हुए नगरों और महानगरों से तुलना करता है तो वह सच में अपनेआप को नरक से निकल कर एक स्वर्गीय वातावरण में निमग्न पाता है।
भागीरथी का उद्गम दर्शक को एक आध्यात्मिक आनंद में विभोर कर देता है। यदि गंगा को एक नदी मात्र माना जाय तो भी उसके इस उद्गम का प्राकृतिक सौन्दर्य इतना सुशोभित है कि कोई “सौन्दर्य पारखी” इस दृश्य पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता। यहाँ यदि गंगा को एक “आध्यात्मिक धारा” माना जाए तो उसके उद्गम स्थल में यह “अध्यात्म तत्व” बहुत ही प्रबल वेग से निकलता है। कोई भी “श्रद्धालु ह्रदय” यहाँ यह प्रतक्ष्य अनुभव कर सकता है कि कोई दिव्य “अध्यात्म पदार्थ” उसके अन्तःकरण के कण-कण को एक दिव्य आनंद प्रदान करा रहा है।
गंगा चाहे कहीं पर ही बहती हो परन्तु उसके अध्यात्म और पूर्ण निर्मलता का आभास गोमुख में ही होता है।
www.ridinghistory.com के अनुसार 1972 में मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री, शिवसागर रामगुलाम, यहाँ से गंगाजल लेकर गए थे, जिसे मॉरीशस की ज्वालामुखीय झील Grand Bassin of Mauritius में मिलाया गया, जिसे “गंगातलाब” कहा जाता है। गंगा तलाब एक हिन्दू तीर्थस्थल है। गंगा की आध्यात्मिकता को दर्शाता यह एक अद्भुत उदहारण है।
परम पूज्य गुरुदेव की रचना “महापुरषों के अविस्मरणीय जीवन प्रसंग-2” में रामगुलाम जी पर पूरा लेख उपलब्ध है। इस पुस्तक के अनुसार यह वही रामगुलाम हैं जिनके बिहार स्थित गांव में कोई पाठशाला नहीं थी अतः वे रोज कई मील पैदल चलकर दूसरे गाँव की पाठशाला में पढ़ने जाया करते थे । एक दिन उनके अध्यापक ने उनसे पूछा- “शिब्बू ! तुम रोज़ इतना पैदल चलकर पढ़ने आते हो क्या तुम्हें कष्ट नहीं होता ?” बालक शिब्बू ने उत्तर दिया, “कष्ट क्यों होगा, मैं पढ़ लिखकर गवर्नर बनना चाहता हूँ और कुछ बनने के लिये कष्ट तो सहना ही पड़ता है।” उनकी यह बात सुनकर सभी सहपाठी खिल-खिलाकर हँस पड़े और कहने लगे “रहते हैं झोंपड़े में और ख्वाब देखते हैं महलों के।” उनकी संकल्प शक्ति ने उन्हें चीफ मिनिस्टर, प्राइम मिनिस्टर और गवर्नर जनरल के उच्च पदों पर सुशोभित करा दिया।
2013 में उत्तराखंड में बादल फटने से ग्लेशियर पर बड़ी-बड़ी दरारें आ गई थीं । 26 जुलाई 2016 को उत्तराखंड में भारी बारिश के बाद यह बताया गया कि गोमुख का अगला सिरा अब नहीं रहा क्योंकि ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा ढहकर बह गया था।
हमने बहुत प्रयास किया कि अपने पाठकों के लिए इस तथ्य को प्रस्तुत करें कि गोमुख का अगला सिरा नहीं रहा। इंटरनेट पर बहुत प्रकार की न्यूज़ items, articles और वीडियोस उपलब्ध हैं जिन्हें summarise करने से बेहतर यही होगा कि पाठकों को प्रोत्साहित किया जाए कि वह स्वयं अपनी रूचि के अनुसार स्वयं जानकरी प्राप्त करें। गंगोत्री ग्लेशियर दो शताब्दियों में 3 किलोमीटर कम हो गया है। अगर इसी स्पीड से कम होता रहा और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के प्रयास न किये गए तो इस प्राकृतिक सम्पदा का नाश निश्चित है। कुछ ही वर्ष पूर्व जहाँ इस क्षेत्र में केवल इक्का दुक्का कारें दिखाई देती थीं आज कल बसों और पर्यटकों की भीड़ लगी हुई है। आजकल तो देहरादून से हरसिल तक हेलीकाप्टर सर्विस भी उपलब्ध है। हरसिल से गंगोत्री पहुंचने के लिए सबसे सरल मार्ग टैक्सी ही है जो 27 मिनट की यात्रा है। यह सारा विकास तीर्थयात्रा एवं पर्यटन को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से ही तो किया जा रहा है लेकिन प्राकृतिक सम्पदा का हो रहा विनाश भी तो एक बहुत ही चिंता का विषय है।
आज के लेख के साथ संलग्न वीडियो को देखकर,बार-बार एक ही प्रश्न मन में उठता जाता है कि गुरुदेव ने इन दुर्गम रास्तों की यात्राएं कैसे की होंगीं? 1927 में लगभग 100 वर्ष पूर्व गुरुदेव प्रथम यात्रा के लिए हिमालय गए थे, उन दिनों तो कोई साधन भी नहीं थे। तो हर बार एक ही उत्तर मिला: गुरुदेव कोई साधारण पुरुष तो थे नहीं,उनके लिए कोई भी बात कठिन और असंभव कैसे हो सकती है, गुरुदेव ने अनेकों बार वर्णन किया है कि मार्गदर्शक सत्ता ही उन्हें उड़ा कर ले जाती थी। परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं कि यात्रा अभियानों में बहुधा लेखक अपने व्यक्तिगत प्रसंगों की चर्चा अधिक करते हैं जिससे आत्मश्लाघा बहुत रहती है। हमें वैसा कुछ भी न करके वहां की परिस्थितियों का अधिक से अधिक वर्णन करना है ताकि अधिक से अधिक जानकारी सार्वजानिक हो सके। जिन परिजनों ने गुरुदेव की masterpiece पुस्तकें- हमारी वसीयत और विरासत, सुनसान के सहचर, चेतना की शिखर यात्रा,अनेकों अखंड ज्योति अंकों आदि का अध्यन किया है अवश्य जानते होंगें कि पूज्यवर ने अपने बारे में कितना ही कम लिखा है और और हिमालय क्षेत्र की बारीकियों का कैसे वर्णन किया है।
भोजवासा के मार्ग में कोई विश्राम स्थल नहीं है। जहाँ-तहाँ बड़े-बड़े पत्थर बाहर निकले हुए हैं उनके नीचे सुस्ताया जा सकता है।आजकल तो भोजवासा में लालबाबा आश्रम बना हुआ है, वीडियो में भी इस आश्रम का वर्णन है। अगर कोई चाहे कि मैं गोमुख पर कुछ देर विश्राम या ध्यान भजन कर लूं तो संभव नहीं है क्योंकि उसे तुरन्त लौटने को चिन्ता पड़ी रहती है। ऋतु की चिंताभी स्वाभाविक है, रात हो जाय, वर्षा होने लगे, तूफ़ान आ जाये, तब तो मार्ग मिलना भी कठिन हो सकता है। इसलिए मन मार कर वापिस ही लौटना पड़ता है।
गुरुदेव बताते हैं कि कुछ दिन पूर्व गंगा के उस पार एक उदासीन बाबा रहते थे, उनका शरीर शान्त हो जाने से वह कुटिया भी अस्तव्यस्त हो रही है। मन में विचार उठा कि यहाँ छोटी धर्मशाला होती तो चीड़वासा की तरह यहाँ भी लोग ठहरते और एक दिन में इतना लंबा चलने की आपत्ति से भयभीत होकर इस पुण्य भूमि का कुछ समय के लिए लाभ उठाते । स्थान की आवश्यकता मन को खींचती रही। संकल्प ने कहा यह कुछ असम्भव नहीं है। यहाँ इस गंगा के उद्गम गोमुख पर एक छोटी धर्मशाला बन सकती है शीघ्र ही बनेगी भी।
गोमुख तक यात्रियों का आना सम्भव होता है, उससे ऊपर घोर हिमालय-प्रारम्भ हो जाता है। यहाँ जाने का न कोई मार्ग है और न प्रयोजन। “हिमालय का हृदय” यहीं से प्रारम्भ होता है। इसमें प्रवेश कर हमें तपोवन तक जाना था, समीप ही नन्दनवन है। वहाँ पहुँचकर अपना प्रयोजन पूर्ण हुआ । जितना ठहरना था, ठहरा गया, जो करना था किया गया, जो कहना था कहा गया, जो सुनना था सुना गया । इससे सर्वसाधारण को कोई मतलब नहीं है। इन व्यक्तिगत बातों की चर्चा भी अप्रासंगिक होगी।
इसके आगे का रोचक वृतांत जानने के लिए हमें कल तक की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज फिर रेणु जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)चंद्रेश बहादुर-42,(2 )सुमनलता-33,(3 )रेणु श्रीवास्तव- 57,(4 )सरविन्द पाल-35,(5) सुजाता उपाध्याय-30,(6 )मंजू मिश्रा-37 ,(7 )अरुण वर्मा-25 ,(8) संध्या कुमार-36,(9) वंदना कुमार-28,(10)कुमोदनी गौराहा-24,(11)नीरा त्रिखा-25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


