5 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज गुरुवार है, हमारे परम पूज्य गुरुदेव का दिन, आदरणीय सुमनलता बहिन जी ने इस दिन के ज्ञानप्रसाद के साथ परम पूज्य गुरुदेव से सम्बंधित प्रज्ञा गीत अटैच करने का सुझाव दिया था। बहुत ही सुन्दर सुझाव है, जिसका पालन करना हमारा परम सौभाग्य एवं कर्तव्य है। इसीलिए हम बार-बार लिखते आ रहे हैं कि यह ज्ञानरथ अनेकों प्रतिभाशाली साथिओं के निस्वार्थ पुरुषार्थ से ही गतिशील हुआ जा रहा है।
कल प्रकाशित होने वाली वीडियो “मातृ सत्ता का जीवन दर्शन” कुछ दिन पूर्व शांतिकुंज से रिलीज़ की गयी थी। रेणु श्रीवास्तव, कुमोदनी गौराहा,पूनम जी आदि तो इस वीडियो को पहले ही न केवल देख चुके हैं, कमेंट भी किए हुए हैं। इसके बावजूद अनेकों ऐसे होंगें जो इस दिव्य वीडियो को देखने से वंचित रह गए होंगें। इसी धारणा से ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से यह वीडियो प्रकाशित करना उचित लगता है।
आज का ज्ञानप्रसाद गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र पर आधारित है। पिछले कई लेखों से हम देख रहे हैं कि धरती के स्वर्ग की यात्रा कितनी आध्यात्मिक और रमणीय है। आज के ज्ञानप्रसाद में तो ब्रह्मा जी ने नारद जी के समक्ष इस क्षेत्र की उपमा करते हुए certify कर ही दिया कि यही “भूलोक का स्वर्ग है।”
अखंड ज्योति के जनवरी 1961 अंक में प्राचीन ग्रंथों और संस्कृत के श्लोकों को quote करते हुए ब्रह्मा जी और नारद जी के बीच हुए अति सुन्दर डायलाग हमें समझाने के लिए पर्याप्त हैं कि धरती का स्वर्ग यहीं पर है।
आज का लेख जिस अंक पर आधारित है उसके एक पृष्ठ का स्क्रीनशॉट संलग्न किया गया गया । ऐसा हमने इसलिए किया है कि पुरातन होने के कारण Scanned पन्नों के कंटेंट को पढ़ना बहुत ही कठिन है। अगर magnify करते हैं तो blurring हो जाती है और न करें तो पढ़ना कठिन है। Text copy तो उपलब्ध ही नहीं है। तो क्या किया जाए? आगे के लेख कैसे लिखे जायेंगें ? इन पन्नों को पढ़ना और वोह कंटेंट साथिओं के समक्ष प्रस्तुत करना, कठिन तो अवश्य ही है लेकिन असंभव नहीं है। हमें अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास है। उनके मार्गदर्शन में कुछ भी असंभव नहीं है। कठिनता के बावजूद हम युगनिर्माण योजना प्रेस मथुरा के कार्यकर्ताओं का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने 6 दशक प्राचीन कंटेंट को save करके रखा हुआ है। उन्होंने तो गुरुदेव का इससे भी पुराना साहित्य स्कैन करके हमें उपलब्ध कराया है। 2019 में जब हम इस प्रेस को विजिट कर रहे थे तो अनिल मिश्रा जी ने बताया था अभी तक हम परमपूज्य गुरुदेव का 30 % साहित्य भी ऑनलाइन उपलब्ध नहीं करवा सके।
गुरुदेव के साहित्य को सुरक्षित रखने में, pdf बनाने में, स्कैन करने में जी अभूतपूर्व प्रयास किया गया है /जा रहा है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है लेकिन कभी-कभी कोई छोटी मोटी त्रुटियां आ ही जाती हैं। इसी तरह की एक त्रुटि distance के सन्दर्भ में है। गंगोत्री से गोमुख की दूरी 18 मील बताई गयी है जबकि गूगल सर्च 18 किलोमीटर बता रही है। हमारे विचार में तो गूगल data को ही मानना चाहिए क्योंकि वोह आधुनिक है। इस छोटी सी त्रुटि के होते हुए भी कंटेंट की दिव्यता और महत्व में कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
इन्ही शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए आज के ज्ञानप्रसाद लेख का अमृतपान आरम्भ करते हैं : ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!
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अखंड ज्योति में इस विषय पर दिए गए संस्कृत श्लोकों को समझा तो जा सकता है लेकिन हमने उनका सरल हिंदी अनुवाद ही प्रस्तुत करना उचित समझा।
नारद जी भागीरथी नदी का उद्गम (origin) देखकर जब वापिस गये तो ब्रह्माजी ने उनकी बड़ी प्रशंसा की और कहा था :
हे नारद, तुम धन्य हो । तुमने गंगोत्री का सेवन किया तुम कृतकृत्य हो गये, तुम्हें बारबार धन्यवाद है । इस पुण्य तीर्थ की प्रशंसा करते हुए बहुत कुछ कहा गया है :
यह तपस्वियों के तप का स्थान है, मुनियों के मनन करने की भूमि है। भक्तों और विरक्तों के हृदय को आल्हादित करने वाला यह क्षेत्र है यहाँ साक्षात् परब्रह्म ही पृथ्वी पर गंगा के रूप में मनुष्यों को चारों पदार्थ देने के लिए जल रूप में बह रहे हैं । कहाँ यह गंगोत्री तीर्थ और कहाँ काशी, गया आदि तीर्थ। यह मध्याह काल के सूर्य के समान है, ऐसे सूर्य के प्रकाश का सामना कौन कर सकता है। इस क्षेत्र में पाप नहीं, दुराचार नहीं, कुटिलता नहीं, छल नहीं और साथ ही किसी प्रकार का दुःख भी नहीं है । हे नारद यह पवित्र पुण्य तीर्थ, भागीरथ का तप स्थान तीनों लोकों में प्रसिद्ध है, इसे तुम “भूलोक का स्वर्ग” ही समझो ।
गोमुख आजकल गंगोत्री से 18 किलोमीटर आगे है किन्तु प्राचीन काल में वह गंगोत्री में ही था । विशाल भागीरथ शिला वही है जिस पर बैठकर भागीरथ जी ने तप किया था । पार्वती के तप का स्थान गौरीकुण्ड है, गंगोत्री का यह स्थान बहुत ही भव्य है । शिवजी द्वारा अपनी जटाओं में गंगा को वहीं लिया बताते हैं । यहाँ जलधारा बहुत ऊँचे से बड़े कोलाहल के साथ गिरती है। इस पुण्य उद्गम का वर्णन करते हुए कहा गया है कि बर्फ के समूह आभूषणों और हीरे जवाहरात जैसे लगते हैं, गोमुख में गौ के मुख के सदृश बर्फ की महान गुफा से पुण्यवती गंगा जी भूलोक के निवासियों को पावन करने के लिए महान वेगवती होकर निकलती हैं ।
ऋतु विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रदेश अब धीरे-धीरे गरम होता जा रहा है। पहले जितनी बर्फ यहाँ पड़ती थी अब उतनी नहीं पड़ती। गंगा गलेशियर धीरे-धीरे पिघलता जा रहा है और अब गोमुख 18 किलोमीटर पीछे चला गया है। लगभग एक डेढ़ किलोमीटर तो अभी कुछ ही वर्षों में हटा है। इसलिए गंगा के उद्गम तक जाने वालों को अब 18 किलोमीटर ऊपर जाना पड़ता है ।
इस क्षेत्र को और अधिक समझने के लिए हमने एक वीडियो संलग्न की है जिसमें वरिष्ठ ट्रेक लीडर और स्लोप मैनेजर दुष्यंत शर्मा गोमुख-तपोवन ट्रेक के बारे में बता रहे हैं:
गौमुख-तपोवन ट्रेक की यात्रा भारतीय राज्य उत्तराखंड में गंगा नदी के origin तक एक चुनौतीपूर्ण और आध्यात्मिक यात्रा है। यह ट्रेक आपको गंगोत्री ग्लेशियर तक ले जाता है, जो हिमालय के “सबसे बड़े ग्लेशियरों” में से एक है, और अंततः गौमुख तक जाता है, जिसे “गाय का मुंह” भी कहा जाता है। इस ट्रेक को एक बहु-दिवसीय अभियान माना जाता है जो सुंदर अल्पाइन meadows के मैदानों, घने जंगलों और खड़ी चट्टानी इलाके से होकर गुजरता है। रास्ते में, ट्रेकर्स गौमुख-तपोवन से भी गुजरते हैं, जो एक उच्च ऊंचाई वाला अल्पाइन मैदान है, जो आसपास की चोटियों और ग्लेशियरों के शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। ट्रेक का मुख्य आकर्षण गोमुख ग्लेशियर तक पहुंचना है, जहां नदी एक बर्फ की गुफा से निकलती है। इसे हिंदुओं द्वारा एक पवित्र स्थान माना जाता है,ऐसी मान्यता है कि गोमुख में गंगा के पानी में डुबकी लगाने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष मिलता है । यह ट्रेक एक अत्यंत आध्यात्मिक यात्रा मानी जाती है और इसे भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। गोमुख-तपोवन ट्रेक प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व का एक आदर्श मिश्रण है, जो इसे एक अविस्मरणीय और अनोखा अनुभव बनाता है। हमने एक और वीडियो देखी जिसमें 2016 की भयानक वर्षा के कारण गोमुख दिखाई ही नहीं दे रहा था।
गंगोत्री से 6 किलोमीटर दूर चीड़ के वृक्षों का वन है, इसे चीड़वासा कहते हैं, वासा का अर्थ वन होता है, यहाँ किसी पुण्यआत्मा ने एक छोटी सी धर्मशाला बना दी है। इसमें प्रबंधक तो कोई नहीं रहता पर भोजन पकाने के लिए बर्तन पड़े रहते है। जो कोई वहाँ पहुच जाता है वही उसका प्रबन्धक बन जाता है। यहाँ से भोजवासा प्रारम्भ होता है। भोजवासा अर्थात् भोजपत्र के वृक्षों का वन। इस वृक्ष से जो छाल निकलती है उससे ओढ़ने-बिछाने का, कुटिया ढकने का काम चल जाता है। भोजपत्र का वर्णन हमारे पुरातन ग्रंथों में बहुत बार आ चुका है, इन्ही पत्तों पर हमारे ग्रन्थ लिखे जाते थे। पेड़ों के अति प्रयोग के कारण वनों की कटाई ने कई ऐसे बहुमूल्य पेड़ों का नुकसान किया है। कई स्वयंसेवकी संस्थाओं ने वृक्षारोपण करना आरम्भ किया है। प्रथम भोजपत्र नर्सरी की स्थापना 1993 में गंगोत्री के ठीक ऊपर चीड़वासा में की गई थी। हिमालय पर्वतारोही डॉ. हर्षवंती बिष्ट ने इस प्रथम नर्सरी की स्थापना की और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के अंदर भोजपत्र के वनीकरण का विस्तार जारी रखा। वर्ष 2000 तक इस क्षेत्र में लगभग 12,500 भोजपत्र के पौधे लगाए जा चुके थे। हाल के वर्षों में गंगोत्री क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ों के संग्रह पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया है।
इसी क्षेत्र मे पाँच महात्माओं की कुटियां हैं जो शीतकाल में, भीषण बर्फ की ऋतू में भी यहीं रहते हैं। गंगा के दूसरी ओर स्वामी तत्वबोधानन्दजी की कुटिया है। ग्रीष्म ऋतु मे जब उधर आने जाने का मार्ग खुलता है यह लोग 6 महीने के लिए जीवन निर्वाह की आवश्यक सामग्री जमा कर लेते हैं और अग्नि के सहारे जीवन धारण किये रहते है। एक महात्मा रघुनाथ दास जी अन्न नहीं लेते। वह ग्रीष्म में सूखे पत्ते आलू के साथ बनाकर कितने ही वर्षों से काम चला रहे हैं। भोजपत्र के पेड़ मे जहाँ तहाँ कूबड़ जैसी मुलायम गाँठे निकल आती हैं जिन्हें भुजरा कहते हैं। इसे पानी में उबालने से बढ़िया किस्म की चाय बनती है जो रंग, स्वाद और गर्मी देने में चाय की अपेक्षा हर प्रकार से उत्कृष्ट होती है। शीत निवारण के लिए इन महात्माओं का दैनिक पेय यही रहता है। दूध और चीनी का तो वहां अभाव ही रहता है। इसलिए भुजरा को उबाल कर नमक डालकर पिया जाता है ।
भोजवासा क्षेत्र में एक छोटी-सी नदी है जिसे भोजगढ़ कहते हैं। गढ़ शब्द पहाड़ी भाषा में नदी के अर्थ में प्रयोग होता है। भोजगढ़ अर्थात भोजपत्र वन में बहने वाली नदी। इसके बाद फूलवासा आरम्भ हो जाता है जहाँ कोई वृक्ष नहीं मिलता, भूमि पर वनस्पतियां उगी होती हैं। यह वनस्पतियां श्रावण-भाद्रपद महीनों से सुन्दर पुष्पों से सुशोभित रहती हैं। इसे पार करने पर गोमुख आता है।
इतने रोचक विषय को रोकना तो हम सबके साथ अन्याय ही है लेकिन क्या करें शब्दों के STOP SIGN को हमारी भावनाओं से क्या लेना, इसलिए सोमवार के लिए अल्प विराम
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सुजाता जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)चंद्रेश बहादुर-32 ,(2 )सुमनलता-24 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव-42 ,(4 )सरविन्द पाल-36 ,(5 ) सुजाता उपाध्याय-51 ,(6 )मंजू मिश्रा-35 ,(7 )अरुण वर्मा-46 ,(8) संध्या कुमार-37 ,(9)पुष्पा सिंह-24,(10) नीरा त्रिखा-28 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।

