4 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद
भगवान् गणपति जी को समर्पित आज सप्ताह का तीसरा दिन बुधवार है,ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से प्रातःकाल के दिव्य समय में सभी साथिओं का सम्मानीय अभिवादन। सभी निष्ठावान शिष्य गुरुचरणों में समर्पित होकर गुरुकुल की आज की पाठशाला में ज्ञानप्रसाद ग्रहण करने को तत्पर हैं। सभी शिष्य संकल्प लिए हुए हैं कि नियमितता के मूलमंत्र का पालन करते हुए गुरुप्रसाद को अंतर्मन में उतारना है, इससे कम में किये गए सारे प्रयास व्यर्थ ही जाने वाले हैं।
पिछले दो दिनों से हम उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों की यात्रा कर रहे हैं, कितनों के बारे में हम संक्षिप्त जानकारी प्राप्त कर चुके हैं और कितने ही और जानने बाकी हैं, यह तो स्वयं परम पूज्य गुरुदेव ही जानते हैं। कल वाले ज्ञानप्रसाद में ऋषिकेश से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुनि की रेती का passing reference ही दिया गया था, आज इस क्षेत्र के बारे में कुछ और अधिक जानने का प्रयास है। आज का लेख बहुत ही छोटा और संक्षिप्त है। किसी बड़े लेख के साथ इसका combine करना संभव न होने के कारण तीर्थस्थलों की main लेख शृंखला को एक दिन के लिए स्थगित करना पड़ा है जिसके लिए हम साथिओं से करबद्ध क्षमाप्रार्थी है
हमारे साथिओं ने इस क्षेत्र का तीर्थसेवन अवश्य ही किया होगा क्योंकि परमार्थ आश्रम, शिवानंद आश्रम, स्वर्गाश्रम, कैलाश आश्रम, गीताभवन ,राम झूला, लक्ष्मण झूला आदि से कौन परिचित नहीं है। इन दिव्य तीर्थस्थलों के साथ ही मुनि की रेती की अंतराष्ट्रीय प्रसिद्धि लिवरपूल इंग्लैंड के Beatles Rock band के साथ भी जुडी हुई है। आज के लेख में संगीत के इस विश्वप्रसिद्ध Rock band का बहुत ही संक्षिप्त विवरण दिया गया है क्योंकि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित सहकर्मी भलीभांति जानते हैं कि हमारा study area केवल परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी तक ही सीमित है। अगर इस बचे खुचे जीवन में परम पूज्य के विशाल ज्ञानकोष के कुछ एक मूल्यवान अंश, स्वाध्याय के माध्यम से एवं प्रतिभाशाली साथिओं के सहयोग से सही तरीके से समझकर, अपने जीवन में उतारकर एक उदहारण प्रस्तुत कर पाएं तो इससे बड़ा और कोई सौभाग्य नहीं है।
Beatles जैसे Rock band का हमारे साथ दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध न होने के कारण कुछ भी कहना संभव नहीं है लेकिन साहस बटोर कर इतना तो कह ही सकते हैं कि आधुनिकता,पर्यटन और ग्लोबलाइजेशन की आड़ में उत्तराखंड जैसी दिव्य भूमि का जो विनाश हुआ है, उसे कोई भी समर्पित तीर्थयात्री प्रतक्ष्य देख सकता है। Bungee jumping, Rafting, Diving एवं लाउड वेस्ट्रन म्यूजिक पर जागरण आदि के समारोह युगतीर्थ शांतिकुंज से कुछ ही किलोमीटर पर अक्सर देखने को मिल जाते हैं। इस so called विकास के विषय पर हमारा कुछ भी कहना अनुचित ही होगा क्योंकि हर यात्री आँख और कान खोल कर ही हरिद्वार-ऋषिकेश की दिव्यस्थली में जाता है और स्वयं ही मूल्यांकन करने में समर्थ है।
लेख को अधिक से अधिक सरल एवं समझने योग्य बनाने के लिए हमने कुछ फोटो भी सलग्न की हैं, आशा करते हैं साथिओं के लिए लाभकारी सिद्ध होंगीं।



इन्ही शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हुए आज के ज्ञानप्रसाद लेख का अमृतपान आरम्भ करते हैं :
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!
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उत्तराखंड के इतिहास में मुनि की रेती (Sand of Sages) की एक खास भूमिका है। यह स्थान ऋषिकेश से 7 किलोमीटर दूर है। यही वह स्थान है जहां से परम्परागत रूप से चार धाम यात्रा शुरु होती थी। यह दिव्य स्थान सदियों से गढ़वाल हिमालय की ऊंची चढ़ाईयों तथा चार धाम तीर्थयात्रा का प्रवेश द्वार था। जब तीर्थ यात्रियों का दल मुनि की रेती से चलकर अगले पड़ाव गरुड़ चट्टी (परम्परागत रूप से तीर्थ यात्रियों के ठहरने के स्थान को चट्टी कहा जाता था) पर पहुँचते थे, तभी यात्रा से वापस आने वाले लोगों को मुनि की रेती आने की अनुमति दी जाती थी। बाद में सड़कों एवं पुलों के निर्माण के कारण मुनि की रेती से ध्यान हट गया।
प्राचीन शत्रुघ्न मंदिर, मुनि की रेती का एक पवित्र स्थान था जहां से यात्रा वास्तव में शुरु होती थी । सम्पूर्ण भारत से आये भक्तगण इस मंदिर में सुरक्षित यात्रा के लिए प्रार्थना करते थे, गंगा में स्नान करने के बाद आध्यात्मिक शांति के लिए पैदल यात्रा शुरु करते थे। शत्रुघ्न मंदिर की स्थापना नौंवी शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा की गई।
इतिहास बताता है कि टिहरी क्षेत्र उन दिनों एक रियासत थी और मुनि की रेती उस रियासत का एक हिस्सा था। शत्रुघ्न मंदिर की देखभाल टिहरी के राजा करते थे । वास्तव में ,जहां आज लोक निर्माण विभाग का आवासीय क्वार्टर है, पहले रानी का घाट हुआ करता था। इस घाट पर टिहरी की रानी तथा उनकी दासिया स्नान करने आती थीं। घाट से थोड़ी दूरी पर राजधराने के मृतकों के दाह- संस्कार का स्थान तथा फुलवाडी थे। दुर्भाग्य से उस स्थान पर अब कुछ भी पुराना मौजूद नहीं है। टिहरी के एक बुजुर्ग निवासी, श्री एच एल बदोला बताते हैं कि “टिहरी के राजा लालची नहीं थे। उन्होंने देहरादून और मसुरी में बहुत सारी भूमि अंग्रेजों को दे दी थी। ऋषिकेश में रेलवे निर्माण के लिए भूमि भी दी थी। टिहरी के राजा ने अगर थोड़ा और सोचा होता तो आसानी से रेलमार्ग मुनि की रेती तक पहुंच जाता।
उन दिनों ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से मुनि की रेती तक बैलगाड़ी से पहुंचा जाता था और जब तक रियासत सरकार द्वारा चन्द्रभाग पुल का निर्माण न कराया गया तब तक हाथी की पीठ पर बैठकर नदी को पार किया जाता था। बदोला जी बताते हैं कि खास इसी उद्देश्य के लिए राजा मुनि की रेती में हाथी रखे जाते थे।
धनराज गिरी जी ने 1880 में यहाँ कैलाश आश्रम की स्थापना की और इस आश्रम के आस-पास धीरे-धीरे मुनि की रेती शहर का विकास हुआ। कुछ चाय की कुछ दुकानें विकसित हुईं जो आध्यात्मिक ज्ञान सीखने आये लोगों के लिए बनी थी। 1908 में स्वामी आत्मानंद जी ने स्वर्गाश्रम की स्थापना की।
वर्ष 1932 में शिवानन्द आश्रम की स्थापना हुई जिनका इस शहर को योग एवं वेदान्त केन्द्र के रूप में विकास के लिए एक बड़ा योगदान है। इसका श्रेय इसके संस्थापक स्वामी शिवानन्द को जाता है जिन्होंने योग एवं वेदान्त को आसानी से समझने लायक बनाकर पश्चिम के देशों में प्रसिद्ध किया। 1986 में महर्षि महेश योगी ट्रांसेन्डेन्टल आश्रम (जो अभी मरम्मत के अभाव में गिर गया है तथा नोएडा में स्थानांतरित हो चुका है) एवं Beatles के आगमन ने भी मुनि की रेती को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाई। लेकिन इतिहास के जिस भी समय की बात करें मुनि की रेती ने आध्यात्मिक महत्व एवं विचारों के पौराणिक ज्ञान के केन्द्र के रूप में अग्रणीय स्थान पाया है।
पिछले कुछ वर्षों में यहाँ अनेकों आश्रमों का विकास हुआ है जिनमें गीता भवन, स्वामी चिदानंद सरस्वती के परमार्थ निकेतन और वानप्रस्थ आश्रम वर्णन योग्य हैं। ये सभी गंगा के विपरीत तट पर बने हैं।1986 में, ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के समान एक सस्पेंशन ब्रिज, राम झूला के निर्माण से यह आसान हो गया।
Beatles ने फरवरी 1968 में बंद पड़े महर्षि महेश योगी के आश्रम का दौरा किया। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के विद्यार्थिओं के लिए मात्र इतना ही जानना उचित रहेगा कि 1960 में Beatles लिवरपूल इंग्लैंड में गठित एक अंग्रेजी रॉक बैंड था। जॉन लेनन ने यहां “द हैप्पी हृषिकेश सॉन्ग” रिकॉर्ड किया।
इस गीत का वीडियो लिंक अपने साथिओं के समक्ष रखने का अर्थ केवल वर्तमान ज्ञानप्रसाद लेख से सम्बंधित जानकारी के लिए ही है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित सहकर्मी भलीभांति जानते हैं कि हमारा study area केवल परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी तक ही सीमित है। अगर इस बचे खुचे जीवन में परम पूज्य के विशाल ज्ञानकोष के कुछ एक मूल्यवान अंश, स्वाध्याय के माध्यम से एवं प्रतिभाशाली साथिओं के सहयोग से सही तरीके से समझकर, अपने जीवन में उतारकर एक उदहारण प्रस्तुत कर पाएं तो इससे बड़ा कोई और सौभाग्य नहीं है।
Beatles ने इस आश्रम में अपने दौरे के दौरान लगभग 48 गीतों की रचना की, जिनमें से कई White album में दिखाई देते हैं। The Beach Boys के Mike Love, Donovan जैसे कलाकारों ने चिंतन और ध्यान करने के लिए इस स्थान का दौरा किया। नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करके इनकी प्रतिभा देखि जा सकती है।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज अरुण जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)चंद्रेश बहादुर-26 ,(2 )सुमनलता-38,(3 )रेणु श्रीवास्तव-30 ,(4 )सरविन्द पाल-35 ,(5 ) सुजाता उपाध्याय-31 ,(6 )मंजू मिश्रा-24 ,(7 )अरुण वर्मा-54 ,(8) संध्या कुमार-42 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।