3 अक्टूबर 2023 का ज्ञानप्रसाद
मंगलवेला में मंगलवार वाले दिन आज का दिव्य ज्ञानप्रसाद लेकर हम आपके समक्ष प्रस्तुत हैं। सबसे पहले अपने साथिओं का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं जिन्होंने हमारी छोटी नन्ही सी पोती अनैरा को आशीर्वाद दिए।
आज के लेख में कुछ और तीर्थस्थलों का संक्षिप्त सा वर्णन है।आज हमने तीर्थस्थलों को 36 points देकर एक लिस्ट की शक्ल में प्रस्तुत किया है। कल की तरह आज भी तीर्थस्थल के नाम को quote/unquote( “-”) देकर standout दिखाने का प्रयास किया है ताकि हम आसानी से पहचान जाएँ। यूट्यूब में एडिटिंग व्यवस्था न होने के कारण हमें ऐसा करना पड़ा है। माँ गंगा के बारे में एक अलग सेक्शन शामिल किया है, आशा करते हैं यह जानकारी काफी लाभदायक होगी।
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1.परमपूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि रावण, कुम्भकरण, मेघनाद आदि को मार डालने के कारण रामचन्द्र जी, लक्ष्मण जी को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप के फलस्वरूप लक्ष्मण जी को क्षयरोग (TB) और रामचन्द्र जी को उन्निद्र (SLEEPNESS) रोग हो गया। वशिष्ठ जी ने इस पाप से छूटने के लिए उन्हें तप करने को कहा। लक्ष्मण जी ने “लक्ष्मण झूला” में और रामचन्द्र जी ने “देवप्रयाग” में दीर्घ काल तक घोर तप किया। बड़े भाइयों को इस प्रकार तप करते देखकर भरत और शत्रुघ्न ने भी उनका अनुकरण किया। भरत ने “ऋषिकेश” में और शत्रुघ्न ने “मुनी की रेती” में तप किया। मुनि की रेती ऋषिकेश से 7 किलोमीटर दूर है। इसी क्षेत्र में बाबा काली कमली वालों का बनाया हुआ स्वर्गाश्रम नामक स्थान है जहाँ आज भी अनेकों सन्त महात्मा तप करते हैं।
2.लक्ष्मण झूला से 30 मील आगे “व्यास घाट” में व्यास जी ने तप करके आत्मज्ञान पाया था। देवप्रयाग में ब्रह्मा जी ने भी तप किया था। अलकनंदा और भागीरथी के संगम का दृश्य बहुत ही मनोहर है।
3.प्रसिद्ध विद्वान मेधातिथि ने यहीं तप करके सूर्य शक्ति को प्रत्यक्ष किया था।
4.“वशिष्ठ तीर्थ” भी यहीं है जहाँ वशिष्ठजी ने तप किया था। वहाँ वशिष्ठ गुफा नाम की एक विशाल गुफा भी नगर से कुछ पहले है। रघुवंशी राजा दलीप, रघु और अज ने यहीं तप किये थे, शाप पीड़ित बैताल और पुष्पमाल किन्नरी ने भी अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए देवप्रयाग के समीप ही तप किया था।
5.आगे चल कर “इन्द्रकील” नामक स्थान पर अर्जुन ने तप करके पाशुपति अस्त्र प्राप्त किया था।
6.खाण्डव ऋषि जहाँ तप करते थे उसके समीप बहने वाली नदी “खाण्डव-गंगा” कहलाती है। श्रीनगर के पास राजा सत्यसंघ ने तप करके कोलासुर राक्षस को मारने योग्य सामर्थ्य प्राप्त की थी।
7.राजा नहुष ने भी यहीं तप करके इन्द्रपद पाया था।
8.वन्हिधारा और वन्हिपर्वत के बीच “अष्टावक्र ऋषि” का तप स्थान है। राजा देवल ने भी समीप ही कठोर साधना की थी।
9.“रुद्रप्रयाग” में नारदजी ने तप करके संगीत सिद्धि प्राप्त की थी।
अगस्त मुनि ने जहाँ अपना सुप्रसिद्ध नवग्रह अनुष्ठान किया था वह उन महर्षि के नाम पर 10.“अगस्त मुनि” कहलाने लगा। शौनक ऋषि ने यहाँ एक यज्ञ किया था।
भीरी चट्री के पास मन्दाकिनी के समीप भीम ने तप किया था।
11.इससे आगे “शोणितपुर” में वाणासुर ने अपने रक्त का यज्ञ करके तपस्या की थी और शिवजी को प्रसन्न करके सम्पूर्ण जगत को जीत लेने में सफलता प्राप्त की थी।
12.चन्द्रमा को जब क्षय रोग(TB) हो गया था तो उसने कालीमठ से पूर्व मतंग शिला से पाँच मील आगे राकेश्वरी देवी स्थान पर तप करके रोग मुक्ति पायी थी।
13.फाटा चट्टी से आगे “जमदग्नि ऋषि” का आश्रम है।
14.सोमद्वार से आगे 2 मील पर “गौरी कुण्ड” है।
15.पास ही नाथ संप्रदाय के आचार्य गुरु गोरखनाथ का आश्रम है। उन्होंने यहीं तप किया था।
16.केदारनाथ तीर्थ में इन्द्र ने जिस स्थान पर तप किया था वह स्थान “इन्द्रपर्वत” कहलाता है।
17.“ऊखीमठ” में राजा मान्धाता ने तप किया था।
18.गुप्तकाशी के पूर्व मन्दाकिनी नदी के दूसरी पार राजा बलि ने तप किया था, यहीं “बलि कुण्ड” है।
19.तुंगनाथ के पास “मार्कण्डेय” जी का आश्रम है।
20.मण्डल गाँव चट्टी के पास “बालखिल्य नदी” है। यह नदी बालखिल्य ऋषियों ने अपनी तप साधना के लिए अभिमंत्रित की थी। राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ यहीं किया था और सन्तान के लिए सौ वर्ष तक तप आयोजन भी इसी स्थान पर किया था।
21.नन्दप्रयाग से आगे विरही नदी के तट पर सती विरह में दुःखी शंकर भगवान् ने अपने शोक को शाँत करने के लिए तप किया था।
22.कुम्हार चट्टी के 6 मील पश्चिमोत्तर ऊर्गम गाँव है यहाँ राजा अज ने तप किया था।
कल्पेश्वर के समीप “दुर्वासा ऋषि” का स्थान था। एक दिन ऐरावत हाथी पर सवार होकर इन्द्र उधर से निकले तो महर्षि ने उन्हें फूलमाला भेंट की। इन्द्र ने अभिमान पूर्वक उसे हाथी के गले में पहना दिया। इससे क्रुद्ध होकर दुर्वासा ने इन्द्र को शाप दिया था।
समीप ही कल्प स्थल है जहाँ पूर्वकाल में कल्पवृक्ष का होना माना जाता है।
23.वृद्ध बद्री के पास गुफाएं हैं जहाँ प्राचीन काल में तपस्वी लोग अपनी साधनाएं किया करते थे।
24.जोशीमठ में जगद्गुरु शंकराचार्य ने तप किया था, उपनिषदों के भाष्य लिखे थे और ज्योतिष पीठ नामक गद्दी स्थापित की थी। यहीं उन्होंने अपना नश्वर शरीर भी त्यागा। जोशीमठ से छ: मील आगे तपोवन है। यहाँ व्यास जी का वेद विद्यालय था। शुकदेव जी का आश्रम भी यहाँ से समीप में ही है।
25.“पाण्डुकेश्वर” में पाण्डवों के पिता राजा पाण्डु ने तप किया था।
26.यहाँ से 6 मील आगे “हनुमानचट्टी” है जहाँ वृद्ध होने पर हनुमान जी ने तप किया है। एक बार भीम उधर से निकले, उन्हें अपने बल पर अभिमान था। हनुमान जी ने कहा: ऐ वीर! मैं बहुत वृद्ध बन्दर हूँ। अब मुझ से मेरे अंग भी नहीं उठते, तुम मेरी पूँछ उठाकर उधर सरका दो तो बड़ी कृपा हो। भीम ने पूँछ उठाने का प्रयास किया लेकिन उठ न सकी। तब उन्होंने हुनमान जी को पहचाना और क्षमा माँगी।
27.हनुमान चट्टी के पास अलकनन्दा के उस पार “क्षीरगंगा और घृतगंगा” का संगम है। पूर्व काल में इनका जल दूध और घी के समान पौष्टिक था। यहीं वैखानस मुनि तप करते थे। राजा मरुत ने यहीं एक बड़ा यज्ञ किया था जिसकी भस्म अभी भी वहाँ मिलती है।
28.“कर्णप्रयाग” में कर्ण ने सूर्य का तप करके कवच और कुण्डल प्राप्त किये थे।
29.गंगोत्री मार्ग में “उत्तरकाशी” तपस्वियों का प्रमुख स्थान रहा है। परशुराम जी ने यहीं तप करके पृथ्वी को 21 बार अत्याचारियों से विहीन कर देने की शक्ति प्राप्त की थी। जड़भरत का स्वर्गवास यहीं हुआ था, उनकी समाधि अब भी मौजूद है।
30.“नचिकेता” की तपस्थली भी यहीं है। नचिकेता सरोवर देखने योग्य है।
31.यहाँ से आगे नाकोरी गाँव के पास “कपिल मुनि का स्थान” है।
32.पुरवा गांव के पास मार्कण्डये और मतंग ऋषियों को तपोभूमियाँ हैं।
33.इसके पास ही “कचोरा नामक स्थान में पार्वती जी का जन्म” हुआ था।
34.“हरिप्रयाग (हर्षिल ) गुप्तप्रयाग (कुप्ति घाट)” तीर्थ भी इसी मार्ग में पड़ते हैं।
35.आगे “गंगोत्री” का पुण्य धाम है जहाँ भागीरथी ने तप करके गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण किया था। यहाँ अभी भी कितने ही महात्मा प्रचंड तप करते हैं। शीत ऋतु में जब कभी-कभी 13 फुट तक बर्फ पड़ती है तब भी यह तपस्वी बिल्कुल नग्न शरीर रह कर अपनी कुटियाओं में तप करते रहते हैं।
36.“गोमुख” गंगा का वर्तमान उद्गम स्थान गंगोत्री से 18 मील है। उस मार्ग में भी कई महात्मा निवास करते और तप साधना में संलग्न रहते हैं।
मौसम विभाग के अनुसार पर्वतीय भाग में ऊंचाई के कारण प्रत्येक 165 मीटर की ऊंचाई पर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान घटता जाता है और अधिक ऊंचाई में तापमान के घटने से हवा में जो नमी विद्यमान रहती है वह बर्फ में बदलने लगती है जो ग्लेशियर का रूप ले लेता है। जब तापमान थोड़ा बढ़ता है तो बर्फ पानी बनकर बहने लगती है इसे नदी कहा जाता है।
आइए गंगा नदी के बारे में थोड़ी जानकारी प्राप्त करें, साथ में दिए गए मानचित्र की सहायता अवश्य ले लें।
| गंगा नदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है,इसकी लंबाई 2,525 किलोमीटर है। गंगा नदी दो देशों, भारत और बांग्लादेश में बहती है। उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों से होकर यह नदी बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।भारतीय ग्रंथों में भागीरथी नदी को ही गंगा कहा गया है जिसका उद्गम स्थल उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले गंगोत्री ग्लेशियर के समीप गोमुख में है। किंतु भूगोल के अनुसार गंगा नदी विभिन्न नदियों से मिलकर बनी है जो इस प्रकार हैं : उत्तराखंड के बद्रीनाथ से दो नदियां निकलती है जिनका नाम विष्णुगंगा और धौलीगंगा है। इस स्थान को विष्णुप्रयाग के नाम से जाना जाता है। यहां यह भी जानना जरूरी है कि जहाँ दो नदियां मिलती हैं तो यदि उनमें से दोनों नदिओं की गहराई बराबर हो तो उसका नाम बदल दिया जाता है यदि किसी एक गहराई ज्यादा हो तो वह आगे उसी नाम से आगे बढ़ जाती है। विष्णुप्रयाग में विष्णुगंगा और धौलीगंगा की गहराई बराबर है इसलिए इसका नाम बदल कर अलकनंदा हो जाता है।इसके बाद आगे नंदाकनी नदी, अलकनंदा में आकर मिलती है इसके मिलन स्थल को नंदप्रयाग के नाम से जाना जाता है। अलकनंदा की गहराई नंदाकनी से अधिक होने के कारण आगे इस नदी को आगे भी अलकनंदा ही कहा जाता है।इसके बाद पिंडारी नदी मिलती अलकनंदा से मिलती है, मिलन के स्थान को कर्ण प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद एक नदी केदारनाथ से निकलती है जिसका नाम मंदाकनी हैं। वह भी अलकनंदा में मिलती इस मिलन स्थान को रुद्रप्रयाग कहा जाता है। इसके बाद गंगोत्री से निकलने वाली भागीरथी नदी है इसमें भी एक सहायक नदी आकर मिलती है जिसका नाम भिलांगना है। यही पर भारत का सबसे ऊंचा टिहरी डैम बना है। भागीरथी नदी देवप्रयाग में मिलती है और अलकनंदा तथा भागीरथी की गहराई लगभग बराबर हो जाती है जिससे इसका नाम गंगा हो जाता है और यही से आगे गंगा नदी का निर्माण हो जाता है। |
37.अगला तीर्थस्थल “हेमकुण्ड साहिब” है जहाँ सिखों के गुरु गोविंद सिंह जी ने जोशीमठ के पास 20 वर्ष तक तप करके सिख धर्म को प्रगतिशील बनाने की शक्ति प्राप्त की थी।
“स्वामी राम तीर्थ” का सबसे प्रिय प्रदेश यहीं था। वे गंगा और हिमालय के सौंदर्य पर मुग्ध थे। टिहरी के पास गंगा जी में स्नान करते समय वे ऐसे भाव विभोर हुए कि उसकी लहरों में ही विलीन हो गये यानि यहीं पर जल समाधि ले ली।
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संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज रेणु बहिन जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)चंद्रेश बहादुर-27,(2 )नीरा त्रिखा-24,(3 ) सुमनलता-26 ,(4 )रेणु श्रीवास्तव-41 ,(5 )सरविन्द पाल-29 ,(6) सुजाता उपाध्याय-28 ,(7)मंजू मिश्रा-24 ,(8 )अरुण वर्मा-26 ,(9 ) संध्या कुमार-34 ,(10) कुमोदनी गौराहा-24 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


