https://drive.google.com/file/d/1YGcPr92fjpmvG2AauOgMeW0LO1o7_ViO/view?usp=drive_link
(यह गूगल ड्राइव लिंक temporary था, इसलिए अब उपलब्ध नहीं है।)
प्रत्येक शनिवार को प्रकाशित होने वाला “अपने सहकर्मियों की कलम से”, सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट होता है। अगर इसे एक उत्सव,एक जश्न कहें तो शायद कोई अतिशयोक्ति न हो।
सारा सप्ताह, भांति भांति के contributions, कई बार इतने अधिक, इतने उच्चकोटि के कि चयन करना कठिन हो जाए।जितनी प्रसन्नता हमें एडिटिंग करके,लिखने में ,वीडियो बनाने में होती है,उससे कहीं अधिक contributors का प्रकाशन करने में, औरों के समक्ष लाने में होती है। उससे भी बड़ी प्रसन्नता सभी को तब होती है,जब यह प्रक्रिया एक दूसरे को ऐसे जोड़ देती है जैसे सचमुच में एक समर्पित परिवार हो -तो हुआ न एक उत्सव, एक जश्न।
आज के इस स्पेशल सेगमेंट को “नारी विशेषांक” कहकर सम्मानित करना ही उचित होगा क्योंकि कुमोदनी जी,अंजू जी,ज्योति जी, स्नेहा बेटी,सुमनलता जी- सभी बहिनों के योगदान ने हमें निकोल टेस्ला की कहानी वर्णन करने का अवसर तो दिया ही है लेकिन फिर भी हमारी बहिने Majority में ही हैं। हम अपनी contribution को तो कुछ मानते ही नहीं है।
कमैंट्स सेक्शन में बेटी स्नेहा ने जब शिलाओं के बोलने पर कमेंट किया तो सुमनलता जी ने श्वेत कबूतर वाला किस्सा वर्णित करते हुए काउंटर कमेंट किया। इन्ही कमैंट्स के बीच हमें प्रसिद्ध वैज्ञानिक निकोल टेस्ला का कबूतर वाला किस्सा स्मरण हो आया। पिछले वर्ष हमने एक पूरा लेख लिखा था जिसमें स्वामी विवेकानंद जी के साथ टेस्ला की मुलाकात का वर्णन था। स्वामी जी के विराट साहित्य में वर्णन है कि एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक इतना व्यस्त है कि उसे खाने तक का समय नहीं है लेकिन मेरे लेक्चर सुनने के लिए वोह घंटों प्रतीक्षा कर सकता है।
कहा जाता है कि जीवन के अंतिम दिनों में निकोल टेस्ला की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय हो गयी थी कि उनके पास घर का किराया देने के लिए भी पैसे नहीं थी। उन्हें कबूतरों से बहुत ही प्यार था। न्यूयार्क का एक होटल उनका निवास था जहाँ उन्होंने अंतिम साँसें लीं। रोज़ शाम को वोह कबूतरों को फीड करने जाते थे, कबूतरों से उन्हें इतना प्यार हो गया कि उनके बारे में प्रचलित हो गया कि He is married to pigeons, वोह सारा जीवन अविवाहित ही रहे। इन्ही कबूतरों में से एक कबूतर को उनके साथ इतना स्नेह हो गया कि कभी कभार जब वोह फीड करने नहीं जा पाते तो वह उनके होटल के कमरे की खिड़की से अंदर आ जाता/जाती। उस कबूतर की मृत्यु भी होटल के कमरे में ही हुई। इस घटना के बारे में टेस्ला लिखते हैं कि आज मैंने इस कबूतर की आंखों में इतनी High voltage light देखी है जितनी मैंने electricity के लाखों प्रयोग करते हुए भी नहीं देखी।
वाह रे वाह ईश्वर, वाह रे वाह तेरा करिश्मा, तेरी सृष्टि ,तेरी creations -नमन है, नमन है, नमन है।
इन्ही शब्दों के साथ आज का यह स्पेशल सेगमेंट का शुभारम्भ करते हैं लेकिन पहले विश्वशांति की कामना :
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयाः।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
ॐ शांति शांति शांति॥
**************************
कमैंट्स सेक्शन
हम सबकी स्नेहशील बेटी स्नेहा गुप्ता ने अपनी व्यक्तिगत अनुभूति पोस्ट की और “धन्यवाद् का महत्व” समझाया।सभी ने भांति भांति के कमैंट्स किए लेकिन हमारा कमेंट तो यही है कि
“अपनी पर्सनल स्थिति, पर्सनल बातें बताने के लिए बहुत बड़ा ह्रदय और साहस की आवश्यकता होती है, हर कोई ऐसा नहीं कर सकता, बेटी की अनुभूति से अनेकों को मार्गदर्शन मिल सकता है, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में ऐसे शिक्षाप्रद योगदान का सदैव ही स्वागत किया जाएगा, जय गुरुदेव “
बहिन कुमोदनी जी ने कमेंट किया था:
“दुख चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो, समय से बड़ा नहीं हो सकता। गुरु भक्ति में लीन हो जाइए नैया स्वयं ही पार हो जाएगी।12सितम्बर को TLM के उद्घाटन में मैं इसी से सम्बंधित प्रेरणा गीत गाई थी। सुख दुख में हमें हमेशा समान रहना चाहिए, कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। जय गुरुदेव।
स्नेहा बेटी ने देवात्मा हिमालय के सम्बन्ध में निम्लिखित कमेंट पोस्ट किया था:
आज के दिव्य ज्ञान प्रसाद के प्रेम की पीर की बड़ी सुंदर अभिव्यंजना हुई है।परम पूज्य गुरुदेव का जीवन का परम लक्ष्य था अन्यथा गुरुदेव हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकारों में कॉलेज विद्यालयों में पढ़े जाते। यह अलग बात है कि अपने बच्चों के हृदय में गुरुदेव आज सर्वोच्च स्तर पर विराजमान हैं।मैं तो बस उनके काव्यात्मक वर्णन को पढ़कर भाव विभोर हो जाती हूं और हिंदी साहित्य में आस्था है ।इसलिए बार बार ऐसी भावनाएं मन में आ जाती हैं।
शिलाएं बोल उठी: क्यों नहीं बोल सकती ये शिलाएं ,जब सब कुछ एक ही परम तत्व के अंश हैं,सब कुछ ऊर्जा के ही रूप है।अगर हम बात कर सके तो हमारे आस पास की सभी निर्जीव वस्तुएं भी हमसे बात करेंगी ।लेकिन पहले हम सजीव जीवों से तो बातें कर पाएं।
आज का जो मनुष्य मूक जीवों को भी जीव नही बल्कि आलू गोभी समझ कर अपने स्वार्थ और स्वाद के लिए जिस निर्ममता के साथ हत्या कर देता है ,उस मनुष्य को कोई कैसे बताए कि यह सम्पूर्ण सृष्टि परमात्मा की बनाई हुई है और इसमें सबको जीने का अधिकार है।
ऐसे समय में मेरा हृदय करोड़ों करोड़ बार परम पिता परमात्मा को धन्यवाद देता है कि उसने मुझे ऐसे संवेदना वाले माता पिता दिए जिन्होंने हमे ऐसे संस्कार दिए, अन्यथा मेरे ही परिवार के पढ़े लिखे नव जवान लोग भी अपने पैरों के टूटने पर निर्दोष बकरे का पैर बिल्कुल सहज भाव से खाते हैं।। तो यह परमात्मा का दिव्य अनुदान नहीं तो और क्या हुआ कि मुझे उन्होंने ऐसी सद्बुद्धि दिया । अतः मेरा हृदय करोड़ों अरबों बार धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद करता है । उस परम कृपालु परम पिता परमात्मा का ।
बहिन सुमनलता जी का स्नेहा बेटी के कमेंट पर काउंटर कमेंट :
आपके कॉमेंट पर काउंटर कॉमेंट करके आज आपको एक सत्य बात बताती हूँ। मई 2018 में हमारे घर की बालकनी में एक सफेद कबूतर आ गया। यह सामान्य तौर पर तो दिखाई नहीं देता।हमने सोचा कि किसी का पालतू होगा जो शायद पिजड़े से बाहर आ गया है।एक किसी का पता भी चला, तो हमने गार्ड को कह कर उनके यहां भिजवा भी दिया ,लेकिन थोड़ी ही देर बाद देखा तो फिर से वापस आ गया था।हमने मन में सोचा कि यह शायद अब यहीं रहना चाहता है।हम स्वयं कभी किसी पक्षी को हाथ से पकड़ना तो दूर स्पर्श तक नहीं करते। हमने मिट्टी के एक बर्तन में पानी और एक में कुछ चावल के दाने रख दिये।हमारे मन में यही विचार आया कि भगवान की सृष्टि का एक प्राणी यह भी है और अब यहां रहना चाहता है तो भूखा नहीं रहने देंगे।पहले दिन तो शायद उसने डर के मारे कुछ नहीं खाया।फिर धीरे धीरे खाने लगा । कहीं भी जाता तो लौट कर यही आ जाता।फिर धीरे धीरे आत्मीयता बढ़ने लगी।उसे भूख लगी होती और खाना नहीं होता बाहर तो वो एक आवाज सी निकालने लगता और हमें पता चल जाता तो खाना रख देते खा कर चुपचाप बैठ जाया करता। फिर धीरे धीरे मूक संवाद होने लगे।अगर कोई बाहरी कबूतर अंदर आ जाता या उसे परेशान करता तो वो बोल बोल कर हमें बता देता।आँधी आने से पहले, भूकंप आने से पहले बडी़ विचित्र आवाजें निकाल कर जैसे सजग कर देता। 2020 में वो एक दिन कहीं चला गया फिर वापस नहीं लौटा तो हमें बहुत बेचैनी होने लगी थी।अपनापन सा हो गया था।प्रभु से प्रार्थना करने लगे कि ईश्वर पता नहीं कहाँ होगा।किसी दुर्घटना का शिकार न बन गया हो।आप एक बार हमें उसे दिखा दीजिये ताकि सांत्वना मिल जाए कि वो ठीक है। ईश्वर ने हमारी प्रार्थना सुन ली फिर एक दिन वो आया थोड़ी देर रहा फिर चला गया ।ये बात मई 2020 की।फिर नहीं आया।लेकिन हमें उसकी याद बहुत आती है।
*****************
संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन।
आज यूट्यूब समस्या के कारण लगभग 200 कमैंट्स गायब ही हो गए। कल वीडियो अपलोड करते समय हमें भी कुछ प्रॉब्लम आयी थी जिसका बाद में स्वयं ही निवारण हो गया था। हमें ऐसी स्थितिओं में कष्ट तो बहुत होता है लेकिन क्या किया जाए, यह ऐसी समस्या है जिसके ऊपर किसी का कोई भी कण्ट्रोल नहीं है -केवल संयम ही इसका हल है।
इसलिए हमारे अनुसार आज सभी गोल्ड मेडलिस्ट हैं।
(1)चंद्रेश बहादुर-51 ,(2 )नीरा त्रिखा-28, (3 )सुमनलता-35 ,(4)सरविन्द पाल-46, (5 ) सुजाता उपाध्याय- ,(6 )मंजू मिश्रा-32,(7)संध्या कुमार-33,(8 ) वंदना कुमार-25,(9)तेजस गेमिंग-25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।