26 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज मंगलवार की मंगलवेला में ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहपाठिओं की “धरती पर स्वर्ग” होने की जिज्ञासा के निवारण का शुभ दिन है।हम सभी सहपाठी कल से परम पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में संकल्पित होकर “धरती पर स्वर्ग” होने की सार्थकता को ह्रदय में लिए बैठे हैं। इस रोचक प्रश्न के निवारण के लिए हम पुरातन साहित्य के कुछ उदाहरणों द्वारा यह जानने का प्रयास करेंगें कि अगर देवताओं का पृथ्वी पर आना और धरती से मनुष्यों का सशरीर स्वर्ग में जाना संभव है तो अवश्य ही धरती पर कहीं न कहीं स्वर्ग होगा। यह स्वर्ग भारत के उत्तराखंड राज्य में ही है। लेख में वर्णित स्थानों को दर्शाता कल वाला मानचित्र फिर से संलग्न है, स्वर्ग की सीढिआँ दर्शाती एक वीडियो भी आज के लेख के साथ संलग्न है। गुरुदेव की हिमालय यात्रा में ऐसे ही क्षेत्र के अनेकों वर्णन हैं।
इस लेख के संकलन में अखंड ज्योति के दिसंबर 1960 का अंक, 2001 में प्रकाशित गुरुदेव की दिव्य पुस्तक “अध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र देवात्मा हिमालय” एवं अनेकों गूगल searches का सहायता ली गयी है।
वैसे तो सारा उत्तराखंड राज्य ही देवभूमि है लेकिन जिस क्षेत्र को हम हिमालय का ह्रदय कह रहे हैं, वोह सही मायनों में “ह्रदय” का कार्य ही करता है। हमारे शरीर में स्थित ह्रदय का कार्य, अशुद्ध रक्त को शुद्ध करके शरीर के एक-एक भाग में पहुँचाना एवं ऊर्जा प्रदान करना है। ठीक उसी प्रकार यह क्षेत्र हमारी अंतरात्मा का परिशोधन करते हुए, नवीन ऊर्जा का संचार करके स्वर्ग जैसा अनुभव कराता है। मात्र हरिद्वार( हरि के प्रवेश द्वार) में ही, युगतीर्थ शांतिकुंज में ही स्वर्ग जैसा अनुभव होता है तो हम अनुमान लगा सकते हैं कि जिस क्षेत्र को हम “हिमालय का ह्रदय” कह रहे हैं, वहां कितनी दिव्यता होगी।
तो आइए सभी के सुख की कामना के साथ आज के ज्ञानप्रसाद का शुभारम्भ करें।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ हिन्दी भावार्थ: सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!
******************
1.राजा दशरथ अपनी पत्नी समेत इन्द्र की सहायता के लिए अपने रथ पर सवार होकर स्वर्ग गये थे। जब रथ का पहिया धुरी में से निकलने लगा तब साथ में बैठी हुई कैकयी ने अपनी ऊँगली धुरी के छेद में डालकर रथ को टूटने से बचाया था।
2.एक बार अर्जुन भी इन्द्र की सहायता के लिए स्वर्ग गये थे। तब इन्द्र ने उर्वशी अप्सरा को उनके पास भेजकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न किया था।
3.एक बार इन्द्र का इन्द्रासन खाली होने पर नीचे से राजा नहुष को वहाँ ले जाया गया था और उन्हे वहाँ बिठाया गया था।
4.त्रिशुंक भी सशरीर वहाँ पहुंचे थे ।
5.राजा ययाति सशरीर स्वर्ग गये थे लेकिन जब उन्होंने वहाँ अपने पुण्यों की बहुत प्रशसा करनी आरम्भ की तो उनके पुण्य क्षीण हो गये और उन्हे स्वर्ग से नीचे धकेल दिया गया।
6.देवर्षि नारद बहुधा देवसभा मे आया जाया करते थे।
इस प्रकार के अनेकों उदाहरण ऐसे हैं जिनसे स्वर्ग में मनुष्यों का सशरीर आना-जाना सिद्ध होता है।
देवता तो प्रायः नीचे आया ही करते थे। रामायण और भागवत में पचासों जगह देवताओं के पृथ्वी पर आने और मनुष्यों से संपर्क स्थापित करने के वर्णन आते हैं । अप्सराएं स्वर्ग से ऋषियों के आश्रमों मे आती थीं और कइयों को मोहित करके उनके साथ रहती तथा संतान उत्पन्न करती थीं ।
1.श्रृंगी ऋषि को अप्सराओं ने मोहित किया था।
2.विश्वमित्र के साथ रहकर मेनका ने शकुन्तला को जन्म दिया था।
यह विवरण सूक्ष्म शक्ति वाले, सूक्ष्म रूप वाले देवी-देवताओं का नहीं है वरन् उनका है जो मनुष्यों की तरह ही शरीर धारण किये थे।
3.चन्द्रमा और इन्द्र ने ऋषि पत्नियों से व्यभिचार (Adultery) किया और फलस्वरूप उन्हें शाप का भागी भी होना पड़ा था।
इन घटनाओं पर विचार करने पर ऐसा लगता है कि यदि “स्वर्ग नामक कोई स्थान पृथ्वी पर भी रहा है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।” यदि ऐसा न होता तो देवताओं का पृथ्वी पर और भूलोक वासियों का स्वर्ग में पहुंचना कैसे सम्भव रहा होता?
पुराणों मे सुमेरु पर्वत का विस्तृत वर्णन आता है जिसमें कहा गया है कि “देवता सुमेरु पर्वत पर रहते थे” पतंजलि योग प्रदीप मे इसका वर्णन इस प्रकार किया गया है :
मध्य मे सुवर्णमय पर्वतराज सुमेरु विराजमान है। उस सुमेरु पर्वतराज के चारों दिशाओं में चार चोटियां हैं । उनमें जो पूर्व दिशा में चोटी है वह रजतमय है। दक्षिण दिशा में जो है वह बैद्रर्यमणिमय है, जो पश्चिम दिशा में है वह स्फटिकमय चोटी (प्रतिविम्ब ग्रहण करने वाला) है और जो उत्तर दिशा में है वह सुवर्णमय तथा सुवर्ण के रंग वाले पुष्प विशेष के वर्ण वाली है। सुमेरु पर्वत देवताओं की उद्यान भूमि है जहाँ मिश्रवन, नन्दनवन, चैत्ररथवन और सुमानसवन चार वन हैं । सुमेरु के ऊपर सुधर्म नामक देवसभा है और वैयरुनत नामक प्रसाद देवमहल है। इसके ऊपर “स्वर्गलोक” है जिसको महेन्द्रलोक कहते है। सुमेरु अर्थात् हिमालय पर्वत उस समय के उच्च कोटि के योगियों के तप का स्थान था।
महाभारत में पाण्डवों के स्वर्गारोहण का विस्तार पूर्वक वर्णन है। स्वर्ग जाने के लिए द्रौपदी समेत पाँचों पाण्डव हिमालय में गये थे । अन्य सब तो बीच में ही शरीर त्यागते गये लेकिन युधिष्ठिर सर्वोच्च शिखर पर पहुँचे और सशरीर स्वर्ग जाने में समर्थ हुए हैं । इन्द्र का विमान उन्हें स्वर्ग को ले गया है। यह स्वर्गारोहण स्थान सुमेरु पर्वत के समीप ही है। बद्रीनाथ से आगे 13 मील चलने पर एक के ऊपर एक सीढ़ियां हैं जिन्हें स्वर्ग की सीढ़ियाँ कहते हैं । स्वर्ग की सीढ़ियां दर्शाती वीडियो को देखने के लिए निम्नलिखित यूट्यूब लिंक को क्लिक करें।
चौखम्भा शिखरों को भी स्वर्ग की सीढ़ी कहा जाता है। इस प्रदेश से पहले यक्ष, गंधर्व, किन्नर रहते थे, जिन्होंने स्वर्गारोहण के लिए जाती हुई द्रौपदी का अपहरण कर लिया था। भीम ने उनसे युद्ध करके द्रौपदी को छुड़ाया था।
पुराणों में सुमेरु के स्वर्णमय होने का वर्णन है। कवियों ने स्थान-स्थान पर “सोने के पहाड़” के रूप में सुमेरु की उपमा दी है। आजकल भी इस हिमाच्छादित सुमेरु पर्वत पर पीली सुनहरी आभा दृष्टिगोचर होती है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देवता की नगरी अलकापुरी यहाँ से समीप ही है। अलकनंदा के उद्गम स्थल को अलकापुरी कहा जाता है। इससे भी प्रदेश में स्वर्ग होने की बात पुष्ट होती है।
सुमेरु पर्वत, स्वर्गारोहण, अलकापुरी, नन्दनवन यह सभी स्थान हिमालय के उस भाग में आज भी मौजूद हैं, इसे ही “हिमालय का हृदय कहते हैं।” इस स्थान को यदि प्राचीन काल में स्वर्ग कहा जाता हो तो असम्भव नहीं है। गंगाजी का उद्गम भी यह पुण्य क्षेत्र है। पुराणों में वर्णन है कि गंगा स्वर्ग से नीचे उतरी। गंगा ग्लेशियर इसी प्रदेश में फैला हुआ है। भगवती शिवजी के मस्तक पर उतरी। इस आख्यान की भी पुष्टि इस तरह होती है कि शिवलिंग शिखर गोमुख से ऊपर है। गंगा वहीं होकर आती हैं। शिवलिंग शिखर के पास ही नन्दनवन है। नन्दनवन स्वर्ग में ही था इसका वर्णन पुराणों में आता है। नन्दिनी नदी वहीं बहती है। स्वर्ग में रहने वाली कामधेनु की पुत्री नन्दिनी के साथ इस नदी की कुछ संगति बैठती है। चन्द्र पर्वत इसी प्रदेश में है। बद्रीनाथ क्षेत्र से मिले हुए सूर्य कुण्ड, वरुण कुण्ड, गणेश कुण्ड अब भी मौजूद हैं। कहते हैं कि इन देवताओं का निवास इन-इन प्रदेशों में रहता था। केदार शिखर होकर इन्द्र का हाथी मिलते हैं। एक बार ऐरावत पर चढ़े हुए इन्द्र दुर्वासा ऋषि के आश्रम के समीप होकर गुजरे और ऋषि के स्वागत का तिरस्कार किया तो उन्हें दुर्वासा ऋषि ने शाप दे दिया था।
गोमुख से आगे धरती का स्वर्ग आरंभ होता है। मीलों की दृष्टि से इसकी लम्बाई चौड़ाई बहुत नहीं है। लगभग 30 मील चौड़ा और इतना ही लम्बा यह प्रदेश है। यदि किसी प्रकार इसे पार करना सम्भव हो तो बद्रीनाथ-केदारनाथ इसके बिलकुल नीचे ही सटे हुए हैं। यों बद्रीनाथ गोमुख से पैदल के रास्ते लगभग 250 मील है लेकिन इस दुर्गम रास्ते से तो 25 मील ही है। ऊंचाई की अधिकता, पर्वतों के ऊबड़-खाबड़ होने के कारण चलने लायक मार्ग न मिलना तथा शीत अत्यधिक होने के कारण सदा बर्फ जमा रहना, रास्ते में जल, छाया, भोजन, ईंधन आदि की कुछ भी व्यवस्था न होने आदि कितने ही कारण ऐसे हैं जिनसे वह प्रदेश मनुष्य की पहुँच से बाहर माना गया है। यदि ऐसा न होता तो गंगोत्री, गोमुख आने वाले 250 मील का लम्बा रास्ता क्यों पार करते? इस 25 मील से ही क्यों न निकल जाते?
इस मार्ग से कितने ही वर्ष पूर्व स्विट्जरलैंड के पर्वतारोही दल ने चढ़ने का प्रयत्न किया था। उसे उस आरोहण में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा था। सुना था कि शिवलिंग पर चढ़ते हुए दल के एक कुली का पैर टूट गया था और एक आरोही केदार शिखर पर चढ़ते हुए बर्फ की गहरी दरारों में फंस कर अपने प्राण गंवा बैठा था। फिर भी उस दल ने वह मार्ग पार कर लिया था। इसके बाद दुस्साहसी हिम अभ्यस्त महात्माओं के एक दल भी उस दुर्गम प्रदेश को पार करके बद्रीनाथ के दर्शन कर चुके हैं।
साहस ने कहा: यदि इतने लोग इस मार्ग को पार कर चुके हैं तो हम क्यों पार नहीं कर सकते?
बुद्धि ने उत्तर दिया: उन जैसी शारीरिक और मानसिक सामर्थ्य अपनी न हो, ऐसे प्रदेशों का अभ्यास और अनुभव भी न हो तो फिर किसी का अँधा अनुकरण करना बुद्धिमत्ता नहीं है। भावना बोली:अधिक से अधिक जीवन का खतरा ही तो हो सकता है, यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। कहते भी हैं कि स्वर्ग अपने मरने से ही दिखता है। यदि इस धरती के स्वर्ग को देखने में प्राण संकट का खतरा मोल लेना पड़ता है तो कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसे खतरे उठा लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
तो क्या जीते जी, सशरीर स्वर्ग के दर्शन हो पाए? साहस,बुद्धि और भावना की इस रोचक चर्चा में जीत किस की हुई ?
इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमें कल तक प्रतिक्षा करनी पड़ेगी।
जय गुरुदेव।
****************
संकल्प सूची को गतिशील बनाए रखने के लिए सभी साथिओं का धन्यवाद् एवं निवेदन। आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 12 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज अरुण जी और संध्या जी गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1)चंद्रेश बहादुर-46,(2 )नीरा त्रिखा-32,(3 )सुमनलता-29 ,(4 )रेणु श्रीवास्तव-42,(5 )सरविन्द पाल-40 (6) सुजाता उपाध्याय-38,(7 )कुमोदनी गौरहा-35,(8)स्नेहा गुप्ता-26, (9 ) मंजू मिश्रा-26, (10)अरुण वर्मा-41,56(11) संध्या कुमार-51,(12)वंदना कुमार-26
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।
