वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुदेव की हिमालय यात्रा से प्राप्त शिक्षा-पार्ट 9

19 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद 

मंगलवार की मंगलवेला में, प्रत्येक परिजन के सुमंगल की कामना करते हुए आज के ज्ञानप्रसाद में,वर्तमान लेख श्रृंखला का नौवां भाग प्रस्तुत है।हमारा सौभाग्य है कि परम पूज्य गुरुदेव के सानिध्य में हिमालय क्षेत्र में यात्रा करते हुए ऐसा अद्भुत ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं जिसके अमृतपान से आत्मा तृप्त हो रही है। हर किसी लेख से दिव्य सन्देश प्राप्त  हो रहे हैं। आज का सन्देश है “ यह मनुष्य स्वयं  को मनुष्य समाज की अपेक्षा स्वयं को विश्व समाज का एक सदस्य क्यों न माने ?”

कमैंट्स के माध्यम से हमारे साथियों के अमूल्य योगदान से ज्ञान का जो प्रचार-प्रसार हो रहा है उसके लिए हम सदैव आभारी रहेंगें। कल वाले लेख के सन्दर्भ में हमारी आदरणीय बहिन रेणु श्रीवास्तव जी ने जो कमेंट किया है उसे as it is ही प्रकाशित कर रहे हैं : 

“अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य  में शिकोया पार्क नामक वन्य क्षेत्र है जहां 3,000 साल से भी पुराना शिकोया (Sequoia) वृक्ष है ।उसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि यदि इनकी जाति के दूसरे पौधों को पानी की आवश्यकता होती है तो यह वृक्ष अपनी  जड़ों द्वारा दूसरे वृक्ष की जड़ों तक पानी पहुंचाते हैं।”

मनुष्य बुद्धिमान तो बहुत है लेकिन उसे संवेदना सिखाने के लिए यह उदाहरण बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता  है।

Sequoia वृक्ष की रिसर्च करते समय हमें कोलकाता के पास शिबपुर के आचार्य जगदीश चंद्र बोस इंडियन बोटेनिक गार्डन में स्थित The Great Banyan की याद आ गयी जिसे देखने का सौभाग्य हमें अपने   विद्यार्थी जीवन में मिला था। बरगद के इस पुरातन वृक्ष को विश्व का सबसे बड़ा वृक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ है, इस गौरव को Guinness Book of World Records में भी अंकित  किया गया है। बहिन जी का इस उत्तम जानकारी के लिए धन्यवाद् करते हैं। हमें Sequoia वृक्ष के बारे में  कोई ज्ञान नहीं था। 

कल वाले लेख में जब गुरुदेव प्राकृतिक सम्पदाओं का वर्णन कर रहे थे तो मन में बार-बार विचार आ रहे थे कि कितना अच्छा होता कि  जिन पेड़ पौधों, पुष्पों,पक्षियों आदि की चर्चा हो रही है उनके चित्र भी शामिल हो जाएँ। गुरुदेव ने हमारे मन के विचार भांप लिए और आज सुबह ही शांतिकुंज से रिलीज़ हुई वीडियो हमें भेज दी। यह वीडियो बहुत ही मधुर वाणी में वंदनीय माता जी की पावन कथा सुना रही है लेकिन इसमें जो प्राकृतिक क्लिप्स लगाए हुए हैं वह बहुत ही अद्भुत एवं सुन्दर हैं। 

हमारे साथिओं ने अवश्य ही अनुभव किया होगा कि लेख को रोचक बनाने की दृष्टि से, गुरुदेव के साहित्य में  बिना किसी बदलाव के, हम अपने विचार शामिल करते  रहते हैं। 

इन्ही शब्दों के साथ नियमितता का स्मरण कराते हुए, विश्वशांति की कामना के उपरान्त आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारम्भ करते हैं : 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने।        

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आज का ज्ञानप्रसाद लेख वहीँ से आरम्भ करते हैं जहाँ हमने कल वाला लेख छोड़ा था। 

“विश्व समाज की सदस्यता” शीर्षक को आधार बनाते हुए हम जलचर, नभचर इत्यादि सृष्टि के सभी प्राणियों के योगदान, सम्बन्ध, प्रतिभा की चर्चा करते हुए देखते हैं कि ईश्वर ने प्रेम, करुणा, मैत्री,सहयोग,सौन्दर्य, शांति,संतोष की दृष्टि से ऐसे-ऐसे प्राणियों की रचना की है जिन्हें देखकर मनुष्य नामक प्राणी का शीश शर्म से झुक जाए। “मनुष्यों की दुनिया” के    अहंकारी और दुष्ट प्राणी ने भौतिक विज्ञान की लम्बी-चौड़ी बातें तो बहुत की हैं। महानता और श्रेष्ठता के, शिक्षा और नैतिकता के लम्बे-चौड़े लेक्चर तो दिए हैं लेकिन इसी मनुष्य ने  सृष्टि के अन्य प्राणियों के साथ जो दुर्व्यवहार किया है, इसके विवरण से उसके  सारे पाखण्ड का पर्दाफाश हो जाता है। यह एक ऐसा पाखण्ड है जो मनुष्य अपनी श्रेष्ठता का बखान करते  हुए प्रतिपादित किए जा रहा  है ।

गुरुदेव बता रहे हैं कि आज विचार बहुत ही  गहरे उतर गये,इन विचारों में डूबे मैं  रास्ता भूल गया। रास्ता ढूंढते-ढूढ़ते न जाने कितनी बार रुक-रुक कर कितने ही पशु-पक्षियों को आँखें भर-भरकर बहुत देर तक देखता रहा। अब तो यह पशु-पक्षी  अपने ही बन चुके थे, इनसे एक अटूट सा सम्बन्ध स्थापित हो चुका  था, कोई डर  नहीं था, कोई भी सुनसान नहीं था। जब मैं इन पशु-पक्षिओं को टकटकी लगाकर देखता तो वोह भी खड़े होकर मेरी विचारधारा का समर्थन करते रहे। 

ऐसे सबंधों का स्थापित होना इस बात का साक्षी है कि  मनुष्य ही इस सृष्टि का श्रेष्ठ प्राणी नहीं माना जा सकता। आधुनिक युग के मनुष्य के पास दूसरों की अपेक्षा बुद्धिबल के समेत अनेकों प्रकार के बल अधिक ही हैं । यदि बल ही “बड़प्पन का चिह्न” हो तो दस्यु, सामन्त, असुर, पिशाच, बेताल, ब्रह्मराक्षस आदि की श्रेष्ठता को मस्तक नवाना पड़ेगा। श्रेष्ठता के चिह्न हैं सत्य, प्रेम, न्याय, शील, संयम, उदारता, त्याग, सौजन्य, विवेक, सौहार्द। अगर इन चिन्हों  अभाव रहा तो बुद्धि का शस्त्र धारण किये हुए नर पशु उन विकराल नख और दाँतों वाले हिंसक पशुओं से कहीं अधिक भयंकर हैं । हिंसक पशु भूखे होने पर आक्रमण करते हैं, लेकिन यह बुद्धिमान् नर पशु तो तृष्णा और अहंकार के लिए भी भारी दुष्टता और क्रूरता का निरन्तर अभियान चलाता  रहता है।

गुरुदेव बताते हैं कि आज बहुत देर हो गयी थी, कुटिया पर लौटते-लौटते अन्धेरा हो गया। उस अन्धेरे में देर  रात तक सोच आती रही कि हम सदैव  मनुष्य की ही भलाई की बात सोचते हैं,मनुष्य की सेवा की ही बात करते हैं, मनुष्य की उन्नति की ही  बात करते हैं, सोचते रहते हैं, क्या ऐसी सोच जातिगत पक्षपात से भरी नहीं है ? क्या यह दृष्टिकोण  संकुचित नहीं हैं, तंगदिल नहीं है ? 

सद्गुणों के आधार पर ही मनुष्य को श्रेष्ठ माना जा सकता है। अगर किसी मनुष्य में सद्गुणों का अभाव  रहता है तो वह अनेकों जंगली जानवरों की तुलना में अधिक दुष्ट ही है । हमारा दृष्टिकोण मनुष्य की समस्याओं तक ही क्यों सीमित रहे ? हमारा विवेक मनुष्येतर (Non human beings) प्राणियों के साथ आत्मीयता बढ़ाने, उनके सुख-दुःख में सम्मिलित होने के लिए अग्रसर क्यों न हो ? 

“यह मनुष्य स्वयं  को मनुष्य समाज की अपेक्षा स्वयं को विश्व समाज का एक सदस्य क्यों न माने ?”

इन्हीं विचारों में रात बहुत बीत गई। विचारों के तीव्र दबाव में नींद बार-बार खुलती रही । बहुत सारे सपने भी देख लिए । हर स्वप्न में विभिन्न जीव-जन्तुओं के साथ क्रीड़ा विनोद। स्नेह आदि के दृश्य दिखाई देते रहे। उन सबके निष्कर्ष यही थे कि 

“अपनी चेतना विभिन्न प्राणियों के साथ स्वजन सम्बन्धियों जैसी घनिष्ठता अनुभव कर रही है।”

आज के सपने बड़े ही आनन्ददायक थे। लगता रहा जैसे 

“एक छोटे क्षेत्र से आगे बढ़कर आत्मा विशाल विस्तृत क्षेत्र को अपना क्रीड़ांगन बनाने के लिए अग्रसर हो रहा है। कुछ दिन पहले इस प्रदेश का सुनसान अखरता था लेकिन अब तो सुनसान जैसी कोई जगह ही दिखाई नहीं पड़ती। सभी जगह क्रीड़ा  करने वाले सहचर मौजूद हैं। वे मनुष्य की तरह भले ही न बोलते हों, उनकी परम्पराऍ मानव समाज जैसी भले ही न हों, लेकिन इन सहचरों की भावनाएँ मनुष्य की अपेक्षा हर दृष्टि से “उत्कृष्ट” (Excellent ) ही हैं। ऐसे क्षेत्र में रहते हुए अब तो ऊबने का कोई भी  कारण प्रतीत नहीं होता। 

आहार हल्का हो जाने से नींद भी कम हो जाती है। यह इस क्षेत्र में फल तो दुर्लभ हैं लेकिन  शाकों, सब्जिओं  से भी फलों वाली सात्विकता प्राप्त हो सकती है। यदि शाकाहार भोजन किया जाए, तो साधक के लिए चार-पाँच घण्टे की नींद पर्याप्त होती  है। जाड़े की रातें  लम्बी होती हैं । नींद जल्दी ही पूरी हो गयी। आज मन  कुछ चंचल था। बार-बार प्रश्न किये जा रहा था। 

यह साधना कब तक पूरी होगी ? 

लक्ष्य कब तक प्राप्त होगा ? 

सफलता कब तक मिलेगी ? ऐसे-ऐसे अनेकों विचार उठ रहे थे । 

विचारों की उलझन भी कैसी विचित्र है, जब उनका जंजाल उमड़ पड़ता है, तो शान्ति की नाव डगमगाने लगती है। इस उलझन भरे  विचार प्रवाह में न भजन बन पड़ रहा था, न ध्यान लग रहा था। चित्त ऊबने लगा। इस ऊब को मिटाने के लिए गुरुदेव कुटिया से बाहर निकले  और टहलने लगे। आगे बढ़ने-की इच्छा हुई। पैर चल पड़े । शीत तो अधिक थी लेकिन माँ गंगा की गोद में बैठने का आकर्षण भी कोई  कम मधुर नहीं था। माँ गंगा के सामने   शीत की क्या  परवाह हो। तट से लगी हुई एक शिला, जल स्तर  के काफी भीतर तक धँसी पड़ी थी। अपने बैठने का वही प्रिय स्थान था। गुरुदेव बता रहे हैं कि कम्बल ओढ़कर उसी शिला पर जा बैठा। आकाश की ओर देखा, तो तारों ने बताया कि अभी दो बजे हैं। देर तक बैठा तो झपकी आने लगी। गंगा का कल-कल, हर-हर शब्द भी मन को एकाग्र करने के लिए ऐसा ही है जैसा शरीर के लिए झूला, नींद के लिए पालना | बच्चे को झूले में,पालने में डाल दिया जाए तो एकदम  नींद आने लगती हैं। जिस प्रदेश में इन दिनों यह शरीर है, वहाँ का वातावरण इतना मनभावन है कि वह जलधारा की मधुर ध्वनि ऐसी लग रही थी, मानों वात्सल्यमयी माँ लोरी गा रही हो। चित्त एकाग्र होने के लिए यह ध्वनि किसी रिसर्च से कम नहीं है। इस ध्वनि से  मन को विश्राम मिला, झपकी आने लगी। लेटने को जी चाहा। पेट में घुटने लगाये, कम्बल ने ओढ़ने और बिछौने, दोनों का काम किया। नींद के हलके झोंके आने आरम्भ हो गये। नींद में ही लगा कि नीचे पड़ी “शिला की आत्मा” बोल रही है। उसकी वाणी कम्बल को चीरते हुए कानों से लेकर हृदय तक प्रवेश करने लगी। मन तन्द्रित अवस्था में भी ध्यानपूर्वक सुनने लगा ।

क्या कह रही थी यह शिला ? गुरुदेव और शिला के बीच हो रहे दिव्य वार्तालाप का आनंद उठाने के लिए हमें कल तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।  

जय गुरुदेव 

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संकल्प सूची को गति देने के सभी का धन्यवाद्। 

आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 14  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज आदरणीय रेणु श्रीवास्तव जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। एक बार फिर से नारी शक्ति को हमारी बधाई। कमेंट करके हर कोई पुण्य का भागीदार बन रहा है। 

(1)चंद्रेश बहादुर-47,(2 )नीरा त्रिखा-24,(3 )वंदना कुमार-24,(4 )अरुण वर्मा-47,(5 ) सुजाता उपाध्याय-4 ,(6) मंजू मिश्रा-33 ,(7) सुमनलता-43,(8) संध्या कुमार-50,(9)रेणु श्रीवास्तव-64,(10)पूनम कुमारी-25,(11) विदुषी बंता-43,(12) स्नेहा गुप्ता-31,(13)निशा भारद्वाज-35,(14) अनिल कुमार मिश्रा-26     

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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