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गुरुदेव की हिमालय यात्रा से प्राप्त शिक्षा-पार्ट 8

18 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद

सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार, ज्ञानप्रसाद शृंखला का इस सप्ताह का प्रथम लेख,भारतीय समय के अनुसार आज के दिन के प्रथम पल; इन सभी प्रथम के साथ ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद लेख।

5 सितम्बर 2023 से आरम्भ हुई लेख शृंखला, परम पूज्य गुरुदेव के दिव्य कर कमलों से रचित दिव्य पुस्तक “ सुनसान के सहचर” पर आधारित है। मात्र 119  पन्नों की इस पुस्तक को हम कई जन्मों तक भी पढ़ते चलें जाएँ, जिज्ञासाएं बढ़ती ही जायेंगीं, एक नवजात बच्चे की भांति उठते प्रश्न बढ़ते ही जायेंगें। आज इस शृंखला का आठवां लेख प्रस्तुत किया जा रहा  है जिसमें गुरुदेव मनुष्य की तंगदिली, संकुचित प्रवृति की चर्चा करते समझा रहे हैं कि इसी धरती पर  “एक महान् विश्व” मौजूद है, एक ऐसा विश्व जिसमें प्रेम, करुणा, मैत्री सहयोग, सौजन्य,सौंदर्य, शांति,संतोष आदि स्वर्ग के सभी चिन्ह मौजूद हैं। लेकिन मनुष्य है कि उसने अपनी ही एक confined सी, छोटी सी, “मनुष्यों की दुनिया”, अलग से बनाकर रखी है। 

आज के रोचक लेख को आरम्भ करने से पूर्व दो छोटे-छोटे अपडेट देने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है, तो आइये पहले उन्हें देख लें।  

1.संकल्प सूची की monitoring: हम सभी ने अपने-अपने विवेक के अनुसार संकल्प सूची के उतार चढाव के लिए सुझाव दिए हैं जिसके लिए हम बहुत-बहुत आभारी हैं। सबसे बड़ा factor नियमितता का ही निकल कर आया है जिसका पालन ठीक उसी प्रकार करने की आवश्यकता अनुभव हो रही है, जिस प्रकार हम अनुशासन पूर्वक रोज़ाना टूथ पेस्ट करते हैं, नहाते हैं, शौच करते हैं आदि आदि। जिस प्रकार यह दैनिक क्रियाएं आवश्यक हैं, जिनमें से किसी के भी पालन न करने से सारा दिन अस्त व्यस्त हो जाता है, ठीक उसी तरह के परिणाम संकल्प सूची में  भी मिलने शुरू हो जाते हैं। 

2.हमारी बेटी स्नेहा गुप्ता ने प्रेरणा  जी की “धन्यवाद् वीडियो” से प्रेरित होकर, शांतिकुंज से शक्ति प्राप्त करके, इस मंच की सहायता से, बड़े ही परिश्रम से, अपनी अनुभूति की रचना की है जिसे आने वाले शनिवार को प्रकाशित करने की योजना है। बेटी ने तो तीन भागों में यूट्यूब पर पोस्ट भी कर दी थी लेकिन इसका व्यापक प्रसार एक फुल length लेख में ही होना चाहिए। 

इन्ही शब्दों के साथ प्रस्तुत है आज   दिव्य ज्ञानप्रसाद लेख। 

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परम पूज्य गुरुदेव नित्य की तरह आज भी तीसरे पहर हिमालय के सुन्दर प्राकृतिक वनश्री वातवरण को निहारने के लिए निकले। भ्रमण में जहाँ स्वास्थ्य सन्तुलन की, व्यायाम की दृष्टि रहती है, वहीँ  “सूनेपन के सहचरों”  से इस निर्जन वन मे निवास करने वाले परिजनों से कुशलक्षेम पूछने और उनसे मिलकर आनन्द लाभ करने की भावना भी रहती है। अपनेआप को मात्र मनुष्य जाति का सदस्य मानने की तंगदिल  दृष्टि जब विस्तृत और विशाल  होने लगी, तो वृक्ष वनस्पति, पशु-पक्षी, कीट-पतंगों के प्रति ममता और आत्मीयता उमड़ आई । ये परिजन मनुष्य की बोली तो नहीं बोलते और न ही उनकी सामाजिक प्रक्रिया भी  मनुष्य जैसी है, लेकिन फिर भी अपनी विचित्रताओं और विशेषताओं के कारण इन मनुष्येतर  प्राणियों (Non-human individuals) की दुनिया  भी अपने स्थान पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। जिस प्रकार धर्म, जाति, रंग, प्रान्त, देश, भाषा, भेद आदि के आधार पर मनुष्यों और मनुष्यों के बीच तंगदिली के कारण  साम्प्रदायिकता फैली हुई है, वैसी ही एक संकीर्णता (Narrow mindedness) यह भी है कि आत्मा अपनेआप को केवल मनुष्य जाति का सदस्य ही माने। क्या अन्य प्राणियों में आत्मा का वास नहीं है? अगर है तो अन्य प्राणिओं को मनुष्यजाति से भिन्न जाति का क्यों समझा जाता है। इन अन्य जाति के प्राणिओं को न केवल भिन्न समझा जाता है बल्कि घटिया भी समझा जाता है। कितनी निम्नस्तर की बात है कि मनुष्य इन प्राणिओं को अपने उपयोग में आने वाली वस्तु समझता है और उनका शोषण किए जा रहा है। 

यह सब प्राणी  भी ईश्वर की,प्रकृति की संतान हैं, उसी का परिवार हैं और मनुष्य इन  अगणित पुत्रों में से एक है। माना कि मनुष्य में अपने ढंग की कुछ विशेषताएँ हैं लेकिन कभी अनुमान लगाया है कि सृष्टि के इन जीव जंतुओं में भी अनेकों प्रकार की अगणित विशेषताएँ मौजूद हैं। मनुष्य को तो इनकी विशेषताओं का ज्ञान ही नहीं है,यह विशेषताएं इतनी बड़ी हैं कि इनको जानने के बाद वह अपनेआप को पिछड़ा हुआ ही मानेगा। 

गुरुदेव बता रहे हैं कि आज भ्रमण करते समय ऐसे ही  कुछ  विचार मन में उठ रहे थे। आरम्भ में इस निर्जन वन के जो जीव-जन्तु, वृक्ष-वनस्पति महत्वहीन  लगते थे, अनुपयोगी प्रतीत होते थे, अब ध्यानपूर्वक देखने से वे भी महान् लगने लगे। ऐसा प्रतीत होने लगा कि भले ही मनुष्य को प्रकृति ने बुद्धि अधिक दे दी हो लेकिन अन्य अनेकों उपहार उसने अपने इन मंदबुद्धि माने जाने वाले पुत्रों को भी दिये हैं। उन उपहारों को पाकर वे चाहें तो मनुष्य की अपेक्षा अपनेआप पर कितना ही गर्व कर सकते हैं।

जिस हिमालयी क्षेत्र में परम पूज्य गुरुदेव यात्रा कर रहे थे, इस प्रदेश में न जाने  कितने ही  प्रकार की चिड़ियाँ हैं, जो प्रसन्नतापूर्वक दूर-दूर देशों तक उड़कर चली  जाती हैं, पर्वतों को लाँघती हैं,ऋतुओं के अनुसार अपने पंखों को बदल लेती हैं। क्या मनुष्य को यह उड़ने की विभूति प्राप्त हो सकी है? हवाई जहाज बनाकर उसने थोड़ा-सा प्रयत्न तो किया  है लेकिन  चिड़ियों के पंखों से उसकी तुलना कहाँ  हो सकती है ? मनुष्य ने अपने सौंदर्य के लिए,स्वयं  को सुन्दर बनाने के लिए सजावट की रंग-बिरंगी वस्तुओं का आविष्कार तो अवश्य ही किया  है, लेकिन चित्र-विचित्र पंखों वाली, स्वर्ग की अप्सराओं जैसी चिड़ियों और तितलियों जैसी रूप सज्जा उसे कहाँ प्राप्त हो सकी है। 

सर्दी से बचने के लिए मनुष्य कितने ही तरह के वस्त्रों का प्रयोग करता है लेकिन रोज ही आँखों के सामने गुजरने वाले बरड़ (जंगली भेड़) और रीछ के शरीर पर grow हुए  बालों जैसे गरम ऊनी कोट शायद अब तक किसी मनुष्य को उपलब्ध नहीं हुए। अपने शरीर के हर छिद्र से हर घड़ी दुर्गन्ध निकालने वाले मनुष्य को हर घड़ी अपने बगीचे के सुगन्ध बिखेरने वाली लताओं एवं पुष्पों से क्या तुलना हो सकती है। लगभग 100  वर्ष में जीर्ण-शीर्ण होकर मर खप जाने वाले मनुष्य की The Ocean Quahog से क्या तुलना हो सकती है  जो 500 वर्ष जी सकते हैं। बैक्टीरिया फैमिली के microorganism तो 10000 वर्ष तक जी सकते हैं, यानि वोह तो अमर हैं।  वट और पीपल के वृक्ष भी हजार वर्ष तक जीवित हैं। कस्तूरी मृग जो सामने वाले पठार पर छलाँग मारते हैं किसी भी मनुष्य  को दौड़कर परास्त कर सकते हैं। भूरे बाल वालों से मल्ल युद्ध में क्या कोई मनुष्य जीत सकता है। चींटी की तरह अधिक परिश्रम करने की सामर्थ्य भला किस मनुष्य  में होगी। शहद की मक्खी की तरह फूलों में से कौन मधु संचय कर सकता है। बिल्ली की तरह रात के घोर अन्धकार में देख सकने वाली दृष्टि किसे प्राप्त है। कुत्तों की तरह घ्राण शक्ति के आधार पर बहुत कुछ पहचान लेने की क्षमता भला किसमें होगी। मछली की तरह निरन्तर जल में कौन रह सकता है। हंस के समान जल और दूध  को अलग करने का  विवेक किसे होगा ! हाथी के समान बल किस व्यक्ति में है। 

परम पूज्य गुरुदेव हम बच्चों को अपनी हिमालय यात्रा में बता रहे हैं कि आज के भ्रमण में यही विचार मन में घूमते रहे कि मनुष्य ही सब कुछ नहीं है, सर्वश्रेष्ठ भी नहीं है, सबका नेता भी नहीं है। ईश्वर ने  उसे बुद्धि और  बल दिया तो अवश्य है जिसके आधार पर उसने अपने सुख-साधन बढ़ाये हैं। यह तो सही है, लेकिन साथ में  ही यह भी सही है कि इन सम्पदाओं को पाकर जहाँ उसने विकास की ऊँची उड़ान भरी है वहीँ अनर्थ भी  किया है। सृष्टि के अन्य प्राणी जो उसके सम्बन्धी थे, उन्हें भी जीवित रहने, फलने-फूलने  और स्वाधीन रहने का अधिकार था। यह धरती उसकी माता ही थी, इस माँ का इस निर्दयी मनुष्य ने जो हाल किया है वोह किसी से भी छिपा नहीं है। इस मनुष्य ने  सबकी सुविधा और स्वतन्त्रता को बुरी तरह पद दलित कर डाला। पशुओं को जंजीर से कसकर, उससे अत्यधिक श्रम लेने के लिए बेरहम उत्पीड़न किया, उनके बच्चों के हक का दूध छीनकर स्वयं पीने लगा, निर्दयतापूर्वक वध करके मांस खाने लगा, पक्षियों और जलचरों के जीवन को भी उसने अपनी स्वाद प्रियता और विलासिता के लिए बुरी तरह नष्ट किया। मांस के लिए, दवाओं के लिए, फैशन के लिए, विनोद के लिए, सृष्टि के बेज़ुबान प्राणीओं  साथ कैसा नृशंस व्यवहार किया, उस पर विचार करने से अभिमानी  मनुष्य की सारी नैतिकता मिथ्या ही प्रतीत होती है।

हिमालय के जिस प्रदेश में यह  निर्जन कुटिया है उसमें पेड़-पौधों के अतिरिक्त जलचर, थलचर, नभचर जीव जन्तुओं की भी बहुतायत है। गुरुदेव जब भ्रमण को निकलते हैं, तो अनायास ही उनसे भेंट करने का अवसर मिलता है। आरम्भ के दिनों में वे डरते थे लेकिन अब तो उनसे पहचान हो गयी है । गुरुदेव को यह सुनसान के साथी, सहचर, अपने कुटुम्ब का ही एक सदस्य मानते हैं। यह जीव जंतु अब, न तो गुरुदेव से  डरते हैं और न ही गुरुदेव को उनसे डर लगता है। दिन- ब- दिन समीपता और घनिष्ठता बढ़ती जाती है और ऐसा अनुभव होता है कि इस पृथ्वी पर ही “एक महान् विश्व” मौजूद है, एक ऐसा विश्व जिसमें प्रेम, करुणा, मैत्री सहयोग, सौजन्य,सौंदर्य, शांति,संतोष आदि स्वर्ग के सभी चिन्ह मौजूद हैं। 

मनुष्य इनसे दूर है, उसने अपनी ही एक confined सी, छोटी सी, मनुष्यों की दुनिया, अलग से बनाकर रखी है, जिसे उसने भौतिकता के आधार पर Fools paradise की संज्ञा दी हुई है जहाँ वह अपने ही Ivory tower में बैठा  हवाई किले बनाए जा रहा है। 

यूट्यूब की शब्द सीमा के वशीभूत इस रोचक चर्चा को कल तक के लिए अल्प विराम देना पड़ेगा, कल की चर्चा और भी रोचक और ज्ञानवर्धक होने वाली है, Stay tuned.    

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सुजाता जी और संध्या जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। नारी शक्ति को  हमारी बधाई। कमेंट करके हर कोई पुण्य का भागीदार बन रहा है। 

(1)सरविन्द कुमार-29,33 (2) चंद्रेश बहादुर-36 ,(3 )नीरा त्रिखा-26  ,(4)वंदना कुमार-26 ,(5)अरुण वर्मा-30 ,(6) सुजाता उपाध्याय-44 ,(7 ) मंजू मिश्रा-34 ,(8) सुमनलता-24 ,(9 ) संध्या कुमार-44  ,(10 )रेणु श्रीवास्तव-33  ,(11 )पूनम कुमारी-27

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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