संजना,साधना,मंजू,पुष्पा जी एवं चंद्रेश जी के योगदान
सप्ताह का सबसे लोकप्रय अंक, अपने साथिओं के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हुए अति प्रसन्नता का आभास हो रहा है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से शनिवार को प्रस्तुत होने वाले इस सेगमेंट में अनेकों साथियों का योगदान होता है, उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए कंटेंट को एडिटिंग के साथ-साथ अपनी तरफ से complete करने के लिए हमारा भी योगदान अवश्य ही रहता है। आज भी गूगल सर्च से कुछ जानकारी add की है।
साथियों के योगदान के लिए हम सदैव ही आभारी रहेंगें। आज का सेगमेंट आरम्भ करें उससे पहले एक सुझाव आपने साथिओं के समक्ष रख रहे हैं आशा है अपने विचार शेयर करेंगें। जन्म दिवस, विवाह वर्षगांठ जैसे विशेष दिनों की सूचना कम से कम 2 दिन पहले भेजें तो बहुत कृपा होगी।
प्रस्तुत है आज का यह विशेषांक।
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1.शिक्षक दिवस :
5 सितम्बर को शिक्षक दिवस था, आदरणीय राम नारायण कौरव जी को सम्मानित किया गया था, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार हो। 11 सितम्बर को कौरव जी का जन्म दिवस था, उसके लिए भी लेट ही सही, हमारी सबकी शुभकामना।
इस उपलक्ष्य में संजना बेटी ने शिक्षक दिवस पर अपने डिपार्टमेंटमें आयोजित प्रोग्राम में एक गीत प्रस्तुत किया। संजना बेटी ने देव संस्कृति यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित उन्नयन कार्यक्रम में भी भाग लिया,फोटोज़ कोई इतनी क्लियर तो नहीं हैं लेकिन फिर भी शेयर कर रहे हैं।
2.आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी :
साधना बहिन जी ने “आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी” के अंतरगत आयोजित कार्यक्रम की कुछ पिक्चर भेजीं जिन्हें हम बहिन जी साथ हुई व्हाट्सप्प चैट समेत आपके साथ शेयर कर रहे हैं
साधना जी: यह हैं मेरा आज का प्रयास भाई साहब। पहला दिन का प्रयास बहुत बढ़िया तो नहीं रहा पर ठीक ही कहेंगे।
Dr Arun Trikha: अति सुंदर, आप ऐसा क्यों कह रही हैं, मूल्यांकन तो हम करेंगें, बहुत अच्छा है।
साधना जी: जी भाई साहब। आज के कॉमेंट में दूसरे मायके की बात हो रही थी तो ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार ही है यह मायका , यही है भाई बहन का प्यार जो। आप हमको शाबासी दे रहे है, नही तो आज के समय में किसे फुरसत है।
3.डॉ चंद्रेश बहादुर जी की प्रस्तुति:
डॉ साहेब आपको सादर प्रणाम। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की सेवा में प्रस्तुत है, 2021, की मेरी केदारनाथ यात्रा का अति संक्षिप्त विवरण।
14 अक्टूबर को रात्रि एक बजे प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन से ट्रेन से मेरे नेतृत्व में 6 सदस्यों की यात्रा आरम्भ होती है।15 अक्टूबर को हरिद्वार पहुंचकर चिन्तामनि आश्रम में विश्राम करने के बाद16 अक्टूबर को अर्टिगा से प्रात: केदारनाथ के लिए प्रस्थान किया गया। मेरे साथ धर्म पत्नी जयश्री सिंह, अपूर्वा एवं संवेदना दोनों बेटियां,विनय यादव एवं उनकी पत्नी पूजा यादव सहयात्री थीं। शाम को लगभग 7 बजे सोनप्रयाग पहुंचे। यहां जाने का सबसे अच्छा समय सितंबर एवं अक्टूबर मास ही होता है, यही सोच कर मेरे जैसे कई हजार लोग वहां पहुंच गए, लेकिन प्रकृति के प्रकोप से कौन बच सका है। उस समय 107 वर्ष के वर्षा का कीर्तिमान बन गया।
परिणाम यह हुआ कि जगह-जगह भूस्खलन होने लगा। सोनप्रयाग में जो होटल पहले से बुक कराया था, उसे किसी अन्य को दे दिया गया। जैसे तैसे किसी और होटल में रहने की व्यवस्था हुई। सोनप्रयाग से गौरीकुण्ड तक लगभग 8 किमी साधन से जाना था, भीड़ की अधिकता से पैदल ही गौरीकुण्ड तक जाना पड़ा। यहां से चढ़ाई आरम्भ होती है।17 अक्टूबर को चढ़ाई आरम्भ हुई। गौरीकुण्ड में ही हमें रेन कोट खरीद लेना था, लेकिन बीच रास्ते में लेने के कारण अच्छी श्रेणी की नहीं मिल सकी।17 अक्टूबर को चढ़ाई करते हुए रात्रि के 9 बज गए, एक कैम्प में जो 10x 10 फिट का था, विश्राम करना पड़ा, इस कैम्प में 6 और लोग थे। इस छोटे से कैम्प में 12 लोग और रात भर बरसात होती रहीं। कैम्प के अन्य साथी मौसम की प्रतिकूलता को देखते हुए वापस चले गए। हम भी वापस लौटने को सोच रहे थे लेकिन जिस बेटी की 2018 में ओपन हार्ट सर्जरी हुई थी, उसकी जिद के कारण मुझे आगे बढ़ना पड़ा।18 अक्टूबर को बड़ी मुश्किल से केदारनाथ पहुंच गए लेकिन बरसात अभी भी जारी थी, ठंड इतनी थी कि हाथ पर गर्म चाय पानी के समान लगती थी। ऊपर पहुंच कर संवेदना कुछ देर के लिए बेहोश भी हो गई थी, लेकिन केदारनाथ जी की कृपा से अस्पताल पास में था, उसका भरपूर लाभ मिला और बेटी स्वस्थ हो गई। पहले का बुक होटल यहां भी पहुँचने के एक दिन बाद नहीं मिला, बड़ी मुश्किल से दूसरा मिला। सारे कपड़े भीग गए थे, हाथ पैर अपने नियंत्रण में नहीं थे। नए ठंडी से बचने के कपड़े खरीदने पड़े।18 अक्टूबर शाम 7 बजे भोजन मिला। बरसात अभी भी जारी थी। सुबह 18 अक्टूबर को सुबह ही बाबा केदारनाथ जी के दर्शन हुए। उसके बाद रास्ते में कपड़े भीग जाने से उनका वजन बढ़ गया था, उसे एक पिट्ठू पर रख कर नीचे उतरना आरम्भ किया । पिट्ठू रास्ते में खो गया, उसके पास लगभग 10 हजार रुपए का सामान था, मुझे विश्वास था कि यहां के लोग ईमानदार होते हैं, गौरीकुण्ड तक वह पिट्ठू हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहा था। उसके बाद जिस आर्टिगा से आए थे, वह हम लोगों को 18 अक्टूबर रात्रि में लगभग 125 किमी लाकर विश्राम किया। सुबह उठे तो ज्ञात हुआ कि यदि बद्रीनाथ जी के दर्शन करने हैं तो हमें 5 दिन रुकना पड़ेगा क्योंकि बरसात के कारण मार्ग बन्द हो गया था। इधर ऋषिकेश आने वाला मार्ग भी भूस्खलन से बन्द होने से हमें टिहरी होकर आना पड़ा। हरिद्वार पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि लगभग 20 हजार यात्रियों को बाबा केदारनाथ जी के दर्शन के बिना ही वापस आना पड़ा। परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से 21 अक्टूबर को सकुशल घर पहुंच गए।जय माता गायत्री जी की।
इस यात्रा का वर्णन दैनिक हिंदुस्तान समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ था, लेकिन वह कहीं
खो गया,इसलिए प्रस्तुत करना संभव नहीं है।
4.मंजू मिश्राजी की राजगीर के बारे में जानकारी :
राजगीर में भी गरम कुंड है यहाँ पर अभी मलमास (मलिन मास ) यानि अधिकमास या फिर ऐसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं जो कि अभी 18 जुलाई से 16 अगस्त तक लगा था इस समय राजगीर में मेला लगता है।
कहते हैं 33 कोटि देवी देवता इस समय यहाँ पर विराजमान रहते हैं। दूर-दूर से लोग यहाँ स्नान करने आते हैं। मलमास मे गरमकुंड का बहुत अधिक महत्व है। इस बार मैं भी अपनी सासु माँ को लेकर गई थी। मलमास मेला क्यों लगता हैं इसकी भी कथा है।
वायु पुराण के मुताबिक भगवान ब्रह्मा के पौत्र राजा बसु ने इसी मलमास महीने के दौरान राजगीर में “वाजपेयी यज्ञ” करवाया था। जिसमें सभी 33 करोड़ देवी देवाओं को आने का न्योता दिया। इस दौरान काग महाराज को छोड़कर बाकी सभी देवी देवता वहां पधारे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। इस दौरान देवी देवताओं को एक ही कुंड में स्नान करने में परेशानी होने लगी। तभी ब्रह्मा जी ने राजगीर में 22 अग्निकुंडों के साथ 52 जल घाराओं का निर्माण कराया । 22 कुंडों के नाम निम्लिखित हैं :
ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, व्यास, अनंत, मार्केण्डेय, गंगा-यमुना, काशी, सूर्य, चन्द्रमा, सीता, राम-लक्ष्मण, गणेश, अहिल्या, नानक, मखदुम, सरस्वती, अग्निधारा, गोदावरी, वैतरणी, दुखहरनी, भरत और शालीग्राम कुंड। जिसमें ब्रह्मकुंड का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है।
बताया जाता है कि यहां सप्तकर्णी गुफाओं से पानी आता है। यहां वैभारगिरी पर्वत पर भेलवाडोव तालाब है, जिससे जल पर्वत से होते हुए जल इन कुंडों में पहुंचता है। इस पर्वत में कई तरह के केमिकल्स जैसे सोडियम, गंधक, सल्फर हैं। इसकी वजह से पानी गर्म होता है।
वायु पुराण के मुताबिक वाजपेयी यज्ञ में काग महाराज को छोड़कर बाकी सभी देवी देवता सम्मिलित हुए थे क्योंकि राजा बसु भूलवश काग महाराज को न्योता देना भूल गये थे। इसके कारण महायज्ञ में काग महाराज शामिल नहीं हुए। उसके बाद से मलमास मेले के दौरान राजगीर के आसपास काग महाराज कहीं दिखायी नहीं देते हैं।
5.पुष्पा जी की राजगीर के बारे में जानकारी :
जैसे परम पूज्य गुरूदेव को तपोवन में गर्मकुंड मिला वैसा ही गर्मकुंड बिहार के पटना जिला के राजगीर( राजगृह- City of kings) में भी है। मेरे द्वारा दी गई इस जानकारी को भी शेयर करने के लिए बहुत बहुत आभार। मैं 5वीं कक्षा में थी, मेरे पिताजी की पोस्टिंग उस समय बखि्तयारपुर (बाढ़) में थी। वहां से राजगीर 53 किलोमीटर दूर था। बखितयार खिलजी वही नाम है जिसने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया था। विश्विख्यात पुरातन नालंदा विश्विद्यालय में 800 वर्षों तक विश्व के लगभग हर कोने से शिक्षा प्राप्त करने आते थे। उसी के नाम पर अभी भी बिहार में एक रेलवे जंक्शन स्थित है।
हम लोग हर दिसंबर-जनवरी में एक बार अवश्य ही राजगीर जाते थे और वहीं गर्मकुंड के पानी से खाना बनता, पिकनिक मनाते थे। जरासंध का अखाड़ा,वेणुवन (जिसमें बड़ी सी गोल्डन फिश थी) भी जाते थे।लिफ्ट से उपर जाते डरते थे क्योंकि उन दिनों खुली लिफ्टहुआ करती थी, बस एक साइड से पकड़ने के लिए एक रॉड होती थी। जब खाई के उपर से लिफ्ट गुज़रती थी तो डर से आंखें बंद हो जाती थी। अब बंद वाली लिफ्ट लग गयी है क्योंकि कुछ लोग गिर गये थे।
नालंदा विश्वविद्यालय में उस समय के जले हुए अवशेष रखें हुए हैं। आग के बाद नालंदा विश्विद्यालय 3 महीने तक जलता रहा था, लगभग 90 लाख पुस्तकें और manuscript जल कर राख हो गए थे।
अपने साथियों से आवाहन है कि ऑनलाइन रिसर्च करके इन तथ्यों को जानने का प्रयास करें जिससे भारत के गौरव का ज्ञान प्राप्त हो। ऑनलाइन इतना कुछ उपलब्ध है कि सब कुछ यहाँ पर वर्णन करना असंभव है, हाँ इतना अवश्य बता सकेंगें कि बखितयार खिलजी ने नालंदा को तबाह क्यों किया।
एक ऐतिहासिक स्रोत के अनुसार, एक बार बख्तियार खिलजी बहुत बीमार पड़ गया और उसके दरबार के हकीम उसका इलाज नहीं कर पाए। तभी किसी ने उन्हें आयुर्वेद विद्वान आचार्य राहुल श्रीभद्र के बारे में बताया, हालांकि वह किसी बाहरी व्यक्ति से इलाज कराने को तैयार नहीं थे, लेकिन अपनी जान बचाने के लिए उन्हें आचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलाना पड़ा। आचार्य राहुल श्रीभद्र ने खिलजी का इलाज किया और उसकी जान बचाई. खिलजी इस बात को पचा नहीं पा रहा था कि एक भारतीय विद्वान और शिक्षक उसके हकीमों और देशवासियों से अधिक जानता है, यही कारण है कि उसने नालंदा विश्विद्यालय को ही ख़तम कर दिया – इस जानकारी का सोर्स गूगल है।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में केवल 4 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सुजाता जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। उन्हें हमारी बधाई। कमेंट करके हर कोई पुण्य का भागीदार बन रहा है। शायद हम आज सोये हुओं को जगा न सके, बैठे हुओं को उठा न सके, उठे हुओं को दौड़ा न सके ,इसका नेगेटिव श्रेय भी हम पर ही जाता है।
(1)सरविन्द कुमार-31, (2)संध्या कुमार-34 ,(3 )रेणु श्रीवास्तव-37,(4)सुजाता उपाध्याय-42
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।

