15 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद लेख शनिवार वाले स्पेशल सेगमेंट से भी बढ़कर स्पेशल है। प्रस्तुत कमैंट्स ने हमें इतना प्रभावित किया कि शुक्रवार वाली वीडियो का प्रकाशन स्थगित करना उचित समझा। परम पूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा के रंगमचकरण से आंनदित हुए साथिओं ने जिस स्तर के कमैंट्स पोस्ट किये, अवश्य ही अनेकों को प्रेरित करेंगें। हमारा विश्वास है कि “जय गुरुदेव” जैसे संकुचित कमेंट शीघ्र ही गायब होते दिखेंगें। हमारे साथी भलीभांति परिचित हैं कि हम सब एक ही दिशा में प्रयास कर रहे हैं “ गुरुदेव को घर-घर में स्थापित करना।”
गुरुदेव के साहित्य में हमारे विचारों को शामिल करने का एकमात्र उद्देश्य यही है कि उन्हें इससे रुचिकर और कुछ भी न लगे,सोशल सर्किल में चर्चा करें -यही है हमारी विज्ञापन प्रणाली, इसके परिणाम दिख भी रहे हैं। Our readers are our open posters.
आज शब्द सीमा का प्रहरी कई बार आँखें दिखा चुका है, तो चलें आज की विशेष प्रस्तुति की ओर।
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1.सुमनलता
यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब कोई भी मनुष्य अकेला होता है तो वो सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है ,उसी मंथन में दिमाग को थकाता रहता है।अपने आसपास तो ध्यान ही नहीं जाता। गुरुदेव ने सत्य ही अनुभव किया कि जहां मनुष्य अकेला होता है वो जगह भी सुनसान कैसे हो सकती है। ईश्वर ने इस सृष्टि में मनुष्य के अतिरिक्त भी तो बहुत कुछ बनाया है, जिनको यदि सहचर की भावना से देखा जाता है तो “अकेलेपन का भय” ही समाप्त हो जाता है। नदी की धारा को गुरुदेव ने जो प्रेयसी और समुद्र को प्रियतम से संबोधित किया है वह पूज्वर के हृदय की कोमलता की भावनाओं को इस प्रकार दर्शा रहा है जैसे कोई कवि किसी श्रृंगार रस की कविता के लिए भाव प्रकट कर रहा हो।
जब हमने “सुनसान के सहचर ” में यह संस्मरण पढ़ा था तो आज के लेख की भांति ही पूज्यवर के उन भावों को भी पढ़ा जो आज भी स्नेह और आत्मीयता के भावों को यदा कदा हम बच्चों के लिए दिखाते हैं। आध्यात्मिकता के गंभीर आवरण के पीछे के कोमल हृदय वाले पिता थे हमारे पूज्यवर।
आपने आज किसी गाय के सोशल मीडिया पर चल रहे प्रसंग का जिक्र किया है। एक घटना हमारे साथ भी ऐसी घटी है जो कभी भूलती ही नहीं। हुआ कुछ ऐसे था कि हमें कॉलोनी में ही सरकारी आवास मिला हुआ था जो फर्स्ट फ्लोर पर था ।हमारी कॉलोनी में पालतू गायें घूमती रहती थीं। एक दिन हम सुबह किसी काम से बाहर आए तो देखा कि एक गाय सीढियों से नीचे जाने का रास्ता रोक कर बैठी हुई थी। हमने उसे हटाने का प्रयास किया लेकिन वो टस से मस तक नहीं हुई। हमने उसको हटाने के लिए एक बाल्टी पानी उस पर डाल दिया । गाय उठ कर अपना शरीर झाड़ कर खड़ी हुई, उसने हमारी तरफ शायद क्रोध की दृष्टि से देखा और वहां से चली गई। हम ऊपर आए, पैर में एक छोटी सी ठोकर लग गई। इस छोटी सी चोट का दर्द इतना बढ़ता चला गया था कि ऑफिस जाना कठिन हो गया। कोई भी दवा आराम नहीं दे रही थी। तब हमने गंभीरता से अपने पिछले घटनाक्रम को रिवाइंड किया तो समझ में आया जिस दिन हमारे द्वारा यह कृत्य हुआ था उस दिन “पितृ पक्ष” का आरंभ हो रहा था और उस समय तो गाय को रोटी देते हैं और हमने उसे तकलीफ दी। हमने कान पकड़ कर माफी मांगी कि हे गाय माता हमें क्षमा कर दो, हम से बहुत बड़ी गलती हो गई।अब हम आपको रोज एक रोटी देंगे ।आश्चर्यजनक बात यह हुई कि धीरे धीरे शाम तक हमारा पैर ठीक हो गया। ईश्वर का वास तो सभी में है।बहुत बार अनजाने में हुए हमारे कर्म ही हमारे दुख का कारण बन जाते हैं. ” गहना कर्मणो गतिः”
जय गुरुदेव। गुरुदेव का कवि हृदय भी कुछ इसी प्रकार अनुभव कर रहा है।
बहिन जी की अनुभूति पढ़ते समय हमें परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित मात्र 37 पन्नों की पुस्तक “गहना कर्मणोगतिः” का स्मरण हो आया। 1998 में प्रकाशित इस पुस्तक के आठवें revised एडिशन के कुछ पन्नों को पढ़ा, स्थितिफिर वही हो आयी कि कहीं आज के लक्ष्य को न भूल जाएँ। एक बार फिर लीलापत शर्मा जी के दिव्य शब्द कानों में गूँज रहे थे “ऐसा लेखक तो हमने आज तक नहीं देखा।”
किसी समय इस पुस्तक का अध्ययन भी साथ-साथ गुरुकुल ज्ञानशाला में करेंगें लेकिन इस समय के लिए निम्नलिखित synopsis शेयर करना ही उचित रहेगा :
निःसंदेह कर्म की गति बड़ी गहन है। धर्मात्माओं को दुःख, पापियों को सुख, आलसियों को सफलता, उद्योगशीलों को असफलता, विवेकवानों पर विपत्ति, मूर्खों के यहाँ सम्पत्ति, दंभियों को प्रतिष्ठा, सत्यनिष्ठों को तिरस्कार प्राप्त होने के अनेक उदाहरण इस दुनियाँ में देखे जाते हैं। कोई जन्म से ही वैभव लेकर पैदा होते हैं, किन्हीं को जीवन भर दुःख ही दुःख भोगने पड़ते | सुख और सफलता का जो नियम निर्धारित है, वे सर्वांश पूरे नहीं उतरते।
हैं।
परम पूज्य गुरुदेव ने इस पुस्तक में वैज्ञानिक और आधुनिक दृष्टिकोण से कर्म की गहन गति पर चर्चा की है। इस पुस्तक में बताया गया है कि “जो कुछ भी फल प्राप्त होता है, वह अपने कर्म के कारण ही है।”
2.मंजू मिश्रा
ऊँ सद् गुरुवे नमः। परम् वंदनीय माता जी, परम् पूज्य गुरुदेव जी के पावन चरणों में सादर प्रणाम। गुरुदेव ने अपने सकरात्मक विचारों, भावनाओं को बहुत ही सुंदर और रोचक तरीके से मोतियों की माला की तरह पिरोया है। इस अद्वितीय प्रस्तुति में रात्रि में चन्द्रमा द्वारा गंगा की धारा में अनेकों प्रतिबिंब बनाना, नदी का कल-कल कर बहना, श्वेत वर्ण माँ गंगा का बहना, कितना मनोरम दृश्य है. सोच कर ही मन आनंदित हो उठा, हृदय में नई ऊर्जा प्रस्फुटित हुई, नये प्राण भर गये। गुरुदेव की भावनाओं को शब्दों में लिखना अत्यंत कठिन कार्य है जिसे हमारे आदरणीय अरुण भैया जी ही कर सकते हैं। भैया जी का कोटि कोटि धन्यवाद है।
भैया जी आपने गाय वाली वीडियो की चर्चा की है, मैंने भी देखी है। मेरे यहाँ भी रोज एक गाय आती है, मैं रोज उसके लिए रोटी बनाती हूँ, जिस दिन देर हो जाती है वो आकर खड़ी हो जाती है, कई बार तो दूर से देख लेती है, जल्दी जल्दी आती है,इतने प्यार से देखती है कि मन ही भर आता है । भैया जी आपको सादर प्रणाम है, स्वीकार करें।
गुरु देव जी कुटिया से बाहर आये तो सारी प्रकृति सहचर ही नजर आती है। प्रकृति का इतना सुंदर चित्रण अति मनोहारी है। एक एक शब्द रमणीयता को चित्रित कर रहे हैं प्राकृतिक छ्टा बिखरी हुई है जो गुरुदेव के अंतर मन को झंकृत कर रही है और मन भावविभोर हो हर क्षण को जी रहे हैं। प्राकृतिक सौंदर्य बिखरी पड़ी है उस मनोरम छवि को गुरु देव जी अपने साथ साथ हमें भी मनोरम दृश्य को जीने के लिए कह रहे हैं गुरुदेव के साथ-साथ हम सभी मनोहारी दृश्य को हृदय में उतारते हुए अति प्रसन्न हो रहे हैं। नदियों का कल-कल करते बहना, फूलों के गुच्छे, फूलों का हिलना, मुस्कुराना, भोजपत्र वृक्षों का संन्यासी की तरह दिखाना, नदियों का आपस में मिलना वाह अति प्यारी सी छवि आँखों के सामने घूम रही है। लग रहा है गुरु जी अपने बच्चों से कह रहे हैं। “आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ इक ऐसे गगन के तले, जहाँ गम भी न हो, आँसू भी न हो बस प्यार ही प्यार पले।। सूरज की पहली किरण से आशा का सवेरा जागे, जहाँ रंग बिरंगे पंछी आशा का संदेशा लाये “। प्रकृति में इतने मोती बिखरे हुए हैं मनुष्य कुछ भी सीख नही लेता। हाय रे मानव अपने थोड़े से स्वार्थ व संकीर्णता से विषय वासनाओं मैं डूबकर अपना अनमोल जीवन बर्बाद करता जा रहा है। कितने सुंदर तरीके से गुरुदेव जीवन जीने की कला सिखा रहे हैं। सब अपने सहचर है। अरुण भैया जी के बहुत-बहुत आभारी हैं जिन्होंने हिमालय यात्रा को इतना सुंदर और सोम्य तरीके से चित्रित किया। एक-एक भाव मन को छू रहे हैं। मैं पहले लिखने मैं डरती थी लेकिन भैया जी ने कहा जो जी मैं आये लिखो, खूब लिखो आदरणीय अरुण भैया जी की मैं शुक्रगुजार इन्होंने प्रोत्साहन दिया। भैया जी को कोटि कोटि प्रणाम
3.संजना कुमारी
वाह! जो सर्वज्ञाता हो,जो सभी के ‘हृदेश्वर’ हो वो कह रहे हैं कि हमें समझ नहीं आ रहा है कि वह सत्य था या भ्रम या स्वप्न या कुछ और,,,। वो हमारे मनोरंजन करते हुए हमें इस चंचल मन को काबू में करने की प्रेरणा दे रहे है। सचमुच अगर हम अच्छे विचारों का संकलन उत्तम प्रतिपक्षी के रूप में अपने पास रखते हैं तो नकारात्मक विचार हम पर हावी नहीं हो सकते। सचमुच हम बाहरी चीज़ों या नकारात्मक लोग या परिस्थितयों से इसलिए परेशान होते हैं और अपनी निराशा और असफलता का दोष उन्हें देते रहते हैं क्योंकि हम भूल जाते हैं कि हम किनके अंग अवयव हैं,हमारी रगों किस सनातन संस्कृति का खून बह रहा है, परंतु गुरु जी की कृपा से हम भटकते तो जरूर हैं( ताकि उस अंधकार को महसूस कर सकें) लेकिन वो ही हमें सन्मार्ग भी दिखाते हैं। क्योंकि सद्ज्ञान की कीमत तभी समझ आती है जब हमने अज्ञानता के वजह उस आत्मा की बेचैनी का अहसास किया होगा।परम पूज्य गुरुदेव सचमुच बहुत बड़े द्रष्टा हैं इसलिए वो हमें गंगा और समुद्र की ऐसी उपमा देकर हमें आसान भाषा में समझाना चाहतें हैं कि आपके आतमोन्नती के रास्ते में चाहें कितनी भी बाधा आ जाए आप निराश मत होना, नाहीं उन पत्थरों की शिकायत करना,बस अपने ह्रदयेश्वर के ध्यान में मग्न होकर अविरल बहते जाना। आदरणीय डॉ सर आपको हमारा बारंबार धन्यवाद है, इतने महत्वपूर्ण ज्ञान का अमृतपान कराने के लिए ️ ।आदरणीय डॉ सर आपको हमारा भाव भरा सादर प्रणाम एवं हृदय से कोटि कोटि धन्यवाद। आपके असीम प्रयास, अटूट विश्वास और श्रद्धा भक्ति से हमें सदैव मार्गदर्शित होते रहते हैं ️।परम पूज्य गुरुदेव जी से हमारी यही भाव भरी प्रार्थना है कि वह आपको बहुत सारी शक्ति एवं संरक्षण दें ताकि आप हमारा इसी तरह शानदार मार्गदर्शन करते रहें ️। oggp के सभी आत्मीय वरिष्ठ परिजनों एवं युवा सैनिकों को हमारा भाव भरा सादर प्रणाम एवं हृदय से कोटि कोटि धन्यवाद । किसी त्रुटि के लिए हम बहुत ही ज्यादा क्षमाप्रार्थी हैं । जय गुरुदेव जय शिव शंभु
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 12 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज चंद्रेश जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। उन्हें हमारी बधाई। कमेंट करके हर कोई पुण्य का भागीदार बन रहा है। (1)सरविन्द कुमार-31,(2) चंद्रेश बहादुर-62,(3 )नीरा त्रिखा-29 ,(4)वंदना कुमार-26,(5)अरुण वर्मा-36 ,(6) सुजाता उपाध्याय-57 ,(7 ) मंजू मिश्रा-31,(8)विदुषी बंता-28 ,(9) सुमनलता-37,(10) संध्या कुमार-47,(11)रेणु श्रीवास्तव- 47,(12)स्नेहा गुप्ता-42 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।