12 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद
हिमालय की कठिन यात्रा के दौरान भी गुरुदेव को अपने बच्चों का ही ख्याल था। यात्रा में प्रत्येक छोटी-छोटी घटना का वर्णन करना, और उसी घटना में से दिव्य सन्देश निकाल कर हमारा मार्गदर्शन करना एक बहुत बड़ा कार्य है जिसके लिए गुरुदेव को बार-बार नमन करते हैं।
कल हम सूनेपन के बारे में बात कर रहे थे। हमने ऐसे-ऐसे तर्क दिए कि सूनापन बिलकुल ही घटिया सा लग रहा था। आज हम उसी सूनेपन के पक्ष में चर्चा करेंगें।
नेगेटिव थिंकिंग को पॉजिटिविटी से ही काटा जा सकता है। बुरे से बुरे विचार चाहे वे कितने ही प्रबल क्यों न हों, “उत्तम प्रतिपक्षी विचारों” से काटे जा सकते हैं। अशुभ मान्यताओं को शुभ मान्यताओं के अनुरूप कैसे बनाया जा सकता है, यह उस सूनी रात में करवटें बदलते हुए गुरुदेव ने प्रत्यक्ष देखा।
आज के ज्ञानप्रसाद लेख से हमें यही शिक्षा मिल रही है,हमें पूर्ण विश्वास है कि इस छोटे से परिवार के सदस्य कमेंट करके इस विषय पर व्यापक चर्चा करेंगें क्योकि यह विषय हर किसी के जीवन में कभी न कभी अवश्य ही आया होगा।
आज का ज्ञानप्रसाद प्रियतम-प्रेयसी के प्रणय की कथा का वर्णन कर रहा है।
तो आइए गुरुदेव के चरणों में समर्पित होकर आज की गुरुकुल ज्ञानशाला का शुभारम्भ करें, सप्ताह के दूसरे पाठ के साथ।
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“यदि सूनापन ऐसा ही अनुपयुक्त होता तो ऋषि, मुनि, साधक, सिद्ध, विचारक और वैज्ञानिक उसे क्यों खोजते ? क्यों उस वातावरण में रहते ? यदि एकान्त का कोई महत्त्व न होता, तो समाधि-सुख और आत्मदर्शन के लिए उसकी तलाश क्यों होती ? स्वाध्याय-चिन्तन के लिए तप और ध्यान के लिए सूनापन क्यों ढूँढ़ा जाता ? दूरदर्शी महापुरुषों का मूल्यवान् समय क्यों उस असुखकर,कठिन अकेलेपन में व्यतीत होता ?”
जिस प्रकार लगाम खींचने पर घोड़ा रुक जाता है, उसी प्रकार वह सूनेपन को कष्टकर सिद्ध करने वाला, उसे बुरा भला कहने वाला “विचार प्रवाह” भी रुक गया, मस्तिष्क के रंगमंच पर दृश्य बदलने में कोई ज़्यादा समय नहीं लगा, क्योंकि तीन देवियां “निष्ठा, श्रद्धा और भावना” ने जो मार्गदर्शन दिया वह निम्लिखित शब्दों में वर्णन करने का प्रयास किया है।
निष्ठा ने कहा: एकान्त साधना की आत्म प्रेरणा असत् नहीं हो सकती।
श्रद्धा ने कहा: जो शक्ति इस मार्ग पर खींच लाई है, वह गलत मार्गदर्शन नहीं कर सकती । भावना ने कहा: जीव अकेला आता है अकेला जाता है, अकेला ही अपनी “शरीर रूपी कोठरी” में बैठा रोता रहता है, क्या इस निर्धारित “एकान्त विधान” में उसे कभी भी कुछ असुखकर प्रतीत होता है ?
सूर्य अकेला उदय होता है,अकेला ही अस्त हो जाता है, चन्द्रमा अकेला उदय होता है, वायु अकेले ही प्रवाह में है, उन्हें कोई कष्ट है क्या ?
आइए ज़रा इस धारणा पर थोड़ा ध्यान से विचार करें :
“मनः शास्त्र” (Psychology) के महत्वपूर्ण सिद्धान्त ने Loneliness को समझाने में बड़ी सहायता की। इसी कड़ी के पिछले लेख में जो विचार सूनेपन को धिक्कार रहे थे,भला बुरा कह रहे थे,अब वे कटे वृक्ष की भांति गिर पड़े, प्रतिरोधी विचारों ने उन्हें एकदम परास्त कर दिया । अशुभ विचारों को शुभ विचारों से काटने का महत्त्व हम भलीभांति जानते हैं। नेगेटिव थिंकिंग को पॉजिटिविटी से ही काटा जा सकता है। बुरे से बुरे विचार चाहे वे कितने ही प्रबल क्यों न हों, “उत्तम प्रतिपक्षी विचारों” से काटे जा सकते हैं। अशुभ मान्यताओं को शुभ मान्यताओं के अनुरूप कैसे बनाया जा सकता है, यह उस सूनी रात में करवटें बदलते हुए गुरुदेव ने प्रत्यक्ष देखा ।
पॉजिटिव थिंकिंग का प्रभाव इतना प्रबल है कि अब वही मस्तिष्क जो सूनेपन से घबरा रहा था, एकान्त की उपयोगिता,आवश्यकता और महानता पर विचार करने लगा।
धीरे-धीरे रात बीतने लगी । परम पूज्य गुरुदेव अनिद्रा से ऊबकर कुटिया के बाहर निकले तो देखा कि गंगा की धारा अपने “प्रियतम समुद्र” से मिलने के लिए “व्याकुल प्रेयसी” की भाँति तीव्रगति से दौड़ी चली जा रही थी।
धन्य हैं हमारे गुरुदेव, क्या अद्भुत उपमा दी है: गंगा यानि व्याकुल प्रेयसी और सागर यानि प्रियतम। प्रियतम-प्रेयसी का अद्भुत मिलन हमें न जाने कौन सा मार्गदर्शन दे जाए, इसलिए इसका अमृतपान अति श्रद्धा से और ध्यानपूर्वक करने की आवश्यकता है।
आइए तनिक इस उपमा को और आगे बढ़ाएं।
रास्ते में पड़े हुए पत्थर, प्रेयसी के मार्ग में अनेकों अड़चनें खड़ी करने के प्रयत्न कर रहे थे लेकिन वह उनके रोके रुक नहीं पा रही थी। अनेकों पाषाण खण्डों की चोट से उसके अंग-प्रत्यंग घायल हो रहे थे लेकिन फिर भी वह न किसी से, किसी की शिकायत करती थी और न ही निराश होती थी । इन बाधाओं का उसे तनिक भी ध्यान नहीं था। अन्धेरे का, सुनसान का, उसे कोई भय नहीं था। अपने “हृदयेश्वर” से मिलन की व्याकुलता उसे इन सब बातों का ध्यान भी न आने देती थी। प्रियतम के ध्यान में मग्न हुई, हर-हर कल-कल का प्रेमगीत गाती हुई गंगा, निद्रा और विश्राम को तिलांजलि देकर चलने से ही लौ लगाए हुए थी ।
चन्द्रमा सिर के ऊपर आ पहुँचा था। गंगा की लहरों में उसके अनेकों प्रतिबिम्ब चमक रहे थे, मानो “एक ब्रह्म” अनेक शरीरों में प्रविष्ट होकर “एक से अनेक” होने की अपनी माया दृश्य रूप से समझा रहा हो ।
गुरुदेव बता रहे हैं कि दृश्य बड़ा ही आकर्षक और मनोरम था, इस दृश्य में डूब जाने की लालसा में, नींद न जाने कहां उड़ गई।
गुरुदेव झोंपड़ी से बाहर आकर गंगा तट के एक बड़े शिलाखण्ड पर जा बैठे और टकटकी लगाए उस सुन्दर, मनोरम दृश्य को देखने लगे । थोड़ी देर में झपकी लगी और उसी शीतल शिलाखण्ड पर ही नींद आ गई।
इस झपकी में गुरुदेव द्वारा देखे गए दृश्य का वर्णन:
ऐसा लगा कि वह जलधारा कमल पुष्पी सी “एक सुन्दर देवकन्या” के रूप में परिणत होती है। वह अलौकिक देवकन्या समुद्र-सी कोमल मुद्रा में ऐसी लगती थी मानो इस पृथ्वी की सारी पवित्रता एकत्रित होकर मानुषी शरीर में अवतरित हो रही हो। वह रुकी नहीं, समीप ही शिलाखण्ड पर जाकर विराजमान हो गई। गुरुदेव वर्णन कर रहे हैं कि उन्हें ऐसा लगा मानो जागृत अवस्था में ही यह सब देखा जा रहा हो । उस देव कन्या ने धीरे-धीरे अत्यन्त शान्त भाव से मधुर वाणी में कुछ कहना आरम्भ किया । गुरुदेव मन्त्रमोहित होकर एकचित्त होकर सुनने लगे। वह बोली:
“हे नर-तनधारी आत्मा, तू स्वयं को इस निर्जन वन में अकेला मत मान । दृष्टि पसार कर चारों ओर ज़रा देख तो सही, चारों ओर तू ही बिखरा पड़ा है। स्वयं को मनुष्य तक सीमित मत मान । इस विशाल सृष्टि में मनुष्य भी एक छोटा-सा प्राणी है उसका भी एक स्थान है, लेकिन सब कुछ वोह ही नहीं है । जहाँ मनुष्य नहीं वहाँ सूना है, ऐसा क्यों माना जाय ? अन्य जड़ चेतन माने जाने वाले जीव भी विश्वात्मा के वैसे ही प्रिय हैं, जैसा मनुष्य।
तुम उन्हें अपना सहोदर क्यों नहीं मानते ?
तुम उनमें अपनी आत्मा क्यों नहीं देखते ?
तुम उन्हें अपना सहचर क्यों नहीं समझते?
इस निर्जन में मनुष्य नहीं, लेकिन अन्य अगणित जीवधारी भी मौजूद हैं । पशु-पक्षियों की, कीट-पतंगों की, वृक्ष-वनस्पतियों की अनेक योनियाँ इस सृष्टि में निवास करती हैं। सभी में आत्मा है, सभी में भावना है। यदि तू इन अचेतन समझे जाने वाले चेतनों की आत्मा से अपनी आत्मा को मिला सके तो हे पथिक, तू अपनी “खण्ड आत्मा” को “समग्र आत्मा” के रूप में देख सकेगा ।”
धरती पर अवतरित हुई वह दिव्य सौन्दर्य की प्रतिमा अद्भुत देव-कन्या बिना रुके कहती ही जा रही थी
“भगवान ने मनुष्य को बुद्धि दी, लेकिन वह अभागा उस दिव्य अनुदान (बुद्धि) का सुख कहाँ ले सका ? तृष्णा और वासना में उसने उस दैवी वरदान का दुरुपयोग किया और जो आनन्द मिल सकता था, उससे वंचित हो गया। मनुष्य के आस-पास के प्राणीओं की चेतना देखने में भले ही न्यून हो, लेकिन कभी अपनी भावना को उनकी भावना के साथ मिलाकर तो देख तो सही,अकेलापन कहाँ है, सभी तो तेरे सहचर हैं, सभी तो तेरे बन्धु बान्धव है।”
अभी कल की ही बात है,सोशल मीडिया साइट्स पर एक गाय की दिव्य कथा circulate हो रही थी। हमारे साथिओं ने यह वीडियो अवश्य देखी होगी जिसमें एक गाय प्रतिदिन किसी दुकान में आती और सभी कर्मचारियों से ऐसे मिलती जैसे कोई पुराना सम्बन्ध हो। इस कथा में यहाँ तक वर्णन था कि जिस दिन दुकान बंद होती यह गाय उनके घर आ जाती। Real life हम जैसे अनेकों ने pets की आँखों में आंसू देखे होंगें। ऐसे वृतांत भावनाओं के favour में प्रमाण देने के लिए काफी हैं।
गुरुदेव ने करवट बदली और नींद की झपकी खुल गई और हड़बड़ा कर उठ बैठे। चारों ओर दृष्टि दौड़ाई तो वह अमृत-सा सुन्दर उपदेश सुनाने वाली देवकन्या वहाँ न थी। ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह इस सरिता में समा गई हो, मानुषी रूप छोड़ कर जलधारा में परिणत हो गई हो।
मनुष्य की भाषा में कहे गये शब्द शायद न सुनाई पड़े हों लेकिन हर-हर कल-कल की ध्वनि में भाव वही गूंज रहे थे, सन्देश वही मौजूद था। चमड़े वाले कान तो शब्दों को सुन नहीं पा रहे थे, लेकिन कानों की आत्मा उसे अब भी समझ रही थी,ग्रहण कर रही थी ।
यह जागृति थी,स्वप्न था,सत्य था, भ्रम था,मेरे अपने विचार थे या कोई दिव्य सन्देश ? गुरुदेव बताते हैं कि उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। आँखें खोली, सिर पर हाथ फिराया। जो सुना था, देखा था, उसे ढूँढ़ने का पुनः प्रयत्न किया, लेकिन कुछ भी नहीं मिला। कुछ समाधान नहीं हो पाया।
इस दिव्य देवकन्या ने समझाने का बहुत प्रयास किया, अकेलेपन से, सूनेपन से छुटकारा पाने का बहुत प्रयास किया लेकिन कोई भी समाधान न हो पाया।
कल आने वाले लेख में ऐसे ही कुछ अन्य सहचरों की भावनाओं को टटोलते हुए अपनी भावना के साथ तालमेल स्थापित करने का प्रयास करेंगें, तब कहीं जाकर इस मनुष्य को विश्वास होगा कि मैं अकेला नहीं हूँ,उसके आस पास दिखाई दे रहे सब कोई ही उसके सहचर हैं।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 12 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज फिर हमारे दिल करीब अरुण जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। उन्हें हमारी बधाई। कमेंट करके हर कोई पुण्य का भागीदार बन रहा है।
(1)सरविन्द कुमार-38 ,(2) चंद्रेश बहादुर -35 ,(3 )नीरा त्रिखा-24,(4)वंदना कुमार-24 ,(5)अरुण वर्मा-50 ,(6 ) सुजाता उपाध्याय-42 ,(7 ) मंजू मिश्रा-43 ,(8 )पूनम कुमारी-24 ,(9 ) विदुषी बंता-27 ,(10 ) सुमनलता-33 , (11) संध्या कुमार-43 ,(12 )रेणु श्रीवास्तव-43
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।