11 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद
पिछले सप्ताह 6,7 और 8 सितम्बर को हमने “गुरुदेव की हिमालय यात्रा से प्राप्त शिक्षा” के अंतर्गत तीन ज्ञानप्रसाद लेखों का अमृतपान किया। यह सभी लेख, मात्र लेख न होकर अमृत की भांति समस्त अंतरात्मा में इस प्रकार घुलते रहे कि हमें डर है कि अगर इन लेखों से प्राप्त परम आनंद की व्याख्या करना आरम्भ कर दें तो कहीं ऐसा न हो कि आज के ज्ञानप्रसाद की दिशा कुछ और ही हो जाए। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि हमें अपनी अयोग्यता का अनुमान है और इसी अयोग्यता को certify करती हैं हमारी भावनाएं, जो हमें न जाने कहाँ से कहाँ ले जाती हैं।
इसी शीर्षक को आगे बढ़ाते हुए आज, सोमवार को, हम उसी शिक्षाप्रद लेख श्रृंखला का पार्ट 4 आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। सोमवार का दिन, सप्ताह का प्रथम दिन, हम सभी साथियों के लिए एक नवीन ऊर्जा लेकर आता है, एक ऐसी ऊर्जा और उल्लास जिससे हम सप्ताह भर में प्रकाशित होने वाले लेखों को उत्साह और उत्सुकता से अमृतपान के लिए तत्पर होते हैं। यह तत्परता कोई ऐसी वैसी तत्परता नहीं होती क्योंकि ज्ञानप्रसाद लेखों को ध्यान से अमृतपान करने के उपरांत कमैंट्स भी लिखने होते हैं। यह कमेंट भी ध्यान से ही लिखने होते हैं क्योंकि उन्हें पढ़कर हमारे सहपाठी काउंटर-कमेंट करते हैं। कमेंट-काउंटर कमेंट की इस अद्भुत प्रक्रिया से अनेकों की प्रतिभा को प्रोत्साहन मिल रहा है जिसके परिणाम हम सभी हर रोज़ देख रहे हैं। ज्ञानप्रसार की दिशा में इस प्रक्रिया ने जो अभूतपूर्व कार्य कर दिखाया है, उसके लिए एक-एक सहपाठी गौरवान्वित हुए बिना नहीं रह सकता। सभी को हमारा श्रद्धापूर्ण नमन।
परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित सुप्रसिद्ध पुस्तक “सुनसान के सहचर” के 2003 के revised एडिशन में दो चैप्टर हैं, “सुनसान की झोंपड़ी” और “सुनसान के सहचर”, यह दो चैप्टर हमारे आने वाले ज्ञानप्रसाद लेखों का आधार हैं। यहाँ एक बार फिर हमें अपनी अयोग्यता का अंदेशा है क्योंकि जो फिलॉसोफी इन पन्नों में गुरुदेव द्वारा व्यक्त की गयी है, हम अपनी बुद्धि और विवेक से संपूर्ण प्रयास करेंगें कि गुरुदेव की भावना आपके ह्रदय में उतार सकें।
अगर हम आज के लेख का synopsis लिखने का प्रयास करें तो केवल इतना ही कह सकते हैं कि परम पूज्य गुरुदेव सुनसान झोंपड़ी में नींद न आने के कारण करवटें बदल रहे थे,अनगनित विचारों के प्रवाह ने ऐसे-ऐसे विचारों को जन्म दिया कि विवेक, श्रद्धा,निष्ठा, कल्पना आदि शक्तियों ने कहाँ से कहाँ पंहुचा दिया। इस अद्भुत व्याख्या को केवल गुरुदेव ही वर्णन कर सकते हैं, हम तो आप तक पंहुचाने का केवल प्रयास ही कर सकते हैं, मूल्यांकन आपके हाथों में है।
तो आइए गुरुदेव के चरणों में समर्पित होकर आज की गुरुकुल ज्ञानशाला का शुभारम्भ करें, सप्ताह के प्रथम पाठ के साथ।
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सुनसान की झोंपड़ी
दादा गुरु के निर्देश का पालन करते हुए परम पूज्य गुरुदेव हिमालय के दुर्गम रास्तों में यात्रा कर रहे थे। गुरुदेव को कैसे-कैसे संकटों का सामना करना पड़ा, हम अनेकों बार लिख चुके हैं। आज के लेख में एक सुनसान झोंपड़ी, जिसमें गुरुदेव नींद न आने के कारण करवटें बदल रहे थे, वर्णन है।
झोंपड़ी के चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है। प्रकृति हैरान है, सुनसान का सूनापन अखर रहा है। दिन बीता, रात आई । असाधारण वातावरण के कारण नींद नहीं आ रही है, हिंसक पशु, चोर, साँप, भूत आदि तो नहीं लेकिन अकेलापन डरा रहा था। लगातार करवटें बदलने के अतिरिक्त कुछ काम न था। मस्तिष्क खाली था और चिन्तन की पुरानी आदत सक्रिय हो उठी। मस्तिष्क में तरह तरह के विचार आने लगे। विचार उठा कि अकेलेपन से डर क्यों लगता है ?
अकेलेपन से डर क्यों लगता है ?
अकेलेपन का विचार उठते ही अंतर्मन ने काउंटर प्रश्न किया कि तू अकेला कहाँ है? साथ में ही इस काउंटर प्रश्न ने समाधान भी सुझा दिया: मनुष्य तो एक विशाल समष्टि (समूह) का अंश है। उसका पोषण इस समष्टि द्वारा ही हुआ। जिस प्रकार जल तत्त्व से ओत-प्रोत मछली का शरीर जल में ही जीवित रहता है, वैसे ही समष्टि का यह अंग(मनुष्य),जो समाज का एक यूनिट है, व्यापक चेतना का एक भाग होने के कारण समाज में ही आनन्द का अनुभव करता है। अकेलेपन में उस व्यापक समूह चेतना ( यानि समाज) से सम्बन्ध टूट जाता है और आन्तरिक पोषण बन्द हो जाता है। आंतरिक पोषण रुक जाने के कारण बेचैनी होती है और यही बेचैनी “सूनेपन का डर” हो सकता है। क्या यही सच है, इसी से बेचैनी हो रही है ?
“कल्पना” ने और आगे दौड़ लगाई। स्थापित मान्यता की पुष्टि में उसने जीवन के अनेक संस्मरण ढूँढ़ निकाले। सूनेपन के, अकेले विचरण करने के अनेक प्रसंग याद आये लेकिन किसी में भी आनन्द नहीं था,मात्र समय ही काटा गया था। स्वाधीनता संग्राम में जेल यात्रा के उन दिनों की याद आई जब अँधेरी कोठरी में बन्द रहना पड़ा था। वैसे उस अँधेरी कोठरी में कोई कष्ट न था, लेकिन “सूनेपन का मानसिक दबाव” पड़ा था। एक महीने के बाद जब कोठरी से छुटकारा मिला तो पके आम की भांति चेहरा पीला पड़ गया था। धुप में खड़े होते ही आँखों तले अन्धेरा आ जाता था।
मानव की यह बेसिक प्रवृति है कि जो चीज़ बुरी लगती है उसे बुरा साबित करने में भांति-भांति के उदाहरण देकर उसकी ऐसी तैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।
प्रस्तुत दृशय में सूनापन बुरा लग रहा था, इसलिए मस्तिष्क के सारे कलपुर्जे उसकी बुराई साबित करने में जी जान से लगे हुए थे। “मस्तिष्क एक जानदार नौकर” के समान ही तो ठहरा। अंतरात्मा की भावना और मान्यता जैसी होती है, उसी के अनुरूप मस्तिष्क विचारों का, तर्कों, प्रमाणों, कारणों और उदाहरणों का पहाड़ जमा कर देता है। ऐसा सोचते सोचते, कई बार तो ऐसी स्थिति आ जाती है कि सही या गलत का निर्णय करना ही कठिन हो जाता है और मस्तिष्क है कि अपनी विचारधारा (ठीक,गलत) पर ही अड़ा रहता है, टस से मस नहीं होता। ठीक या गलत का निर्णय करने के लिए ईश्वर ने हमें एक गिफ्ट प्रदान किया हुआ है जिसका नाम है, “विवेक”, निर्णय लेना विवेक का काम है, बुद्धि का काम है। मस्तिष्क की केवल इतनी ही ज़िम्मेदारी है कि जो मनुष्य को अच्छा लगे, रुचिकर लगे उधर ही ले जाए, चाहे वोह गलत ही हो, मनुष्य को गर्त में ही क्यों न डुबो दे। इससे भी बड़ी बात यह है कि मनुष्य की आत्मा कह रही है कि यह मार्ग गलत है, इसमें सर्वनाश है, लेकिन मस्तिष्क ऐसे मार्ग के समर्थन को सिद्ध करने के लिए नानाप्रकार के आवश्यक लॉजिक भी सिद्ध करने उपस्थित कर देता है ।
गुरुदेव कहते हैं, “अपना मन भी इस समय यही कर रहा था।”
उन्होंने कहा कि इस स्थिति से निकलना तभी संभव है जब मस्तिष्क दार्शनिक ( Philosophical) ढंग से सोचना आरम्भ कर दे।
क्या है यह फिलॉसोफी ?
स्वार्थी लोग अपनेआप को अकेला मानते हैं और अकेले रहने के लाभ-हानि की ही बात सोचते हैं। उन्हें आगे-पीछे, दाएं-बाएं कोई भी अपना नहीं दिखता, इसलिए वे “सामूहिकता” (Togetherness) के आनन्द से वंचित रहते हैं। उनका अन्तःकरण एक “सूने शमशान” की तरह साँय-साँय करता रहता है। गुरुदेव बता रहे हैं कि ऐसे अनेकों परिचित व्यक्तियों के जीवन चित्र सामने आ खड़े हुए जिन्हें धन वैभव की, समृद्धि की, ज़रा सी भी कमी नहीं है लेकिन स्वार्थी होने के कारण उन्हें सभी पराये लगते हैं, सभी से शिकायत है,कष्ट है ।
मस्तिष्क सूनेपन के नेगेटिव विचारों के प्रवाह में अपनी दिशा में तीव्र गति से दौड़ा चला जा रहा था, लगता था वह सूनेपन को अनुपयुक्त ही नहीं बल्कि हानिकारक और कष्टदायक भी सिद्ध करके छोड़ेगा, उसकी धज्जियाँ उड़ा के ही छोड़ेगा।
यह एक ऐसी स्थिति थी जहाँ “विवेक” ने अपना कार्य किया, एकदम सिग्नल दिया और अभिरुचि ने अपना प्रभाव उपस्थित करना आरम्भ कर दिया। विवेक ने आकर झकझोड़ा और डांट लगाई,
“इस मूर्खता में पड़े रहने से क्या मिलेगा ? अकेले में रहने के बजाए,जनसमूह में रहकर जो कार्य हो वह सब क्यों न प्राप्त किया जाय ? “विवेक” ने मस्तिष्क की गलत दौड़ को पहचाना और वोह कहा जिसने सारी दिशा ही बदल डाली।
इस बदली हुई दिशा को जानने के लिए हमें कल तक की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 17 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज हमारे दिल करीब अरुण जी गोल्ड मैडल विजेता तो हैं। उन्हें हमारी बधाई। कमेंट करके हर कोई पुण्य का भागीदार बन रहा है।
(1)सरविन्द कुमार-34 ,(2) चंद्रेश बहादुर -37,(3 )नीरा त्रिखा-24,(4)वंदना कुमार-25 ,(5) कुमोदनी गौराहा-40 ,(6) अरुण वर्मा-54,(7) पुष्पा सिंह-25, (8 )सुजाता उपाध्याय-34 ,(9) प्रेरणा कुमारी-25,(10 ) मंजू मिश्रा-40 ,(11) तेजस गेमिंग बॉक्स-24,(12) राज कुमारी कौरव-25,(13)पूनम कुमारी-26,(14) विदुषी बंता-30,(15) सुमनलता-27, (16) संध्या कुमार-41,(17)रेणु श्रीवास्तव-39
721 कमैंट्स से आज की संकल्प सूची ने एक कीर्तिमान स्थापित किया है जिसका श्रेय परिवार के समर्पित साथियों को जाता है । यह सूची और भी better हो सकती थी अगर अलग-अलग कमेंट देने के बजाए एक ही step में कमेंट दिए जाते। उदाहरण के लिए हमारी छोटी बहिन राजकुमारी जी ने तीन बार कमेंट किया, अगर तीनों कमैंट्स की संख्या देखें तो 38( 25 +9 +4) होती। जो भी हो सभी की श्रद्धा और समर्पण को हृदय से नमन करते हैं।
समयदान, ज्ञानदान,श्रमदान के माध्यम से सहकारिता के लिए सामूहिक बधाई।