परम पूज्य गुरुदेव 1953 में गायत्री तपोभूमि मथुरा के निर्माण के समय अखंड ज्योति में लिखते हैं :
अगर मां गायत्री चाहती तो किसी एक गायत्री साधक के हृदय में प्रेरणा भर देती और उसी से सारा मंदिर बनवा लेती लेकिन मां ने ऐसा नहीं किया। ऐसा इसलिए नही किया कि मां सभी को पुण्य का भागीदार बनाना चाहती थीं ।
इसी धारणा को ह्रदय में लिए गायत्री परिजन शांतिकुंज,गायत्री तपोभूमि आदि को “अपना ही घर” समझते हैं। बेटियां तो इन्हें अपना मायका समझती है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार भी सभी साथियों के योगदान से आगे ही आगे बढ़े जा रहा है, इस मंच के सभी क्रियाकलापों और अनुदानों में सभी भागीदार हैं। परम पूज्य गुरुदेव से निवेदन है कि हम बच्चों को अपना संरक्षण प्रदान करते रहें।
*****************
गतिविधि सेक्शन
1.चंद्रेश जी का पुरस्कार:
गतिविधि सेक्शन में हमें यह बताते हुए बड़ी प्रसन्नता और गर्व महसूस हो रहा है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित और नियमित साथी आदरणीय डॉ चंद्रेश बहादुर सिंह जी को शिक्षक दिवस पर सम्मान्नित किया गया है जिसकी फोटो आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
2. गतिविधि सेक्शन में हमारी सबकी संजना बेटी की वर्षों पुरानी ऑडियो बुक भी प्रस्तुत है, इस क्रांतिकारी विचारधारा के लिए बेटी की जितनी भी सराहना की जाए कम है।
कमैंट्स सेक्शन
2.सुमनलता जी का कमेंट:
बहिन जी ने स्वपन वाली बात कमेंट में तो कर दी थी लेकिन हो सकता है कइयों ने मिस कर दी हो, इसको reshare करना हमें उचित लगा।
**************
मीरा बहिन जी की स्वप्न की अनुभूति पढ़ कर आज हम अपने उस स्वप्न को भी आपके समक्ष रख रहे हैं जो हमारे लिए एक रहस्य बना हुआ है।
7 अप्रैल की रात का वह स्वप्न हमने अपनी डायरी में लिख कर रखा है जो आज अनुभूति के कमेंट में शेयर करना चाहते हैं।
7 अप्रैल को तबियत कुछ ठीक सी नहीं लग रही थी। बेचैनी सी लगने लगी तो मन ही मन महामृत्युंजय मंत्र का जप चलने लगा। हमें पता नहीं कब उन क्षणों में हमारा मन पूज्यवर और माताजी को पुकारने लगा। हमारे अंतर्यामी सहृदय माता पिता देख नहीं पाए। मुझे कब गहरी नींद आ गई पता नहीं चला। इतने में दोनों- माताजी और गुरुदेव आते दिखाई दिए। मेरा आश्चर्य मिश्रित खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैं बोलती हूँ, “गुरुदेव, आप और माताजी भी आए हैं ।”तो वो बोलते हैं कि बेटी ने बुलाया तो क्यों नहीं आते। फिर कहते हैं “तेरे पैर में दर्द था ना? तू मेरा पैर दबा” और मैं उनके पैर दबाने लगती हूँ। इतने में मेरा बेटा आता है तो मैं उसको कहती हूँ कि बेटा देख गुरुदेव आए हैं। तेरे पैरों में दर्द था न, तू भी उनके पैर दबा दे तेरा दर्द ठीक हो जाएगा। वो भी उनके चरणों की तरफ झुकता है।( मेरे बेटे के पैरों में तकलीफ थी, हमें तो इतनी ज्यादा नहीं थी)
इतने में मूवी की तरह दृश्य परिवर्तन होता है तो मैं माता जी के साथ जा रही हूं। माताजी कहती हैं कि चल उनके घर भी हो आते हैं। नाम किसी का नहीं लेती। पुनः दृश्य परिवर्तन होता है। गुरुदेव अकेले कहीं जा रहे हैं। मैं पूछती हूँ “आप अकेले कहाँ जा रहे हैं” तो पूज्यवर कहते हैं कि मैं सब्जी लेने जा रहा हूँ।” मैंने बोला कि यहां तो इतने सारे लोग हैं, आप किसी से भी कहते तो वो ला देता। आप खुद क्यों जा रहे हैं। मैं भी उनके साथ चलने लगती हूँ। गुरुदेव कहते हैं, “इनको बोलता हूं तो बहुत सारी उठा लाते हैं। इसलिए इन्हें नहीं बोला।अपनी जरूरत भर की खुद ही ले आऊंगा।”
इसके साथ ही सुबह हो गई। और स्वप्न भी समाप्त हो गया। सुबह उठी तो मेरे पैर में जो थोड़ी बहुत तकलीफ थी, उसका नामों निशान नहीं था। अब तो धीरे-धीरे बेटे की भी दूर हो गई है।
हम उस दिन से यही सोच-सोच कर परेशान हैं कि हमें तो इतनी तकलीफ भी नहीं तो गुरुदेव को क्यों आना पड़ा। यह अपराध बोध होता है कि हमने उन्हें इतनी छोटी सी बात के लिए क्यों परेशान किया। कुछ समझ नहीं आ रहा है। बस स्वप्न बार-बार आँखों के सामने घूम रहा है।
ऐसे हैं हमारे गुरुदेव। मैं तो मिशन के कुछ भी काम नहीं आती, लेकिन फिर भी उनकी कृपा कम नहीं है ।
3.विदुषी बहिन जी का कमेंट :
हमने अपने साथियों से promise किया था कि बहिन जी का ज्ञान से भरपूर कमेंट स्पेशल सेगमेंट में प्रकाशित करेंगें क्योंकि इस कमेंट में बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी है। यूट्यूब में पोस्ट हुए कमेंट ढूढ़ने पड़ते हैं लेकिन हमारी वेबसाइट पर सभी पोस्ट करने से सुरक्षित हो जाते हैं।
************
आ. त्रिखा भाई सा. को हमारा भाव भरा नमस्कार आज के प्रस्तुत लेख मे “कलाप ग्राम” के प्रति जिज्ञासा का आपने उल्लेख किया है, उसका विवरण गुरु जी की हिमालय यात्राओं मे नहीं मिलता है। हाँ आपने अपने लेखों मे इस ग्राम की चर्चा जरूर की है, व चित्र भी दिए हैं। हमने “कलाप ग्राम” का चेतना की शिखर यात्रा, अखंड ज्योति मे ही पढ़ा था, ज्यादा नहीं। उसमें गुरु जी ने लिखा था कि उनके साथ उनके प्रतिनिधि थे एक जगह हवन हो रहा था जहाँ सत्यानंद स्वामी जी तो थे ही, साथ मे त्रियम्बकम बाबा जी भी थे, जिन्हे महावतार बाबा
जी कहा जाता है, गुरु जी ने भी उस यज्ञ मे समीधा द्वारा आहुति अर्पण की।
आपने जुलाई 2020 की अपनी वीडियो मे भी “कलाप ग्राम” के बारे मे बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है।
आपने अपनी दो जिज्ञासाओं का जिक्र किया है। पहली जिज्ञासा है कि यदि हिमालय सिद्ध क्षेत्र है तो यहाँ पर्यटन कैसे चल सकता है? गुरुदेव ने लिखा है कि नंदनवन की गुफाएं जो बड़ी थीं, साफ सुथरी थीं वे ऋषियों के सूक्ष्म शरीरों के निमित्त थीं। पूर्व अभ्यास के कारण वे अभी भी उनमे यदा-कदा निवास करते हैं। गुरु जी ने दादागुरु के साथ सतयुग के ऋषियों से भेंट की थी, वे सभी ध्यान मुद्रा मे थे और वे प्रायः इसी मुद्रा मे ही रहते हैं। गुरुदेव को भी हिमालय यात्रा के दौरान वहाँ की परिस्थितियों मे ढल जाने के उपरांत सूक्ष्म व कारण शरीर का ज्ञान उनकी मार्ग दर्शक सत्ता द्वारा बोध करवा दिया गया था। गुरु जी लिखते हैं कि अपनी प्रथम यात्रा के दौरान अपने गुरु जी के पीछे-पीछे चलते हुए पैर जमीन से ऊपर उठते हुए चल रहें थे। ये सब सिद्धी के कारण था।
पर्यटन की कुछ सीमा है, वोह तो वही देखेगा जो यथार्थ है, सिद्ध पुरुष, ऋषि सत्ता तो सूक्ष्म व कारण शरीरों से आवगमन करती हैं उन्हें कोई नहीं देख पाता, बहुत ही विशेष परिस्थिति मे ऋषिसत्ता क्षणिक भर स्थूल रूप भी ग्रहण करती है। गुरु जी को सम्बोधित करते हुए दादागुरु कहते हैं कि यदि स्थिति सुदृढ़ और विश्वस्त न रही होती तो इस क्षेत्र के निवासी, सूक्ष्म ऋषिगण तुम्हारे समक्ष प्रकट न हुए होते और मन की व्यथा न कहते।ऋषि सत्ता ने कहा कि ऋषि परम्परायें लुप्त होती जा रहीं हैं, उनका बीजारोपण गुरुदेव को ही आज के शांतिकुंज से करना है।
आगे दादागुरु बताते हैं कि वाहनों/सड़कों की सुविधा होने से यात्रिओं की संख्या बहुत बढ़ गयी है जिससे उनकी साधना मे विघ्न पड़ता है।कहीं और जगह जाने से शरीर निर्वाह मे असुविधा होती है। इसलिए स्थूल शरीर का परित्याग कर दिया है और सूक्ष्म शरीर धारण करके रहते हैं जो किसी को दृष्टिगोचर भी न हो और उसके लिए निर्वाह साधनों की आवश्यकता भी न पड़े।। इसके साथ-साथ स्थान भी बदल दिए गए हैं।
गुरुदेव लिखते हैं कि देवात्मा हिमालय विशेषकर उत्तराखंड दैवी चेतन सत्ता की निवास स्थली है। ऋषिगण गोमुख से नीचे और ऋषिकेश से ऊपर रहते थे लेकिन हिमयुग के बाद परिस्थितियाँ एकदम बदल गयीं, देवताओं ने कारण शरीर धारण कर लिए और अंतरिक्ष मे विचरण करने लगे। पुरातन काल के ऋषि गौमुख से ऊपर चले गए।
गुरुदेव की हिमालय यात्रा का अध्ययन करना बहुत ही रोचक विषय है। गुरुदेव ने देवात्मा हिमालय को “भगवान की विशेष शक्तिशाली सेना की छावनी” के रूप मे वर्णन किया है। यह उच्चस्तरीय आत्माओं का प्रशिक्षण विद्यालय रहा है। महाप्रभु ईसा कुछ समय के लिए इस क्षेत्र मे आये थे।
आदरणीय त्रिखा भाई जी, अखंड ज्योति के अप्रैल 1985 अंक में गुरुदेव की हिमालय यात्रा के बारे में बहुत कुछ वर्णन है, आपको बहुत कुछ जानने को मिलेगा। ज्ञानगंज शांगला घाटी का कोई उल्लेख गुरु जी ने नहीं किया है। जो गुरु जी ने लिखा है हम उसे ही सत्य मानते हैं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद व आभार व्यक्त करते हैं। जय माँ गायत्री शुभ दिन शुभ प्रभात सभी को प्रणाम
4.पुष्पा सिंह जी का कमेंट :
जब हम परम पूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा के सन्दर्भ में Hot water springs की बात कर रहे थे तो बहिन पुष्पा जी ने निम्नलिखित कमेंट किया जिसमें बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है। साथियों को गूगल सर्च करके बहुत सारी जानकारी मिल सकती है।
जैसे गुरुदेव को तपोवन में गर्म कुंड मिला, वैसा ही बिहार के “राजगीर” में भी है जिसे वहां सप्तधारा और ब्रह्मकुंड के नाम से जाना जाता है और पास में ही नालंदा विश्वविद्यालय पावापुरी भी है और पहाड़ भी है। पहाड़ पर जापान के सहयोग से महात्मा बुद्ध का विश्व शांति स्तूप भी है जहां लिफ्ट द्वारा उपर जाया जाता है।
इस सारी जानकारी के लिए बहिन जी का बहुत-बहुत धन्यवाद् है।
******************
आज की 24 आहुति संकल्प सूची में मात्र 12 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज फिर कुमोदनी जी गोल्ड मैडल विजेता तो हैं ही लेकिन शतक से भी ऊपर पंहुच चुकी है। उन्हें हमारी डबल बधाई। कमेंट करके हर कोई पुण्य का भागीदार बन रहा है।
(1)सरविन्द कुमार-24,(2) चंद्रेश बहादुर -44,(3 )नीरा त्रिखा-25 ,(4)वंदना कुमार-28 ,(5) कुमोदनी गौराहा-106 ,(6) अरुण वर्मा-25,(7) पुष्पा सिंह-25,(8)स्नेहा गुप्ता-29,(9)सुजाता उपाध्याय-66,(10 निशा भारद्वाज-30,(11) प्रेरणा कुमारी-25,(12) मंजू मिश्रा-37,
समयदान, ज्ञानदान,श्रमदान के माध्यम से सहकारिता के लिए सामूहिक बधाई।
