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गुरुदेव की हिमालय यात्रा से प्राप्त शिक्षा-पार्ट 3 

7 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद

“लोग क्या कहेंगे?” एक ऐसी भ्रांति है जो हमें दिन ब दिन अंदर से खोखला किए जा रही है-आज की शिक्षा। 

आज का ज्ञानप्रसाद लेख इस सप्ताह की लेख शृंखला का अंतिम लेख है, कल एक बहुत ही शिक्षाप्रद वीडियो और शनिवार को हमारा सबका  लोकप्रिय सेगमेंट अनेकों जानकारियां लेकर आ रहा है। कल की वीडियो में श्रद्धेय डॉक्टर साहिब परम पूज्य गुरुदेव के बारे में वोह बातें  बता रहे हैं जिन्हें जानकर गुरुदेव के प्रति हमारे साथिओं की श्रद्धा  और भी दृढ होगी।

पिछले दोनों लेखों में हम सबने जाना  कि दादागुरु के निर्देश पर हमारे गुरुदेव हिमालय की कठिन और दुर्गम यात्रा तो करते ही रहे लेकिन वहां भी हम जैसे करोड़ों बच्चों का ख्याल रखते रहे। दोनों लेखों में दिए गए विवरण गुरुदेव की डायरी से चल कर, अखंड ज्योति पत्रिका एवं अन्य प्रकाशनों से होते हुए “सुनसान के सहचर” नामी पुस्तक में प्रकाशित हुए, जिसका अमृतपान हम सभी आजकल कर रहे हैं। 

आज का लेख “आलू का भालू” शीर्षक से बहुचर्चित विवरण की चर्चा कर रहा है, हमारे साथिओं ने इस विवरण को जहाँ तहाँ अवश्य देखा होगा। इस लेख  से प्राप्त हुई शिक्षा के अनुसार, इस संसार की हर वस्तु मनुष्य को  भालू की तरह डरावनी लगती है लेकिन  जब आत्मज्ञान का प्रकाश होता है, अज्ञान का कोहरा  फटता है, मानसिक दुर्बलता घटती है, तो प्रतीत होता है कि जिसे हम भालू समझ कर डरते हैं,वह तो पहाड़ी गाय थी। हम जिन्हें शत्रु मानते हैं,वोह तो हमारे अपने ही स्वरूप हैं, ईश्वर अंश मात्र हैं। ईश्वर हमारा प्रिय साथी,सखा  है तो उसकी रचना मंगलमय ही होनी चाहिए। हम ईश्वर को जितने भी बिगड़े हुए रूप में चित्रित करते हैं, उतना ही हमें उससे डर लगता है। यह अशुद्ध चित्रण हमारी मानसिक भ्रान्ति के इलावा और कुछ भी नहीं है।

इसी शिक्षा के साथ गुरुकुल ज्ञानशाला की आज की कक्षा में गुरुचरणों में समर्पित होते हैं लेकिन विश्वशांति के लिए प्रार्थना  करने के बाद। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो।  

गुरुदेव बता रहे हैं : 

आज गंगोत्री यात्रिओं का एक दल और भी साथ में मिल गया, उस दल में सात लोग थे, पांच पुरुष,दो स्त्रियां। हमारा बोझा हमारे कन्धे पर था,लेकिन  उन सातों का बिस्तर एक पहाड़ी कुली लिए चल रहा था। कुली देहाती था, उसकी भाषा भी ठीक तरह समझ में नहीं आ रही थी । स्वभाव का भी अक्खड़ और झगड़ालू जैसा था। झाला चट्टी की ओर ऊपरी पठार पर जब हम लोग चल रहे थे, तो उँगली का इशारा करके उसने कुछ विचित्र डरावनी-सी मुद्रा के साथ कोई चीज़ दिखाई और अपनी भाषा में कुछ कहा। सब बात तो समझ में नहीं आई, लेकिन दल के एक व्यक्ति ने इतना ही समझा भालू-भालू। वह गौर से उस ओर देखने लगा । उस समय घना कोहरा पड़ रहा था, कोई चीज ठीक से दिखाई नहीं पड़ती थी,लेकिन  जिधर कुली ने इशारा किया था, उधर उसे कुछ काले-काले जानवर घूमते नज़र आए।

जिस व्यक्ति ने कुली के मुँह से भालू-भालू सुना था,वह बहुत डर गया था। उसने पूरे विश्वास के साथ यह समझ लिया कि नीचे भालू-रीछ घूम रहे हैं। वह पीछे था, दबे पांव जल्दी-जल्दी आगे आया कि वह भी हम सबके साथ मिल जाय। कुछ देर में ही वह हमारे साथ आ गया। होंठ सूख रहे थे और भय से काँप रहा था। उसने हम सबको रोका और नीचे काले जानवर दिखाते हुए बताया कि भालू घूम रहे हैं, अब यहाँ जान का खतरा है ।

डर तो हम सब भी  गये थे, सूझ नहीं पड़ रहा था कि किया क्या जाये । जंगल काफी घना और डरावना था। उसमें रीछ के होने की बात असम्भव नहीं थी। पहाड़ी रीछों की भयंकरता के बारे में कुछ बढ़ी-चढ़ी बातें परसों ही साथी यात्रियों से सुनी थीं। यह साथी दो वर्ष पूर्व मानसरोवर गए थे।डर बढ़ रहा था, काले जानवर हमारी ओर आ रहे थे। घने कोहरे  के कारण शक्ल तो साफ नहीं दिख  रही थी,लेकिन  रंग के काले और कद में बिल्कुल रीछ जैसे थे, फिर कुली ने इशारे से होने की बात भी बता दी है, अब तो किसी तरह से कोई शंका नहीं लग रही थी। सोचा, कुली से ही पूछें कि अब क्या करना चाहिए। पीछे मुड़कर देखा तो कुली ही गायब था । कल्पना की दौड़ ने एक ही अनुमान लगाया कि वह जान का खतरा देखकर कहीं छिप गया है या किसी पेड़ पर चढ़ गया है। हम लोगों ने अपने भाग्य के साथ अपने को बिल्कुल अकेला और  असहाय पाया। हम सब एक जगह सभी के पास- पास  इकट्ठे हो गये। दो-दो व्यक्तियों  ने चारों दिशाओं की ओर मुँह कर लिए, लोहे की कील गड़ी हुई लाठियाँ जिन्हें लेकर चल रहे थे, बन्दूकों की भाँति सामने तान ली और तय कर लिया कि जिस किसी पर भी भालू  हमला करे, वोह  उसके मुँह में कील गड़ी लाठी ठूंस दे और साथ ही सब भालू  पर हमला कर दें, कोई भागे नहीं, अन्त तक सब साथ रहें। इस योजना के साथ सब लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे, भालू  जो पहले हमारी ओर आते दिखाई दे रहे थे, नीचे की ओर उतरने लगे, हम लोगों ने चलने की रफ्तार काफी तेज़ कर दी ताकि जितनी जल्दी हो सके खतरे को पार कर लें। ईश्वर का नाम सबकी जीभ पर था। मन में भय बुरी तरह समा रहा था। 

इस प्रकार एक-डेढ़ मील का रास्ता पार किया।कोहरा कुछ कम हुआ । सुबह के  आठ बज रहे थे। सूर्य का प्रकाश भी दिखने लगा। घनी वृक्षावली भी पीछे रह गई । भेड़-बकरी चराने वाले भी सामने दिखाई दिये। हम लोगों ने सन्तोष की साँस ली। अपने को खतरे से बाहर अनुभव किया और सुस्ताने के लिए बैठ गये। इतने में कुली भी पीछे से आ पहुँचा। हम लोगों को घबराया हुआ देखकर वह कारण पूछने लगा। साथियों ने कहा,”तुम्हारे बताये हुए भालुओं से भगवान् ने जान बचा दी, लेकिन तुमने तो हमें खूब धोखा दिया। उपाय बताने के बजाए तुम खुद छिपे रहे।”  कुली कुछ सकपकाया, उसने समझा हमें  कुछ भ्रम हो गया। हम लोगों ने उसके इशारे से भालू बताने की बात दोहराई  तो वह सब बात समझ गया कि हम लोगों को क्या गलतफहमी हुई है। 

उसने कहा- “झाला गाँव का आलू बहुत मशहूर है, बड़ा-बड़ा पैदा होता है, ऐसी फसल इधर किसी गाँव में नहीं होती, वही बात मैंने अँगुली के इशारे से बताई थी। “झाला का आलू” कहा था, आपने उसे भालू समझा। वह काले जानवर तो यहाँ की काली गायें हैं, जो दिन भर इसी तरह चरती फिरती हैं। कोहरे के कारण ठीक से दिखती नहीं,  आपको वही भालू जैसी  दिखी होंगी। यहाँ भालू कहाँ होते हैं, वोह तो और ऊपर पाए जाते हैं, आप व्यर्थ ही डरे । मैं तो दीर्घशंका करने के लिए छोटे झरने के पास बैठ गया था, साथ होता तो आपका भ्रम उसी समय दूर कर देता ।

गुरुदेव कहते हैं कि हम लोग अपनी मूर्खता पर हँसे भी और शर्मिन्दा भी हुए। खासकर उस साथी पर बहुत हंसे जिसने कुली की बात को गलत तरह से समझ लिया था। अब भय मज़ाक  में बदल गया। दिन भर उस बात की चर्चा रही। उस डर के समय में जिस-जिस ने जो-जो कहा था और किया था उसे चर्चा का विषय बनाकर सारे दिन आपस की छींटाकशी, चुहलबाजी होती रही। सब एक दूसरे को अधिक डरा हुआ परेशान सिद्ध करने में रस लेते। मंजिल आसानी से कट गई। मनोरंजन का अच्छा विषय रहा।

भालू की बात जो घंटा भर पहले बिल्कुल सत्य और जीवन-मरण की समस्या मालूम पड़ती रही, अन्त में एक “भ्रान्ति” मात्र सिद्ध हुई । 

इस विवरण से प्राप्त हुई शिक्षा  

सोचता हूँ कि हमारे जीवन में ऐसी अनेकों भ्रांतियाँ हैं जो  हमें घेरे रहती हैं,जिनके कारण हम निरन्तर डरते रहते हैं। यह सब भ्रांतियां मनुष्य की  मानसिक दुर्बलता के कारण होती हैं । हमें हर समय यही डर रहता है कि हमारे ठाट-बाठ, फैशन, रहन-सहन में कमी आ गई तो लोग क्या कहेंगे।

“लोग क्या कहेंगे?” एक ऐसी भ्रांति है जो हमें दिन ब दिन अंदर से खोखला किए जा रही है।

इसी भ्रांति के डर से अनेकों लोग अपने खर्चे इतने बढ़ाए बैठे हैं, जिनको पूरा करना कठिन पड़ता है। “लोग क्या कहेंगे” वाली बात चरित्र पतन के समय याद आए तो ठीक भी हैं, लेकिन  यदि  “दिखावे में कमी” के समय में आए  तो यही मानना पडेगा कि वह मात्र अपडर ही है। अपडर का अर्थ अपशकुन के साथ मिलता जुलता है। उदाहरण के लिए अगर हम सादगी से जीवन बसर करेंगें,तो गरीब समझे जायेंगे, कोई हमारी इज्जत न करेगा,अगर हम शान-शौकत दिखाने वाले किसी मनुष्य की आवभगत नहीं करेंगें तो वोह हमें “शाप” ही न दे दे।

ऐसा भ्रम केवल दुर्बल मस्तिष्कों में ही उत्पन्न होता है, जैसे हमें अपनी ही नासमझी के कारण भालू का डर हुआ था।

आए दिन हमारे समक्ष अनेकों चिन्ताएँ, परेशानियाँ,उत्तेजनाएँ, वासनाएँ तथा दुर्भावनाएँ मुंह खोले खड़ी रहती हैं। हमें लगता है कि यह संसार बड़ा दुष्ट और डरावना है। यहाँ की हर वस्तु भालू की तरह डरावनी है लेकिन  जब आत्मज्ञान का प्रकाश होता है, अज्ञान का कोहरा  फटता है, मानसिक दुर्बलता घटती है, तो प्रतीत होता है कि जिसे हम भालू समझ कर डर रहे थे, वह तो पहाड़ी गाय थी। हम जिन्हें शत्रु मानते हैं,वोह तो हमारे अपने ही स्वरूप हैं, ईश्वर अंश मात्र हैं। ईश्वर हमारा प्रिय साथी,सखा  है तो उसकी रचना मंगलमय ही होनी चाहिए। हम ईश्वर को जितने भी विकृत रूप में चित्रित करते हैं, उतना ही हमें उससे डर लगता है। यह अशुद्ध चित्रण हमारी मानसिक भ्रान्ति के इलावा और कुछ भी नहीं है,ठीक उसी तरह जैसे  कुली के शब्द “आलू को भालू”  समझकर उत्पन्न कर ली गई थी।

तो यहीं पर आने वाले सोमवार तक अल्पविराम होता है। 

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज कुमोदनी  जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1)संध्या कुमार-42,(2) चंद्रेश बहादुर -40 ,(3 )नीरा त्रिखा-25, (4) रेणु श्रीवास्तव-35  ,(5) अरुण वर्मा-47,(6) सुजाता उपाध्याय-52 ,(7) सरविन्द पाल-29,(8)  निशा भारद्वाज-52 , (9 ) वंदना कुमार-34, (10)कुमोदनी गौराहा-62  

समयदान, ज्ञानदान,श्रमदान के माध्यम से सहकारिता के लिए  सामूहिक बधाई।


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