वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुदेव की हिमालय यात्रा से प्राप्त शिक्षा पार्ट 1 

5 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद

कल वाले लेख में हमने परम पूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा का बार-बार अध्ययन के पीछे छिपे उद्देश्य को कुरेदना चाहा था और पांच प्रश्नों  के उत्तर भी ढूंढने का प्रयास किया था। बहिन विदुषी जी ने एक-एक प्रश्न का बहुत ही क्लियर उत्तर देकर हम सब को कृतार्थ किया जिसके लिए हम व्यक्तिगत तौर से आभारी हैं।

“धर्म के पहाड़” को  दीवार की तरह पकड़कर चलने पर ही  हम अपना सन्तुलन बनाये रह सकते हैं जिससे खतरे की नदी  की ओर झुक पड़ने का भय कम हो जाता है। आड़े वक्त में इस दीवार का सहारा ही हमारे लिए सब  कुछ है। धर्म की आस्था ही लक्ष्य की मंजिल को ठीक तरह पार कराने में बहुत कुछ सहायक मानी जायेगी।”

quotes /unquotes में ऊपर लिखी यह पंक्तियाँ उस विवरण से प्राप्त हुई शिक्षा का एक भाग है जिसे हम सब अनेकों बार यूट्यूब वीडियोस में,ऑडियो बुक्स में,फेसबुक पोस्ट्स में, इंस्टाग्राम में, शांतिकुंज से प्राप्त हुए अमृतवचनों में देख चुके हैं। “मृत्यु सी भयानक संकरी पगडण्डी” का विवरण सुनसान के सहचर नामक पुस्तक में अंकित है। 

आने वाले दिनों में ऐसे ही अनेकों विवरण सरलीकरण करके प्रस्तुत करते हुए उनके “शिक्षाप्रद भाग” पर केंद्रित होकर ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने की योजना है। 

प्रस्तुत है ऐसे ही दो दिव्य विवरण।   

आज बहुत दूर तक भयानक रास्ते से चलना पड़ा। नीचे गंगा बह रही थी, ऊपर पहाड़ खड़ा था। पहाड़ के निचले भाग में होकर चलने की तंग सी पगडण्डी थी । उसकी चौड़ाई मुश्किल से तीन फुट रही होगी । उसी पर होकर चलना था। पैर भी इधर-उधर हो जाय तो नीचे गरजती हुई गंगा के गर्भ में जल समाधि लेने में कुछ देर न लगे । जरा बचकर चले, तो दूसरी ओर सैकड़ों फुट ऊँचा पर्वत सीना ताने खड़ा था। पर्वत एक इंच भी अपनी जगह से हटने को तैयार न था। तंग  सी पगडण्डी पर संभल-संभल  कर एक-एक कदम रखना पड़ता था; क्योंकि जीवन और मृत्यु के बीच मात्र एक डेढ़ फुट का अन्तर ही था ।

“मृत्यु का डर कैसा होता है उसका अनुभव जीवन में पहली बार हुआ।” 

एक पौराणिक कथा सुनी थी कि राजा जनक ने शुकदेव जी को अपने “कर्मयोगी” होने की स्थिति समझाने के लिए तेल का भरा कटोरा हाथ में देकर नगर के चारों ओर भ्रमण करते हुए वापिस आने को कहा और साथ ही कह दिया था कि यदि एक बूंद भी तेल गिरा तो वहीं गर्दन  काट दी जायेगी । शुकदेव जी मृत्यु के डर से कटोरे से तेल न गिरने  की सावधानी  हुए बरतते हुए चल पड़े । सारा नगर  भ्रमण कर लिया लेकिन  उन्हें तेल के अतिरिक्त और कुछ दिखा ही नहीं। राजा जनक ने तब उनसे कहा कि  जिस प्रकार मृत्यु के भय ने तेल की एक भी बूँद गिरने न दी और सारा ध्यान कटोरे पर ही केंद्रित रखा, उसी प्रकार मैं भी मृत्यु के भय को सदा ध्यान में रखता हूँ, जिससे किसी “कर्तव्य कर्म” में न तो आलस्य  होता है  और न ही व्यर्थ की बातों में मन भटक कर चंचल होता है ।

इस कथा का स्पष्ट और व्यक्तिगत अनुभव आज उस तंग सी भयानक पगडण्डी पर चलते  हुए किया। हम लोग कई पथिक थे। सभी  खूब हँसते-बोलते चल रहे थे, लेकिन जैसे ही  वह सँकरी पगडण्डी आई,सभी चुप हो गए। बातचीत के सभी विषय समाप्त हो गए , न किसी को घर की याद आ रही थी और न किसी अन्य विषय पर ध्यान था। चित्त पूरी तरह से  एकाग्र था और केवल यही एक प्रश्न पूरे मनोयोग के साथ चल रहा था कि अगला पैर ठीक जगह पर पड़े। एक हाथ से हम लोग पहाड़ को पकड़ते चलते थे, यद्यपि उसमें पकड़ने जैसी कोई चीज नहीं थी, फिर  भी इस आशा के साथ  कि यदि शरीर का  झुकाव थोड़ा सा भी  गंगा की तरफ हुआ तो संतुलन को ठीक रखने में पहाड़ को पकड़-पकड़ कर चलने का उपक्रम कुछ न कुछ सहायक तो होगा ही । डेढ़-दो मील की यह यात्रा बड़ी कठिनाई के साथ पूरी की, ह्रदय  हर घड़ी धड़कता रहा । 

“ जीवन से कितना प्यार होता है और इसे  बचाने के लिए कितनी सावधानी की आवश्यकता है:  यह पाठ practically आज ही पढ़ा।”

यह कठिन  यात्रा पूरी हो गई, लेकिन उस यात्रा को स्मरण करके अब भी कई विचार अभी भी उठ रहे हैं। गुरुदेव लिखते हैं:  सोचता हूँ यदि हम सदा मृत्यु को निकट ही देखते रहें, तो व्यर्थ की बातों पर मन दौड़ाने वाली  मृग तृष्णाओं से बच सकते हैं। हमारी आज की यात्रा भी जीवन लक्ष्य की यात्रा के समान ही है जिसमें हर कदम साध-साधकर रखा जाना जरूरी है । यदि एक भी कदम गलत या गफलत भरा उठ जाय, तो मानव जीवन के महान् लक्ष्य से पतित होकर हम एक अथाह गर्त में गिर सकते हैं। जीवन से हमें प्यार है, तो प्यार को चरितार्थ करने का एक ही तरीका है: 

जिन दिनों की यात्रा का वर्णन परम पूज्य गुरुदेव दे रहे हैं उन दिनों यात्राएं पैदल ही हुआ करती थीं। ऐसे पैदल चलने वाले यात्रियों के मार्ग में पड़ने वाले पड़ाव को “चट्टी” कहते थे। जमुना चट्टी,नारद चट्टी, फूल चट्टी,कृष्णा चट्टी आदि कुछ एक उदाहरण हैं।

गुरुदेव बता रहे हैं कि आज सुक्की चट्टी पर धर्मशाला के ऊपर की मंजिल की कोठरी में ठहरे थे, सामने ही बर्फ से ढकी पर्वत की चोटी दिखाई दे  रही थी।  बर्फ पिघल कर धीरे-धीरे पानी का रूप धारण कर रही थी, वह झरने के रूप में नीचे की तरफ बह रही थी । कुछ बर्फ पूरी तरह गलने से पहले ही पानी के साथ मिलकर बहने लगती थी, इसलिए दूर से झरना ऐसा लगता था, मानो झागदार दूध ऊपर बढ़ता चला आ रहा हो । दृश्य बहुत ही शोभायमान था, देखकर आँखें ठण्डी हो रही थीं । जिस कोठरी में अपना ठहरना था, उससे तीसरी कोठी में अन्य यात्री ठहरे हुए थे, उनमें दो बच्चे भी थे। एक लड़की और एक लड़का, दोनों की उम्र 11-12  वर्ष के लगभग रही होगी, उनके माता-पिता यात्रा पर थे । इन बच्चों को कुलियों की पीठ पर इस प्रान्त में चलने वाली “कन्द्री” सवारी में बिठाकर लाये थे, बच्चे हँसमुख और बातूनी थे । दोनों में बहस हो रही थी कि यह सफेद चमकता हुआ पहाड़ किस चीज का है। उन्होंने  कहीं सुन रखा था कि पहाड़ों में धातुओं की खानें होती है। बच्चों ने संगति मिलाई कि “पहाड़ चाँदी का है।” लड़की को इसमें सन्देह हुआ, वह यह तो नहीं  सोच सकी कि चाँदी का नहीं  होगा तो और किस चीज का होगा, लेकिन  इतना  जरूर सोचने लगी  कि अगर इतनी चाँदी इस प्रकार खुली पड़ी होती तो कोई न कोई उसे उठा ले जाने की कोशिश जरूर करता। वह लड़के की बात से सहमत नहीं हुई और जिद्दा-जिद्दी चल पड़ी। गुरुदेव को यह  विवाद मनोरंजक लगा और बच्चे भी प्यारे लगे, उन्होंने  दोनों को बुलाया और समझाया कि यह पहाड़ तो पत्थर का है लेकिन ऊंचाई पर होने के कारण बर्फ जम गई है। गर्मी पड़ने पर यह बर्फ पिघल जाती है और सदीं पड़ने पर जमने लगती है। जमी हुई बर्फ ही चमकने पर चाँदी जैसी लगती है। बच्चों का एक समाधान तो हो गया लेकिन  वे उसी सिलसिले में ढेरों प्रश्न पूछते गये, गुरुदेव  भी उनके ज्ञानवृद्धि की दृष्टि से पर्वतीय जानकारी से सम्बन्धित बहुत-सी बातें उन्हें बताते रहे ।

गुरुदेव लिखते हैं : 

इन्ही शब्दों के साथ परम पूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा से प्राप्त हुई शिक्षा का यहीं पर अल्प विराम करते हैं, कल अपने सहपाठिओं के साथ गुरुकुल पाठशाला की इस कक्षा में एक और शिक्षाप्रद विवरण प्रस्तुत करेंगें, तब तक के लिए जय माँ गायत्री,जय गुरुदेव, जय वंदनीय माता जी।

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में केवल 6  युगसैनिकों ने ही संकल्प पूर्ण किया है।  आज रेणु जी और चंद्रेश जी  गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1)संध्या कुमार-29 ,(2) चंद्रेश बहादुर -34 ,(3 )नीरा त्रिखा-30, (4) रेणु श्रीवास्तव-35 ,(5)  अरुण वर्मा-30,(6) वंदना कुमार-26  

सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।


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