1 सितम्बर 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद लेख हमारी स्वाभाविक जिज्ञासा का वर्णन कर रहा है जिसे हम अपने साथियों की पंचायत के समक्ष रख रहे है। हमें विश्वास है कि हमारे सूझवान, शिक्षित एवं प्रतिभाशाली साथी इस विषय पर कमेंट करके जिज्ञासा का समाधान अवश्य ही निकाल लेंगें। सामान्य लेखों की तुलना में आज का लेख कुछ छोटा ही है।
परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित साहित्य को आधार बना कर हमने आज तक (2023) लगभग 900 लेख लिखे हैं, उनमें लगभग 50 लेख केवल गुरुदेव की हिमालय यात्रा को ही समर्पित हैं। गुरुदेव की हिमालय यात्रा पर आधारित साहित्य-चेतना का शिखर यात्रा, सुनसान के सहचर, हमारी वसीयत और विरासत,अखंड ज्योति के अनेकों अंक, अनेकों ऑडियो/वीडियोस का अध्ययन करने के बाद भी स्थिति यह है कि तृष्णा बढ़ती ही जा रही है और प्रश्न उठते ही जा रहे हैं। जितनी बार भी इस विषय पर लिखने का प्रयास किया,कुछ नए विचार और प्रश्न ही सामने आकर खड़े हो गए।
आज सोचा कि अकेले ठोकरें खाने के बजाए क्यों न अपने साथियों को भी साथ लेकर सुमेरु शिखर, चौखम्बा पर्वत के एरिया में जाया जाए। विदुषी बहिन जी की भांति अनेकों और भी होंगें जिन्होंने इस विषय पर स्वाध्याय किया होगा, सभी को सादर निमंत्रण है कि इन सिद्ध क्षेत्रों के बारे में अपने विचार अवश्य रखें।
हमारी जिज्ञासा: अगर यह सिद्ध क्षेत्र है तो यहाँ पर्यटन कैसे चल सकता है ?
कल प्रकाशित होने वाली वीडियो आदरणीय डॉक्टर प्रमोद भटनागर जी की 50 मिंट के वीडियो का वोह अंश है जिसमें परम पूज्य गुरुदेव से जुड़ने का वर्णन है। हमने यह वीडियो कुछ दिन पहले ही रिकॉर्ड की थी जब शांतिकुंज टोली कनाडा के प्रवास पर थी।
आइए विश्वशांति की कामना के साथ आज की ज्ञानकक्षा का शुभारम्भ गुरुचरणों में नतमस्तक होकर करें।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
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चेतना की शिखर यात्रा भाग 2 के दो चैप्टर; 18 और 19 गुरुदेव की हिमालय यात्रा से सम्बंधित हैं। चैप्टर 18 का शीर्षक “सिद्ध लोक में प्रवेश” और चैप्टर 19 का शीर्षक “जहाँ न पंहुचे काया” ने हमारे मन मस्तिष्क में अनेकों प्रश्नों को जन्म दिया।
सबसे बड़ा प्रश्न था कि अगर शीर्षक के अनुसार केवल परम पूज्य गुरुदेव जैसी सिद्ध आत्माएं ही इस प्रदेश में पंहुच पाती हैं तो साधारण मानव कैसे पंहुच गए हैं। इंटरनेट पर अनेकों रिपोर्ट्स इस तथ्य की साक्षी हैं कि अब इन दुर्लभ स्थानों पर भी पहुँच पाना संभव है। ज्ञानगंज,सिद्धाश्रम, शंबाला, शांगरिला जैसे कई क्षेत्र हैं जिनकी चर्चा इसी सन्दर्भ में की गयी है।
परम पूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा के सन्दर्भ में इसी क्षेत्र का एक ग्राम है जिसका नाम “कलाप” है, आज के ज्ञानप्रसाद की चर्चा इस ग्राम पर आधारित है।
“कलाप” ग्राम इस क्षेत्र का एक ऐसा ग्राम है जिसके साथ गुरुदेव की हिमालय यात्रा का महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। चेतना की शिखर यात्रा के भाग 2 में इस ग्राम में प्रवेश करते ही परम पूज्य गुरुदेव ने जो अनुभव किया और देखा किसी स्वर्गीय आभास से कम नहीं था। इसी ग्राम में महाकाव्य “महाभारत का जन्म हुआ था और इसे “महाभारत ग्राम” का नाम भी दिया गया है। पांडवों ने इस ग्राम में कुछ समय भी व्यतीत किया था। यहाँ के निवासी आज भी अपनेआप को कौरवों और पांडवों के वंशज कहते हैं। क्या ज्ञानगंज, सिद्धाश्रम, शंबाला, शांगरिला आदि ऐसे ही क्षेत्रों के ही नाम हैं ? इसी ग्राम में गुरुदेव की भेंट संत सत्यानंद जी से हुई थी। हिमालय यात्रा से सम्बंधित अनेकों अलौकिक संस्मरण हम बार-बार अपने साथियों के समक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं। हर बार कुछ नया ही मिल जाता है।
कलाप ग्राम की जानकारी :
कलाप उत्तराखंड के ऊपरी गढ़वाल क्षेत्र का एक गाँव है। 7800 फीट की ऊंचाई पर स्थित, यह गांव देवदार (चीढ़ ) के जंगलों के बीच बसा है। यह ऊंचाई लगभग हिमाचल प्रदेश स्थित शिमला जितनी है परन्तु शिमला जैसा विकास इस गांव में सोचना भी शायद कठिन हो, सुपिन नदी यहाँ की मुख्य नदी है जो टोंस नदी से होकर यमुना नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। कलाप ग्राम उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 210 किलोमीटर और नई दिल्ली से 450 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा देहरादून है। कलाप के लिए कोई भी डायरेक्ट बस सर्विस नहीं है। निकटतम शहर नेटवर तक पहुंचने में देहरादून से कार से 6 घंटे या बस से 10 घंटे लगते हैं। नेटवर से कलाप पहुँचने का केवल पैदल ही मार्ग है जिसमें लगभग 4-5 घंटे लगते हैं और सीधी पहाड़ी चढाई है।
38 वर्षीय बंगलुरु निवासी फोटो जर्नलिस्ट आनंद संकर की 2013 में आरम्भ हुई कलाप ट्रस्ट नामक समाजिक आर्गेनाईजेशन ने इस गांव के विकास बारे में कुछ कार्य किया है। आज 2023 में इस लेख के लिखते समय गूगल सर्च से जानकारी प्राप्त हुई है कि यह संस्था अब permanently बंद हो चुकी है लेकिन जितनी देर तक यह संस्था यहाँ रही, पूर्ण श्रद्धा एवं सक्रियता से यहाँ के लोगों को सहयोग देती रही। करोनकाल में इस संस्था ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया।
आजकल (2023) तो इस गांव में केवल 500 लोग ही रहते हैं। विकास न होने के कारण और यहाँ पर कोई approach road न होने के कारण आज इस गांव को Forgotten Himalayan remote scenic village की संज्ञा दे दी है । हमारा दुर्भाग्य है कि इतने प्रसिद्ध ऐतिहासिक गांव को इस प्रकार की संज्ञा दे दी गयी है। अविकसितता का उदाहरण तो तब देखने में आया जब हम ऑनलाइन इस प्रदेश की रिसर्च कर रहे थे तो पाया कि सुपिन नदी के ऊपर लकड़ी का पुल टूट गया था और निवासी इतने वेगपूर्ण नदी से अपनी जान को जोखिम में डाल कर पास की बस्तियों में आ जा रहे थे। ऑनलाइन ट्रेवल एजेंसीज पर्यटकों को यहाँ trekking आदि के लिए लाती हैं। इंटरनेट तो नहीं है लेकिन पास वाले ग्राम के टावर से wifi की कुछ सुविधा मिल जाती है। पर्यटकों के लिए homestay ही एकमात्र विकल्प है।
कलाप गांव और उसके आसपास के ग्राम महाभारत की पौराणिक कथाओं में डूबे हुए हैं। कलाप का मुख्य मंदिर कौरवों के साथ लड़ने वाले योद्धा कर्ण को समर्पित है। कर्ण की मूर्ति को इस क्षेत्र के विभिन्न ग्रामों के बीच लेकर जाया जाता है। जब मूर्ति को एक ग्राम से दूसरे ग्राम में ले जाया जाता है, तो इसे “कर्ण महाराज उत्सव” के रूप में मनाया जाता है। कलाप में पिछला उत्सव 2014 में मनाया गया था, और यह एक दशक से अधिक समय के बाद ही फिर से होगा। जनवरी में इस गाँव में हमेशा ही “पांडव नृत्य” होता है । इस नृत्य रूप आयोजन में महाभारत की विभिन्न कहानियों का अभिनय किया जाता है। इस ग्राम के निवासिओं को जीने, खाने और पहनने के लिए जो कुछ भी चाहिए वह कलाप में बनाया जाता है। जीवन जीने के इस अनूठे तरीके का अनुमान इस दूरस्थ स्थान की कठोरता से लगाया जाता है। इस दूरस्थ क्षेत्र में यह सारी सुविधाएँ कैसे बनाई जाती हैं, यह भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है।
हमारा प्रश्न : अगर यह सिद्ध क्षेत्र है तो यह संस्था एवं इससे जुड़े लोग कैसे सक्रीय रहे।
इस तथ्य में तो कोई भी दो राय नहीं हैं कि सारा हिमालय प्रदेश दिव्यता से परिपूर्ण है, देवताओं का निवास है, अलौकिक है एवं अविश्वसनीय अनुभव होना स्वाभाविक है। देवताओं के निवास होने के कारण ही इसे “देवभूमि” की संज्ञा दी गयी है।
ईश्वरीय शक्तिओं के बारे में कुछ भी कहना किसी के भी बस में नहीं है, हमारे बस में तो बिल्कुल ही नहीं है। इतना विशाल एवं विस्तृत हिमालय क्षेत्र है, कौनसे क्षेत्र में, किसी particular समय पर, किसी दिव्य आत्मा को कैसा अलौकिक आभास हुआ, इस पर केवल विश्वास ही करना उचित होना चाहिए। जब हम समेरु पर्वत,चौखम्बा शिखर आदि के क्षेत्र में गुरुदेव को यात्रा करते हुए पाते हैं तो अवश्य ही उनकी शक्ति अचंभित कर जाती है। ऐसा हम इसलिए कर रहे हैं कि specially trained पर्वतारोहियों के लिए तो कठिन नहीं है, लेकिन गुरुदेव, जिन्हें जब भी दादागुरु का निर्देश हुआ,बिना किसी किन्तु-परन्तु के चल पड़े।
जहाँ तक सिद्ध आत्माओं का सम्बन्ध है, उन्हें आज के इंटरनेट युग में भी यहाँ तहाँ देखा जाता रहा है। यह भी बात कुछ हद तक ठीक ही लगती है कि सिद्धाश्रम जैसे दिव्य स्थलों पर पहुँच पाना असंभव है। इन क्षेत्रों में मानवी काया कभी भी पहुँच नहीं पायी है, जिसने भी पहुँचने का प्रयास किया उसकी मृत्यु हो गयी। हो सकता है कि इन सिद्ध शक्तियों का ही कोई ऐसा प्रतिबंध हो कि यहाँ कोई मानवी काया न आ पाए। इंटरनेट पर अनेकों ऐसी कहानियां मिल जाएँगी जिन पर विश्वास करना/ नहीं करना हम साथियों के विवेक पर ही छोड़ना उचित समझेंगें। परम पूज्य गुरुदेव से संरक्षण प्राप्त “मसूरी इंटरनेशनल स्कूल” जैसा ही एक और स्कूल है जिसका नाम वुडस्टॉक स्कूल है, इस स्कूल के क्षेत्र में एक श्वेत वस्त्रों में आत्मा देखने का विवरण भी इंटरनेट पर देखने को मिला है। क्या इसे भी देवभूमि की दिव्य आत्माओं से जोड़ा जा सकता है ? हम फिर से यही कहेंगें कि इंटरनेट पर उपलब्ध कितनी बातें सत्य हैं और कितनी fake,यह हर किसी का अपना निर्णय है। हमारी व्यक्तिगत प्रवृति तो यही है कि देखे बिना कुछ कुछ भी कहना उचित नहीं है।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज रेणु जी और चंद्रेश जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार-37,(2) सुजाता उपाध्याय-33 ,(3)सरविन्द पाल-25 ,(4 ) चंद्रेश बहादुर -49 ,(5 )नीरा त्रिखा-34 , (6) रेणु श्रीवास्तव-51 ,(7)निशा भारद्वाज -26,(8 ) सुमनलता-34,(9 ) पुष्पा सिंह-25,(10 ) मंजू मिश्रा-26
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।



