वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

रिश्तों  में मधुरता का पर्व है, रक्षाबंधन।

31 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद

अगस्त माह का मधुर समापन रक्षाबंधन के इस ज्ञानप्रसाद  लेख से हो रहा है। कल के लेख की भांति इस लेख में भी हमारे आदरणीय सहयोगी सरविन्द पाल जी के समय, ज्ञान,विवेक एवं परिश्रम का समावेश है। अगस्त 2022 की अखंड ज्योति में प्रकाशित लेख का पूर्ण श्रद्धा से अध्ययन करते हुए, अपने अंतःकरण में उतारते हुए, सरविन्द जी ने यह लेख ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में प्रस्तुत किया है,जिसके लिए हम सभी अपना आभार व्यक्त करते हैं।

प्रस्तुत लेख हाई स्कूल के विद्यार्थी की भांति एक essay जिसका शीर्षक  “रक्षाबंधन का महत्व एवं इतिहास” जैसा लग रहा है। हम सभी भी तो गुरुकुल पाठशाला के विद्यार्थी ही हैं। 

तो आइए बिना किसी विलम्ब के विश्वशांति की कामना करें और समर्पित हो जाएँ गुरुचरणों में। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो। 

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आधुनिक समय में  रक्षाबंधन का रूप कलाई  में एक लाल-पीला धागा या फिर रेशम की बनी बढ़ियाँ राखी बाँध देना ही रह गया है, लेकिन भारतीय इतिहास के मध्यकाल में इसका महत्व बहुत ही अधिक था। यह वोह समय था जब कोई भी स्त्री (वह चाहे किसी भी जाति/धर्म  की हो), जिस पुरुष की कलाई में राखी बाँध देती थी तो पुरुष उस स्त्री की प्राणपण से रक्षा करता था। 

चित्तौड़ की रानी कर्मवती की सुप्रिसद्ध कथा इस सन्दर्भ में बताना उचित होगा। बात उन दिनों की है जब  रानी कर्मवती के राज्य पर गुजरात के बादशाह बहादुरशाह ने चढ़ाई की थी । रानी कर्मवती ने देहली के मुगल सम्राट हुमायूँ  के पास राखी भेजी और अपनी रक्षा की प्रार्थना की l सम्राट हुमायूँ  उसी समय अपनी विशाल सेना लेकर चित्तौड़ के लिए रवाना हो गया, लेकिन उसके  पहुँचने से  पहले ही चित्तौड़ का पतन हो गया था और रानी कर्मवती ने  सहेलियों के साथ “जौहर व्रत” में अपना जीवन समाप्त कर दिया था l लेकिन राखी की मर्यादा का पालन करते हुए,हुमायूँ ने गुजरात के बादशाह बहादुरशाह पर आक्रमण करके उसको मार भगाया और रानी कर्मवती के पुत्र को चित्तौड़ की गद्दी में बैठाकर “राखी बंध भाई” के नाम को चरितार्थ किया और  परमार्थ परायण कार्य करके पुरुषार्थ कमाने का सराहनीय कार्य किया l   

विश्व का प्रत्येक  मनुष्य अपने आस्तित्व के साथ अपनी सुरक्षा को सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरि मानता  है। साथ ही साथ सुरक्षा की दृष्टि से  वह रिश्तों  के उपहार को भी महत्वपूर्ण मानता  है, जिनके आश्रय में वह आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत करता है l वर्ष भर में  मनाए जाने वाले पर्व  हमारे मनवीय रिश्तों  को सुरक्षित रखते हैं l 

प्राचीनकाल के ऋषि-मुनियों ने ऋतुओं के अनुसार मानव की सुरक्षा का आकलन कर परंपरागत रूप में इन त्योहारों की  तिथियाँ पहले से ही सुनिश्चित कर दी थीं। उन दिनों रक्षासूत्रों  का एक बहुत ही अटूट सम्बन्ध ब्राह्मणों व पुरोहितों से भी रहा है l ब्राह्मण वोह जो ब्रह्म में रमा हो, ज्ञानवान हो और उदारवान हो,जो स्वयं सुरक्षित रहे तथा लोगों में सुरक्षा का ज्ञान वितरण करे, क्योंकि ब्राह्मण जाति से नहीं कर्म से जाना जाता  है l 

प्राचीनकाल में लोग सावन के महीने में हरियाली उगाकर यज्ञ किया करते थे तथा जौ व गेहूँ को मिट्टी के बर्तन में उगाने का  विधान था। उसी हरियाली को वे राजाओं को सौभाग्य के रूप में भेंट किया करते थे।  राजा भी वह सौभाग्य रूप में भें,आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करके ब्राह्मणों व पुरोहितों को बहुत सारी मुद्रा देकर ससम्मान विदा करते थे l बदलते समय के साथ पुरोहितों ने रक्षासूत्र के साथ यजमानों की मंगलकामना करना प्रारंभ कर दिया और हम सबकी प्रिय बहनों ने भी अपने सतीत्व की रक्षा हेतु अपने प्रिय भाइयों की कलाई में राखीरूपी रक्षा का सूत्र बाँधना प्रारंभ कर दिया। इस तरह से पुरोहितों का उत्सव हर व्यक्ति में लोकप्रिय होता गया जिसने एक दिव्य पर्व  का रूप ले लिया। इसी पर्व को प्रतिवर्ष श्रावण  माह में रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व  बहनों का बहुत ही विशेष पर्व है l 

भारतीय आध्यात्मिक मनोवृत्ति ने प्रकृति से सम्बन्ध जोड़ा है, रक्षाबंधन का दिव्य संदेश कहीं हमें अपनों के स्नेह व प्यार से जोड़ता है तो कहीं वह शिक्षा और संस्कृति का ज्ञान भी देता है। रक्षासूत्र का विस्तार हम सबको यह भी समझाता है कि मनुष्य का मनुष्य से आपसी सुरक्षा का महत्वपूर्ण सम्बन्ध है।आपसी सौहार्द का अटूट संकल्प, जहाँ बहन द्वारा भाई को राखी भेजकर भाईचारे एवं विश्वास को प्रोत्साहित करता है, वहीं बहनों की सुरक्षा के लिए भाइयों से भी संकल्प निभाने का बोध कराता है l भाई बहन के आपसी विश्वास को पूर्ण करता श्रावण  की हरियाली में बहनों द्वारा भाई को दिए आशीर्वाद का प्रगाढ़ रूप है, जिसमें मंगलकामना के साथ बहन का स्नेह  छिपा है l भाई जो बहन का शुभचिंतक है, जिसके समक्ष  वह अपना हृदय खोल सकती है,अपने मायके को स्मरण करती है जहाँ कभी बहिन का  बचपन बीता था l 

रिश्तों की मजबूत परंपरा मानवता की संवाहक है, जिसका संदेश हमें  श्रावण माह  की पूर्णिमा में मनाया जाने वाला यह उत्सव ज्ञानमय तरीके से समझाता है। श्रावण की हरियाली के मनोरम वातावरण में संबंधों  की मधुरता घोलने का कार्य उत्सव ही करते हैं।  इन उत्सवों में छिपा होता है आपसी सुरक्षा का अनकहा संकल्प,जो दायित्व बोध को जागृत रखता है l 

वर्तमान समय में परम्पराओं को मनाने के तरीके पूंजीवादी हो चुके हैं जिससे एक नई सोच का जन्म हुआ  है l 

नारी प्रकृति का रूप है तो त्योहारों की मूल भावना को जिन्दा रखने का भार भी उसी पर है। अतः यह सही है कि आज की नारी सक्षम है, निर्णायक है, किन्तु स्नेह व प्यार करना और रिश्तों  को संजोना आज भी नारी की समझदारी पर आश्रित है l आज  वह अबला नहीं सबला है और भाई को आश्रय देने में कतई पीछे नहीं है l 

परम पूज्य गुरुदेव बताते हैं कि रक्षासूत्र हमें मंगल के लिए मर्यादाओं का  पालन करने का सन्देश देता है l ब्राह्मणों व पुरोहितों के द्वारा यजमानों को रक्षासूत्र बाँधते समय जो मंत्र पढ़ा जाता है, वह भी यही बताता है कि जिससे राजा बलि को बाँधा यानि कि मर्यादित व सीमित किया, उसी सलाह या शुभ विचार से मैं तुम्हें भी बाँधता हूँ जो तुम्हारी रक्षा करेगा l वैश्वीकरण ने आज ज्ञान का भंडार जन-जन तक उपलब्ध करा दिया है l आज ज्ञान का प्रचार-प्रसार बहुत ही सर्वश्रेष्ठ व सर्वसुलभ है लेकिन मानवता नित्यप्रति लुप्त होती जा रही है और रिश्ते टूटते जा  रहे हैं l आधुनिक  रहन-सहन में अनेकों  परिवर्तन हुए हैं और  आपसी विचारधारा में टकराव की बढ़ोतरी हुई है। बदली हुई विचारधारा का दुष्परिणाम हम सबको आए दिन देखने को मिल रहा है। शहरीकरण एवं जीवनशैली के बदलाव ने रिश्तों  को छिन्न-भिन्न कर दिया है। बदली हुई परिस्थिति में भी त्योहारों का मूल संदेश एकता व भाईचारा बढ़ाने का ही  है l आज भी वे वही संदेश देते हैं : सभी मिल-जुलकर रहें, मर्यादित रहें। यही थी प्राचीन  वैदिक परम्परा। मनुष्य का नाता मनवीय था और मानवीय ही रहेगा l सभी उत्सव मानव को यही ज्ञान बाँटते रहेंगे l  

रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के  स्नेह का पर्व है। भाई और बहन का सम्बन्ध पवित्र व निस्वार्थ  सम्बन्ध है l इस पवित्र सम्बन्ध की सुरक्षा से बंधा यह पर्व समीरण रिश्तों  की प्रतिबद्धता को स्मरण करवाता है। रिश्तों में संतुलन, समन्वय, सामंजस्य का उत्सव है  रक्षाबंधन का पावन पर्व l बदलते समय के साथ रक्षासूत्र ने राखी ( अर्थात रखवाली) नाम अपनाकर अपने स्वरूप में भी संकुचित मानसिकता अपना ली है l कभी वोह समय था जब  आपसी रिश्तों में मजबूती का उद्देश्य धर्म एवं संस्कृति के ज्ञान को बढ़ाने के लिए था तोआज यह परम्परा  मात्र धागा बाँधने का रूप ले  चुकी है l सम्बन्ध भी कुछ सीमा तक ही स्वस्थ रहते हैं, अधिकतर लोगों को ढोने ही पड़ते हैं। आज के समय में मल्टीनेशनल कम्पनियां इतना अधिक सुख-सुविधा दे रही हैं, इतने पैकेज दे रही हैं कि किसी को किसी की सुरक्षा की जरूरत ही नहीं है। हर कोई  धन के बलबूते अपनी सुरक्षा स्वयं ही कर सकता  है। 

किन्तु “परम्परा का स्वस्थ” रूप हमेशा से मानवता की रक्षा का सूत्र रहा है, जिसमें बंधे हुए सभी रिश्ते अपनी-अपनी स्वस्थ मानसिकता के साथ फलते-फूलते रहते हैं जो कि हम सबको अनवरत आनंदित करते रहते हैं l गुरुदेव बता रहे हैं कि हमें  रक्षाबंधन के पावन महापर्व के सूत्र सिद्धांतों को अपनाकर इस पर्व  को पुनः जीवंत करना चाहिए l इस प्रकार हम इस पर्व  को सार्थक बना सकते हैं और मानवता की रक्षा कर सकते हैं l

श्रावणी पूर्णिमा के पावन महापर्व के महत्व के बारे में परम पूज्य गुरुदेव  लिखते हैं कि  यह पर्व आज की परिस्थितियों में नारी शक्ति के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति जताने, नारी शक्ति की रक्षा के लिए आगे बढ़ सकने का, साहस दिखा सकने का प्रतीक है। कोई भी व्यक्ति नारी शक्ति का दमन और यौन शोषण न कर पाए, इसके लिए  नारी  पवित्र व सच्चे  हृदय वाले  लोकसेवी वीर पुरुषों का आवाहन करती है और कहती है कि

“जिसकी साँसें   और पसीना परहित में बह जाए, वही वीर पुरुष मेरी राखी बंधवाने के लिए हाथ बढ़ाए ” 

आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी आत्मीय साथिओं से करबध्द अपील है कि इस  वर्ष के रक्षाबंधन पर संकल्प लें कि हम सब अपनी बहन को राखी के बदले में धन की दक्षिणा न देकर अपनी एक बुराई देंगे और बहन सहर्ष इस दक्षिणा को स्वीकार करते हुए अपनी शक्ति से इस बुराई की  गायत्री महायज्ञ में आहुति स्वरूप अर्पित  कर देगी  ताकि भाई की एक बुराई कम हो पाए।  

ज़रा सोचिए गुरुदेव इस संकल्प से कितना प्रसन्न होंगें क्योंकि अन्य परिवर्तनों की भांति, युग परिवर्तन में भी नारी शक्ति की भूमिका अहम  है l 

इसलिए बहिनों अपना  बदलाव करें और अपने भाइयों में भी बदलाव लाएं l 

परम पूज्य गुरुदेव का सपना, हम बदलेंगे, युग बदलेगा-हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा तभी  साकार होगा l 

जय गुरुदेव ,समापन 

कल फिर से हिमालय यात्रा आरम्भ करेंगें। 

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज भी सरविन्द जी ही  गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1)संध्या कुमार-34,(2) सुजाता उपाध्याय-43,(3)सरविन्द पाल-68,(4 ) चंद्रेश बहादुर -53,(5 )नीरा त्रिखा-35, (6) रेणु श्रीवास्तव-40,(7 ) अरुण वर्मा-26 ,(8) निशा भारद्वाज -26,(9) कुमोदनी गौराहा-26,(10) सुमनलता-27

सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। 


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