30 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
श्रावणी पूर्णिमा के पावन महापर्व के उपलक्ष्य में आज का ज्ञानप्रसाद हमारे अति समर्पित सहयोगी आदरणीय सरविन्द पाल जी की प्रस्तुति है। युग निर्माण योजना के जुलाई 2021 अंक में प्रकाशित लेख का स्वाध्याय करके,समझने के उपरांत,सरल भाषा में परिवार के समक्ष प्रस्तुत किया गया है
सरविन्द जी के निम्नलिखित शब्द किसी के भी मस्तिष्क में ज्ञानार्जन/ज्ञानप्रसार की प्रचंड अग्नि जला सकते हैं :
“ज्ञानप्रसाद लेखों का अमृतपान करके,अधिक से अधिक साथिओं को प्रेरित करना एक परमार्थ परायण कार्य है। यह अति सरल कार्य करके पुरुषार्थ कमाने की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिससे सभी का कायाकल्प होना सुनिश्चित है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। इन लेखों का नियमितता से गम्भीरतापूर्वक, मनोयोग से, स्वाध्याय करना बहुत बड़ी उपासना, साधना व आराधना है।”
हमारे समर्पित साथी सरविन्द जी की प्रस्तुति का अमृतपान करें, उससे पूर्व हम प्रत्येक साथी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं जिन्होंने 24 आहुति संकल्प सूचि को गति देकर एकदम 4 से 10 तक पंहुचा दिया। कल रात ही सूची के सम्बन्ध में कुछ चिंता व्यक्त की थीं, सभी ने इसका सम्मान किया जिसके लिए हम सदैव आभारी रहेंगें।
कल वाला ज्ञानप्रसाद भी सरविन्द जी की प्रस्तुति है जिसे रक्षा बंधन के उपलक्ष्य में प्रकाशित किया जायेगा। उसके उपरांत फिर से हिमालय की ओर गुरुचरणों में समर्पित होंगें।
विश्वशांति की कामना करते हुए गुरुकुल पाठशाला की आज की कक्षा का शुभारम्भ होता है।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो।
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भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में पर्वों का विशेष महत्व है और उन्हीं पर्वों में एक “श्रावणी पूर्णिमा” का पावन महापर्व है। जिस प्रकार हमारा व्यक्तिगत दृष्टिकोण बदलने के लिए, पूजा, उपासना, साधना व आराधना एवं पारिवारिक रीति-रिवाजों को उत्कृष्ट बनाए रखने के लिए संस्कार प्रक्रिया है, ठीक उसी प्रकार समाज को समुन्नत और सुसम्पन्न बनाने के लिए व्यापक रूप अपनाने पड़ते हैं। सामुहिकता, ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा, परमार्थ परायणता, देशभक्ति व लोकमंगल जैसी सत्प्रवृत्तियाँ विकसित करने के साथ-साथ उन्हें सुस्थिर भी रखना पड़ता है l
इसी उद्देश्य को बार-बार याद कराने के लिए देव-संस्कृति में पर्व/त्योहार मनाए जाते हैं। परम पूज्य गुरुदेव निर्देश देते हैं कि इन्हें “सामाजिक संस्कार प्रक्रिया” ही समझना चाहिए क्योंकि साधना से व्यक्तित्व, संस्कारों से परिवार और पर्वों से समाज का स्तर उच्चकोटि का बनाने की पद्धति दूरदर्शितापूर्ण है। इस पद्धति का हजारों- लाखों वर्षों से परीक्षण किया जाता रहा है l प्राचीन भारत की महानता का श्रेय, इन छोटी दिखने वाली, लेकिन प्रवृत्तियों में प्रखरता उत्पन्न करने वाली धर्म के नाम पर प्रचलित विधि-व्यवस्थाओं को ही जाता है जिसका पालन आधुनिक युग में भी पूर्ण श्रद्धा से हो रहा है।
एक ही क्षेत्र में, एक ही काल में प्रचलित सैकड़ों पर्वों का मनाया जाना असंभव है क्योंकि स्थिति के अनुरूप कुछ एक को ही चुनना पड़ता है l देव संस्कृति में प्रत्येक तिथि और वार को एक विशेष पर्व के रूप में माना गया है और उसे मनाने के लिए विशेष धार्मिक विधान भी बताया गया है l इन पर्वों के इलावा, देवताओं, अवतारों व महापुरुषों की स्मृति/जयंती आदि के लिए भी पर्व नियत किए गए हैं l संक्रांति, ग्रहण, कुंभ आदि कुछ ऐसे पर्व हैं जिन्हें आकाश में स्थित ग्रहों के योग और उस योग से धरती पर पड़ने वाले शुभ-अशुभ प्रभाव को देखकर मनाए जाते हैं l
एक वर्ष में लगभग 40 पर्व आते हैं और युगधर्म के अनुसार उनमें से लगभग 10 का निर्वाह बन सके तो अति उत्तम है। जिन 10 पर्वों की यहाँ पर चर्चा हो रही है वोह इस प्रकार हैं:
वसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, रामनवमी, गायत्री जयंती, गुरु पूर्णिमा, श्रावणी पूर्णिमा, जन्माष्टमी, विजयादशमी व दीपावली l
इन सभी पर्वों का अपना-अपना महत्व है इसलिए इन्हें सम्पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से सुसंस्कारिता की उमंगे उठती हैं और सत्प्रवृत्तियाँ पनपती हैं, जिनकी हर किसी को आवश्यकता है l जहाँ कहीं भी इन दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत पर्वों को नहीं मनाया जाता है, वहाँ नकारात्मकता एवं कुसंस्कारिता हावी होती है।
मनुष्य स्वभाव से ही अनुकरणीय प्राणी है, जब भी हम किसी को कोई शुभ काम करते देखते हैं तो हमारे मन में भी वैसा काम करने की प्रबल इच्छा स्वयं ही जागृत हो उठती है l अनुकरण करने के दिव्य सिद्धांत पर आज भी हम कायम हैं,गुरुदेव के बताए मार्ग पर चल रहे हैं। ऐसा करने के उपरांत ही हम परम पूज्य गुरुदेव के निष्ठावान शिष्य एवं उत्तराधिकारी बन पायेंगें l
अनुकरण करने की प्रक्रिया तो ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में भी स्पष्ट दिखती रहती है। वोह सभी साथी एवं सहकर्मी जो कभी “जय गुरुदेव” लिख कर पल्ला झाड़ लेते थे, आज हम सबको मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हैं। विस्तृत कमेंट ही गुरुदेव द्वारा रचित दिव्य साहित्य के अमृतपान का साक्षात् प्रमाण हैं। हो सकता है कुछ एक की अपनी कमज़ोरी हो और लिखने में असमर्थ हों, exceptions are always there.
धर्मधारणा और आस्तिकता के भावों की वृद्धि के साथ-साथ ऐसे पर्वों का एक प्रमुख उद्देश्य सामुहिकता की वृद्धि करना है l जिस प्रकार मानव जीवन की सफलता के लिए व्यक्तिगत उन्नति और सत्प्रवृत्तियों को ग्रहण करने की आवश्यकता है,उसी तरह समाज को मजबूत बनाने के लिए परस्पर सहयोग व सहकार द्वारा सामाजिक हित की बड़ी योजनाओं की पूर्ति करना भी अति आवश्यक व न्याय संगत है l इसके लिए लोगों में आपसी एकता, भाईचारे की मनोवृत्ति होना जरूरी है अन्यथा मनुष्य में अपनत्व की भावना का समूल नाश हो जाता है और वह नव सृजन सेनानी, युग शिल्पकार व सजग सिपाही की श्रेणी में शामिल नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में वह “भटके हुए देवता” की भांति दर-दर भटकता फिरता है, स्वयं अस्थिर होने के कारण वह परिवार को सुसंस्कृत व परिष्कृत करने में असमर्थ होता है l
हमारे देश में होली, दीपावली, गंगा दशहरा आदि जो पर्व नियत किए गए हैं, उनका मुख्य उद्देश्य यही है कि लोग आपस में प्रेम पूर्वक मिलें और भाईचारा व सामुहिकता की भावना को मजबूत व सुदृढ़ बनाए रखें, ताकि आपस में संवाद का सिलसिला बना रहे, अंतःकरण में सहानुभूति, सहकारिता व सद्भावना का विकास हो ताकि मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण हो l
आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रयास भी इसी दिशा की ओर केंद्रित हैं।
हमारी देव संस्कृति में अधिकतर पर्व किसी प्राचीन महापुरुष या अवतारी सत्ता की जयंती के रूप में मनाए जाते हैं। ऐसा करने से हमें सच्चरित्रता, नैतिकता, सेवा, सद्भावना की शिक्षा मिलती है। इन पर्वों में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जनसाधारण अपने महान पूर्वजों व महापुरुषों के जीवन से उच्चकोटि के सद्गुणों को प्राप्त करें एवं अपने जीवन में उतारने का हर सम्भव प्रयास करते हुए अपने जीवन का कायाकल्प करें। यह सत्य है कि जिस समुदाय में ऐसे दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत दिव्य महापुरुषों का अभाव है, उस समुदाय का मनुष्य उन्नति की आशा नहीं रख सकता है। सामान्य मनुष्य के लिए बिना किसी मार्गदर्शन व आशीर्वाद के, सफलतापूर्वक अग्रसर हो सकना संभव नहीं हो सकता l
यही मूलभूत कारण है कि उन्नति की कामना रखने वाली जातियाँ अपने पूर्वजों व महापुरुषों के चरित्र और महान कार्य को बड़े ही गौरव के साथ स्मरण करती हैं l इस सन्दर्भ में यूरोप में फ्रांस और एशिया में जापान का उदाहरण दिया जा सकता है। इन दोनों देशों ( फ्रांस और जापान) को छोटा होने के बावजूद, वीर पूजा के गुण होने के कारण राष्ट्रमंडल में अग्रणी स्थान प्राप्त है l
परम पूज्य गुरुदेव ने अपने अमृत तुल्य ज्ञानप्रसाद को पयपान करने हेतु लिखा है कि ज्ञान अकेला अपूर्ण और अधूरा है और कर्मकुशलता के अभाव में मन कुंठित हो जाता है तथा कथनी और करनी में अंतर आने लगता है l श्रावणी पूर्णिमा का पावन महापर्व अपने विचारों को, अपने ज्ञान को व अपने कर्म की शक्ति को सृजन की प्रेरणा व ऊर्जा देने वाला पर्व है l अतः हमारा ज्ञान वाणी से नहीं आचरण से व्यक्त हो और हमारी शक्ति किसी को दबाने, झुकाने या फिर निरर्थक कामों में नहीं बल्कि सृजन में लगे l इन सुविचारों के साथ आपस में मिल जुल कर रहें और प्यार व सहकार की भावना से एक संस्कारित व पवित्र जीवन जिएँ l श्रावणी पूर्णिमा के पावन महापर्व से भी हम सबको बहुत बड़ी प्रेरणा व ऊर्जा मिलने की संभावना है l
श्रावणी पूर्णिमा के पावन महापर्व में मुख्यतः दो बातें ध्यान देने योग्य हैं :
(1) शिक्षा परिष्कृत विचारणा
(2) आदर्शवादी आस्था
हमारे देश में राष्ट्रध्वज को सर्वाधिक सम्मान दिया जाता है और उसी से यह जाना भी जा सकता है कि यह आदर्शो का अनुयायी है l इसी प्रकार मनुष्य के मस्तिष्क में लहराने वाली शिखा जो एक ध्वजा के रूप में निरंतर लहराती रहती है वह मनुष्य के लिए सम्मान की वस्तु है, क्योंकि यह इस बात का सूचक है कि यह मस्तिष्क आदर्शवादी, उत्कृष्ट चिंतन और श्रेष्ठ आस्थाओं का पोषक है। इसी प्रकार यज्ञोपवीत आदर्शो को बहिरंग जीवन में क्रियान्वित करने का अनुबंध है। इसके एक-एक धागे में अनगिनत भावनाएं व प्रेरणाएं समाहित हैं l
श्रावणी पूर्णिमा के महापर्व पर शिखा अभिसिंचन एवं यज्ञोपवीत नवीनीकरण के जो कार्य सम्पन्न किए जाते हैं, उनका यही भावार्थ है कि हम आदर्शो को भूलें नहीं हैं l ज्ञान और कर्म की इस प्रक्रिया में दोनों को परिष्कृत बनाए रखने का संकल्प बार-बार दोहराया जाता है और प्रायश्चित से पिछले दिनों हमसे जो भूलें हो गयी हों, उन्हें दूर करने का संकल्प लिया जाता है। श्रावणी पूर्णिमा का महापर्व पिछले वर्ष के पुनरावलोकन, आत्म निरीक्षण व आत्म समीक्षा का पर्व है l यह पर्व विभिन्न कर्मकांड के माध्यम से हमें मानवीय मूल्यों, मानवीय आदर्शो को जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है।
श्रावणी पूर्णिमा और रक्षा बंधन एक साथ ऐसे घुले हैं कि इनका अलग अलग वर्णन देना असंभव है ,कल वाला लेख रक्षा बंधन पर आधारित है लेकिन श्रावणी पूर्णिमा का फ्लेवर भी अनुभव की जाएगी।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 10 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार- 45 ,(2) सुजाता उपाध्याय-50 ,(3)सरविन्द पाल-54 ,(4 )वंदना कुमार-30 ,(5 )नीरा त्रिखा-37, (6) रेणु श्रीवास्तव-34,(7 ) अरुण वर्मा-26 ,(8) मंजू मिश्रा-26,(9) कुमोदनी गौराहा-31, (10) सुमनलता-26
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई