29 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
शायद ही कोई मनुष्य ऐसा होगा जिसे स्वर्ग प्राप्त करने की कामना न हो। पौराणिक साहित्य में तो स्वर्ग की बातें कई बार होती आयी हैं, यह भी बताया गया है की अच्छे कर्म करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। आजकल holidaying का ज़माना है, vacation का ज़माना है; क्या इस धरती पर कोई स्थान है जिसे स्वर्ग कहा जा सकता है?
यही है आज के ज्ञानप्रसाद का विषय। कल से आरम्भ हुई लेख शृंखला में हम परम पूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा के साथ-साथ हम उस स्वर्ग को भी जानने का प्रयास करेंगें जिसे पूर्णरूप से काल्पनिक कहा गया है। हॉलीवुड वालों ने तो “Lost Horizon” नामक मूवी तक बना डाली है। ज्ञानप्रसाद लेख को रोचक बनाने के लिए साढ़े पांच मिंट की एक वीडियो लिंक दे रहे हैं।
तो चलते हैं परम पूज्य गुरुदेव के चरणों में गुरुज्ञान की कक्षा में।
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धरती का स्वर्ग कहाँ पर है ?
धरती का स्वर्ग उत्तराखंड में बद्रीनारायण से लेकर गंगोत्री के बीच का लगभग 400 मील परिधि का वह स्थान है, जो प्रायः देवताओं और ऋषियों का तप-केन्द्र रहा है। स्वर्ग कथाओं से जो घटनाक्रम,व्यक्ति,चरित्र जुड़े हैं, अगर उनकी इतिहास/ भूगोल से संगति मिलाई जाय तो वे धरती पर ही बताए जाते हैं। इस बात से बहुत वज़न मालूम पड़ता है जिसमें इन्द्र के शासन एवं आर्य सभ्यता की संस्कृति का उद्गम स्थान “हिमालय” में ही बताया गया है।
अब इस क्षेत्र में भारी हिमपात होता है। ऋतु परिवर्तन के कारण अब वह “हिमालय का हृदय” जिसे असली उत्तराखण्ड कहा जा सकता है, इस योग्य नहीं रहा कि आज के दुर्बल शरीरों वाला व्यक्ति निवास कर सके। इसलिये आधुनिक उत्तराखण्ड नीचे चला गया और हरिद्वार से लेकर बद्रीनारायण-गंगोत्री-गोमुख तक ही सही मायनों में उत्तराखंड कहलाने योग्य है।
“हिमालय के हृदय” नामक क्षेत्र, जहां “प्राचीन स्वर्ग” की विशेषता विद्यमान है,वहीँ तपस्याओं से प्रभावित शक्तिशाली आध्यात्मिक क्षेत्र भी विद्यमान है। गुरुदेव के मार्गदर्शक (दादा गुरु ) ने इसी क्षेत्र में रहकर प्राचीनतम ऋषियों की इस तप संस्कारित भूमि से अनुपम शक्ति प्राप्त की है। कुछ समय के लिये परम पूज्य गुरुदेव को भी उन दिव्य स्थानों पर रहने का सौभाग्य मिला। इन स्थानों का जितना दर्शन हो सका उसका वर्णन उन वर्षों की अखण्ड-ज्योति में प्रस्तुत किया गया था। उन लेखों के पढ़ने से संसार में एक ऐसे स्थान का पता चलता है, जिसे “आत्म-शक्ति का ध्रुव” कहा जा सकता है। आध्यात्म शक्ति का एक ध्रुव परमपूज्य गुरुदेव के अनुभव में भी आया जिसमें अत्यधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियां भरी पड़ी हैं। सूक्ष्म शक्तियों और शरीरधारी सिद्धपुरुषों की शक्तियों की दृष्टि से यह प्रदेश बहुत ही उपलब्धियों का स्रोत है। परमपूज्य गुरुदेव ने अनेकों पुस्तकों में भी इस दिव्य स्थान की महत्ता पर बहुत ही ज़ोर दिया है। इसका कारण यही है कि गुरुदेव ने शांतिकुंज की स्थापना उत्तराखंड के द्वार पर ही की ताकि यहाँ आने वालों को हिमालय की शक्ति का निरंतर आभास होता रहे।
परमपूज्य गुरुदेव ने हिमालय को पिता और गंगा को माँ कहकर संबोधित किया है। हिमालय केवल एक बड़ा सा विशालकाय पर्वत ही नहीं है, इसका सौंदर्य ,झरने, अदिव्तीय जड़ी बूटियां,पर्वतारोहण,पर्यटन सम्पदा ही नहीं है,यह एक ऐसा दिव्य स्थान है जहाँ देवताओं का, सिद्ध आत्माओं का वास है। जिस दिव्य भूमि पर आज शांतिकुंज स्थापित है यहाँ कभी मुनि विश्वामित्र ने घोर तप किया था। इसीलिए उत्तराखंड प्रदेश जिसमें हरिद्वार ,ऋषिकेश,गंगोत्री ,यमनोत्री, केदारनाथ ,बद्रीनाथ जैसे दिव्य स्थान शामिल हैं “देवभूमि” के नाम से प्रसिद्ध है। और देखिये हमारे गुरुदेव की दूरदर्शिता; उन्हें मालूम था कि आने वाले दिनों में कौन हिमालय जाना चाहेगा,लोग शॉर्टकट के अभयस्त हो जायेंगें, कौन जाकर तपस्य -साधना करना चाहेगा; उन्होंने यहीं, शांतिकुंज में ही देवात्मा हिमालय का अद्भुत मंदिर और सप्तऋषि क्षेत्र बना दिया कि उनके बच्चों को कोई कठिनाई न हो।
वैसे तो शांतिकुंज के कण कण में ही दिव्यता का अनुभव होता है लेकिन इन दो क्षेत्रों में ( देवात्मा हिमालय मंदिर और सप्तऋषि क्षेत्र ) तो दिव्यता चरम सीमा पर है। आपको जब भी युगतीर्थ शांतिकुंज में जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है तो समाधि स्थल ,अखंड दीप ,गायत्री मंदिर ,सप्तऋषि क्षेत्र के दर्शन तो करें हीं लेकिन देवात्मा हिमालय मंदिर जाना न भूलें और इस मंदिर में सीढ़ियों पर बैठ कर दिव्यता का अनुभव अवश्य ही करें।
आजकल के समय में, आवागमन के साधन पिछले समय से तो बेहतर ही हुए हैं लेकिन मनुष्य शॉर्टकट में विश्वास रखता है। उसे बिना कुछ किये, बिना शरीर को कष्ट दिए सब कुछ अपने ड्राइंग रूम में ही मिल जाना चाहिए। कोरोना ने हमें ऑनलाइन यज्ञों ,ऑनलाइन अनुष्ठानों ,ऑनलाइन संस्कारों की इतनी आदत डाल दी कि मनुष्य इसी तकनीक को अधिक पसंद कर रहा है लेकिन वह यह भूल रहा है कि वातावरण का कितना रोल है। TB के रोगियों को चीड़ के वृक्षों वाले वन्य वातावरण (जिन्हें सैनिटोरियम कहा जाता है) में रखा जाता है। शब्द sanitorium लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ “इलाज करना” होता है। शांतिकुंज में जब साधक आता है, प्रवास करता है, अलग- अलग अवधि के सत्र करता है तो यहाँ का दिव्य वातावरण उसके मन-मस्तिष्क पर क्या प्रभाव डालता है,उसे तो ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के साथी/सहकर्मी आदि ही certify कर सकते हैं लेकिन इस मंच से प्रकाशित हो रहा साहित्य जो दिव्यता प्रदान कर सकता है उसे हम अपने वर्षों के अनुभव से certify करने में ज़रा सी भी हिचकिचाहट नहीं कर सकते। इसी दिव्यता को दर्शाती वीडियो हमने “शांतिकुंज एक आध्यात्मिक सैनिटोरियम” शीर्षक से अपलोड की थी, यह उसी वीडियो का है। लिंक
कोरोना युग में आरम्भ हुए ऑनलाइन यज्ञ कितना लाभ दे पाते हैं, यह तो चर्चा का विषय है लेकिन ऑनलाइन यज्ञों में शांतिकुंज का “वातावरण कहाँ से आएगा ?” यह अति गंभीर प्रश्न है।
मनुष्य हमेशा अपनी suitability के हिसाब से तरह-तरह के तर्क देता आया है। अगर मनुष्य ऑनलाइन यज्ञ को मान्यता दे रहा है तो holidaying, destination wedding, expensive concerts इत्यादि को भी ऑनलाइन करने में क्या हर्ज़ है। वहां तो उसे in-person जाकर ही संतुष्टि मिलती है।
जब हम हिमालय में दिव्य क्षेत्र की बात का रहे हैं तो उस क्षेत्र को कैसे नकार सकते हैं जिसे ज्ञानगंज,सिद्धाश्रम,सिद्धक्षेत्र ,शांगरिला,शंबाला आदि नामों से जाना जाता है। यह सभी नाम उस काल्पनिक स्थान के हैं जिसे “Land of the undying in the Himalayas” के नाम से जाना जाता है। हम उस स्थान को काल्पनिक इसलिए कह रहे हैं कि गूगल सर्च में अनेकों claim मिल जायेंगें जो बता रहे हैं कि हम इस स्थान पर जा पाए हैं लेकिन exactly यह स्थान कहाँ पर है, कहना बहुत ही कठिन है।
ज्ञानगंज:
ज्ञानगंज जिसके कई नाम हैं हिमालय में एक ऐसा अदृश्य स्थान है जो अपनी आलौकिकता के लिए अति प्रसिद्ध है। सारे विश्व में इस विषय पर इतना अधिक कार्य हो रहा है कि लेखों से लेकर ,पुस्तकों तक ,टीवी सीरियल से लेकर हॉलीवुड की फिल्मों तक इस विषय पर कार्य हो रहा है। 1933 में प्रकाशित नॉवेल “Lost Horizon “, उसी शीर्षक वाली 1937 की मूवी और फिर 1973 वाली ब्रिटिश-अमरीकन remake मूवी इस अदृश्य स्थान की लोकप्रियता का अनुमान लगाने के लिए काफी है। इस फिल्म का synopsis लिखते हुए वर्णन किया गया है कि एक तूफान के दौरान एक जहाज़ हिमालय में कहीं अनजान जगह पर जाकर रुकता है , यह जगह इतनी अलौकिक है ,इतनी अजीब, इतनी शाश्वत है कि यहाँ यौवन ही यौवन है, यहाँ कभी कोई बूढ़ा नहीं होता,सोने चांदी,हीरे जवाहरात से सुसज्जित बड़े-बड़े महल,इस अलौकिक प्रदेश जिसका नाम शांगरिला है, इसकी शोभा बढ़ाते हैं। सिद्धाश्रम ,सिद्धक्षेत्र,शंबाला इस प्रदेश के कुछ और नाम हैं। लेकिन एक बात हम स्पष्ट करना चाहेंगें,यह एक मूवी है, कल्पना है।
चेतना की शिखर यात्रा 2 के चैप्टर 19 “जहाँ न पहुंचे काया ” ने हमारे मन में इस क्षेत्र के बारे में जानने की जिज्ञासा उठाई थी। चैप्टर 18 का शीर्षक तो “सिद्धलोक में प्रवेश” है परन्तु हम चाहते थे कि इस क्षेत्र को और अधिक जाना जाये और अगर हम जान पाए तो ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाये।
परम पूज्य गुरुदेव इस क्षेत्र में गए थे इसका बहुत ही संक्षिप्त वर्णन इस पुस्तक में है ,अच्छा होता इसी में इस क्षेत्र का वर्णन कर दिया जाता। “जहाँ न पहुँच पाए काया” शीर्षक का अर्थ तो यही है कि जहाँ पर कोई भी स्थूल काया नहीं पहुँच पाए ,केवल सिद्ध पुरष जिन्होंने घोर साधना करके सिद्धियां प्राप्त की हैं वही इस अलौकिक प्रदेश में पहुँच पाए हैं।
“तो हमारे परमपूज्य गुरुदेव कौन से साधारण पुरष थे ,वह भी तो सिद्ध पुरुष ही थे।”
कहाँ है ज्ञानगंज ?
तिब्बत धरती पर सबसे सुंदर और अदूषित क्षेत्रों में से एक है। यह सुदूर क्षेत्र न केवल साहसिक प्रेमियों को आकर्षित करता है बल्कि उन यात्रियों को भी आकर्षित करता है जो अपने जीवन में अस्तित्व का गहरा अर्थ खोजने के उद्देश्य से निर्देशित होते हैं। पिछली शताब्दी तक रहस्य में डूबा और अत्यधिक दूरस्थ, तिब्बत अभी भी काफी हद तक अज्ञात और अनदेखा है। जो बात इस हिमालयी क्षेत्र को और अधिक दिलचस्प बनाती है, वह है इससे जुड़े विभिन्न myths और पौराणिक कथाएं । ज्ञानगंज इस तरह का एक क्षेत्र है जिसने कई लोगों की रुचि पकड़ी है, जिससे विभिन्न बहसें, जाँच-पड़ताल और किताबें सामने आई हैं। हिमालय की रहस्यमय घाटियों के भीतर कहीं पर स्थित, “ज्ञानगंज” , अमरों की भूमि है, Land of immortals है। यह एक पौराणिक मान्यता है कि ज्ञानगंज रहस्यमय अमर प्राणियों का बसा हुआ एक नगर है,राज्य है जो आवश्यकता पड़ने पर सूक्ष्म तरीकों से मनुष्य के अस्तित्व को प्रभावित करता है। किसी भी बुरे कर्म से रहित महान संत ही मानसिक बाधाओं और आयामों से गुजरते हुए इस आध्यात्मिक भूमि में स्थान पा सकते हैं। इस पौराणिक साम्राज्य का सटीक स्थान “अज्ञात” है क्योंकि यह माना जाता है कि ज्ञानगंज कृत्रिम रूप से मनुष्यों से खुद को छुपाता है, साथ ही साथ mapping तकनीक भी। कुछ का यह भी मानना है कि ज्ञानगंज वास्तविकता के एक अलग plane में मौजूद है may be in fourth dimension और इसलिए Satellite/ GPS द्वारा इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। जब हम plane की बात कर रहे हैं तो हमारा अभिप्राय ज्योमेट्री के x ,y और z plane हैं।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 4 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सुमनलता जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार-26 ,(2) सुमन लता-31,(3) सुजाता उपाध्याय-27,(4) नीरा त्रिखा-24
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई