वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

धन और ज्ञान में श्रेष्ठता का द्वंद चलता ही रहेगा।

23 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद

आज का ज्ञानप्रसाद आरम्भ करने से पूर्व हम सभी भारतीय विश्व के जिस भी कोने में हों, चंद्रयान 3 की सफल सॉफ्टलैंडिंग की कामना करते है। स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत अवश्य  ही एक कीर्तिमान स्थापित करने जा रहा, ऐसा हमारा अटल विश्वास है। 

गुरुचरणों  में समर्पित होकर यह प्रातःकाल गुरुकुल कक्षा अपनेआप में एक अद्भुत दिव्यता का आभास प्रदान करती है जिससे हम सभी विद्यार्थी सारा दिन ऊर्जा से ओतप्रोत रहते हैं। 

आज के ज्ञानप्रसाद में आधुनिक युग को युगदृष्टा परम पूज्य गुरुदेव की दृष्टि से देखने का प्रयास किया जायेगा। गुरुदेव की आशंकाएं और उनके  निर्देश और मार्गदर्शन से हम सबको बहुत ही लाभ मिलेगा ,ऐसा हमारा विश्वास है। 

संकल्प सूची गतिशील होती दिख रही है, सभी के सहयोग को नमन है।   

इन्ही शब्दों के साथ विश्वशांति की कामना करते हैं और नियमितता की पालना करते हुए गुरुदेव के चरणों में समर्पित हो जाते हैं। 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो। 

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गुरुदेव भविष्य के प्रति सावधान करते कह रहे हैं कि लोकहित के लिए मनुष्य का  मन खाली  होता जा रहा है, उदारता गायब होती जा रही है और निष्ठुरता रोम-रोम में घुसती चली जा रही है। इसका परिणाम बहुत ही  भयंकर होने वाला है  । कलियुग के बारे में पुस्तकों में जो बताया गया है, उसको मैं सही मानता हूँ। मनुष्य  का चिंतन जैसा और जितना घटिया होगा, मुसीबतें उसी अनुपात  से आएँगी। बीमारियाँ बराबर बढ़ रही हैं। डॉक्टर बढ़ रहे हैं, अस्पताल बढ़ रहे हैं, सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल जगह-जगह खुल गए  हैं ,खुल रहे हैं  लेकिन बीमारियां इतनी काम्प्लेक्स हो गयी है कि क्या कहा जाए।  भगवान् से प्रार्थना है कि डॉक्टर इतने हो जाएँ कि किसी को भी इलाज के लिए प्रतीक्षा न करनी पड़े और कोई भी बेसिक मेडिकल ज़रूरतों से वंचित न रह जाए। यह सब तो हो ही रहा है, सरकारें प्रगति के लिए, विकास के लिए क्या कुछ नहीं कर रही हैं लेकिन बीमारियों का क्या किया जाए। 

आजकल के तथाकथित पढ़े-लिखे लोग शायद ही हमारी बात  से सहमत हों कि बीमारीओं  से तब तक छुटकारा नहीं पाया जा सकता  जब तक मनुष्य आध्यात्मिकता के रास्ते पर लौटकर नहीं आएगा। वैज्ञानिक और प्रतक्ष्यवादी शायद ही इस तथ्य को मान लें कि आध्यात्मिकता ही सारी  बीमारिओं का निवारण कर सकती है। प्रतक्ष्यवाद और अध्यात्मवाद  का तो जन्म जन्मांतरों से टकराव रहा है। 

विवेकशील मनुष्य तो इसे immunity की दृष्टि से देखेंगें। कोरोना के समय भी इम्युनिटी की बड़ी  बात हुई थी, उस समय भी यही कहा गया था कि strong immune system किसी भी बीमारी का सामना करने में सक्ष्म है। यह मानसिक प्रवृति है कि दो-चार दिन जोश में आकर, बड़ी-बड़ी बातें करके, डींगें मारकर मुर्ख बनाओ  और उसके बाद रात गयी बात गयी। अगर हमें किसी भी समस्या का root cause समझ में आ जाए तो समस्या का निवारण सरल  हो सकता है, लेकिन क्या करें सभी को short cuts  और instant से प्यार है।   

परम पूज्य गुरुदेव ऐसे लोगों को भी समझाने  का प्रयास कर रहे हैं जो विकासवाद के घोर पक्ष में है।  विकास किसे अच्छा नहीं लगता, सभी को अच्छा लगता है। हाइवेज और सुपर हाइवेज किसे अच्छे नहीं लगते, सभी को अच्छे लगते हैं। लेकिन फ्री में कुछ भी नहीं मिलता। Everything comes for a price. गुरुदेव उन लोगों से  पूछ रहे हैं जो कहते हैं कि हमें तो कोई समस्या नहीं है, हमने तो अपने बच्चों को लाखों रुपए खर्च करके प्राइवेट संस्थानों में शिक्षा के लिए भेजा हुआ है, हमारे पास तो unlimited धन है, हमें कब कोई समस्या आ सकती है। गुरुदेव कहते हैं कि ऐसे संस्थानों में शिक्षा के साथ-साथ बच्चे अवश्य ही ऐटीकेट भी  सीखकर आएँगे । गुरुदेव  एटीकेट पर कटाक्ष कहते हैं कि  जब कोई आपके घर  आए और पानी पीने को माँगे, तो उसको कहना चाहिए, “थैंक यू वैरी मच ।” इसी को एटीकेट कहते हैं ? हाँ इसी को कहते हैं। माता पिता कहते हैं कि हमारा बच्चा अच्छे कपडे पहनेगा, well- behaved होगा, लेकिन एक अनमोल सम्पति जिससे वोह वंचित रह जायेगा वोह कहाँ से आएगी। वोह सम्पति है भाव-संवेदना। उसकी जीवात्मा में भाइयों के लिए, बहनों के लिए, माता-पिता के लिए जो प्रेम और सेवा की वृत्ति होनी चाहिए, वह कहाँ से आएगी? 

गुरुदेव कहते हैं कि इसके लिए एक ही विकल्प है और वोह है -प्रत्येक शिक्षा संस्थान के सिलेबस में Life Management का कोर्स अनिवार्य कर दिया जाए। कहीं ऐसा न हो  कि  ऊँची शिक्षा,ऊँचे पद,ऊँचे पे पैकेज के मोह और  दौड़ में आने वाली पीड़ी भटक कर अपने अस्तित्व को ही भूल जाए। 

गुरुदेव  युगदृष्टा हैं, उनकी दृष्टि आने वाले युग को देख सकती  है। हमारे पाठक स्वयं देख सकते हैं कि जिन बातों का उन्हें 50 वर्ष पूर्व अंदेशा था, वोह आज वैसे ही घट रही हैं।

यहाँ हमें पौराणिक ग्रंथों की एक बहुत ही दिव्य कथा स्मरण हो आयी है जिसमें धन की देवी लक्ष्मी और ज्ञान की देवी सरस्वती के टकराव का वर्णन है :      

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां सरस्वती वीणा बजा रही थी और  उस समय उनके पास धन की देवी मां लक्ष्मी पहुँचती हैं।  मां सरस्वती ने मां लक्ष्मी का आदर-सत्कार किया और पूछा कि बहिन बहुत दिनों बाद मिलने आई हो, क्या कहीं व्यस्त थीं। तब माँ  लक्ष्मी ने अपने गुणों का बखान करना शुरू कर दिया। मां लक्ष्मी ने कहा कि वो धन की देवी है और समस्त संसार उनकी स्तुति करता है, क्योंकि सभी धनवान होना चाहते हैं,वोह व्यस्त थीं  इसलिए वो जल्दी नहीं आ सकीं।  मां लक्ष्मी ने सरस्वती को यह भी कहा कि आप तो केवल वीणा ही बजाती रहती हैं, आपको कोई काम तो है नहीं। माँ  लक्ष्मी के कटाक्ष भरे  शब्दों से मां सरस्वती बहुत दुःखी हुईं, उन्होंने माँ  लक्ष्मी से कहा कि आप अवश्य ही धन की देवी हैं, लेकिन आप कभी भी एक जगह नहीं टिकती। इसी कारण संसार आपको चंचला भी कहता है।  आप धन तो दे सकती हैं, लेकिन ज्ञान नहीं दे सकतीं। ज्ञान के अभाव में  व्यक्ति कभी भी धन का सही उपयोग नहीं करेगा लेकिन ज्ञानवान  व्यक्ति धन के अभाव में भी ज्ञान से धन प्राप्त कर सकता है। धन से ज्ञान मिले ये जरूरी नहीं है। यह सुनकर माँ  लक्ष्मी को क्रोध आया और दोनों देवियों के बीच बहस और बढ़ गयी । माँ लक्ष्मी और मां सरस्वती की धन और ज्ञान पर बहस को बढ़ते देख देवताओं ने आदिशक्ति से इसका उपाय पूछा।  तब आदिशक्ति ने देवताओं से कहा कि यह बहस कभी खत्म नहीं होगी।  धरती पर जब तक जीवन होगा, तब तक धन और ज्ञान में श्रेष्ठता का द्वंद चलता ही रहेगा।  धन मिलने से सभी खुश होंगे, लेकिन ज्ञान के अभाव में धन का सदुपयोग नहीं कर पाएंगे।  इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि धन की प्राप्ति के साथ-साथ ज्ञान और विवेक का होना भी बहुत महत्वपूर्ण है। 

गुरुदेव बता रहे हैं कि मनुष्य का मानवीय स्तर क्यों  गिरता जा रहा है। आज के युग में मनुष्य सभी ओर  से सम्पन्न होता जा रहा है। शिक्षा की दृष्टि से, धन की दृष्टि से,टेक्नोलॉजी की दृष्टि से ,पदार्थ की दृष्टि से, हर तरफ से मनुष्य संपन्न होता चला जा रहा है, लेकिन ईमान की दृष्टि से, अंतरंग की दृष्टि से इतना खोखला होता चला जा रहा है कि क्या कहा जाए। ऐसा क्यों है ? 

नेचर, प्रकृति ,विधि का हमारे जीवन में बहुत बड़ा योगदान है।  सब कुछ होने के बावजूद मनुष्य  तृष्णा बढ़ती ही जाएगी जिससे अनेकों मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़ने का डर बना रहेगा। नेचर हमें कभी भी क्षमा करने वाली नहीं है। इसमें सब से बड़ा प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाला है। मनुष्य का  स्वास्थ्य, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण अंश emotions का है, भाव संवेदनाओं का है, असुरक्षित होने वाला है। सच्चे दिल से प्यार करने वाली वस्तु एक लुप्त और rare commodity बन कर रह जाएगी। गुरुदेव तो यहाँ तक कह रहे हैं कि प्यार और संवेदना के बिना मनुष्य, मनुष्य न होकर मरघट के प्रेत-पिशाच की भांति हो जायेगा । मरघट के प्रेत-पिशाच  में एक ही बात होती है- न तो कोई उसका होता है और न वह किसी का होता है।

I don’t care, I am concerned about myself only जैसी प्रवृति लेकर जब मनुष्य जी रहा हो तो समाज की, कुटुम्ब की क्या आवश्यकता ? वसुधैव कुटुंबकम जैसे बातें कहाँ देखी जाएँ। सभी अपने में मस्त रहना चाहते हैं, कोई भी, किसी की भी  दखलंदाज़ी पसंद नहीं करता, हर कोई अपने ही कमरे में, अपने अलग घर में ,अपने ही Pigeonhole में, अपने ही Fools paradise में जीवन व्यतीत करने में प्रसन्न है। 

गुरुदेव बता रहे हैं कि ऐसी परिस्थिति का परिणाम क्या होगा। इसका परिणाम यह होगा कि हमारा अंतरंग खोखला होता चला जाएगा। पैसा बढ़ेगा, तो हम क्या कर सकते हैं ? शिक्षा बढ़ेगी, सभ्यता बढ़ेगी, तो हम क्या कर सकते हैं ? दौलत बढ़ेगी, तो हम क्या कर सकते हैं। गुरुदेव हमारे बुज़ुर्गों का उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि वोह  कच्चे मकानों में रहते थे, हम पक्के में रहते हैं। हमारे बाप-दादों में से कोई पढ़ा- लिखा नहीं था और हम सब पढ़े-लिखे हैं। सुविधाओं को देखते हैं, तो हमारे पास सब कुछ है  लेकिन जब उनके साफ-सुथरे जीवन को, उज्ज्वल चरित्र को देखते हैं, तो आज के  मनुष्य का चरित्र  दिनोंदिन  किस कदर घटता जा रहा है, यह हम प्रतिदिन देख रहे हैं। गिरते चरित्र के जितने भी उदाहरण दिए जाएँ कम ही रहेंगें। 

हम अपने पाठकों से करबद्ध क्षमाप्रार्थी होते कहेंगें हैं कि यह कोई General statement नहीं है, इस दलदल में भी अनेकों कँवल खिलते देखे जा सकते हैं। यह तो सृष्टि का नियम है। जब भी मानव में त्राहि त्राहि मची,  समाज के महामानव/देवमानव आगे आए और उन्होंने ने ही मार्गदर्शन प्रदान किया। 

हमारा सौभाग्य है कि हम सब गुरु चरणों में समर्पित होकर, लुप्त हो रहे मानवीय मूल्यों का पालन करने की शिक्षा प्राप्त का रहे हैं।     

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस के बीच हुए संवाद को हम शुभरात्रि सन्देश में ग्रहण कर चुके है, एक बार फिर यहाँ उस संवाद की आवश्यकता आन पड़ी है। गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस  कहते हैं, “बेटे, तू नौकरी करेगा, तो मेरा काम कौन करेगा ?” स्वामी अपनी ज़िद पर अड़े  हुए थे कि मैं तो पहले नौकरी ही  करूँगा। एक दिन रामकृष्ण परमहंस अपनी बात को लेकर  रोने लगे। गुरुदेव के आंसुओं ने स्वामी जी को विचलित कर दिया और नरेंद्र क्या से क्या बन गए।  

परम पूज्य गुरुदेव ने भी अनेकों का कायाकल्प किया है।  

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज फिर  सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार- 25,(2) सुजाता उपाध्याय-33 ,(3)चंद्रेश बहादुर-28 , (4 )सरविन्द पाल-43,(5 )वंदना कुमार-24 ,(6 )नीरा त्रिखा-24, (7 ) रेणु श्रीवास्तव-45,(8) अरुण वर्मा-32  निशा भारद्वाज-24 सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई 


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