21 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार है, रविवार की संचित ऊर्जा के साथ सप्ताह का शुभारम्भ एक नवीन उत्साह के साथ करने को हम सब आतुर हैं। गुरुदेव के दिव्य साहित्य के अमृतपान के लिए आतुर होना स्वाभाविक है। आज का ज्ञानप्रसाद “गुरुवर की धरोहर पार्ट 3” में ही दिए गए उद्बोधन “हमारा कुटुंब, तब और अब” पर आधारित है जिसमें गुरुदेव ने दोनों समयकालों का तुलना तो की ही है, साथ में हम से, अपने बच्चों से कुछ आशाएं भी की हैं। एक पिता की अपने बच्चों से आशा करना स्वाभाविक ही है।
गुरुदेव ने हमें, अपने बच्चों को अनेकों प्रकार के उपहार दिए, आज समय है उन उपहारों के ऋण अदा करने का। मुफ्त में तो कुछ भी नहीं मिलता। भगवान् से कुछ प्राप्त करने के लिए समर्पण और श्रद्धा तो साबित करनी ही पड़ती है। नौकरी में वेतन भी काम करने के बाद ही मिलता है।
हमारा सौभाग्य है कि हम जैसे अनेकों बच्चे, शिष्य, गुरुदेव की ज्ञान मशाल थामे आगे ही आगे चले जा रहे हैं, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार इसका प्रतक्ष्य प्रमाण है।
आगे बढ़ने की इस दौड़ ने अरुण वर्मा जैसे समर्पित साथियों को स्वास्थ्य संवर्धन जैसे महत्वपूर्ण विषय को भी भुला दिया है, यह सरासर अनुचित है। समस्त परिवारजनों से यह करबद्ध अनुरोध है कि संकल्प सूची को अपडेट रखना, इसके सिकुड़न की चिंता करना, बहुत आवश्यक है लेकिन स्वास्थ्य के साथ कोई भी compromise करना उचित नहीं होना चाहिए। “साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाये, मिल कर हाथ बढ़ाना” के सूत्र को अपनाकर हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। सहयोगिता ही तो हमारी शक्ति है। युवाशक्ति से हमें बहुत आशाएं हैं।
इन्ही शब्दों के साथ गुरुचरणों में नतमस्तक होकर आज की कक्षा का शुभारम्भ होता है।
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परम पूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि हमने यह कुटुंब बहुत दिनों पहले बनाया था । उस समय हमारे पास बच्चे-ही-बच्चे थे। बच्चों के बारे में जो नीति अख्तियार करनी चाहिए वही नीति हमने भी निभाई। बच्चों को प्यार से, दुलार से, पुचकार से, गिफ्ट देकर,नन्हें मुन्नों से कुछ भी कार्य करवाया जा सकता है। बच्चे के लिए पिताजी चाबी की रेलगाड़ी लाएं तो कितने प्रसन्न होते हैं । बच्चे की अंगुली पकड़ कर घुमाने ले जाएँ, बर्फ का गोला खिलाएं तो बच्चे कितने प्रसन्न होते हैं, सभी को भाग-भाग कर बताते हैं कि आज मुझे यह surprise gift मिला है।
यहाँ हमें अपनी नन्हीं, नटखट 5 वर्षीय पोती की याद आ गयी। सोचा आपसे शेयर का लें और फिर गुरुदेव की दिव्य शिक्षा आगे बढ़ाते हैं।
लगभग 3 बजे दोपहर को जब हमारी पोती स्कूल से आती है तो वोह भाग कर हमसे गले लग जाती है। प्रतिदिन जब हमें आभास होता है कि उसकी मम्मी स्कूल से लेकर आ गयी है और वोह गेराज में गाड़ी से उतर रही होती है तो हम अंदर से ही बोलते हैं “Aria I have a surprise for you” तो बच्ची हमारे साथ ऐसी आकर्षित होती है कि क्या कहें। ऐसे एपिसोड तो हम सब के साथ होते ही रहते होंगें लेकिन यहाँ जो महत्वपूर्ण बात है, वोह यह है कि केवल एक प्यार का वाक्य बोल देने से, सरप्राइज गिफ्ट आदि दे देने से Aria के प्रति हमारी कुछ आशाएं तो अवश्य ही बन जाती होंगीं।
यही आशाएं गुरुदेव हमसे कर रहे हैं।
गुरुदेव कह रहे हैं कि हमने आपको बर्फ का गोला खिलाया, चाबी वाली रेलगाड़ी लेकर दी , आपकी हर डिमांड पूरी की; करें भी क्यों न ? आप हमारे बच्चे जो ठहरे। हमने आपको सब कुछ दिया, अब समय है आपसे कुछ मांगने का,हमारे मन में उठ रही आशाओं के निवारण का समय। कितना अनुचित है कि आप केवल मांगते ही रहें, हम आपकी सभी मांगों को पूरा करते रहें लेकिन आप हमारे लिए कुछ न करें, ऐसे स्वार्थी बच्चे हमें बिल्कुल ही पसंद नहीं हैं। हमने बार-बार ऐसे ही तो नहीं कहा है “तू मेरा कार्य कर, बाकी सब मुझ पर छोड़ दे।” सरप्राइज गिफ्ट देकर हम आपसे भविष्य के कितने ही कार्य कराने वाले हैं।
बेटे,आज से तीस वर्ष पूर्व हमने ऐसे ही नटखट बच्चों का समूह जमा किया था और उन बच्चों से कहा था कि हमारी जादू की पिटारी में बहुत कुछ है, आइए ले जाइए। अपनी समझ के अनुसार किसी ने गुब्बारा माँगा,किसी ने बेटा माँगा तो किसी ने दमे की दवाई मांगी।
यह उन दिनों की बात है जब हम जादू की पिटारी लेकर गली-गली आवाजें लगाते फिरते थे, महामानवों की तलाश करते फिरते थे। अब हमारी दुकान बड़ी हो गई है, आशा तब भी थी और आशा अब भी है। उस समय हमारे बच्चों को हमसे आशा थी लेकिन अब हमें आपसे आशा है।
इसे इस प्रकार कहना उचित होगा। अगर अब आप गुब्बारे माँगते हैं, तो हमें खीज होती है और हम कहते हैं कि अब आप 30 वर्ष के हो गए हैं,आप गुब्बारा क्या करेंगें । बेटे अब हम बूढ़े हो गए हैं, बच्चा कमाने लगा है, उसे रेगुलर तनख्वाह मिलती है। देख बेटे, हम ये फटा हुआ पाजामा पहने हैं, हमारे लिए नया पाजामा ला दे। देख बेटे हम बूढ़े हो गए हैं, हमारी नज़र भी कमज़ोर हो गयी है । डॉक्टर कहता है कि आँखों को टेस्ट कराना है और नया चश्मा खरीदना है। डॉक्टर ने बताया था कि चश्मा 28 रुपए का आएगा। बेटे,हमारी आँखों का टेस्ट करा दे । चश्मा खरीदकर ला दे ।
अरे! पिता जी, आपने तो U Turn ले लिया, आप तो मांगे ही जा रहे हो। हाँ बेटे, पहले हम गुब्बारे दिया करते थे, अब हम चश्मे के लिए पैसे मांगते हैं। ऐसी क्या बात हो गई, ये तो बिल्कुल उलटा हो गया। हाँ बेटे हमारा ही क्या, तू भी तो बदल गया है। तब तू गोदी में था, नंगा फिरता था, अब पैंट पहनता है। तू बदला है कि नहीं ? हाँ पिता जी मैं बदला हूँ।
मित्रो! अब हमारा कुटुंब जवान हो गया है। हम जवान हुए बच्चों से आशा करते हैं कि वोह समाज में अपना योगदान दें। अब हम अपने बच्चों से माँगने की आशा करते हैं । अपने बच्चों पर हमारा हक है, पिता का बच्चों पर हक होता है कि नहीं, अवश्य होता है।अब आपसे माँग रहे हैं और माँगना भी चाहिए।
जहाँ कहीं भी वास्तविकता का उदय हुआ है, जहाँ कहीं भी जवानी आई है, जहाँ कहीं भी प्रौढ़ता आई है, जहाँ कहीं भी विवेकशीलता आई है, वहीं परंपरा उल्ट जाती है। अब हम आप से लेने की परंपरा आरंभ करते हैं क्योंकि आप अब जवान हो गए हैं। खास तौर से ऐसे समय में, जिसमें हम और आप जी रहे हैं ,देने की प्रवृति बहुत ही प्रबल है।
आज जहाँ मनुष्य जाति चली जा रही है, मनुष्य का चिंतन जिस पतन के गड्ढे में धँसता हुआ चला जा रहा है, हमें बहुत कुछ सार्थक करना है और यह सब आपने ही करना है, हमारे बच्चों ने ही करना।
हमने और हम जैसे अनेकों ने अपने जीवन बलिदान करके एक स्वतंत्र भारत आपको “गिफ्ट” के रूप में दिया, बुज़ुर्गों द्वारा प्रदान किये गए इस “गिफ्ट” को आपने ही संभाल कर, संजोकर रखना है। संजना, प्रेरणा, उपासना, पिंकी, अनुराधा जैसे बच्चों के अंदर धधक रही ज्वाला प्रमाण दे रही है कि हम गुरुदेव के समर्पित बच्चे, आपकी आशाओं पर पानी नहीं फिरने देंगें।
“हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के”
अभिभट्टाचार्य जी पर फिल्माए गए, कवि प्रदीप द्वारा लिखित,रफ़ी साहिब द्वारा गाए, 1954 की बहुचर्चित फिल्म “जाग्रति” के इस गीत में वही शिक्षा और मांगें हैं जो परम पूज्य गुरुदेव हमसे मांग रहे हैं।
हम विश्वास करते हैं कि इस लेख को पढ़ते समय ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के हमारे वरिष्ठ समर्पित साथी इस दिव्य गीत की पंक्तियाँ अवश्य ही गुनगुना रहे होंगें। कवि प्रदीप की कलम से लिखा गया एक एक शब्द परम पूज्य गुरुदेव के विचारों पर मोहर लगा रहा है।
पासे सभी उलट गए दुश्मन की चाल के
अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के
मंज़िल पे आया मुल्क हर बला को टाल के
सदियों के बाद फिर उड़े बादल गुलाल के
हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के
देखो कहीं बरबाद ना होए ये बगीचा
इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा
रक्खा है ये चिराग़ शहीदों ने बाल के, इस देश को..
दुनिया के दांव पेंच से रखना ना वास्ता
मंज़िल तुम्हारी दूर है लम्बा है रास्ता
भटका ना दे कोई तुम्हें धोखे में डाल के, इस देश को…
ऐटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनिया
बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनिया
तुम हर कदम उठाना ज़रा देख भाल के, इस देश को…
आराम की तुम भूल भुलय्या में ना भूलो
सपनों के हिंडोलों पे मगन होके ना झूलो
अब वक़्त आ गया है मेरे हँसते हुए फूलों
उठो छलाँग मार के आकाश को छू लो
तुम गाड़ दो गगन पे तिरंगा उछाल के, इस देश को…परम पूज्य गुरुदेव वेदनापूर्ण वाणी में कह रहे हैं: आज के युग में हम ठीक वही परंपराएँ देख रहे हैं जो रावण के समय में व्याप्त थीं। उस समय मनुष्यों को मारकर हड्डियों के ढेर लगा दिए जाते थे । आज हड्डियों के ढेर तो नहीं लगाए जाते लेकिन मनुष्यों के रूप में चलते-फिरते दानव अवश्य ही देख सकते हैं। ऐसे मानव जो जीवित तो हैं लेकिन मानवता लेशमात्र भी नहीं दिखती। ऐसे समय में, ऐसी स्थिति में हमें केवल अपने संस्कारित बच्चों से ही आशा है, हमें दृढ विश्वास है कि हमारे बच्चे, हमारे शिष्य गुरुऋण, गुरु दक्षिणा देने में एक पल भी नष्ट नहीं करेंगें।
गुरुदेव कहते हैं, “मैं समझता हूँ कि आज की तुलना में, प्राचीनकाल में ज्यादा भले मनुष्य थे थे क्योंकि तब तो मनुष्य को मारकर खत्म कर देते थे। आज तो आपको रुला-रुलाकर मारते हैं, तरसा-तरसा कर मारते हैं।
इस विषय पर गुरुदेव ने अनेकों उदाहरण देकर हमें समझाने का प्रयास किया है कि आज का मानव कैसे दानव बना हुआ है और हमारा क्या कर्तव्य है, क्या मूक दर्शक बने, हाथ पर हाथ रखे बैठे रहेंगें ? कदापि नहीं -हमें गुरु दक्षिणा देनी ही है।
इन्हीं विचारों के साथ आज के ज्ञानप्रसाद का अल्पविराम होता है, कल की कक्षा में इसी विषय पर और रोचक-शिक्षाप्रद चर्चा की जाएगी।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार- 36 ,(2) सुजाता उपाध्याय-25 ,(3) रेणु श्रीवास्तव- 38,(4) सुमन लता-26, (5 ) चंद्रेश बहादुर-34, (6)सरविन्द पाल-47,(7 )मंजू मिश्रा-32, (8 )वंदना कुमार-24,(9 )नीरा त्रिखा-25
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई