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क्या ऐसा मनुष्य भगवान् से विवाह कर पायेगा ?

22 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद

आज सप्ताह का दूसरा दिन मंगलवार है, गुरुचरणों में समर्पित मंगलवेला में, गुरुकुल कक्षा के सभी छात्र गुरुदेव से ऐसे स्तर की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं जिससे वोह भगवान् से विवाह करने के योग्य हो पाएं। गुरुदेव द्वारा  evaluation करने से पहले स्वयं ही  self-analysis कर रहे हैं कि कहाँ कोई कमी रह गयी है। 

आज के ज्ञानप्रसाद लेख को बीच में ही रोक कर, हमारी बहिन निशा भारद्वाज जी द्वारा भेजे कंटेंट की सहायता से भावसंवेदना पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। बहिन जी का योगदान आने वाले किसी विशेषांक को सुशोभित कर सकता है। हमें मालूम है आप बेसब्री से इस योगदान की प्रतीक्षा करेंगें। 

तो आइए गुरुकुल कक्षा  में गुरुचरणों के प्रति समर्पित होकर अपना-अपना स्थान ढूढ़ लें और शुभारम्भ करें आज के ज्ञानप्रसाद का। बहुचर्चित बॉलीवुड मूवी “नया दौर” के इस भक्तिगीत का एक एक शब्द दिव्य मार्गदर्शन दे रहा है। 

हम सब विश्व शांति की कामना करते हैं : 

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ 

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गुरुदेव ने उन मर्दों को बहुत बुरी फटकार लगाई है जिन्होंने पत्नी को मात्र  बच्चे पैदा करने वाली मशीन ही समझ लिया है। ऐसे मर्दों ने अपनी पत्नी को मात्र  हड्डी का ढाँचा बना  दिया  है। जब वह अपने पिता के घर से यहाँ आई थी, तो यह आशा लेकर आई थी कि उसका  स्वास्थ्य अच्छा बनाया जाएगा, अगर अशिक्षित है तो , शिक्षित किया जाएगा,उसे अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया जाएगा। उसकी यह आशा थी कि पिता जी  जितना स्नेह देते हैं, जितनी सुविधा देते हैं, हमारा पति उससे भी अधिक प्यार और सुविधा देगा। अन्य मनुष्यों  की तरह, इस मनुष्य  ने भी सात फेरे लेते समय पत्नी की हर क्षण सुरक्षा और सहायता के संकल्प लिए होंगें लेकिन विवाह होते ही उसका भेड़िए जैसा रूप देखकर, प्रत्येक संवेदनशील नारी  का हृदय कांप उठा होगा । ऐसे आदमी ने बेटे की अंधी चाह की आड़ में उस स्त्री का, उस सम्मानीय नारी का इस हद तक शोषण किया कि  हर वर्ष उसके पेट में से एक बच्चा निकालता रहा, स्थिति यहाँ तक आ गयी कि कामवासना की पूर्ति  करते-करते उसके पेट में से पाँच बच्चे निकाल दिए, पाँच बेटियाँ हो गईं, लेकिन अभी भी बेटे की चाह उसे यह कुकर्म करने को बाधित कर रही है । ऐसे अमानुष व्यक्ति को गुरुदेव बार-बार धिक्कार रहे हैं। गुरुदेव बता रहे हैं कि वह बेचारी लाश बन कर रह गई है, बार-बार हमारे पास आती  है और शिकायत करती रहती है कि हमारे पेट में  दर्द  होता है, कमर में दर्द होता है , सिर में दर्द होता है और न जाने क्या कुछ होता रहता है। मैं कहता हूँ कि बेटी तू भगवान् का शुक्र मना कि अभी तक जीवित है, भगवान् को बहुत धन्यवाद दे कि ये पिशाच तुझे अभी तक जिंदा छोड़े हुए हैं। इसका बस चले, तो तुझे खाकर तेरी जिंदगी ही समाप्त  कर दे, चांडाल कहीं का। इसे तो अभी और बच्चे चाहिए।

गुरुदेव बता रहे हैं कि  उस बेचारी के पास न मांस है, न शरीर में रक्त है और न ही उसके पास जान है। उसके पास कुछ भी नहीं है। न जाने किस तरीके से साँस ले रही है और कैसे दिन बिता रही है, और वह धूर्त एक ही बात पर अड़ा हुआ है, “मेरा तो वंश चलना चाहिए।” इस राक्षस का, दुष्ट का वंश चलना चाहिए? यह तो कसाईपन है।  

आज हमारे आगे-पीछे, दाएं-बाएं, अनेकों परिवारों में इस तरह के कसाई देखे जा सकते हैं। अशिक्षिता और अज्ञान के वशीभूत ऐसे कसाईओं को इस बात की तनिक भी चिंता नहीं है   है कि इनको पढ़ाएगा कौन, इनका पालन-पोषण कौन करेगा, इनको तो बस कामवासना से ही  प्यार है, नारी के शरीर से ही प्यार है, नारी की  आत्मा के तो कभी दर्शन ही नहीं हुए। अगर ऐसे कसाईओं को  बताने का प्रयास भी करें कि “विवाह दो आत्माओं के मिलन  होता है”, “नारी को अर्धांगिनी, यानि आधा अंग” कहा  जाता है तो एक ही  स्टैण्डर्ड कमेंट मिलने की सम्भावना है “मुझे  ज्ञान नहीं चाहिए,इसे अपने पास ही रखो ” परम पूज्य गुरुदेव ने ऐसे आदमियों को कसाई और चांडाल की संज्ञा दी है। 

क्या ईश्वर ने ऐसे राजकुमार की कल्पना की थी ? ऐसे चांडाल से तो कोई साधारण मनुष्य भी विवाह नहीं करेगा और चले हैं भगवान् से विवाह करने।  

आइए अपने आसपास तनिक  और दृष्टि  दौड़ाएं और देखें कि आज का मानव, जो भगवान् से विवाह करने के लिए इतना उत्सुक है, आतुर है, वोह यह विवाह deserve भी करता है कि नहीं। 

अपने चारों तरफ दृष्टि डालें तो शायद ही कोई ऐसा मानव दिखाई दे जाए जिसमें दया,धर्म, ईमान, संवेदना, निस्वार्थता दिखाई दे। अगर हम कहें कि ऐसे मनुष्यों को गायत्री परिवार में यां ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में देखा जा सकता है तो सरासर अपनी बढ़ाई करना ही होगा, अपनी वाहवाही करना तो इस परिवार के genes में ही नहीं है।  विश्व में अनेकों संस्थाएं, संगठन आध्यात्मिक परिवार देखे जा सकते  हैं जिन्हें हम “चलते फिरते मंदिर” कहने में तनिक भी झिझकेंगे नहीं। 

गुरुदेव 50 वर्ष पहले मानव की प्रवृति से चिंतित थे, वर्तमान समय में स्वार्थ और भाव संवेदनाओं की दृष्टि से मनुष्य का स्तर और भी घटिया हुआ है। हमारा सौभाग्य है कि बिना किसी को मिले, बिना  देखे ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में वोह आत्माएं जुड़ गयी हैं जिन्हे हम देवमानव कह सकते हैं। 

भावसंवेदनाओं के विषय में अभी अभी प्राप्त हुए व्हाटप्प मैसेज को अपने साथियों के समक्ष रखना चाहेंगें। निशा बहिन जी को उनके भाई  अमर शहीद सुनील जी के बारे में लिखने का निवेदन किया था, व्यस्तता के बावजूद हमारी बहिन ने 1800 शब्दों का एक अति दुःखद वृतांत और सवा सात मिंट की एक  वीडियो भेजी है, इतना मार्मिक वृतांत है कि आंसू रोकना कठिन हो रहा है, वृतांत तो वृतांत, वीडियो एकदम मास्टरपीस है, जब आप देखेंगें तो शायद ही कोई अपने आंसू कण्ट्रोल कर पाए। यह है भाव संवेदना। बहिन निशा का जितना भी धन्यवाद् करें कम है और अमर शहीद सुनील के लिए कुछ भी लिख दें, अपर्याप्त ही रहेगा। तभी तो कहा गया है कि “ अगर किसी का दुःख देखकर आपके आंसू निकलते हैं तो समझ लेना चाहिए कि भगवान्  ने हमें मनुष्य बना कर कोई गलती नहीं की” शायद हम मनुष्य कहलाने के हकदार हैं !!!

गुरुदेव चिंतित होते हुए  कहते हैं कि आज का अधिकतर मनुष्य  इतना स्वार्थी  होता जा रहा है कि अब इसका  गुज़ारा इंसानों से  नहीं हो सकता। अब जो कोई भी सामने आएगा, उसे ही यह अपने स्वार्थ का शिकार बनाएगा। हम प्रतिदिन अनेकों मनुष्यों को मंदिरों में भगवान् के साथ सौदेबाज़ी करते देखते हैं, भगवान् को भांति-भांति के  प्रलोभन देकर फुसलाते देखते हैं। भगवान्  को मिठाई का लालच देकर, रुपए पैसे आदि का लालच देकर अपना काम निकलवाते देखते हैं। भगवान् मेरा प्रमोशन कर दो तो यह चढ़ाऊंगा, मेरी बेटी की शादी फिक्स करा दो तो यह प्रशाद चढ़ाऊंगा,मनुष्य की डिमांड्स की कभी न समाप्त होने वाली लिस्ट इतनी बड़ी है कि भगवान् सुन-सुन कर थक जाते हैं। 

मनुष्य का स्वार्थ ऐसे स्तर तक पंहुच चुका  है कि इसकी पूर्ति के लिए हम भगवान् को बदनाम करने से भी परहेज़ नहीं करते। अपने गुरु का रिफरेन्स देते हुए कहते हैं कि मेरे गुरु को सवा रुपया चढ़ाओ, आपकी मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही कामना पूर्ति  हम में से अनेकों ने माँ  के मंदिर में बकरे की बलि देते हुए देखी होगी। 

हम बचपन से ही स्वयं से  प्रश्न करते आये हैं कि बकरे की बलि देकर माँ  से कोई मांग मनवानी, यह कैसी विडंबना है,यह कैसी भक्ति है ? यह तो सरासर अन्धविश्वास है। 

मनुष्यता का स्तर नीचे ही नीचे गिरे जा रहा है। 

मनुष्यता के गिरते स्तर को देखते हुए परम पूज्य गुरुदेव हमें चेतावनी देते हुए पूछ रहे हैं :   हम कहाँ जा रहे हैं और न जाने मनुष्यता का  क्या हो रहा है ? हम जिस युग  में रह रहे हैं, उसमें मनुष्य  न जाने क्या बनने  वाला है ? अगर इसी तरह से चलता  रहा, तो न जाने परिणाम क्या होगा। आजकल की तुलना में आगे इससे भी अधिक मुसीबतें आने वाली हैं। मनुष्य जिस गति से निष्ठुर, नीच और स्वार्थी होता जा रहा है, अगर इसे यही पर न रोका गया तो मनुष्य ही मनुष्य को मार करके खाएगा। किसी मनुष्य की अपने स्वार्थ के लिए हत्या करके उसकी गद्दी हड़प लेना “उसको खाने के बराबर नहीं तो और क्या है ?” 

आधुनिक मानव विकास की पराकाष्ठा पर तो पहुँच गया है,कल 23 अगस्त 2023 को, चंद्रयान चाँद की धरती पर उतरने को तो तैयार है लेकिन अभी भी उसे  भूत से डर लगता है,साँप से डर लगता ही,चोरों का डर लगता है। अभी कल की ही तो बात है कि मनुष्य को मनुष्य से ही डर लग रहा था। Covid  के समय मनुष्य ने मनुष्य से 6  फ़ीट की दूरी बना ली थी, हाथ मिलाना तो दूर,अपना चेहरा तक भी  ढक किया था और इतना ही नहीं बहुत से लोग आज भी अपना चेहरा ढके रहते हैं। क्या यही है विकास ? 

Scientific inventions का विरोध करना शत प्रतिशत अनुचित है, पृथ्वी से दूर चाँद पर पैर ज़माने को होड़ तो लगी हुई है लेकिन पृथ्वी के लगातार होते विनाश की किसी को तनिक  भी चिंता नहीं है।

हमारे  गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की शिक्षा एवं उनके द्वारा लिखित विशाल साहित्य पर आधारित ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक योगदान, प्रत्येक सहयोगी/साथी को सार्थक मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए कृतसंकल्पित है। इसी मार्गदर्शन से जब तक हम स्वयं को पहचानने में सफल नहीं  हो पाएंगें, भटकते  ही रहेंगें, कुछ भी प्राप्त नहीं कर पायेंगें। भगवान् ऐसे भटके हुए मनुष्यों से कैसे विवाह करेंगें ?

आज की गुरुकुल कक्षा का अल्प विराम यहीं पर करने की आज्ञा चाहते हैं, कल कुछ और मार्गदर्शन प्राप्त करेंगें और मूल्यांकन करेंगें कि क्या हम भगवान् के साथ विवाह की योग्यता के स्तर पर पंहुच पाए हैं। 

जय गुरुदेव  

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं। (1)संध्या कुमार- 29 ,(2) सुजाता उपाध्याय-31,(3) सुमन लता-25,(4 ) चंद्रेश बहादुर-34, (5 )सरविन्द पाल-44 ,(6 )वंदना कुमार-26,(7 )नीरा त्रिखा-24, (8) निशा भारद्वाज-24 सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई         


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