स्वतंत्रता दिवस 2023 की सभी को बधाई, शुभकामना।
आज का प्रज्ञा गीत स्वतंत्रता दिवस को समर्पित “मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे।” 1963 में आयी सुप्रसिद्ध बॉलीवुड मूवी बंदिनी में मन्ना डे जी की आवाज़ में इस गीत को शेयर करने का सुझाव आदरणीय पुष्पा सिंह जी द्वारा आया था जिसके लिए हम उनके आभारी हैं।
आज 15 अगस्त 2023 का पावन दिन है जिसकी महत्ता से विश्व के कोने-कोने में बैठे प्रत्येक भारतीय भलीभांति परिचित है। हमारे जैसे अनेकों ही ऐसे परिजन होंगें जिन्होंने किसी दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार कर ली हो लेकिन ह्रदय में सभी के “भारत” का ही वास है। ऐसा लिखते हुए हम उस देश के प्रति किसी भी किस्म की असम्मानता नहीं व्यक्त कर रहे हैं जिसकी नागरिकता हमने स्वीकार की है, उसका सम्मान करना भी हमारा परम कर्तव्य एवं धर्म है।
सुप्रसिद्ध संस्कृत श्लोक
मित्राणि धन धान्यानि प्रजानां सम्मतानिव ।
जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥
का अर्थ हर भारतीय को सदैव स्मरण रखना चाहिए जिसके अनुसार “मित्र, धन, धान्य आदि का संसार में बहुत अधिक सम्मान है, लेकिन माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।” मातृभूमि को भूलना, अपनी माँ को भूलने का अर्थ है स्वयं को भूलना है, यूँ ही तो नहीं कहा गया है “ माँ की गोद में स्वर्ग होता है।” इसे अनुभव कर तो देख, हे मनुष्य।
ऐसे श्लोक और इनके अर्थ केवल लिखने और फेस पेंटिंग के लिए नहीं हैं, सोशल मीडिया साइट्स पर शेयर करने के लिए नहीं हैं, likes और कमैंट्स लेने के लिए नहीं हैं, इनके अंदर छिपी भावनाओं को आत्मसात करके अपनी अंतरात्मा को झकझोड़ने के लिए हैं।
कुछ ऐसी ही भावनाएं हमारे समर्पित, कर्तव्यनिष्ठ साथी आदरणीय सरविन्द पाल जी की लेखनी से दर्शित हो रही हैं। विश्व भर में फैले ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित सदस्यों के समक्ष अगस्त 2022 की अखंड ज्योति में प्रकाशित लेख को प्रस्तुत करने का जो प्रयास सरविन्द जी ने किया है वह बहुत ही सराहनीय है जिसके लिए हम धन्यवाद् करते हैं।
हर बार की भांति 2023 के स्वतंत्रता दिवस के लिए भी साथियों के योगदान अनवरत आ रहे थे, अगर उन सभी को प्रकाशित करें तो हम अपने मूल लक्ष्य से भटक जाएंगें, इसलिए हम कल एक और समर्पित साथी आदरणीय चंद्रेश बहादुर जी की प्रस्तुति का प्रकाशन करेंगें।
मंगलवार की मंगलवेला में सूर्य देवता की दिव्य किरणों की लालिमा से ऊर्जावान होकर, गुरुचरणों में समर्पित होते हुए, गुरुकुल पाठशाला की आज की कक्षा का शुभारम्भ करते हैं।
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परम पूज्य गुरुदेव व परम पूज्य वन्दनीया माता जी का जीवन, व्यक्तित्व व कृतित्व हमेशा से समाज निर्माण, राष्ट्र निर्माण व युग निर्माण के लिए अनवरत समर्पित रहा है l उन्होंने अनगनित वर्षों तक अपना जीवन उन संकल्पों के आधार पर जिया है, जिनसे प्रेरणा पाकर अनगिनत लोगों ने समाज उत्थान के लिए सराहनीय व प्रशंसनीय व अनुकरणीय प्रयास किए हैं l इसी सत्य का अनुपालन करते हुए अनेक वीर सैनिकों ने राष्ट्र हित में अपनी जान दाँव पर लगा दी और भारत की गौरव-गरिमा को अंग्रेजों से वापस लाने में सफलता हासिल की l हम सबके परम पूज्य गुरुदेव का भी इस महान कार्य में बहुत बड़ा योगदान था l आज का ज्ञानप्रसाद लेख अखंड ज्योति पत्रिका के अगस्त 2022 अंक में प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक था “कलम आज उनकी जय बोल” l
समस्त भारत तो क्या विदेशों में भी 15 अगस्त वाला दिन बहुत ही श्रद्धा एवं हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत की स्वतंत्रता को दर्शाता यह “स्वतंत्रता दिवस”, राष्ट्रीय पावन महापर्व राष्ट्रीयता, मानवता, प्रखरता, संवेदना, साहस और संकल्प जैसे भावों को प्रतिष्ठित करने वाला पर्व है। यह महान पर्व श्रेष्ठ व महान दिव्य आत्माओं के प्रति श्रद्धा, आदर और सम्मान व्यक्त करने का पर्व है। यह पर्व भारत के उन अजर-अमर सपूतों का पर्व है जिनके त्याग, बलिदान और शहादत के कारण ही आज भारत देश स्वतंत्र है। आज हम सभी भारतीय अंग्रेजों की वर्षों की दासता से मुक्ति पाकर, स्वतंत्रता के दिव्य वातावरण में अपने-अपने घरों में सुरक्षित सो पाते हैं और आत्मानंद की आत्मानुभूति करते हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक एक सदस्य, भारतीय युग सैनिकों को, वीर सपूतों को शत शत नमन करता है जिन्होंने राष्ट्र हित के लिए अपनी जानें तक कुर्बान कर दीं।
हमारे वीर सपूत सुभाषचन्द्र बोस, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, रामप्रसाद बिस्मिल, महात्मा गांधी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले जैसी श्रेष्ठ व महान दिव्य एवं पवित्र आत्माओं से आरम्भ हुई इस कुर्बानी की कहानी के महानायक बहुत सारे वे वीर सैनिक भी रहे हैं, जिन्होंने आजादी के बाद भी भारत- पाकिस्तान युद्ध से लेकर कारगिल के युद्ध में अपने प्राणों की आहुति प्रदान की है l जब हम भारतवासी अपने भविष्य की ओर मुख करके एक आशा व उत्साह की यात्रा की शुरुआत करते हैं तो नैतिकता के आधार पर निस्वार्थ भाव से इन महापुरुषों के अमूल्य योगदानों को याद किए बिना वह यात्रा एक प्रकार से अधूरी रह जाती है, क्योंकि वही देश बुलंदियों की यात्रा पर आगे बढ़ पाता है, जो अपने पुराने गौरव को, बीते हुए कल के बलिदानों को सम्मानित करना जानता है l
इस विषय पर परम पूज्य गुरुदेव बहुत ही सुन्दर शब्दों में लिखा है कि ऐसा नहीं है कि बलिदानियों को सम्मान देने के कार्यक्रम भारत में होते नहीं हैं और सच्चाई तो यह है कि बाहरी सम्मान के कार्यक्रम ज़्यादा होते हैं और आंतरिक भाव अभिव्यक्ति तो लगभग समाप्त ही हो चली है, शून्य सी हो गई है। आंतरिक भाव अभिव्यक्ति का कोई आस्तित्व ही नहीं बचा है। इस कड़वी सच्चाई का सामना करने के लिए जब हम इस राष्ट्रीय पावन महापर्व को मनाते हैं, हमें नैतिकता के आधार पर स्वयं से एक प्रश्न पूछना आवश्यक एवं न्यायसंगत हो जाता है। यह प्रश्न है:
“हम जिन स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान कर रहे हैं, जिन्होंने इस देश को स्वतंत्र कराने के लिए, स्वतंत्रता को अखंड बनाए रखने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, क्या हम उस बलिदान के साथ न्याय कर रहे हैं?”
परम पूज्य गुरुदेव लिखते हैं कि हमें इस प्रश्न का सही उत्तर तभी मिल पाएगा जब हम इस प्रश्न को कुछ इस तरह से पूछें कि
“आज जिन चित्रों पर हमने मालाएँ चढ़ाई, इस स्वाधीनता दिवस पर हमने जिनके नामों का गुणगान किया, यदि इनमें से कोई एक बलिदानी भी जीवित होकर लौट आए और हमसे पलटकर यह प्रश्न करे कि जिस तिरंगे को सुरक्षित रखने के लिए हमने खून के कतरे बहाए थे, उस तिरंगे का तुम कितना सम्मान रख पा रहे हो? शहीद भगत सिंह पूछें कि जिस देश को स्वतंत्र कराने के लिए मैं मात्र 24 वर्ष की आयु में फाँसी पर झूल गया, उसके गौरव को बनाए रखने के लिए, बढ़ाए रखने के लिए तुम क्या कर रहे हो? परम पूज्य गुरुदेव, “श्रीराम मत्त” के रूप में आएं और हमसे पूछे कि जिस तिरंगे को सीधा ताने रखने के लिए मैं आघातों को अपने शरीर पर झेल गया, उस तिरंगे का तुम सम्मान रख पा रहे हो या नहीं?” आज के समय में स्वतंत्रता के लिए दिया गया यह बलिदान मात्र एक तमाशा बन गया है। आज तो इस बात की फिक्र है कि चेहरे पर तिरंगा पेंट( Paint) किया है या नहीं, हृदय व आत्मा में राष्ट्र भक्ति का तनिक भी भाव न हो l राष्ट्रधर्म का निर्वाहन वर्ष में एक बार जय-जयकार करके, अपने-अपने घरों में घुस जाने से कहाँ नियत हो पाता है? कितना दुःखद है कि कई लोग मात्र इतना ही कर देने से अपने जीवन को उन शहीदों के बराबर समझने लग जाते हैं, जिनके रक्त की एक-एक बूँद से इस राष्ट्र की धरती नहाई हुई है l आज हम सब भारतीय अपनेआप से यह प्रश्न पूछ कर देखें कि यदि वोह महान व्यक्तित्व पुनः यहाँ लौटकर हमसे इन प्रश्नों के उत्तर मांगें तो क्या नैतिकता के आधार पर हमारे अंतःकरण में ग्लानि का भाव प्रस्फुटित नहीं होना चाहिए ?
यदि वह दुबारा आकर देखें कि आज किस राष्ट्रीय चरित्र को, किस राष्ट्रीय अस्मिता को और किस राष्ट्रीय स्वाभिमान को हम अंगीकार करके बैठे हैं तो उनको बहुत कष्ट होगा क्योंकि आज राष्ट्रीय भाव कहीं सो गया है और यह सम्मान मात्र आडम्बर प्रधान हो गया है l अतः ऐसी स्थिति में आज एक प्रसुप्त राष्ट्रधर्म का जागरण, आज के समय की आवश्यकता बन जाता है। आज, 15 अगस्त 2023 के पवित्र दिन हमें राष्ट्रीयता के भाव को जगाना बहुत जरूरी है नहीं तो यह सब बाहरी आडम्बर और दिखावा है, इसमें तनिक भी संदेह व संशय नहीं है।
आइए स्मरण करते हैं राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी की अंतर्वेदना से ओतप्रोत भाव भरी निम्नलिखित पंक्तियाँ :
कलम आज उनकी जय बोल l
जला अस्थियाँ बारी-बारी,
छिटकायी जिनने चिनगारी l
जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर,
लिए बिना गरदन का मोल l
कलम आज उनकी जय बोल ll
जो अगणित लघुदीप हमारे,
तूफानों में एक किनारे l
जल-जलकर बुझ गए
किसी दिन माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल l
कलम आज उनकी जय बोल ll
पीकर जिनकी लाल शिखाएं,
उगल रही लू-लपट दिशाएं l
जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल l
कलम आज उनकी जय बोल ll
अंधा चकाचौंध का मारा,
क्या जाने इतिहास बेचारा l
साक्षी हैं उनकी महिमा के,
सूर्य, चंद्र, भूगोल, खगोल l
कलम आज उनकी जय बोल ll
सरविन्द पाल जी आज के इस स्वतंत्रता दिवस स्पेशल लेख का समापन निम्नलिखित बह्व्ना से करते हैं :
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि उक्त अभिलेख से हम सबको प्रेरणा मिलेगी जो हमारे अंदर राष्ट्रभक्ति की भावना को जागृत कराने में सहायक होगी, जिसकी आज महती आवश्यकता है l
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज का गोल्ड चंद्रेश जी को जाता है। उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।
(1)संध्या कुमार-28
(2) रेणु श्रीवास्तव-25
(3)चंद्रेश बहादुर-43
(4 )सरविन्द पाल-25
(5) निशा भारद्वाज-24
(6)सुजाता उपाध्याय-29,
(7) वंदना कुमार-24
(8)नीरा त्रिखा-24
(9 )अरुण वर्मा-32
सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन

