14 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज फिर से सोमवार है, सप्ताह का प्रथम दिन, हम सबको ऊर्जान्वित करता हुआ और ज्ञानप्रसाद का अमृतपान कराता यह दिन। हमारा परम सौभाग्य है कि हम सब गुरुकुल पाठशाला की इस कक्षा में गुरुचरणों में समर्पित होकर “भगवान् से विवाह” करने के उद्देश्य से पात्रता विकास के लिए गुरुदेव से मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे हैं।
पूर्व प्रकाशित तीन लेखों की भांति आज का लेख भी परम पूज्य गुरुदेव के जनवरी 1969 के उद्बोधन पर आधारित है, यह उद्बोधन गुरुवर की धरोहर भाग 3 में प्रकाशित हुआ था।
तो आइए आज की कक्षा का आरम्भ करें।
********************* गुरुदेव ने 13 से 15 वर्ष की आयु के दो वर्षों में भारत के किसी भी सिद्ध पुरुष, महात्मा, योगी को नहीं छोड़ा। गुरुदेव उन बाबाओं को भी मिले जो जादूगर की भांति चमत्कार दिखाकर सोना बनाने का दावा करते हैं, गुरुदेव कहते हैं कि हम उनके नाम तो नहीं बता सकते हैं, हाँ एक कहानी अवश्य सुना देते हैं जिससे असली और नकली सिद्ध पुरुष की पहचान हो जाएगी।
एक बार हमने एक सिद्ध पुरुष की बात सुनी तथा उसके लिए हमने बहुत बड़ा जोखिम उठाया, प्राणों की बाज़ी तक लगा दी। वो सिद्ध पुरुष घने जंगल की एक गुफा में रहते थे। लोगों ने बताया कि वे सबका नाम-पता तथा भूत-वर्तमान-भविष्य सब कुछ बता देते हैं। हम उनके पास पहुँच गये। बाबा ने बहुत कुछ बताया लेकिन हमें दाल में कुछ कुछ काला दिखाई दिया । हम वहीं रुक गये तथा पैर में मोच का बहाना बना दिया। यह बात हमने उनके चेले को बता दी। हम बहाना बनाकर एक कोने में पड़े रहे।
एक दिन कोई शिक्षक आए, यह शिक्षक भी उन सिद्ध पुरुष के शिष्य थे। हमने उन्हें बता दिया कि यह बेकार का आदमी है, कोई सिद्ध महात्मा नहीं है, इसके चेले धंधा करते हैं । हमने शिक्षक से कहा कि आप सब नाम-पते आदि गल्त बताना। शिक्षक ने चेलों को अपना नाम-पता सब गलत बताया। दूसरे दिन शिक्षक महोदय महात्मा जी से मिले, तो वहां भी उन्होंने गलत ही बताया। शिक्षक और हम, दोनों यह देखकर मुस्कुरा पड़े। चेलों ने हमें मुस्कराते देख लिया । हम किसी प्रकार धोती-कुरता समेट कर और तोलिया लपेट कर दीर्घशंका का बहाना बनाकर वहाँ से भाग लिये। जाना था पूरब की ओर,निकल गए पश्चिम की ओर। किसी तरह प्राण बचाकर तीन दिन तक जंगल में भटकने के बाद अपने स्थान पर पहुँचे ।
तो साथियो, एक तो ऐसे गुरु होते हैं और दूसरी तरफ हमारे गुरु, गुरु सर्वेश्वरानन्द जी, जो 15 वर्ष की आयु में वसंत पंचमी वाले दिन हमारे घर, हमारी कोठरी में आये थे। उन्होंने हमारे तीन जन्मों का सारा दृश्य rewind करके दिखा दिया और हमें गायत्री उपासना में लगा दिया, जिसे हमने चौबीस वर्ष तक विधि-विधान पूर्वक किया।
हमने अपने गुरुदेव से एक प्रश्न पूछा कि पूज्यवर हमारी एक शंका है। कृपया बताएं कि अधिकतर लोग गुरुओं की खोज में छुट्टी लेते हैं, मेडीकल लीव लेते हैं, घर-बार छोड़ते हैं, जगह-जगह भटकते हैं, तरह-तरह की साधनाएं करते हैं,कभी एक गुरु तो कभी दूसरे गुरु के पास नाक रगड़ते हैं ; इतना करने के बाद शायद ही किसी कोने में ,कभी कभार कोई सच्चा गुरु मिलता है, लेकिन आप तो स्वयं हमारे पास, हमारे घर ही चले आए। यह क्या बात बनी ?, आपने हम में क्या देखा ? दादागुरु ने उत्तर दिया, “बेटे ! क्या धरती कभी बादलों के पास जाती है? बादल स्वयं ही धरती को चूमने आ जाते हैं। बादलों की तरह ही आकाश में सिद्ध पुरुष विचर रहे हैं, सुपात्रों की खोज में भटक रहे हैं, दिव्य आत्माओं की तलाश करते रहते हैं। जब भी उन्हें कोई सुपात्र मिल जाता है तो सिद्धपुरुष उन पर अपनी अनुकंपा, अनुदान बरसाने में एक क्षण भी ख़राब नहीं करते। इसी प्रक्रिया को पात्रता का नाम दिया गया है। जितना बड़ा पात्र ,उतनी बड़ी क्षमता (capacity)। जितनी ऊंची पात्रता, उतनी बड़ी समर्था (capability)।
भगवान्, सिद्ध आत्माएं और संत भी ऊपर से तलाश करते रहते हैं कि इस धरती पर कौन दिव्य पुरुष है, जिसे भगवान्, गुरु, संत की कृपा, वरदान, आशीर्वाद की आवश्यकता है और वह वहाँ पर पहुँचकर सारा काम करते हैं। वे देखते हैं कि कौन हैं जिनकी पात्रता उनके अनुदान प्राप्त करने को योग्य हैं। लोग तो अनेकों तीर्थस्थानों बद्रीनाथ, रामेश्वरम जाते हैं, यात्रा के बाद सिद्धपुरूषों को प्रतीक बनाकर अपने घरों में ले आते हैं लेकिन परख कर,पात्रता न होने के कारण चले जाते हैं। केवट की भक्ति एवम श्रद्धा महान थी। उसे देखकर भगवान् राम स्वयं उसके पास आये और दर्शन दिए। केवट रामचंद्र जी के पास नहीं गया था। शबरी के पास भगवान् स्वयं आए थे । शबरी नहीं गई थी । श्रीकृष्ण गोपियों के पास गये थे तथा उन्हें प्यार दिया था, गोपियाँ नहीं गई थीं। मित्रो ! उसी प्रकार पात्रता देखकर गुरु स्वयं शिष्य के पास आता है और उसे धन्य कर जाता है। अगर वास्तव में पात्रता हो, तो अनेकों ऋद्धि-सिद्धियाँ भी पाई जा सकती हैं तथा निहाल हुआ जा सकता है।
पात्रता ही महान् तत्त्व है :
भगवान् के पास देने के लिए अनंत वैभव, कृपा, अनुदान भरे पड़े हैं लेकिन वह मिलते केवल ऐसे मनुष्यों को ही हैं जिनकी पात्रता विकसित हो चुकी है।
गुरुदेव बता रहे हैं: एक बार हम पोरबंदर- गुजरात गये थे और वहाँ गाँधी जी का जन्म स्थान देखा। वह बहुत ही छोटा था लेकिन भगवान् तो मालदार हैं। उसने गाँधीजी को धन्य कर दिया। आज वहाँ करोड़ों का स्मारक बना हुआ है। भगवान् की कृपा होती है तो मनुष्य के सोचने का, विचार करने का, कार्य करने का ढंग ही बदल जाता है। उसकी वाणी ही बदल जाती है, सभी के प्रति श्रद्धा-निष्ठा हो जाती है, सभी को प्यार देता है, दूसरों के दुखों को देखकर द्रवित होता है।
मित्रो ! प्रतिभाओं की माँग, योग्यता की माँग, गुणों की माँग हर जगह होती है। हमारा भी यही उद्देश्य है कि आप आगे बढ़ें। हम चाहते हैं कि आपके अंदर भी वोह विशेषताएं आ जाएँ, भगवान् आ जाएँ तथा आपका भी विकास हो जाए। इसीलिए हमने आपका विवाह भगवान् से कराने का निश्चय किया तो है लेकिन बीमार और कमज़ोर कन्या/लड़के के साथ कौन विवाह करेगा। यह बीमारी चाहे मानसिक हो यां किसी भी तरह की हो विवाह में अड़चन तो आएगी ही। इसलिए पात्रता विकसित कीजिए यानि स्वस्थ और हृष्ट पुष्ट हो जाइए तभी आप भगवान् के राजकुमार बन कर, राजकुमार/राजकुमारी की भांति विवाह करने योग्य बन सकेंगें। अगर पात्रता कमजोर हो, तो भगवान् आपको कैसे अपनाएंगें ? कैसे स्नेह, प्यार देंगें ? भगवान् से विवाह करने के लिए स्वस्थ-निरोग शरीर, स्वच्छ पवित्र एवं निर्मल मन की आवश्यकता है।
गुरुदेव जनवरी 1969 में गायत्री तपोभूमि मथुरा में यह उध्बोधन दे रहे थे तो बार-बार स्वच्छ,स्वस्थ,निरोग मन की बात कर रहे थे। गुरुदेव कह रहे थे कि हमने आपको यहाँ पर निर्मल मन से पात्रता विकसित करने के लिए बुलाया है ताकि आप भगवान से जुड़ सकें। हम आपको गायत्री महापुरश्चरण करा रहे हैं। हमें प्रसन्नता है कि आप बहुत प्रातः काल ही उठकर पूजा, ध्यान, जप, प्राणायाम में लग जाते हैं। यह सब देखकर हमें खुशी होती है। अगर आप इन कर्मकाण्डों से कुछ प्रेरणा ले सकें तथा अपनी पात्रता का विकास कर सकें, अपने को जीवंत बना सकें, तो आप यकीन रखें कि आपका विवाह भगवान से हो जायेगा तथा आपके पास सारी ऋद्धि-सिद्धियाँ, वैभव अपनेआप ही आ जायेंगे, जिसके लिए अधिकतर लोग रात दिन परेशान रहते हैं, रातों की नींद उड़ाए बैठे हैं
पात्रता के सम्बन्ध में ही गुरुदेव एक लड़की की कहानी भी बता रहे हैं जिसमें किसी लड़की का रिश्ता तय हो गया। लड़के वालों ने उसकी गोद में एक नारियल देकर तथा अन्य रीति रिवाज़ आदि भी पूरे किए। लेकिन जब शादी करने की बात चली तो लड़के वालों ने मना कर दिया। अक्सर ऐसी स्थिति में लड़की के परिवार में तूफ़ान सा मच जाता है, दुःखों का पहाड़ सा टूट पड़ता है, लड़की के माता पिता तो सभी शर्ते मानने को तैयार होते है आदि आदि लेकिन इस कहानी में ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। लड़की ने कमर कसी और लाठी लेकर उस गाँव में पहुँच गई जहाँ उसका रिश्ता तय हुआ था। उसने लड़के से कहा कि अरे विवाह कर, नहीं तो लाठी के सामने आ जा। मामला पंचायत तक पहुँचा। लड़की ने कहा कि इसने ही शादी पक्की की, नारियल भी दिया और अब न कर रहा है। पंचायत ने फैसला किया कि विवाह इसी लड़की के साथ होगा, लड़की का दृढ निश्चय और संकल्प रंग लाया।
गुरुदेव कह रहे हैं कि हमने भी आपका विवाह भगवान् से कराने का निश्चय किया है। आप भी उस लड़की की तरह दृढ़ निश्चय करके, अपनी पात्रता विकसित करके, भगवान को प्राप्त करें। आपकी सभी परेशानियां दूर हो जायेंगीं ।
जिस प्रकार “माँ की संस्कारशाला” में बच्चों का मन रिझाने के लिए भांति भांति की रोचक कहानियां संग्रहित की गयी हैं, ठीक उसी प्रकार गुरुदेव हम बच्चों को बता रहे हैं कि बच्चो, हम भगवान के पास होकर आये हैं। उनके पास हीरे की ढेरों अंगूठियां हैं, हीरे जवाहरात हैं, आप चाहे ढेर भर कर ले आओ। भगवान् के पास संपन्न, सुशिक्षित,सुसंस्कारी बाल-बच्चों का कोष है, आप जिसे चाहो अपने घर ले आओ। जिस बेटे के लिए आप दिन रात मन्नते मांगते फिरते हो, मदिरों में, बाबा लोगों के पास नाक रगड़ते रहते हो, भगवान् से मिल सकता है। यह सब प्राप्त करने के लिए शर्त केवल एक ही है, भगवान् से विवाह और भगवान् से विवाह के लिए भी एक ही शर्त है ,पात्रता का विकास।
गुरुदेव कहते हैं कि भगवान् से विवाह किसी भी प्रकार का घाटे का सौदा नहीं है, आप इस विवाह को सम्पूर्ण समर्पण, श्रद्धा, निष्ठा एवं कर्तव्य समझकर निभाते हैं तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी, आखिर आप हमारे बच्चे जो ठहरे।
जुलाई 2022 में हमने पात्रता एवं भगवान् से सम्बन्ध जोड़ने पर आधारित कुछ लेख लिखे थे, पाठक इन लेखों को हमारी वेबसाइट/ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। पास पास अंक होने के कारण आज का गोल्ड मैडल कई साथियों को मिल सकता था लेकिन हमें सरविंद जी को ही विजेता घोषित करना उचित लगा। उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।
(1)संध्या कुमार-42 ,(2) रेणु श्रीवास्तव-31 ,(3) सुमन लता-28,(4) चंद्रेश बहादुर-36,(5 )सरविन्द पाल-50 ,(6 ) निशा भारद्वाज-30 ,(7 ) मंजू मिश्रा-26,(8)सुजाता उपाध्याय-48, (9) वंदना कुमार-24
सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन