वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अरुण वर्मा जी का  शांतिकुंज प्रवास अनुभव 

“अपने सहकर्मियों की कलम से” का 12 अगस्त का विशेषांक

सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट,“अपने सहकर्मियों की कलम से” विशेषांक का इस बार का एपिसोड हमारे समर्पित साथी आदरणीय अरुण वर्मा जी के युगतीर्थ शांतिकुंज प्रवास को वर्णन कर रहा है। 

लाखों करोड़ों साधक शांतिकुंज में जा रहे हैं लेकिन फिर भी अनेकों प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें शांतिकुंज को ही संपर्क करना पड़ता है क्योंकि न तो कोई साथियों से  पूछता है और न ही वोह प्रकाशित करते हैं। यह सत्य है कि समय के साथ साथ स्थितियां भी बदल रही हैं, जब हम अगली बार जाते हैं तो कुछ और ही होता है लेकिन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एकमात्र उद्देश्य गुरुदेव का साहित्य, गुरुदेव का व्यक्तित्व, गुरुदेव की कर्मभूमि, गुरुदेव की जन्मभूमि आदि के बारे में जितना भी संभव हो सके, विश्व भर में प्रसारित करना है। ऐसा करने में अधिक से अधिक परिजन गुरुदेव को जानेगें, उनकी शक्ति  को जानेगें। 

उदाहरण के लिए, आज के एपिसोड में एक बहुत ही साधारण तथ्य का उत्तर है कि शांतिकुंज में प्रवास, भोजन, संस्कार आदि का कोई शुल्क नहीं लिया जाता, अरुण जी स्वयं बता रहे हैं ,लेकिन अनेकों लोग इस तथ्य  को नकारते हुए देखे गए हैं।

ऐसी  ही अनेकों ऐसी छोटी-छोटी बाते हैं जिनकी ठीक जानकारी न होने के कारण गुरुदेव की गरिमा को ठेस पहुँचती है जो हमारे लिए असहनीय है। इसीलिए हम हर बार यही कहते आये हैं कि जो कोई भी शांतिकुंज जाता है, वोह “ज्ञानदान” का कर्तव्य समझकर अपनी अनुभूति अवश्य लिखे, अनेकों को मार्गदर्शन मिल सकता है। 

अरुण जी अपने प्रवास के दौरान हमें अनेकों क्लिप्स भेजते रहे, सभी को तो प्रकाशित करना संभव नहीं है केवल कुछ एक ही आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। 

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युगतीर्थ शांतिकुंज में हमारा जून 2023 का अनुभव : 

21 जुलाई 2023  का वोह अविस्मरणीय दिन आ गया जिसका इंतजार हम कुछ महीनों से कर रहे थे।  पता नहीं मन क्यों इतना बेचैन और  घबड़ाया हुआ था, दिल की  धड़कन बढ़ रही थी। आज अपने माता पिता,परम पूज्य गुरुदेव के घर जाने के लिए मन इतना व्याकुल  हो रहा था जिसका शब्दों में वर्णन करना  कठिन है। 

शायद घबराहट की बात यह थी  कि हमने तीन महीने पहले,अप्रैल में ही टिकट  बुक करा लिए थे। कुल पांच टिकटें बुक कराई थीं, हमारे और हमारी धर्म पत्नी के इलावा तीन और लोग थे ; हमारे ममेरे भाई साहिब, उनकी धर्म पत्नी और एक बच्चा । जून में ममेरे भाई के पिता जी का देहांत हो  गया ,इसलिए तीन टिकटें  कैंसिल कराने की समस्या आन  पड़ी थी।  टिकटें ऑनलाइन बुक की थीं, इसलिए कैंसिल करने में समस्या  आ रही थी। हमने अपनी  दीदी को कहा  कि आप हमारे साथ चलिए  तो उन्होंने  मना कर दिया। हमने अपने से छोटी  बहन को भी कहा तो वह भी न करने  लगी। जब हमने अपनी धर्मपत्नी के साथ यह बात शेयर की तो उन्होंने कहा  कि आप क्यों सबसे निवेदन कर  रहे हैं, घर के  सामने ही तो भाई साहब हैं इन्हीं को ले चलते हैं। हमने अपने पड़ोसी  भाई साहब को  सारी बात बतायी तो वोह  राज़ी  हो गये। 

लेकिन अभी भी एक समस्या थी कि जो जा रहे थे उनके नाम तो टिकटों में थे ही नहीं । शायद हमारी घबराहट का यह भी  कारण था। हम सभी तो जाने का मन बना चुके थे, सोचा जो होगा देखा जाएगा। यह गुरुदेव की शक्ति एवं अनुकम्पा ही समझें  की जब TTE टिकट चेक करने आया तो हम सबने नाम के साथ अपना सीट नम्बर बताया और उसने और कुछ ज़्यादा  पूछताछ नहीं की। 

22 जून 2023 को हम अपने माता पिता के घर युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार पहुँच गए। गेट नंबर पांच से प्रवेश करके जब स्वागत कक्ष में पंहुचे तो एक बार फिर से  घबराहट और बेचैनी ने आ घेरा। यहाँ हैरानी का कारण वोह नोटिस  था जो कह रहा था कि “कोई भी कमरा खाली नहीं है।” बार-बार मन में विचार उठ रहे थे कि भाई साहब को पहली बार  लेकर आये हैं, वोह क्या कहेंगें। रहने को स्थान नहीं मिलेगा तो  कहाँ जाएंगें। थोड़ी ही देर में जब रिसेप्शन स्टाफ ने स्थिति का मूल्यांकन किया तो हमें अत्रि  भवन में स्थान मिल गया। हमारी जान में जान आयी। सबसे पहले संस्कार कक्ष में जाकर दोनों बच्चों के विद्या संस्कार और गुरु दीक्षा संस्कार के फॉर्म भरे।  उसके बाद हम सबने  अपनी माँ के चौके, माता भगवती भोजनालय में भोजन प्रसाद ग्रहण किया। चंद्रयान पर्व के कारण 22 जून  को  बहुत देर रात तक भोजन प्रसाद चल रहा था, इसलिए बहुत ज्यादा भीड़ भी थी। भोजन  ग्रहण करने के पश्चात हमने भी कुछ देर प्रसाद वितरण में सहयोग किया। 

23 जून को शांतिकुंज की  निर्धारित दिनचर्या के अनुसार सब कार्य अपनेआप ही होते चले गए। हवन करने के बाद हम सब श्रद्धेय जीजी  से मिलने के लिए गये तो मिलना बंद कर दिया गया था। दो दिन लगातार प्रयास करने के बाद भी मिलना संभव न हो पाया था। हम लोग तो पहले भी मिल चुके थे लेकिन हमारे पड़ोसी  भाई साहब, उनकी धर्मपत्नी और बच्चे को जीजी का आशीर्वाद दिलवाना ज़रूरी था।  

24 जून को  हमने अपनी छोटी बेटी को  शिव अभिषेक कराना था। समय तो  मिल गया लेकिन जगह में कन्फ्यूजन होने के कारण थोड़ी समस्या आ गयी।  हम शिव मंदिर के पास इंतजार कर रहे थे, लेकिन जब  आठ बजे तक कुछ नहीं हुआ तो पता चला कि यह तो ऋषि क्षेत्र में हो रहा था। यह वही जगह है जहाँ सप्तऋषि विराजमान हैं। वहाँ पंहुचे  तो एक स्थान खाली मिल गया और हमारा कार्य बन गया। 

24 जून को ही ऋषिकेश जाने का प्लान बन गया और पूरा दिन ऋषिकेश में ही बीता।  

25 जून को जप, ध्यान, हवन आदि करके गंगा स्नान का प्लान बना तो भाई साहब अखंड दीप दर्शन करने चले गए और फिर जीजी  से मिलने के लिए लाईन में खड़े हो गए। इस  बात का  हमें पता नहीं चला और हम उन्हें फोन पे फ़ोन किये जा रहे थे और वोह  फोन  उठा नहीं रहे थे। ऐसा इसलिए था कि  उन्होंने अंदर जाकर फोन जमा करा दिया था। जब वोह  मिलकर बाहर आये, फोन किये तब सारी बात का पता चला। बिना पर्ची के  ही जीजी  से मिलने के लिए परमिशन भी मिल गयी,जैसे ही ऊपर गये तो रुम में जाते ही कार्यकर्ता ने  सबसे आगे इन्हीं को बुला लिया और सबसे पहले जीजी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

इस सारी लीला के पीछे गुरुदेव का ही हाथ था क्योंकि जब तक मन में श्रद्धा और विश्वास नहीं होगा तब तक गुरु की कृपा  भी नहीं मिल पाएगी। भाई साहिब ने रात में ही प्रण कर लिया था कि आज जीजी  से मिलना ही है और जब श्रद्धा उमड़ती  है तो गुरु भी साथ देने के लिए खड़े  हो जाते हैं, भाई साहब को भी गुरुदेव पर विश्वास हो रहा था । 

26 जून  को जब मेरा भतीजा भोजनालय में प्रसाद के लिए गया और अपनी  चप्पल स्टैंड में न रखकर, बाहर ही खोल कर चला गया। प्रसाद के बाद जब वहाँ आया तो देखता है कि चप्पल गायब है। पूरा ढूंढने  के बाद भी नहीं मिला तो हमसे कहा, हमने भी स्टैंड में देखा बाहर देखा, नहीं मिला। हमें महसूस हुआ  कि इसके पापा क्या कहेंगे, कि शांतिकुंज में भी  तो ऐसे लोग  आते हैं। कमरे में  जाकर बताया  कि ऐसा हो गया है। भाई साहब खाना खाने के लिए गये तो वो उन्होंने भोजनालय के पास रखे  स्टैंड में चप्पल देखी। बच्चे को बुलाकर पहचान करवाई  तो ठीक निकली । 

तब भाई साहब बोले कि यहाँ से चप्पल गायब नहीं होती , दरवान बाहर से उठाकर स्टैंड में रख देता है । लोगों से भी गुरुदेव के बारे में सुनने को मिला, भाई साहब को बहुत अच्छा लगा। यह जानकार हमें बहुत खुशी हुई।  

हमने भाई साहब को गुरुदीक्षा लेने के लिए कहा तो बोले कि दोबारा आयेंगे तब लेंगे।  हमें उम्मीद है कि भाई साहब दोबारा जरूर जायेंगे।  लोगों से  गुरुदेव के बारे में बातचीत भी करते हैं।  कल शाम जब मैं साधना करने  बैठा था तो वे अपने कमरे  में गुरुदेव का प्रज्ञा गीत बजा रहे थे, सुनकर बहुत अच्छा लगा, बदलाव चाहे धीरे धीरे ही सही, बदलाव निश्चित है। 

कल रविवार है, हवन करने का दिन है, देखते हैं  कल हवन करने आते हैं कि नहीं।  दोनों भतीजे  तो हर रविवार को हवन करते हैं।  अब तो दीक्षा लिए हैं, धोती पहनकर ही हवन करते हैं। 

यह सब परम पूज्य गुरुदेव की  ही कृपा है  कि बिना किसी समस्या के  के हम सभी गुरुदेव द्वारा संस्कारित ऊर्जामयी भूमि से ऊर्जा प्राप्त कर सकुशल लौट आए। उस  दिव्य शक्ति को बारंबार नमन है। 

2024 में होने वाले गायत्री महायज्ञ का ही विचार रात दिन आता  रहता है, प्रार्थना  करते हैं कि गुरुदेव इस संकल्प को पूर्ण करने में हमारी मदद करें। 

अपने साथियों के बताना चाहेंगें कि युगतीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार सभी संस्कार नि:शुल्क कराए जाते हैं, केवल संस्कार से संबंधित सामान ही  लेना पड़ता है। 

इस बार की  यात्रा बहुत ही  बढ़िया रही।  यह सब औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के साथिओं/ सहकर्मिओं के आशीर्वाद का फल है, सभी ने हृदय से आशीर्वाद दिया, 

सुमन लता दीदी, संध्या दीदी, चंद्रेश बहादुर भैया जी एवं ऐसे अनेकों साथी हैं जो  हमेशा अपना प्यार भरा आशीष प्रदान करते रहे।  

सच में कहा जाता है शांतिकुंज प्रतिभावानों को गढ़ने की  टकसाल है।  यह बात बिल्कुल  सत्य है क्योंकि हमारे साथ ऐसा हुआ है ,इसीलिए  कह रहे हैं। भाई साहब के बारे में  हमारी पत्नी कह रही है कि गुरुदेव का आशीर्वाद फलित हो रहा है, माता जी का प्यार मिल रहा है, परिवार में एकता का वातावरण है, सभी हंसी खुशी जीवन बिता रहे  हैं। परम पूज्य के शब्दों के अनुसार: यही तो  स्वर्ग कहलाता है। 

हम परम आदरणीय अरुण भैया जी का  बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं  जिन्होंने हमें लिखने को प्रेरित किया। हम जानते हैं कि भैया जी  हमारी लेखनी को एडिट करके सुधारने के बाद ही प्रकाशित करेंगें क्योंकि हम तो बिल्कुल  अनाड़ी ही हैं।  

परम पूज्य गुरुदेव परम वंदनीय माता जी  एवं माँ गायत्री की कृपा सदैव बनी रहे, इसी  मंगल कामना के साथ अपनी लेखनी को विराम देते हैं। 

जय गुरूदेव  जय माँ गायत्री

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। पास पास अंक होने के कारण आज का  गोल्ड मैडल कई साथियों को मिल सकता था लेकिन हमें मंजू बहिन जी को ही  विजेता घोषित करना उचित लगा।  उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। 

(1)संध्या कुमार-35 ,(2) रेणु श्रीवास्तव-28  ,(3) सुमन लता-24,(4) चंद्रेश बहादुर-31,(5 )सरविन्द पाल-34  ,(6 ) निशा भारद्वाज-25 ,(7 ) अरुण वर्मा-26  ,(8 ) मंजू मिश्रा-36,(9)सुजाता उपाध्याय-28, (10)स्नेहा गुप्ता-24,(11) वंदना कुमार-26   सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।


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