11 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद स्वामी श्रद्धानन्द जी पर फिल्माई गयी 73 मिंट की एक शार्ट फ़िल्म है जिसका शीर्षक “स्वामी श्रद्धानन्द जी, आहवान The call for truth” है। 1 अगस्त को जब हमारी समर्पित सहयोगी आदरणीय विदुषी बंता जी ने यह वीडियो हमें भेजी तो उसी समय जिज्ञासा हुई कि शुक्रवार को अपने ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सदस्यों के साथ एक स्पेशल शो आयोजित किया जाए जिसमें हम सब पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ इस फिल्म में दी गयी शिक्षा का अमृतपान करें। हमारा संकल्प पूर्ण हुआ और आज हम सब इक्क्ठे इस फिल्म को देख रहे हैं। सूक्ष्म की शक्ति और रेंज तो अनंत है, इसलिए हम अपनेआप को आप सब के बीच ही देख रहे हैं।
फिल्म के निम्लिखित स्वर्ण शब्द हमारे अंतःकरण में गूँज रहे हैं और फ़िल्म का समापन बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित “वन्दे मातरम्” की धुन ने तो जैसे spell bound ही कर दिया है:
“हमारे धर्म का आधार सत्य अहिंसा और प्रेम है। तलवारें मिट जाती हैं, तलवार चलाने वाले भी मिट जाते हैं लेकिन सत्य अहिंसा और प्रेम कभी नहीं मिटते।
हम सब एक ही ईश्वर के ही तो पुत्र हैं, अलग पूजा पद्धति और ईश्वर के अलग रूपों में उपासना से ईश्वर थोड़े बदल जाता है।”
नमन है, नमन है एवं नमन है।
हम अक्सर कहते आये हैं कि हमारा छोटा सा परिवार प्रतिभा का जमावड़ा है। इसके अनेकों उदाहरण आये दिन मिलते रहते हैं। गुरुकुल कांगड़ी विश्विद्यालय को बाहिर से तो कई बार देखा था लेकिन उसके बारे में जो जानकारी हमारे साथी आदरणीय सुमन लता जी और विदुषी बहिन जी से मिली है शायद कहीं भी प्रकाशित न हुई हो। हमारा सौभाग्य है कि हम यह जानकारी अपने साथियों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
दोनों बहिनों ने यह जानकारी हमारी बेटी स्नेहा गुप्ता के बेटे निर्झर के गुरुकुल “मेरठ प्रभात आश्रम गुरुकुल” के लेख पर कमेंट करते हुए प्रदान की थी।
सुमन लता जी की जानकारी :
आपने आज गुरुकुल प्रणाली के लिंक को भेज कर हमारी बचपन की यादों को पुनः ताजा कर दिया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय केपरिसर की जीवन शैली से हम भलीभांति परिचित हैं। हमने उस प्रकार के दिव्य, संयमित ,और अनुशासनबद्ध वातावरण में ही अपना प्रारंभिक जीवन बिताया था। यहां जिस गुरुकुल का कार्यक्रम दिखाया जा रहा है वो शायद उसी गुरुकुल कांगड़ी से संबद्ध है क्योंकि इस प्रकार के कार्यक्रम हमने अनेक बार वहां देखे हैं।स्वामी दयानंद सरस्वती जी के समर्पित शिष्य स्वामी श्रद्धानंद जी ने इसे कांगड़ी गांव में आरंभ किया था जो गंगा पार हुआ करता था। बरसात के समय पानी बढ़ जाने के कारण विद्यालय को भी क्षति पहुंचती थी इसलिए उन्होंने हरिद्वार क्षेत्र में जमीन लेकर इसे वहां स्थापित किया जो आज विश्वविद्यालय है। गुरुकुल कांगड़ी में पहले केवल छात्रों को ही शिक्षा दी जा रही थी, उस समय सहशिक्षा का चलन नहीं था। स्वामी श्रद्धानंद जी के स्वर्ग गमन के पश्चात गुरुकुल का कार्य उनके सुपुत्र इंद्र विद्या वाचस्पति जी ने संभाल देश के कुछ राज्यों में कन्याओं को शिक्षित करने के उद्देश्य से कन्या गुरुकुल खोले गए। देहरादून, झज्जर(हरियाणा),नरेला दिल्ली आदि के नाम हमें याद है। इन सभी कन्या गुरुकुलों का संचालन गुरुकुल कांगड़ी से ही होता था। केवल स्नातकोत्तर परीक्षा ही गुरुकुल कांगड़ी में सामूहिक रूप से होती थी।अब तो वहां भी सहशिक्षा आरंभ हो गई है। गुरुकुल का नाम आते ही हमारा पूरा समय एक फिल्म की भांति आंखों के सामने घूम जाता है। इस वीडियो में जो संगोष्ठी दिखाई जा रही है ,ऐसी संगोष्ठियां हमें अपने आरंभिक जीवन की याद दिलाती हैं। वहां जब दीक्षांत समारोह होता था तो वो चार दिन तक चलता था जिसे जलसा कहते थे। प्रस्तुत विडिओ में दिखाए जा रहे कार्यक्रम गुरुकुल कांगड़ी में निरंतर होते रहते थे । अब हम अपनी बात समाप्त करते हैं ,क्योंकि गुरुकुल की इतनी यादें हैं कि लिखना आरंभ करें तो एक पुस्तक लिखी जा सकती है।
विदुषी बंता जी की जानकारी
ॐ श्री गुरु सत्ताए नमः आ. त्रिखा भाई जी को भाव भरा नमस्कार
आज गुरुकुल विद्यालय की वीडियो लिंक से हम परिचित हुए। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय देश का सर्व प्रथम विश्वविद्यालय है, जिसे महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के महान शिष्य स्वामी श्रद्धानंद जी ने अपना सब कुछ बेच कर इसकी स्थापना की थीं व गुरु परम्परा को जीवित रखते हुए इस गुरुकुल में वैदिक पठन पाठन के साथ सभी विषय पढ़ाये जाते हैं हमें भी इस गुरुकुल को जानने का अवसर प्राप्त हुआ था। परम पूज्य गुरुदेव ने भी अपने लेखों में हरिद्वार स्थित इस आश्रम की एवं स्वामी श्रद्धानंद जी की भूरी भूरी प्रशंसा की है।आज इन वीडियो को देख कर व वेदों में विज्ञान, मीमांसा शब्द की व्याख्या सुन कर नवीन शब्दावली का ज्ञान मिला। बहुत बहुत धन्यवाद व आभार भाई सा. बेटी स्नेहा गुप्ता व उनके बेटे का भी हार्दिक धन्यवाद करते हैं जय माँ गायत्री शुभ दिन शुभ प्रभात सभी को प्रणाम
कितना दुर्भाग्य है कि 1902 में गुरुकुल कांगड़ी विश्विद्यालय जैसे संस्थान के संस्थापक स्वामी श्रद्धानन्द जी का अंत एक हत्या से हुआ। एक शताब्दी बाद 2002 में परम पूज्य गुरुदेव के सपनों को साकार करती देव संस्कृति विश्विद्यालय की स्थापना भारतीय संस्कृति की रक्षा करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो रहा हैं। आये दिन यह यूनिवर्सिटी नए से नए कीर्तिमान स्थापित करती आ रही है। हम अपने साथियों आभारी हैं जो DSVV से सम्बंधित गतिविधिओं से अपडेट करके ज्ञानप्रसार का महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रहे हैं।
इसी जानकारी के साथ हम देखते हैं फ़िल्म लेकिन बताना चाहेंगें कि इस बार का साप्ताहिक विशेषांक पूरे का पूरा आदरणीय अरुण वर्मा जी के शांतिकुंज तीर्थ सेवन पर आधारित है। अरुण जी ने बहुत ही छोटी-छोटी बातें हमारे समक्ष रखी हैं,जिन्हें हम अक्सर इग्नोर कर देते हैं यां लिखने में झिझक महसूस करते हैं। अरुण जी का योगदान शांतिकुंज जाने वाले साथियों के लिए काफी ज्ञान का प्रसार करेगा।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 9 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज के गोल्ड मैडल विजेता अरुण जी हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। (1)संध्या कुमार-27,(2) रेणु श्रीवास्तव-32 ,(3) सुमन लता-24,(4) चंद्रेश बहादुर-27 ,(5 )सरविन्द पाल-32 ,(6 ) निशा भारद्वाज-25 ,(7 ) अरुण वर्मा-43 ,(8 ) मंजू मिश्रा-24 ,(9)सुजाता उपाध्याय-48
सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।