वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ईश्वर के अनुदानों की पहचान कैसे करें ?

10 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद

बहुत ही श्रद्धा और समर्पण के साथ हम अपने सहपाठियों के साथ गुरुकुल विद्यापीठ  की आज की कक्षा में, परम पूज्य गुरुदेव के दिव्य चरणों में नतमस्तक होने को उत्सुक हैं। भगवान् के साथ जान पहचान होना, सम्बन्ध होना, उनके अनुदानों को प्राप्त करना किस प्रकार संभव है, आज इसी पर चर्चा है। भगवान् से विवाह करना है तो उन्हें जानना तो ज़रूरी है ही। 

कल शुक्रवार के दिन हम श्रद्धानन्द जी की मूवी देखने जा रहे है, हर बार की भांति इस बार भी कर रहे हैं की डिस्क्रिप्शन अवश्य पढ़ें।  इस मूवी का केवल लिंक ही दिया जायेगा, अपने चैनल पर अपलोड नहीं करेंगें।

प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद।  

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मित्रो, हमारी मुलाकात किसी MP, MLA  या मिनिस्टर से होती है या उससे जान-पहचान, साँठ-गाँठ होती है, तो हमारी कितनी ही समस्याएं एवं  मुसीबतें दूर हो जाती हैं। अगर हमारी मुलाकात  भगवान् से हो जाए तो फिर क्या कहना ? मध्यप्रदेश के एक भूतपूर्व मंत्री हमारे पास आए  और कहने लगे  गुरुजी हमें एक दिन के लिए ही मध्य प्रदेश राज्य का  मुख्यमंत्री बना दीजिए। वे दो ढाई घण्टे तक हमारे पास बैठे रहे। भगवान् की कृपा हुई, पता नहीं कोई तुक्का लग गया होगा और वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये। मित्रो, आप पूछेंगें यह कैसे हुआ ? तो हम इसके उत्तर में यही कहेंगें कि हमारी जान-पहचान भगवान् से है। जब गुरुदेव की तुक्का लगने वाली बात पर चर्चा कर रहे हैं तो हमारे पाठकों ने वंदनीय माता जी की वह वीडियो अवश्य देखी  होगी जिसमें माता जी बता रही हैं कि हमसे किसी भी चमत्कार आदि की आशा मत करना, आपको जो कुछ भी मिलेगा आपकी पात्रता एवं कर्मों के अनुसार ही मिलेगा, न कम न अधिक।   

जान पहचान के ही सन्दर्भ में परम पूज्य गुरुदेव एक पंडित जी की बात बता रहे हैं जो इस प्रकार है : 

एक बार ऐसा हुआ कि किसी  पंडित जी ने एक दुकानदार को 500 रुपए यह कहकर दिए कि इन रुपयों को अपने पास सुरक्षित रख दो, जब मेरी बच्ची की शादी होगी,तो हम  ले लेंगे। कुछ समय  बाद  बच्ची सयानी हो गयी,शादी का समय आ गया  तो पंडित जी अपने  सुरक्षित रखे पैसे लेने के लिए दुकानदार के पास गये। पंडित जी तो हक्के बक्के से रह गए जब दुकानदार ने साफ़ इंकार कर दिया कि उसने कोई पैसा नहीं  लिया है। उसने पंडित जी से कहा कि क्या हमने कुछ लिखकर दिया था? दुकानदार की इस हरकत से पंडित जी बहुत  परेशान हुए और चिन्ता में डूब गये। कुछ दिन चिंतित रहने के बाद उन्हें विचार आया कि दुकानदार की इस हरकत की राजा से  शिकायत की जाए  ताकि राजा ही  कुछ समाधान निकाल दें और बेटी की शादी के लिए  मेरा पैसा मिल जाये। पंडित जी  राजा के पास पहुँचे तथा अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने  कहा कि  कल हमारी सवारी निकलेगी, तुम उस लाला जी की दुकान के पास खड़े रहना। राजा की सवारी निकली, सभी लोगों ने फूलमालाएँ पहनायीं, स्वागत आदि किया। पंडित जी चुपचाप  लाला जी की दुकान के पास खड़े थे। राजा ने कहा, “गुरुजी आप यहाँ कैसे, आप तो हमारे गुरु हैं,आइए हमारी  बग्घी में बैठ जाइए।” राजा की यह चाल सब देख रहे थे। पंडित जी ने नमन वंदन किया, फूलमाला पहनाई, आरती उतारी और बग्घी में बैठ गए। राजा की  सवारी आगे बढ़ गयी ,थोड़ी दूर जाने  के बाद राजा ने पंडित जी को उतार दिया और कहा कि पंडित जी हमने आपका काम कर दिया। अब आगे आपका भाग्य । उधर लालाजी यह सब देखकर हैरान थे कि पंडित जी की तो राजा से अच्छी साँठ-गाँठ है, जान-पहचान है, राजा को कह कर  कहीं पंडित जी हमारा कबाड़ा ही न करा दें। लाला जी ने अपने मुनीम को बुलाया और कहा कि कहीं से भी पंडित जी को ढूँढ़कर लाओ। राजा के चले जाने के बाद पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार कर रहे थे। लाला जी  के मुनीम बड़े ही आदर सम्मान  के साथ उन्हें अपने साथ ले आए। लाला जी ने प्रणाम किया और बोले,”पंडित जी हमने काफी श्रम किया तथा पुराने खाते में हिसाब को फिर से चैक किया तो पाया कि हमारे पास आपके 500  रुपये जमा हैं जो ब्याज के साथ 10 वर्ष में 12000  रुपये हो गये हैं। पंडित जी आपकी बेटी हमारी बेटी है, आप 1000 रुपये हमारी तरफ से ले जाइए तथा उसे बेटी  की शादी में लगा दीजिए। इस प्रकार लाला जी ने पंडित जी को 13000 रुपये देकर प्रेम के साथ विदा किया।

गुरुदेव इस कहानी के माध्यम से हमें शिक्षा दे रहे हैं  कि अगर हम उस  राजा से सम्बन्ध जोड़ लें जो समस्त विश्व का राजा है, जिसका नाम भगवान् है, तो हमें  कभी भी,कोई भी समस्या, कोई भी कठिनाई नहीं आ सकती और अगर कभी आ भी जाए तो एक शूरवीर का भांति हम अपने ही आत्मबल से उसका निवारण भी निकाल लेंगें। 

यही है इस  संसार के राजा से सम्बन्ध जोड़ने का परिणाम। लेकिन इस सम्बन्ध जोड़ने में   शर्त केवल एक ही है और वोह शर्त है “ अटूट सम्बन्ध” की। भगवान् के साथ सम्बन्ध जोड़ना है तो यह सम्बन्ध अटूट होना चाहिए। यह नहीं कि  कभी साँई बाबा, कभी  हनुमान जी और अब करौली बाबा जी के पास। इधर-उधर भटकते रहने वाले  जिन्दगी भर खाली हाथ ही  रहते हैं। मित्रो, इधर-उधर भटकने से कुछ नहीं मिलने वाला। आप आज से ही भगवान् का पल्ला पकड़ लीजिए और  अपने जीवन की नैया को पार कर लीजिए।   

बेटे, हम भी अपने बच्चों को जीवन भर  बाँटते ही रहे हैं और बांटते ही रहेंगें क्योंकि माता पिता की सम्पति पर आज्ञाकारी एवं समर्पित बच्चों का अधिकार होता है। हम चाहते हैं कि आपके  कष्ट दूर हो जाएँ, आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाए, आप मजबूत हो जाएँ और  भगवान् का काम कर सकें। अगर आप यह सोचते हैं कि दो वर्ष  के बाद तो गुरु जी तपोभूमि छोड़कर चले जाएंगें, तो फिर तू कौन और मैं कौन; अगर ऐसा विचार है तो फिर आपका कुछ नहीं हो सकता। समर्पण और श्रद्धा जैसे parameters ही किसी साधक की पात्रता का मूल्यांकन कर सकते हैं। 

हमारे पाठक जानते हैं कि परम पूज्य गुरुदेव 20 जून 1971 को तपोभूमि मथुरा से विदाई लेकर शांतिकुंज चले गए थे। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सदस्यों की पात्रता का मूल्यांकन तो प्रतिदिन, प्रति पल होता आ रहा है। अनेकों ऐसे साथी हैं जिन्हें नियमित होने में अड़चनें आ रही हैं, उनके सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि गुरुदेव उनसे कोई  और महत्वपूर्ण कार्य करवाना चाहते हैं। अभी उन्हें यहाँ लाने की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुई है।      

जब पाँच फुट का साधारण सा आदमी भगवान् से जुड़ गया, तो मित्रो,  वोह  महात्मा बन गया और उसका नाम महात्मा गाँधी हो गया।  महात्मा गाँधी को  देखकर अँग्रेज भी  डरते थे, कहते थे यह जादूगर है, इससे बच कर रहो। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री उससे डरते थे और  कहते थे  कि यह ‘बम’ है । उन्होंने  अपने सभी मंत्रियों से, गाँधी जी से नज़र न मिलाने को  कहा हुआ था।  गाँधी जी भगवान् से जुड़ गए और यह  उसी सम्बन्ध  का चमत्कार था। 

गुरुदेव बताते हैं कि ऐसी शक्तियों को आप भी भगवान् के पास बैठकर प्राप्त कर सकते हैं, स्वयं को महान बना सकते हैं। अगर आप स्वयं को साधना  के उस स्तर के लिए  तैयार कर लें, तो सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं तथा संत, महामानव, देवमानव बन  सकते हैं।

अनुकम्पा की अनुभूति

मित्रो, सूर्य की किरणें  पड़ते ही सारी धरती रोशन हो जाती है, परन्तु यह अद्भुत दृश्य तो  केवल वही देख सकता है जिसके पास प्रकृति का अमूल्य अनुदान नेत्र हैं। बेचारा नेत्रहीन    विभिन्न  रंग कैसे देख सकता है तथा आनन्द को कैसे अनुभव कर सकता है।  गुरुदेव इस बात को बड़े ही सुन्दर शब्दों में बता रहे हैं कि अगर आँख का सूर्य ठीक हो, तो यह आपको रामायण, भागवत पढ़ा सकता है, बगीचों का आनन्द दिला सकता है। इसका उदाहरण गुरुदेव उस स्थिति से तुलना करके देते  हैं जब हम दुर्भाग्यवश बीमार होते हैं यां हॉस्पिटल में सर्जरी आदि के लिए एडमिट होते हैं। यह स्थिति आम स्थिति से, रोज़मर्रा की स्थिति से  अलग होती है। ऐसी स्थिति में  हम न तो  ठीक से खा सकते हैं, सो सकते हैं, बैठ सकते हैं।  वही चीज़ें जो हमें  इतनी अच्छी लगती थीं,इस स्थिति में बिल्कुल  नहीं भाती। ऐसी ही स्थिति  उस इंसान की हो जाती है जिसे भगवान् के अनुदान, अनुकम्पाएँ नसीब नहीं होते। 

ऐसा क्यों होता है ,कैसे होता है ? 

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति,ईश्वर के राजकुमार को ही संसार  के सारे आनन्द, अनुदान प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है। हमारा सौभाग्य है कि चौरासी लाख योनियों में विचरने के बाद ही इस  सर्वश्रेष्ठ राजकुमार को  राजपाट प्राप्त हुआ है और वोह  सारी  सम्पदा का स्वामी बना बैठा है । यही है भगवान् की अनुकम्पा, भगवान् की कृपा, जो निरन्तर हम पर  बरस रही है। हमें महसूस करना चाहिए कि भगवान् हमारे अंग-अंग में, रोम-रोम में समाए हुए हैं एवं उनकी  शक्ति हमारे अन्दर समायी हुई है। यही वोह शक्ति है  जो हमें महान बना रही है, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ा रही  है एवं हमारा कायाकल्प कर रही  है। गुरुदेव विश्वास दिलाते हैं कि अगर आप  इतना कर सकें,तो धन्य हो जाएँगे ।

साथियो ! हमारी काया के भीतर ऐसे सेल्स (Body cells) भरे पड़े हैं, जिनमें  हीरे-मोती, सोना-जवाहरात भरे पड़े हैं। अगर आप उन्हें  जगा लें, तो मालामाल हो सकते हैं। आप पारस बन सकते हैं, कल्पवृक्ष हो सकते हैं। इस जाग्रति के उपरान्त जिस किसी से भी आपका सम्पर्क होगा, उसे  आप धन्य करते चले जायेंगे। आपका विकास होता चला जाएगा। जिस तरह हमें अपनी हर चीज़ प्यारी लगती है उसी तरह  भगवान् को भी हर प्राणी से प्यार है। भगवान् सभी का बराबर ध्यान रखते हैं, वह अपने हर अंग को सुन्दर और सुडौल देखना चाहते हैं । भगवान् के ऊपर पक्षपात का दोष नहीं लगाया जा सकता है। वह सबको बराबर देते हैं ,परन्तु यह मानव  अपने गुण, कर्म, स्वभाव, श्रम,आलस्य के कारण पिछड़ जाता है। अगर आपकी पात्रता उच्च स्तर की हो, तो आप समस्त वैभव  प्राप्त कर सकते हैं। आप अपनी प्रगति के लिए न जाने कहाँ-कहाँ घूमते फिरते हैं, भटकते रहते हैं, किस-किस को गुरु बनाते फिरते हैं। गुरुदेव बता रहे हैं कि हम भी 13-15  वर्ष की आयु  तक इसी चक्कर में पड़े रहे तथा तमाशा देखते रहे। हमने भी इस बाज़ीगरी को देखने के लिए  बहुत कुछ किया लेकिन इस तमाशे का अंत उस समय हुआ जब हमारा गुरु हमारी कोठरी में ही बिना किसी पूर्व सूचना, संकेत आदि के आ गया। 

शब्द सीमा यहीं पर रुकने का संकेत दे रही है, इस रोचक विवरण को सोमवार को ही continue कर  पायेंगें।

जय गुरुदेव  

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8  युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज के गोल्ड मैडल विजेता अरुण जी  हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। (1)संध्या कुमार-33 ,(2) रेणु श्रीवास्तव-25,(3) सुमन लता-25,(4) चंद्रेश बहादुर-32  ,(5 )सरविन्द पाल-35 ,(6 ) निशा भारद्वाज-27 ,(7  ) अरुण वर्मा-48 ,(8 ) नीरा त्रिखा-28 

सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।


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