9 अगस्त 2023 का ज्ञानप्रसाद
जनवरी 1969 को परम पूज्य गुरुदेव द्वारा तपोभूमि मथुरा में दिए गए उद्बोधन पर आधारित आज का ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत है। भगवान् से विवाह की लेख शृंखला सोमवार को पृष्ठभूमि से आरम्भ हुई थी आज बुधवार का लेख परम पूज्य गुरुदेव एवं हमारे अल्पबुद्धि विचारों का समिश्रण है।
तो आइए सीधा गुरुकुल कक्षा में गुरुचरणों में नतमस्तक होकर आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें।
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भगवान् ने कहा कि मैंने मनुष्य को बहुत प्यार से पैदा किया, पाला, बड़ा किया कि शायद यह मेरे काम आयेगा,मेरा सहयोगी बनेगा तथा इस संसार को सुन्दर बनायेगा, परन्तु इसने तो हमारी सारी की सारी इच्छाओं पर पानी फेर दिया है। यह वहीं जा पहुँचा है, जहाँ अन्य चौरासी लाख योनियों के प्राणी रहते हैं। इसने भगवान की नाक में दम कर रखा है। गुरुदेव कहते हैं कि हमने भगवान् से कहा- हे प्रभु! इसे इस बार माफ कर दीजिये। अगर किसी को आगे मनुष्य बनाना है तो उसे ठोंक-बजाकर, चेक करके देख लेना।हमने प्रार्थना की कि पहले उससे पूछ लेना कि क्या उसका उद्देश्य केवल सेठ बनना, धन कमाना ही है, प्रजनन करना ही है? अगर वह आपके प्रश्नों के उत्तर दे पाए तभी उस पर अपनी प्रतिभा का प्रयोग करना और मनुष्य बनाना। भगवान ने सैंकड़ों नहीं, हज़ारों नहीं बल्कि करोड़ों वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद, evolution की प्रक्रिया से एक ऐसी उत्कृष्ट कृति की रचना कि जिसे देखकर देवता तक दांतों तले उंगली दबाते हैं लेकिन हे मानव तूने तो अपने कारनामों से उस सर्वश्रेष्ठ रचनाकार का नाम ही मिट्टी में मिला दिया। गुरुदेव भगवान् को कह रहे हैं कि इसे बता देना कि मनुष्य जन्म लेने के यह-यह लक्ष्य हैं,यदि उसे मंजूर हो, तो ही मनुष्य जीवन देना, नहीं तो बन्दर, कुत्ते आदि की योनि में ही रहने देना।
गुरुदेव हमें जीवनक्रम को बदलने को कह रहे हैं। गुरुदेव बता रहे हैं कि आप भगवान् की वरिष्ठ संतान हैं, उस भगवान की जो बहुत ही उदार, दयालु, कृपा के सागर हैं तथा सर्वसम्पन्न है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्लेटफॉर्म से इसीलिए तो यह भक्तिगीत “तू प्यार का सागर है, तेरी इस बूँद के प्यासे हम” बार-बार बजता रहता है ताकि हम सदैव उस परमपिता भगवान् का स्मरण करते रहें। इतना ही नहीं इस प्लेटफॉर्म में गीत की अगली पंक्तियाँ “सौंप दे अपने जीवन की तू डोर प्रभु के हाथ, फिर आएगी जब-जब मुश्किल, होगा वोह तेरे साथ, कर ले इतना तू यकीन तुझे होगा न कोई ग़म” भी बार-बार स्मरण कराई जाती हैं ताकि उसे भगवान् की शक्ति का आभास होता रहे।
गुरुदेव बता रहे हैं कि भगवान् आपको सब कुछ देना चाहते, आपकी लेने की योग्यता तो हो। इसके लिए जीवनक्रम बदलने का प्रयास करना चाहिए। आप तो केवल लक्ष्मी का मंत्र सीखना चाहते हैं। मित्रो, आप चौरासी लाख योनियों का शरीर देखिये । आप अच्छे कर्म नहीं करेंगे, तो आपको गधे की योनि स्वीकार करनी पड़ेगी। आप पर ईंट लादी जाएँगी। वजन के मारे आप जख्मी हो जायेंगें,पैर लड़खड़ाने लगेंगे। आप कहेंगे क आचार्य जी हमें तो बहुत बड़े सेठ का जन्म मिला हुआ है, हम इतने धर्म कर्म करते हैं, हम इस योनि में कैसे जाएँगे ? लेकिन सेठ को मालुम नहीं कि उसने जितना भी धर्म कर्म का कार्य किया है वह केवल अपने स्वार्थ के लिए, वाहवाही लूटने के लिए किया है। उसे अपनी मूर्खता पर विचार करना चाहिए।
आज का मनुष्य तो बेकार की समस्याओं में, बेसिर-पैर की समस्याओं में उलझा हुआ है। उसका दिमाग जीवनभर इन समस्याओं के निवारण में ही खर्च होता जा रहा है। अगर ऐसा कहा जाए कि वह अपना जीवन बर्बाद कर रहा है तो शायद अनुचित न हो। जीवन की दौड़ में उसे सिवाय कभी न समाप्त होने वाली मृगतृष्णा के और कुछ भी नहीं मिल रहा है। Pay-package डबल भी हो जाए, गाड़ी बंगला बेस्ट से भी बेस्ट हो जाते फिर भी चाहत और ही पाने की रहती है क्योंकि उसके पास इस प्रश्न का उत्तर ही नहीं है “What next ?” Next तो कभी आता ही नहीं है। यह सब बेकार की बातें हैं। आपको जब एक लाख रूपए में घर का खर्च करना नहीं आता, तो दो लाख रुपये में कैसे आएगा ।
गुरुदेव बता रहे हैं कि यह सब बेकार की बातें हैं ,इन्हें बंद कीजिये और जो सबसे आवश्यक है उसे सीखिए Life management ,जीवन प्रबंधन।
गुरुदेव अपने बारे में कह रहे हैं कि हमने शानदार जिन्दगी जी है तथा प्रसन्नता के साथ इस संसार से विदाई भी लेंगें। हम भगवान् को बता सकेंगें कि जीवनभर की हमारी पूँजी क्या रही,आप लोग भगवान् को क्या जवाब दोगे ? आप तो अपनी जिन्दगी भर रोते ही रहे,धन कमाने के लिए ही लगे रहे, वोह भी किसी और के लिए, बेटों के लिए, संतान के लिए, खुद तो enjoy ही नहीं कर सके। इतना कुछ होने के बावजूद भी आपको हमेशा डर रहा कि मेरे बाद मेरी संतान का क्या होगा, अगर संतान गलत निकल आयी तो सारी सम्पति बर्बाद कर देगी। अगर भूंचाल आ जाए तो एक ही पल में सब स्वाहा हो जाए। इस तरह के फिज़ूल के प्रश्न उन्ही के दिल में आते हैं जिन्होंने जीवनभर संचय ही किया हो, अगर जीवन के कुछ अमूल्य पल भगवान् के लिए छोड़ देते और जीवन की डोर उसे सौंप देते तो कभी भी ऐसे विचार न आते। एक निडर योद्धा की भांति जीवन जी रहे होते क्योंकि आपके जीवन की डोर उसके हाथों में है जो सारी सृष्टि का मालिक है। भगवान् के सहारे से बढ़कर और कोई सहारा नहीं है।
अज्ञानी मनुष्य तो बेटे की तृष्णा में ही धुत है। हाय बेटा-हाय बेटा चिल्लाता रहता है। गुरुदेव बेटे की प्यास के सन्दर्भ में एक घटना का वर्णन कर रहे हैं जो कुछ इस प्रकार है :
एक बार हमारे पास मध्य प्रदेश के एक सज्जन आये थे। उनके दूसरे नम्बर के बेटे की शादी तो हो गयी थी लेकिन नौकरी नहीं लगी थी। वह मक्कार था, श्रम करना नहीं चाहता था। उसने अपने पिता जी से कहा कि आपने पैदा किया है, तो आप ही खिलाइए, यह आपका फ़र्ज़ है, आप ही खर्चा आदि भी कीजिए, नहीं तो हम आपको जान से मार देंगे। बेचारे बुज़ुर्ग डर के मारे भागकर हमारे पास आ गए एवं कहने लगे कि हम दो-तीन माह तक तपोभूमि में ही रहेंगें, घर नहीं नहीं जाएँगे, छुट्टी ले लेंगे एवं यहीं छिपे रहेंगे। उन्होंने कहा कि गुरु जी अगर उसका कोई पत्र आए तो यह मत कहना कि हम यहाँ हैं ।
मित्रो, उनके मन में बेटे के प्रति जो ख्वाब था वह चूर-चूर हो गया था। आप में से बहुत से लोग भी बेटों के पीछे पागल हुए फिरते हैं। रात-दिन बेटा-बेटा करते रहते हैं,स्वप्न लेते रहते हैं कि हमारा बेटा होगा, हमारा वंश आगे बढ़ाएगा तो कितना अच्छा होगा, नहीं तो हमारा वंश, हमारा नाम इधर ही समाप्त हो जाएगा। मनुष्य को पता नहीं है कि हवाई किले बनाने से कुछ नहीं होता , ईश्वर की शक्ति को पहचानना चाहिए। क्या पता कब ऐसी आंधी आए और मनुष्य के सारे स्वप्न रेत के कण की भांति उड़ जाएँ।
गुरुदेव कहते हैं कि ऐसे बेटों से बेहतर है कि हमारे संतान हो ही नहीं।
गुरुदेव भगवान् का सहारा लेने को कह रहे हैं, उस परम पिता का सहारा लेने को कह रहे हैं। अगर आप उसे पकड़ लेंगे, तो आपका कायाकल्प हो सकता है। आप कहेंगे कि हम तो रोज शंकर जी के मंदिर जाते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, परन्तु शंकर जी तो हमारी कोई सहायता नहीं करते हैं। सावन के महीने में हमने बिल्वपत्र चढ़ाया, पानी का मटका लगाया, परन्तु भगवान् शंकर ने कोई सहायता नहीं की। मित्रो, शंकर भगवान् की कृपा प्राप्त करने के लिए आपको बड़ा कदम उठाना होगा। बड़े कार्यों के लिए बड़ा कदम, जोखिम भरा कदम उठाना पड़ता है, तब जाकर लाभ प्राप्त होता है। शंकर जी ने रावण को, भस्मासुर को एवं परशुराम जी को वरदान दिया था, परन्तु उनके व्यवहार एवं कर्म करने के ढंग के कारण रावण एवं भस्मासुर का क्या अंत हुआ हम सब को मालुम है।
अगर आपकी विचारधारा ठीक होगी और आप भगवान् का अनुदान- वरदान प्राप्त करके इस संसार का कुछ अच्छा करना चाहते हैं, तो आपको भगवान् का हर प्रकार का सहयोग मिलेगा। बल एवं धन के आधार पर मनुष्य बलवान नहीं हो सकता है। हमें अपने विकास के लिए मजबूत आधार ढूँढ़ना होगा। वह मजबूत आधार केवल भगवान है। भगवान् का सहारा लेने के बाद हमारे पास क्या कमी रहेगी? हमें उनका प्यार-अनुदान प्राप्त करके अपना आध्यात्मिक विकास करने का प्रयास करना चाहिए। भगवान् के पास अनन्त सुख के भंडार भरे पड़े हैं। उनके एक मित्र थे सुदामा, वे गरीबी का जीवन जी रहे थे। लोगों ने कहा कि आपकी भगवान् से मुलाकात है। आप इस प्रकार क्यों हैं? सुदामा जी भगवान् के पास गये, भगवान् ने अपने मित्र को निहाल कर दिया। भगवान् से संबंध हो जाए तो क्या नहीं हो सकता।
गुरुनानक देव को उनके पिता जी ने नाराज़ होकर व्यापार करने के लिए 20 रुपए दिये और कहा, “जा व्यापार द्वारा अपना जीवन निर्वाह कर।” गुरुनानक देव जी संत थे, उन्होंने बीस रुपये की हींग खरीदी और उस स्थान पर आए जहाँ संतो का एक भण्डारा चल रहा था। उस समय दाल बन रही थी। उसमें हींग का छोंक लगा दिया तथा सभी के आगे दाल परोस दी। सभी उपस्थित लोगों ने प्रेम से भोजन किया तथा प्रसन्न हुए । प्रात:काल जब नानक घर पहुँचे, तो उनके पिता काफी नाराज़ थे। उन्होंने पूछा कि पैसों का क्या किया ? नानक जी ने सारी बात बता दी तथा कहा कि पिताजी, हमने आज ऐसा व्यापार किया है, जो भविष्य में 1000 गुना होकर वापस होगा। गुरुनानक देव जी यह निस्वार्थ कृत्य “सच्चा सौदा” True Bargain के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने इस व्यापार में बिना किसी रिटर्न की आशा किये इन्वेस्ट किया और कैसे multiply हुआ यह हम सब जानते हैं। यह इन्वेस्टमेंट पारम्परिक इन्वेस्टमेंट से बिल्कुल अलग है, यह भगवान् के खेत में बीज डालने जैसा है जो करोड़ों गुना होकर फलित होना निश्चित है। यह होता है भगवान् के साथ व्यापार करने का लाभ । यह महत्त्व है भगवान् के साथ जुड़ने का, उनसे सम्बन्ध जोड़ने का, उनसे विवाह करने का।
कल फिर इसी ज्ञान को आगे बढ़ायेंगें, जय गुरुदेव। शुक्रवार के स्वामी श्रद्धानन्द जी के स्पेशल शो की तैयारी तो चल ही रही होगी।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 11 युगसैनिकों ने संकल्प पूर्ण किया है। आज के गोल्ड मैडल विजेता सरविन्द जी और चंद्रेश जी हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।
(1)संध्या कुमार-43,(2) सुजाता उपाध्याय-41,(3) रेणु श्रीवास्तव-28,(4) सुमन लता-34 ,(5) चंद्रेश बहादुर-58 ,(6)सरविन्द पाल-58,(7) मंजू मिश्रा-27,(8) निशा भारद्वाज-24,(9) अरुण वर्मा-47,(10) नीरा त्रिखा-27,(11) वंदना कुमार-29
सभी साथियों के सहयोग, समर्पण, समयदान एवं श्रमदान के लिए हमारा नमन ।